कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। यूथ यूनाइटेड फॉर विजन एंड एक्शन (युवा) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संवाद “विमर्श 2025” का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। समापन सत्र का विषय था “संवैधानिक द्वंद्व: सांस्कृतिक मार्क्सवाद के संदर्भ में चुनौतियाँ और समाधान”, जिसमें देशभर के प्रबुद्ध चिंतक, शिक्षाविद् और युवा प्रतिनिधि शामिल हुए। सत्र की शुरुआत डॉ. प्रतिभा त्रिपाठी जी के संबोधन से हुई, जिन्होंने तीन दिवसीय विमर्श की प्रमुख चर्चाओं का सार प्रस्तुत किया और इसे “युवा विचारों के संवाद और राष्ट्र निर्माण की भावना का प्रतीक” बताया।
मुख्य वक्ता प्रफुल्ल केतकर (संपादक, ऑर्गनाइज़र) ने अपने संबोधन में सांस्कृतिक मार्क्सवाद को भारत के संवैधानिक ढांचे के लिए एक गंभीर चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि यह विचारधारा “संविधान, राष्ट्र और लोकतंत्र — तीनों का विरोध करती है,” और जहाँ-जहाँ मार्क्सवाद फैला है, वहाँ लोकतंत्र का गला घोंटा गया है। उन्होंने भारतीय संविधान से जुड़ी दो मिथ्याओं को खारिज किया — पहला, कि यह केवल ब्रिटिश मॉडल की नकल है और दूसरा, कि यह किसी एक समुदाय के हितों के लिए बनाया गया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि “भारत लोकतंत्र से अनजान नहीं था; हम संसद और उसकी प्रक्रियाओं को भलीभांति जानते थे।” उन्होंने यह भी बताया कि अंबेडकर जी ने स्वयं कम्युनिस्ट और समाजवादी दलों को संविधान के प्रमुख आलोचक कहा था और यह विचारधाराएँ भारत-केंद्रित नहीं बल्कि चीन-केंद्रित हैं, जो देश को जाति, भाषा, समुदाय और क्षेत्र के आधार पर बाँटने का प्रयास करती हैं।
मुख्य अतिथि प्रो. मनीष आर. जोशी (सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग - यूजीसी) ने भारतीय संविधान और भारत की सभ्यतागत मूल्यों के बीच गहरे संबंध पर प्रकाश डाला। उन्होंने “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूर्ण होने पर देशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि यह गीत मात्र एक रचना नहीं बल्कि भारत माता से भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना के तीन मूल सिद्धांत स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को भारत की सनातन परंपराओं से जोड़ा। उन्होंने “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” को स्वतंत्रता और समानता का आधार बताया तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्” को बंधुता का सार कहा। उन्होंने युवाओं से किसी भी हीन भावना को त्यागने का आग्रह करते हुए कहा कि हमें अपनी महान भारतीय धरोहर को पहचानना और अपनाना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि प्रो. (डॉ.) पवित्रा भारद्वाज (प्राचार्या, कमला नेहरू कॉलेज) ने कार्यक्रम की मेज़बानी को “विचारों का उत्सव” बताया। उन्होंने कहा कि युवा केवल ज्ञान का प्रसार नहीं कर रहा बल्कि युवाओं को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला ‘परिवर्तनकारी एजेंट’ को स्थापित करने का भी प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन संविधान को समझने और उसके बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने में सहायक होते हैं। सत्र की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि युवा की नई वेबसाइट का शुभारंभ रही, जो संगठन के डिजिटल विस्तार और युवा-नेतृत्व वाले राष्ट्र निर्माण के मिशन को और गति प्रदान करेगी। कार्यक्रम का समापन डॉ. मीनू रानी के धन्यवाद ज्ञापन और राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” के सामूहिक गायन से हुआ।
युवा (युथ यूनाइटेड फॉर विज़न एंड एक्शन) एक युवा-नेतृत्व वाला संगठन है जो रचनात्मक संवाद, प्रेरक कार्रवाई और भारत की सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित राष्ट्र निर्माण को प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य युवाओं को समाज के सक्रिय ‘परिवर्तन के वाहक’ के रूप में सशक्त एवं समृद्ध बनाना है। युवा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संवाद “विमर्श 2025” का समापन दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कॉलेज में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। समापन सत्र का विषय था “संवैधानिक द्वंद्व: सांस्कृतिक मार्क्सवाद के संदर्भ में चुनौतियाँ और समाधान”, जिसमें देशभर के प्रबुद्ध चिंतक, शिक्षाविद् और युवा प्रतिनिधि शामिल हुए। सत्र की शुरुआत डॉ. प्रतिभा त्रिपाठी जी के संबोधन से हुई, जिन्होंने तीन दिवसीय विमर्श की प्रमुख चर्चाओं का सार प्रस्तुत किया और इसे “युवा विचारों के संवाद और राष्ट्र निर्माण की भावना का प्रतीक” बताया।
मुख्य वक्ता श्री प्रफुल्ल केतकर (संपादक, ऑर्गनाइज़र) ने अपने संबोधन में सांस्कृतिक मार्क्सवाद को भारत के संवैधानिक ढांचे के लिए एक गंभीर चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि यह विचारधारा “संविधान, राष्ट्र और लोकतंत्र — तीनों का विरोध करती है,” और जहाँ-जहाँ मार्क्सवाद फैला है, वहाँ लोकतंत्र का गला घोंटा गया है। उन्होंने भारतीय संविधान से जुड़ी दो मिथ्याओं को खारिज किया — पहला, कि यह केवल ब्रिटिश मॉडल की नकल है और दूसरा, कि यह किसी एक समुदाय के हितों के लिए बनाया गया है। डॉ. भीमराव अंबेडकर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि “भारत लोकतंत्र से अनजान नहीं था; हम संसद और उसकी प्रक्रियाओं को भलीभांति जानते थे।” उन्होंने यह भी बताया कि अंबेडकर जी ने स्वयं कम्युनिस्ट और समाजवादी दलों को संविधान के प्रमुख आलोचक कहा था और यह विचारधाराएँ भारत-केंद्रित नहीं बल्कि चीन-केंद्रित हैं, जो देश को जाति, भाषा, समुदाय और क्षेत्र के आधार पर बाँटने का प्रयास करती हैं।
मुख्य अतिथि प्रो. मनीष आर. जोशी (सचिव, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग - यूजीसी) ने भारतीय संविधान और भारत की सभ्यतागत मूल्यों के बीच गहरे संबंध पर प्रकाश डाला। उन्होंने “वंदे मातरम्” के 150 वर्ष पूर्ण होने पर देशवासियों को बधाई देते हुए कहा कि यह गीत मात्र एक रचना नहीं बल्कि भारत माता से भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना के तीन मूल सिद्धांत — स्वतंत्रता, समानता और बंधुता — को भारत की सनातन परंपराओं से जोड़ा। उन्होंने “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति” को स्वतंत्रता और समानता का आधार बताया तथा “वसुधैव कुटुम्बकम्” को बंधुता का सार कहा। उन्होंने युवाओं से किसी भी हीन भावना को त्यागने का आग्रह करते हुए कहा कि हमें अपनी महान भारतीय धरोहर को पहचानना और अपनाना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि प्रो. डॉ.पवित्रा भारद्वाज (प्राचार्या, कमला नेहरू कॉलेज) ने कार्यक्रम की मेज़बानी को “विचारों का उत्सव” बताया। उन्होंने कहा कि युवा केवल ज्ञान का प्रसार नहीं कर रहा बल्कि युवाओं को समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाला ‘परिवर्तनकारी एजेंट’ को स्थापित करने का भी प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन संविधान को समझने और उसके बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने में सहायक होते हैं। सत्र की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि युवा की नई वेबसाइट का शुभारंभ रही, जो संगठन के डिजिटल विस्तार और युवा-नेतृत्व वाले राष्ट्र निर्माण के मिशन को और गति प्रदान करेगी। कार्यक्रम का समापन डॉ. मीनू रानी के धन्यवाद ज्ञापन और राष्ट्रगीत “वंदे मातरम्” के सामूहिक गायन से हुआ। युवा (युथ यूनाइटेड फॉर विज़न एंड एक्शन) एक युवा-नेतृत्व वाला संगठन है जो रचनात्मक संवाद, प्रेरक कार्रवाई और भारत की सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित राष्ट्र निर्माण को प्रोत्साहित करता है। इसका उद्देश्य युवाओं को समाज के सक्रिय ‘परिवर्तन के वाहक’ के रूप में सशक्त एवं समृद्ध बनाना है।
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