हर वर्ष अगस्त माह के पहले शनिवार को राष्ट्रीय सरसों दिवस मनाया जाता है। ऐसे में, यह समय है उस फसल को सलाम करने का, जो हमारी थाली का स्वाद भी है और गांव की तरक़्क़ी का अहम हिस्सा भी। खासतौर पर हाइब्रिड सरसों, जो आज किसानों की मेहनत, उत्पादन क्षमता और आत्मगौरव की पहचान बन चुकी है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा की सरसों की खेती से लेकर देश के हर रसोईघर तक, हाइब्रिड सरसों ने तेलहन खेती का रूप ही बदल दिया है। पारंपरिक किस्मों की तुलना में यह 16–20% तक अधिक पैदावार देती है , तेल की मात्रा भी 2 से 2.5% तक अधिक होती है, और किसानों की सालाना शुद्ध आय में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है —ऐसे समय में, जब कई राज्यों में दामों की अनिश्चितता और फसल रोग बड़ी चुनौती बने हुए हैं, हाइब्रिड सरसों किसानों को स्थिरता और नई उम्मीद दे रही है।
हाइब्रिड सरसों के लिए 5 से 25 अक्टूबर के बीच में बुवाई सबसे उपयुक्त मानी जाती है, जब खेत में नमी और तापमान अनुकूल होते हैं। इस अवधि में बोई गई हाइब्रिड सरसों ने किसानों को लगातार बेहतर लाभ दिया है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश के वे किसान, जो समय पर बुवाई करते हैं और समुचित कृषि पद्धतियाँ अपनाते हैं, उन्हें न सिर्फ ज्यादा उपज मिल रही है, बल्कि बाजार में बेहतर दाम भी मिल रहे हैं। हरियाणा के किसान देवेंद्र सिंह कहते हैं, “मैं पिछले दस साल से हाइब्रिड सरसों की खेती कर रहा हूं क्योंकि इससे पैदावार ज़्यादा होती है और तिलहन की मात्रा और गुणवत्ता दोनों बेहतर मिलती हैं। हाइब्रिड अपनाने से जो अतिरिक्त आमदनी हुई, उससे मैंने ट्रैक्टर खरीदा, बच्चों को अच्छे स्कूल में दाख़िला दिलाया, और घर में कई तरह के सुधार किए।“
इस फसल की अहमियत सिर्फ खेतों तक ही सीमित नहीं है। यह ग्रामीण कृषि-रिटेल नेटवर्क एवं मंडियों को सशक्त बनाती है और गाँवों में आमदनी का एक स्थिर स्रोत बनती है। जिन क्षेत्रों में सरसों सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि जीवनशैली और संस्कृति का हिस्सा है, वहाँ हाइब्रिड किस्में तकनीकी सुधार के साथ स्थानीय गौरव और नई संभावनाओं का प्रतीक बन चुकी हैं। भारत जब खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनने और बदलते मौसम के अनुरूप खेती अपनाने की ओर अग्रसर है, तब हाइब्रिड सरसों एक ऐसा समाधान पेश करती है जो स्थानीय सफलताओं पर आधारित है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब नवाचार को भरोसे का साथ मिलता है, तो क्या कुछ संभव हो सकता है। साथ ही, यह एक आह्वान है कि हम उत्कृष्ट बीजों, क्षेत्रीय सलाहों और किसान-केन्द्रित उपायों में निवेश करें, ताकि तिलहन खेती का भविष्य सुरक्षित हो सके।
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