राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में इस्कॉन बेंगलुरु-हरे कृष्ण मूवमेंट वृंदावन के उपाध्यक्ष और अक्षय पात्र फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भरतर्षभ दास ने कहा कि विश्व को स्थायी शांति और सद्भाव का मार्ग केवल भारत ही दिखा सकता है। हिंदुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज़ एजेंसी द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) के “सम्वेत सभागार” में आयोजित “सामाजिक–सांस्कृतिक चेतना और संघ” कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए उन्होंने भारत की सही सांस्कृतिक छवि को दुनिया के सामने पेश करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
भरतर्षभ दास ने कहा कि आज का विश्व वैचारिक संघर्षों से घिरा हुआ है और कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की छवि को गलत रूप से प्रस्तुत किया जाता है, हमें इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए नए उपाय खोजने होंगे। उन्होंने यह भी जोड़ते हुए कहा कि आरएसएस ने पिछले 100 वर्षों से सभी विरोधों के बावजूद भारत की सांस्कृतिक पहचान को मजबूती से स्थापित करने का कार्य किया है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे वर्तमान युग की वैचारिक चुनौतियों को समझें और अपने जीवन में सनातन मूल्यों को आत्मसात करें। उन्होंने कहा कि वैचारिक स्पष्टता ही सामाजिक समरसता की आधारशिला है। संघ ने पिछले 100 वर्षों में दिखाया है कि श्रद्धा, अनुशासन और सांस्कृतिक दृढ़ता किस तरह एक राष्ट्र को सशक्त बना सकती है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आरएसएस की सौ वर्षीय सेवा–यात्रा की प्रशंसा की और कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सौ वर्षों की यात्रा हमें बताती है कि राष्ट्रीय विकास का आरंभ आत्मबोध, परिवार के प्रति उत्तरदायित्व, सामाजिक समरसता और सामूहिक कर्तव्य से होता है। विजेंद्र गुप्ता ने “संघ के 100 वर्ष” कार्यक्रम में कहा कि 27 सितंबर 1925 को नागपुर में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सौ वर्षों में सेवा, अनुशासन और सांस्कृतिक उत्तरदायित्व पर आधारित एक संगठित राष्ट्रचेतना का निर्माण किया है। उन्होंने कहा कि संघ की शताब्दी यात्रा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित अद्वितीय तप, त्याग, अनुशासन और सेवा का परिचायक है। आज यह विश्व का सबसे बड़ा और अनूठा स्वयंसेवी संगठन इस तथ्य का प्रमाण है कि राष्ट्रसेवा को जीवन का लक्ष्य मानकर चलने वाले स्वयंसेवकों ने इसे सशक्त आधार प्रदान किया।
उन्होंने कहा कि 1925 में विजयदशमी के दिन इसकी स्थापना का उद्देश्य स्पष्ट था-भारत की संस्कृति, समाज और राष्ट्र को एक सजग, समन्वित और जागृत दिशा प्रदान करना। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर वर्तमान समय तक, संगठन ने सदैव देशभक्ति, सामाजिक एकता और राष्ट्रीय चेतना को सुदृढ़ किया है तथा हर चुनौती और पुनर्निर्माण के समय राष्ट्र के साथ खड़ा रहा है। श्री गुप्ता ने कहा कि संघ की सौ वर्षीय यात्रा केवल एक संगठन की कहानी नहीं बल्कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण, सांस्कृतिक आत्मविश्वास और अनुशासित राष्ट्रनिर्माण का इतिहास है। नागपुर की छोटी शुरुआत आज एक विशाल वटवृक्ष में परिवर्तित होकर हजारों-लाखों लोगों को प्रेरणा, शक्ति और संरक्षण प्रदान कर रही है।
श्री गुप्ता ने कहा कि संघ ने समाज में सांस्कृतिक चेतना जगाने, चरित्रवान नागरिक तैयार करने, सामाजिक सद्भाव बढ़ाने और कर्तव्यबोध विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगठन का योगदान केवल विस्तार में नहीं बल्कि समाज को सकारात्मक दिशा देने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में निहित है। उन्होंने कहा कि संघ के 100 वर्षों की यात्रा अनगिनत स्वयंसेवकों के त्याग और समर्पण का प्रतीक है। आत्मनिर्भर भारत और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ते देश के लिए संगठन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। श्री गुप्ता ने बताया कि 1925 में बोए गए बीज ने आज एक वटवृक्ष का रूप ले लिया है, जो देश की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को सशक्त रूप से पोषित कर रहा है। उन्होंने कहा कि संगठन ने युवाओं में राष्ट्रीय सुरक्षा चेतना जगाई, सेना और अन्य सेवाओं में योगदान हेतु प्रेरित किया तथा सीमावर्ती क्षेत्रों-जैसे दादरा और नगर हवेली-में विकासात्मक गतिविधियों के माध्यम से स्थानीय सशक्तिकरण और राष्ट्रीय जागरूकता को मजबूत किया है।
संघ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि 100 वर्ष पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का असल में धरती पर अवतरण हुआ था और डॉ केशव बलिराम हेडगेवार इस अवतरण के भगीरथ बने थे। हम भाग्यशाली हैं कि हमें इस अवतरण को देखने, इसमें स्नान करने और इस गंगा का हिस्सा बनने का अवसर मिला। उन्होंने कहा कि संघ को जानना है, तो उसके कार्यकर्ता और कार्यपद्धति को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2025 संघ की स्थापना के 100 वर्ष और वंदेमातरम् के लिखे जाने के 150 वर्ष पूरे होने के रूप में जाना जाएगा। साथ ही यह वर्ष राम मंदिर आंदोलन को पूर्णाहुति देने के वर्ष के तौर पर भी याद किया जाएगा। उन्होंने तुलना की और कहा कि इसी दौरान देश में साम्यवाद और समाजवाद के आंदोलन भी शुरू हुए थे, लेकिन वे आज कहां हैं और संघ कहां है। ऐसा संघ के लिए जीवन समर्पित करने वाले कार्यकर्ताओं के चलते संभव हो पाया।
आईजीएनसीए के अध्यक्ष एवं हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक रामबहादुर राय ने कहा कि संघ को समझने के लिए उन कार्यकर्ताओं के जीवन को जानना आवश्यक है जिन्होंने डॉ. हेडगेवार के साथ समय बिताया और राष्ट्र-निर्माण में अपना जीवन अर्पित कर दिया। उन्होंने बताया कि युगवार्ता के विशेषांक में ऐसे 105 कार्यकर्ताओं का जीवन-चित्रण संकलित है, जो वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। राय ने कहा कि वर्ष 2025 इतिहास में तीन महत्त्वपूर्ण घटनाओं के कारण याद किया जाएगा— संघ की स्थापना के 100 वर्ष, ‘वंदेमातरम्’ के 150 वर्ष और राम मंदिर आंदोलन की पूर्णाहुति। उन्होंने कहा कि साम्यवाद और समाजवाद जैसे आंदोलन समय की धारा में बह गए, पर संघ अपनी निरंतर सेवा और कार्यकर्ताओं के त्याग के कारण आज भी समाज का नेतृत्व कर रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार समूह के अध्यक्ष अरविंद भालचंद्र मार्डीकर ने स्वागत भाषण देते हुए एजेंसी के इतिहास और विस्तार की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि एजेंसी आज 15 भारतीय भाषाओं में समाचार सेवा देती है और अनेक चुनौतियों के बावजूद लगातार आगे बढ़ रही है। कार्यक्रम में नवोत्थान के विशेषांक ‘संघ शताब्दी : नए क्षितिज’ तथा युगवार्ता के विशेषांक ‘नींव के पत्थर’ का विमोचन किया गया। नवोत्थान में संघ की सांस्कृतिक चेतना और शताब्दी दृष्टि पर केंद्रित आलेख हैं, जबकि युगवार्ता में 105 वरिष्ठ प्रचारकों का जीवन-संघर्ष और राष्ट्रकार्य संकलित है। इस दौरान कई अतिथि देश-विदेश से आए, उनमें अक्षय पात्र दिल्ली-एनसीआर और जम्मू-कश्मीर के डिविजन हेड गोविंद दत्ता दास, भाजपा पूर्वांचल मोर्चा से बसंत झा, संजय भाई आदि मौजूद रहे।
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