'रामजन्मभूमि की तरह विकसित हो सीता प्राकट्यस्थली'

By: Dilip Kumar
1/11/2018 1:47:29 PM
नई दिल्ली

अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक व मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने रामकथा के पांचवें दिन बुधवार को खरका रोड स्थित मिथिलाधाम में सीता की प्राकट्ययस्थली को विकसित करना जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि राम की जन्मभूमि की तरह ही पवित्र सीता की प्राकट्यस्थली है तो फिर इसका विकास क्यों रुका रहेगा। ये ठीक हैं कि शासन- प्रशासन के सहयोग से सड़कें बन रही हैं। लाइट लग रही हैं। लेकिन, यह भी जरूरी है कि सीता माता की प्राकट्यस्थली को भी पूरे विश्व में सम्मान मिले। इस धरती का नाम पूर्व में सीतामही रहा। इसीलिए कि सीता का जन्म हुआ और सीता की धरती है। यही बाद में अपभ्रंश होकर सीतामढ़ी हो गया है।

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उन्होंने कहा कि यहां के लोग बड़भागी हैं कि इनलोगों ने सीता की जन्मभूमि पर जन्म लेकर मानव जीवन शुरू किया है। उन्होंने कहा कि तीर्थ के जागृत होने का भी एक मुहूर्त होता है। यह हमारे कर्म और आचरण से निकट आता है। उन्होंने शासन, किसान, गृहस्थ, बुद्धिजीवी, महिला, और व्यापारियों समेत समाज के हर वर्ग के लोगों से सीता की भूमि के अनूकुल आचरण करने का आह्वान करते हुए कहा कि शुद्ध आचरणों से ही सीतामढ़ी को श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या की तरह ही जाना जाएगा। यहां जगदजननी जानकी हल की नोक की चीरी हुई धरती से प्रकट हुईं थीं। यह धरती महान है।

सीता का जन्म धरती से होने से ही भारत माता

मोरारी बापू ने भारत की महिमा को बताते हुए कहा कि गुणशील सीता ने मर्यादित आचरण कर अपनी इस पृथ्वी माता की गरिमा को बढ़ाया। धरती माता हर प्रकार जोतने- कोड़ने, काटने पर भी फल देती हैं, और इनकी बेटी सीता थीं। जिनके सभी गुण सीता में थे। इसी कारण, यह धरती मां मेरी भारत माता हैं, जो दुनिया में कहीं नहीं है। किसी भी देश को माता नहीं कहा जाता लेकिन हमारी धरती भारत माता है। जैसे सीता ने धरती से जन्म लेकर इस भारत की धरती का नाम बढ़ाया वैसे ही आप भी अपने कर्म से अपने माता- पिता का भी मान सम्मान बढ़ा सकते हैं।

सबंधों के निर्वहन में निर्धारित दूरी जरूरी

रामकथा वाचक मोरारी बापू ने सुरक्षित जीवन जीने के सूत्र बताते हुए कहा कि एक मकान को बनाने के लिए कई पिलर लगे रहते हैं, लेकिन अगर वे आपस में मिलना चाहें तो कभी मिल नहीं सकते। अगर वे आपस में अधिक करीब आ जाएंगे तो पूरा मकान ही भड़भड़कार गिर जाएगा। इसीतरह, अगर संबंधों में दूरी मतलब मर्यादा रहेगी तभी परिवार , समाज टिकाऊ होगा। इस मर्यादा का नाम ही अलग- अलग नामों से दिया गया है, जैसे - पति, जेठ, मां, पिता, बहन, भाई , दादा, दादी, सास, ससुर आदि।

जीवन की पढ़ाई सीखने पर आनंद

मोरारी बापू ने चौथे दिन की कथा को खासकर युवा और बेटियों पर ही के्द्रिरत कर रखा। सियाराम की कथा के साथ- साथ वर्तमान परिप्रेक्ष्य को बराबर जोड़े रखते हुए कहा कि आज का युवा केवल पढ़ाई- पढ़ाई में लगा रहता है, मगर मेरा मानना है कि इसके साथ- साथ जीवन की पढ़ाई भी सीखना जरूरी है, ताकि पूरा जीवन आनंदमय हो। आनंद राम हैं, सिया हैं। इसलिए, रामकथा सुनो और सीखो।

बेटियों की स्वतंत्रता में मर्यादा जरूरी

मोरारी बापू ने महिला सशक्तीकरण और बेटियो की स्वतंत्रता का पक्ष लेते हुए कहा कि स्वतंत्रता के साथ मर्यादा का रहना आवश्यक है। उन्होंने मीरा का उदाहरण देते हुए कहा कि मीरा ने राजघराने की रहते हुए कृष्ण से प्रेम किया लेकिन, मर्यादा में रहकर। इस कारण, उनकी मर्यादा की चर्चा आज भी होती है। सियाजी ने भी अपने संबंधों के निर्वहन में मर्यादा का पालन किया। किसी भी मंच पर नर्तक को नाचने की स्वतंत्रता होती है, लेकिन इसके साथ- साथ मंच और नृत्य की मर्यादा का जो पालन करता है, वहीं अवार्ड का हकदार बनता है।

'राजनीति में धर्म जरूरी, मगर धर्म में राजनीति नहीं हो'

मोरारी बापू ने रामकथा के चौथे दिन मंगलवार को खरका रोड स्थित मिथिलाधाम में वर्तमान सामाजिक जीवन की सच्चाइयों से अवगत कराते हुए कहा कि राजनीति में धर्म होना ही चाहिए , लेकिन धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए। धर्म का मतलब सत्य, प्रेम और करुणा से है। उन्होंने सवाल उठाते हुए जनसमूह से पूछा कि राजनीति में इन तीनों को होना चाहिए कि नहीं? इन तीनों के बगैर राजनीति हो ही नहीं सकती। लेकिन आज के दौर में चल रही तथाकथित राजनीति में सत्य, करुणा और प्रेम तीनों का अभाव है, इसीलिए प्रश्न उठ रहे हैं। उन्होंने फिर प्रश्न उछालते हुए कहा कि कौन धर्म है, जो प्रेम और सत्य को मना करेगा।

सभी धमार्ें का सार प्रेम, करुणा और सत्य ही है। अगर राजनीति में प्रेम नहीं हो तो नफरत पैदा हो जाएगी, जो समाज और देशहित में नहीं होगी। अगर प्रेम से राजनीति होगी, सत्य से कामकाज होगा और सबके लिए दिल में करुणा होगी तो हर किसी का कल्याण होगा। विश्व में शांति का वास होगा। वेद पुराणों में भी कहा गया है कि- ‘धर्म न दूसर सत्य समाना, आगम-निगम पुराण बखाना।

जानकी से पाणिग्रहण से राम में ताकत

माता जानकी की शक्ति को बताते हुए मोरारी बापू ने कहा कि मां जानकी से पाणिग्रहण करने के बाद ही उनकी भुजाओं में ताकत आई थी। विश्वविजेता बने थे। क्योंकि उनमें परम शक्ति, परम विद्या थी। इसीलिए , माता सुनयना चाहती थीं कि उनके उदर से कोई संतान हो। इसी में मांडवी और उर्मिला उनकी संतान थीं। मांडवी और सीता समभाव थीं। जैसे - भरत और राम। लेकिन, उर्मिला को भी सीता बहुत मानती थीं। उन्हें उर्मि कहती थीं। आज की कथा में भाजपा नेता नंदकिशोर यादव, सांसद रमा देवी, विधान पार्षद देवेशचंद्र ठाकुर, विधायक अमित कुमार टुन्ना आदि थे।

जानकी के बिना राममंत्र पूरा नहीं

बापू ने कहा कि जानकी के बिना राम का मंत्र पूरा नहीं होगा। राम में ही सिया है। राम और रमा दोनों समाहित है। ज य राम रमा रमणं, शमणं। जानकी परमविद्या हैं। परमविद्या को कभी कलंक नहीं लगता। लेकिन, लगाया जाता है। प्रयास होता है। विद्यावान को कलंक लग सकता है। विद्या को नहीं। इसीलिए राम पर अंगुली उठी लेकिन परम विद्या सीता को कलंक नहीं लगा। विद्यावान जल सकता है, लेकिन विद्या नहीं। विद्या अखंड और अक्षय है। विद्यावान का नाश होता है। हनुमान वहीं विद्यावान है। हनुमान चालीसा में कहा गया है कि- विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिो को आतुर।

सबसे पहले शास्त्रार्थ का विरोध जानकी ने किया

रामकथा वाचक मोरारी बापू ने मां जानकी के जन्म के बारे में बताते हुए कहा कि मां जानकी परम विद्या हैं। विद्या तो अजन्मा होती है। यह पृथ्वी से निकलती है, और पृथ्वी में समा जाती है। कभी वन गमन करती है तो कभी पूरे विश्व में अपना सुगंध फैलाती है। उन्होंने कहा कि जानकी का रूप केवल करुणामय नहीं है, ाल्कि राजा जनक के दराार में ाराार चल रहे खंडन- मंडन के शास्त्रार्थ को भी खत्म करने का विरोध किया था।

उन्होंने ाताया कि उस समय की परंपरा थी कि जो शास्त्रार्थ में हार जाता था, उसको जलसमाधि दी जाती थी। यही अष्टावक्र के साथ हुआ था, उसके पिता को जा जलसमाधि दे दी गई तो वह पारंगत होकर आया और उनलोगों को हराया , जिनलोगों ने जलसमाधि का विधि- विधान ानाया था। उनको भी जलसमाधि लेनी पड़ी। इसीलिए, कोई विधान ानाते समय जल्दााजी नहीं करना चाहिए। और इसी विधान का विरोध राजा जनक से किया था। क्योंकि, वे तो परम विद्या थीं।

जिस समृद्धि से मूल स्वभाव का हो नाश, उसे त्यागे : मोरारी बापू

अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक व मानस मर्मज्ञ मोरारी बापू ने सीतामढ़ी के खरका रोड स्थित मिथिलाधाम में रामकथा के तीसरे दिन सोमवार को जीवन जीने की कला के ाारे में भी ‘सिया के चरित्र के उदाहरणों के साथ विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि सुख-साधन रखिए। लेकिन, जा इन साधनों से मानव की मूल प्रकृति व स्वभाव का नाश हो तो उस समृद्धि का जरूर त्याग कर देना चाहिए। जो गरीबी को तोड़ दे, वह समृद्धि कुसंगति के समान है। जा भी आंख से पानी आना बंद हो जाए, तो समझो कि इस समृद्धि का त्याग जरूरी है।

बापू ने युवाओं से किया आह्वान

मोरारी बापू ने कथा के दौरान युवाओं से आह्वान करते हुए कहा कि आप मुझे अपना नौ दिन दें, हम आपको नव जीवन प्रदान करेंगे। नौ दिनों तक जीवन की पाठशाला चलती है, जिसमें जीने की कला भी बताई जाती है। सिर्फ रामकथा नहीं होती , बल्कि राम और सीता ने जिन आदर्शों को रखते हुए अपने जीवन के माध्यम से जो संदेश दिया उसे भी बताते हुए जीने की कला भी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बताई जाती है। उन्होंने कहा कि कोई भी संघ हो, जो विचार को कुत्सित करे, उसको छोड़ दें। बुद्धिजनों के साथ बैठने से ही संगति आती है। सदाबुद्धि आती है।

क्या हो गया जमाने को, कोई राजी नहीं निभाने को...

मिथिला धाम स्थित कथा पंडाल में मोरारी बापू ने सियाराम-सियाराम के धुन पर भजन शुरू किया और कहा कि सिय के रूप में किशोरी जगत जननी है और करुणा निधान श्रीराम के प्रियतम है। जगदंबा के रूप में सीता है। जगत माता के रूप में सिय है। ये तीन रूप मां के हैं। इसे गानेवाले की बुद्धि शुद्ध होती है। उन्होंने जब भजन शुरू किया तो श्रोता दर्शक नृत्य कर उठे। उन्होंने कहा कि इस महामंत्र के जप करनेवाले हर क्षेत्र में कामयाब होंगे।

उन्होंने कहा कि ‘लाजिब नहीं सब हो कामयाब, जीना सीख ले तो नहीं रहा नाकाम। जीने के लिए निर्मल बुद्धि की जरूरत है। कहा कि रामनाम का महत्व इतना बड़ा है कि इसकी महिमा की बखान स्वयं राम नहीं कर सकते हैं। रामनाम ऐसा सूर्य है, जो अग्नि बनकर सारे पाप पुंज को जला देते हैं। इसका न आदी है न मध्य है न अवसान है। लेकिन, दुर्भाग्य है कि लोग अपने जीवन में नहीं उतार पा रहे हैं। इससे नाना प्रकार के दुख भोग रहे हैं। ‘क्या हो जवाने को, कोई राजी नहीं निभाने को। उन्होंने फिर भजन शुरू करते हुए सियाराम कहिए, सियाराम कहिए, राधेश्याम कहिए, राधेश्याम कहिए पर श्रद्धालु भावविभोर होकर नृत्य करने लगे।

सिया राममय सब जग जानी, करहूं प्रणाम जोरि युग पाणी

मानस मर्मज्ञ व अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक मोरारी बापू ने दूसरे दिन रविवार को फिर ‘सिया शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि राम परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। सिया उसमें समाहित हैं। दोनों अभिन्न हंै। सिया की महिमा गाते-गाते राम गुरुवर के पास आए थे। ‘सिया राम मंै सब जग जानी, करूहूं प्रमाण जोरि युग पाणी की अवधारणा ही सही मायने में प्रेम सदभाव व शांति का संबल है। सिय शब्द से प्रेम बढ़ता है। काम करने की शक्ति प्रदान करती है। पारदर्शिता और शालिनता प्रदान करती है। सहृदयता उत्पन्न करती है।

उन्होेंने कहा कि प्रात: काल जो ‘जनकसुता जगजननी जानकी अतिसय प्रिय करुणा निधान की, जाके जुगपद कमल मनाबउ तासु कृपा निर्मलमति पाबउ का स्मरण कर सिया को हृदय में धारण करेगा, उसकी बुद्धि निर्मल होगी। भगवान की घोषणा की अनुसार, परम ब्रह्म परमेश्वर की प्राप्ति होगी। क्योंकि भगवान ने मानस में स्पष्ट कहा हैं कि ‘निर्मल जन मन सो मोहि भावा मोहे कपट क्षल छुद्र न भावा। सिया के नाम उच्चारण करने तथा उनके युगल पद की वंदना करने वाले को श्रीराम मिलेंगे। फिर उन्होंने कहा कि राम जिसमें श्री सामाहित है वह महामंत्र है और जिसको महादेव स्वयं निरंतर जपते रहते हैं।

गोस्वामी जी ने पहली बार सन् 1631 में रामकथा का संवाद करते हुए पहले दफा आधार शब्द का इस्तेमाल किया था, जो अकाट्य है। उन्होंने कहा था कि ‘कलयुग केवल नाम आधार, सुमरि-सुमरि नर उतरही पारा संसार सागर पार करनेवाले को निरंतर हृदय से राम नाम का जप करना चाहिए। श्री राम ने त्रेता में प्रकट होकर अहिल्या, शबरी, गिद्ध राज जटायू का उद्धार किया था, किंतु केवल उस राम के स्मरण से प्राणी का उद्धार हो जाएगा। योग, यज्ञ, व्रत, उपवास की बजाए किसी भी हालत में यदि निरंतर राम नाम का जप करे तो उसका उद्धार संभव है। संसार सागर को पार कर लेगा। इसके लिए भक्ति भाव के साथ मोरारी बापू ने सिया राम भजो-सिया राम भजो का गान शुरू किया। पंडाल में मौजूद हजारों श्रद्धालु इस महामंत्र के साथ नाच उठे।

धन्य यह धरती जहां भगवती प्रकट हुईं

श्री राम कथा में उपस्थित श्रद्धालुओं से संवाद करते हुए मोरारी बापू ने कहा कि धन्य यह धरती ह,ै जहां जगत जननी जानकी प्रकट हुईं। इस धरती पर पहुंचकर श्री राम पूर्णरूप से शक्ति संपन्न हुए। इसलिए इस धरती पर भाव के साथ आलस या प्रमाद के साथ जिस भी किसी भाव से सियाराम मंत्र का जप करे , उसे परम ब्रह्म परमेश्वर की प्राप्ति घर बैठे हो सकती है। उन्होंने इस धरती की महिमा का बखान करते हुए कहा कि 31 वर्ष बाद पुन: मुझे जगत जननी जानकी को श्रीराम कथा सुनाने का अवसर प्राप्त हुआ है। इससे मैं धन्य हो गया। जहां रामकथा होती है, सभी तीरथ - धाम चले आते हैं। इसीतरह इससे पूरे तीरथ का फल रामकथा सुननेवालों को होगी। रामकथा तो नहीं बदलती है लेकिन इसका दर्शन हर बार बदल जाता है। एक बार जो कथा सुन लेता है, उसको बराबर इसमें डुबकी लगाने का मन करता है।

राम नाम का आधार कलियुग में बेड़ा पार कराएगा: मोरारी बापू

मोरारी बापू ने खरका रोड स्थित मिथिलाधाम में रामकथा के दूसरे दिन कहा कि नाम का आधार त्रेतायुग से ही रहा है। आज आधार कार्ड लग रहा है लेकिन राम नाम का आधार तो पहले से ही बेड़ा पार लगाने का साधन रहा है। सतयुग में राम थे, जिन्होंने अहिल्या, जटायु, संतापी, शबरी और कवेट का आकर उद्धार किया। लेकिन, इस कलियुग में राम का नाम ही महामंत्र है , जो बेड़ा पार लगाएगा। मोरारी बापू ने कहा कि रामचरित मानस में भी तुलसीदस जी ने कहा है कि - महामंत्र जेहि जपत महेशू।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजी मेडियम से पढ़नेवाले बच्चों को भी आसानी से सीखना चाहिए कि जैसे फादर का आर और मदर का एम है जो राम है। राम का नाम ही कलियुग में महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कभी भी राम का नाम लिया जा सकता है। सोते- जागते, उठते-बैठते, किसी काम में हो लेकिन नाम जरूर भजें। वह नाम राम का हो या अल्लाह का या बुद्ध का। सभी तो एक ही नाम की व्याख्या करते हैं। राम का नाम काफी फलदायी है। सभी समस्याओं का निराकरण करनेवाला है। राम कथा की शुरुआत करीब दस बजे से ही हुई। इसमें मंगलाचरण के बाद बापू ने हनुमान और गणेश के रूपों और ब्रह्म की व्याख्या के साथ- साथ कई भजनों को गाया, इसपर रामकथा के श्रद्धालु झूम उठे।

मां जानकी की धरती पर रामकथा में ‘सिया की शक्ति का बखान

मां जानकी की प्राकट्यस्थली सीतामढ़ी में रामकथा की शुरुआत शनिवार को करते हुए अंतरराष्ट्रीय रामकथा वाचक मोरारी बापू ने कहा कि वे नौ दिनों तक इसबार कथा में मां जानकी की धरती पर सिया शब्द की व्याख्या संवाद के साथ करेंगे। उन्होंने खरका रोड स्थित मिथिला धाम में कथा की शुरुआत की। उन्होंने शुरुआत में राम चरित के बाल कांड का मंगलाचरण पढ़ा। इसके बाद हनुमान चालिसा के पाठ के साथ कथा की शुरुआत की गई। उन्होंने शुरू में ही कहा कि संवाद से ज्ञान और ऊर्जा बढ़ती है। विवाद से ऊ र्जा का क्षय होता है। सिया शब्द ब्रह्मविद्या है। जो राम चरित मानस की हृदयस्थली है। राम चरित मानस के मनन और उपासना से चौदह लाख रत्नों की प्राप्ति हो सकती है। जबकि समुद्र के मंथन से सिर्फ 14 रत्न ही निकले थे।

उन्होंने कहा कि मानस में 7 अंक का बड़ा महत्व है। उन्होंने बताया कि राम का यही सातवां अवतरण था। इसमें सप्त ऋषि की चर्चा है। सप्त आकाश की चर्चा है। सप्त सुर में संगीत की महिमा है और इसके प्राप्त कर लेने से सारी समस्याओं का समाधान संभव है। लोगों से रामायण का चिंतन- मनन और उपासना करने का आह्वान किया और कपट शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि रामायण में कपट मुनि की भी चर्चा है। कपट शब्द की व्याख्या में उन्होंने कहा कि कपट आदमी के दोष को छिपाता है। यह अहंकार से भी बुरा है। अपनी दुर्बलता छिपाने का नाम कपट है। दंभ दिखता है लेकिन कपट छिपा रहता है। लेकिन, यदि अपने अवगुण को परिमार्जित करेंगे , छिपाएंगे नहीं तो आप सफल मानव बन सकते हैं। कथा को सुनने के लिए ठंड के बावजूद बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ी थी।


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