सुरभि सिन्हा का कॉलम : महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करने से मिलती है विशेष कृपा 

By: Dilip Kumar
3/3/2024 9:03:42 PM

शास्रों में महाशिवरात्रि का वर्णन शिव को समाधि से जाग्रत होकर सृष्टि लीला में प्रवृत होने तथा शिव पार्वती के विवाह दिवस के रूप में मनाया जाता है। ज्योतिषाचार्य का माने तो शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के करने से उन्हें एक हजार अश्वमेध यज्ञ एवं सौ वाजपेय यज्ञ के पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस वर्ष महाशिवरात्रि सर्वार्थ सिद्धि योग, शिव योग, सिद्ध योग जैसा शुभ योग में मनाया जाएगा। इस दिन सभी ग्रहों के चार भावों में रहने से केदार योग बन रहा है।

इस वर्ष पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 8 मार्च को संध्याकाल 07 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 09 मार्च को संध्याकाल 05 बजकर 20 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। अतः 8 मार्च को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।

भगवान शिव हिन्दू संस्कृति के प्रणेता आदिदेव महादेव हैं। पुराणों में, वेदों में और शास्त्रों में भगवान शिव-महाकाल के महात्म्य को प्रतिपादित किया गया है। सांस्कृतिक मान्यता के अनुसार 33 कोटि के देवताओं में ‘शिरोमणि’ देव शिव हैं। सृष्टि के तीनों लोकों में भगवान शिव एक अलग, अलौकिक शक्ति वाले देव हैं। भगवान शिव पृथ्वी पर अपने निराकार-साकार रूप में निवास कर रहे हैं। भगवान शिव को सर्वव्यापक एवं सर्वशक्तिमान माना गया हैं। शिव प्रलय के पालनहार हैं और प्रलय के गर्भ में ही प्राणी का अंतिम कल्याण सन्निहित है।शिवरात्रि के शिव शब्द का अर्थ है ‘कल्याण’ और ‘रा’ दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बना है, तात्पर्य यह कि जो सुख प्रदान करती है, वह रात्रि है यानि शिवरात्रि है।

‘ शिवस्य प्रिया रात्रियस्मिन व्रते अंगत्वेन विहिता तदव्रतं शिवरात्र्‌याख्याम्‌।’

इस प्रकार शिवरात्रि का अर्थ होता है, वह रात्रि जो आनंद प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है। शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है। शिवरात्रि का व्रत सबसे अधिक बलवान है। भोग और मोक्ष का फलदाता शिवरात्रि का व्रत है। इस व्रत को छोड़कर मनुष्यों के लिए हितकारक कोई दूसरा व्रत नहीं है। भारत में फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को शिवजी का व्रत महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता हैं।

शिवरात्रि में चार प्रहरों में चार बार अलग-अलग विधि से पूजा करने का प्रावधान है। प्रथम प्रहर में - भगवान शिव की ईशान मूर्ति को दुग्ध द्वारा स्नान कराया जाता है। दूसरे प्रहर में - उनकी अघोर मूर्ति को दही से स्नान कराया जाता है। तीसरे प्रहर में- घी से स्नान कराया जाता है और चौथे प्रहर - में उनकी सद्योजात मूर्ति को मधु द्वारा स्नान कराया जाता है।

शिवरात्रि के दिन शिव को ताम्र फल (बादाम), कमल पुष्प, अफीम बीज और धतूरे का पुष्प चढ़ाना चाहिए एवं अभिषेक कर बिल्वपत्र चढ़ाना चाहिए। इस दिन लोग उपवास, पूजा और जागरण करते हुए महाशिवरात्रि व्रत को तीन प्रकार से मनाते हैं। पहला ‘फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी’ को एक समय का उपवास करते है। दूसरा चतुर्दशी को सवेरे महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करते है और तीसरा सायंकाल नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर शास्त्रोक्त स्नान करते है।

भगवान शिव को एक आदर्श गृहस्थ माना जाता है, क्योंकि मां पार्वती ने उन्हें कठिन तपस्या से पाया था और उनका सम्पूर्ण प्यार भी हासिल किया था। भगवान शिव केवल एक पत्नी व्रती है, इसलिए नारी को सर्वाधिक महत्व भगवान शिव ने दिया है। इतना ही नहीं, उन्होंने मां पार्वती को अपने शरीर में ही आधी जगह दे दी है, जिसके कारण वे अर्धनारीश्वर भी कहे जाते हैं।

मान्यता यह भी है कि जो प्राणी शिवरात्रि पर जागरण करता है, उपवास रखता है और कहीं भी किसी भी शिवजी के मंदिर में जाकर भगवान शिवलिंग के दर्शन करता है, वह जन्म-मरण पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति पा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, पूजा, उपवास एवं व्रत नहीं रखता है, वह सांसारिक माया, मोह एवं आवागमन के बंधन से हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। गीता में इसे स्पष्ट किया गया है-

या निशा सर्वभूतानां तस्या जागर्ति संयमी।
यस्यां जागृति भूतानि सा निशा पश्चतो सुनेः॥

अर्थात् विषयासक्त सांसारिक लोगों की जो रात्रि है, उसमें संयमी लोग ही जागृत अवस्था में रहते हैं और जहां शिव पूजा का अर्थ पुष्प, चंदन एवं बिल्वपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित कर भगवान शिव का जप व ध्यान करना और चित्त वृत्ति का निरोध कर जीवात्मा का परमात्मा शिव के साथ एकाकार होना ही वास्तविक पूजा है।

भगवान शिव कला के सृजनकर्ता, ताण्डव नृत्य द्वारा नई विधा को जन्म देने वाला नटराज, डमरू बजाकर संगीत उत्पन्न करने वाले, प्रकृति और पर्यावरण के रक्षक हैं। किसान के साथी हैं। भगवान शिव का वाहन बैल रूपी नन्दी है। इन्होंने पंचभूत को पनपाया, जिसमें क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा, तत्व हैं। वर्तमान समय में
भगवान शिव समस्त जम्बू द्वीप के एकीकरण के महान शिल्पी प्रतीत होते है, क्योंकि सती के शरीर के हिस्सों को शक्तिपीठों के रूप में स्थापित किया था, उस समय समूचा राष्ट्र-राज्य एक सूत्र में बंध गया था।

पांच सदियों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा ”जो रामेश्वर दरसु करिहहिं, ते तनु तजि मम लोक सिधारहि।“ इतना बड़ा आकर्षण है कि गंगाजल को रामेश्वरम में अर्पित करे तो मोक्ष मिलेगा। शैवमत कभी हिमालयी वादियों में लोकधर्म होता था। जब शिव यात्रा पर निकले तो नन्दी को पहलगाम में, अपने अर्धचन्द्र को चंदनवाड़ी में और सर्प को शेषनाग में छोड़ आये। अमरनाथ यात्री इन्हीं तीनों पड़ावों से गुजरते हैं। शिवालय में जाने—आने पर कोई पाबंदी नहीं है, न छुआछूत, न परहेज और न कोई अवरोध, क्योंकि शिवालय में आने के बाद सभी आगंतुक चाहे वह किसी जाति, किसी मजहब का क्यों न हो सभी शिव भक्त हो जाते हैं।

शिव भक्त द्वादश ज्योतिर्लिंग की पूजा करते हैं। यह चर्चा का विषय हमेशा बना रहता है कि अन्य देवताओं का जन्मोत्सव मनाया जाता है, मगर शिव का विवाहोत्सव पर्व क्यों मनाया जाता है। भगवान शिव दर्शाना चाहते हैं कि सृजन और निधन सृष्टि का शाश्वत नियम हैं। उन्हें कभी भी भूलना नहीं चाहिए। भगवान शिव ने श्रावण मास को पसंद किया था क्योंकि इस समय तक सारी धरा हरित हो जाती है। यह भी सिद्ध कर दिया गया है कि जल ही जीवन है। ऊबड़ खाबड़, सर्वहारा जनों को बटोरकर भगवान शिव ने माँ पार्वती से विवाह करने गये थे। यह समता का संदेश देता है।

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो।
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं।
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्।।

अर्थात वे तो चिता भस्म का लेप लगा कर विषपान किया करते थे व दिशाओं को ही वस्त्र स्वरूप धारण करते थे, वे पशुपति जटा रखते व आभूषण स्वरूप कंठ में भुजगपति को धारण किए रहते थे आज वे कपाली भूतेश जगदीश की पदवी पर प्रतिष्ठित हैं।

सभी व्यक्ति को मृत्युंजय मंत्र का हमेशा जाप करना चाहिए

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

ऐसी भी मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करने से भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है और भाग्य के दरवाजे खुलते हैं, तरक्की के रास्ते प्रशस्त्र होते हैं।

कोई भी व्यक्ति भगवान शिव के अतिरिक्त अन्य देवता को प्रसन्न करने के लिए एक मुखी से लेकर 14 मुखी तक के रुद्राक्ष धारण करते हैं। कहा जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने से भगवान शंकर के साथ भगवान सूर्य की विशेष कृपा मिलती है। इसी प्रकार दो मुखी रुद्राक्ष को भगवान अर्धनारीश्वर का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से गृहस्थ जीवन की परेशानियां दूर होती है। तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से अनेक विधाओं की प्राप्ति होता है। चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पांच मुखी रुद्राक्ष को कालागिनी स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वाले को मुक्ति मिलती है। छह मुखी रुद्राक्ष को भगवान कार्तिकेय का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने से विद्यार्थियों को विशेष लाभ मिलता है। सात मुखी रुद्राक्ष को अनंग स्वरूप माना जाता है।

इसे धारण करने वालों को लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है। आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान भैरव का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने वालों को अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। नौ मुखी रुद्राक्ष को नौ देवियों का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने वालों को नौ देवियों की कृपा मिलती है। दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का प्रतीक माना जाता है। इसे धारण करने वालों को भगवान विष्णु की कृपा मिलती है। ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को रुद्र का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वालों को विजय प्राप्त होती है। बारह मुखी रुद्राक्ष को भगवान सूर्य का प्रतीक है। इसे धारण करने वालों को राजनीति में सफलता के योग बनता हैं। तेरह मुखी रुद्राक्ष को कामदेव का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वाले व्यक्ति की आकर्षण शक्ति बढ़ती है। चौदह मुखी रुद्राक्ष को हनुमानजी का स्वरूप माना जाता है। इसे धारण करने वालों को हनुमान जी की विशेष कृपा मिलती है और व्यक्ति में साहस की वृद्धि होती है।

शिव पुराण के अनुसार धन के स्वामी कुबेर ने, पूर्व जन्म में रात में, शिवलिंग के समक्ष, दीप प्रज्वलित करने के कारण देवताओं के धनाध्यक्ष हुए थे। बेल (बिल्व) वृक्ष महादेव का स्वरूप माना गया है। फूल, कुम-कुम, प्रसाद आदि चीजें चढ़ाने से जल्द ही शुभ फल मिलते हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार शिवरात्रि का व्रत, पूजन, जागरण और उपवास करने वाले मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है। शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि महाशिवरात्रि के समान पाप और भय मिटाने वाला दूसरा कोई व्रत नहीं है।


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