कच्चा आटा खाकर साधना करते थे संत कच्चा बाबा

By: Devendra Gautam
4/1/2018 12:42:36 PM
Ranchi


समरेन्द्र कुमार
राँची। ब्रिटिश शासन काल में एक साधक हुए थे जिन्हें लोग कच्चा बाबा के नाम से पुकारते थे। उनका जन्म गोरखपुर के दीपगड़ गाँव में एक उच्च ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके ख्याति का अन्दाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इंग्लैंड के राजकुमार जार्ज पंचम जब भारत आये थे तो कच्चा बाबा को दान स्वरूप कुछ देना चाहते थे लेकिन उन्होंने कुछ भी स्वीकार नहीं किया और जार्ज पंचम को आर्शीवाद देकर विदा कर दिया।
कच्चा बाबा ने मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में घर बार छोड़ दिया था और काशी में वरूण नदी के किनारे एक गुफा में रहकर घोर साधना में लिंन हो गये थे। साधना के दौरान वे सिर्फ कच्चा आटा खाते थे। इसी कारण लोगों ने कच्चा बाबा कहने लगे। बाबा मोह माया से काफी दूर थे। उन्होंने अपने लिए कभी कोइ आश्रम नहीं बनाया। उनके भक्तों ने रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठ कर आकाश में विचरण करते देखा था। कच्चा बाबा का प्रकृति पर पूरा नियंत्रण था। वे जब आवाह्न करते थे तत्काल वर्षा होने लगती थी। राम के नाम और उनकी लीला में कच्चा बाबा का खास अनुराग था। देश के विभिन्न इलाकों से लोग उनके दर्शन के लिए आते थे।
श्रीलखन जी परम हंस नाम का एक शिष्य थे। वे बाबा के सत्संग के दौरान कहे गये ज्ञानों को लिपिबद्ध करते थे। जिसे बाद में पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया गया।
तंत्र और अघोर साधना में भैरवी का विशेष महत्व होता है। बाबा की भैरवी गंगाजली नाम की एक गड़ेरिन कन्या थी। बाबा ने उसे जीवन दान दिया था और बिमारियों से मुक्त कर चंगा किया था। उसके माता पिता ने उसे बाबा की सेवा में अर्पित कर दिया था । वाराणसी के जाल्हूपुर गाँव में बाबा की समाधि है। समाधि के पास ही कच्चा बाबा इंटर कॉलेज चलता है, जिससे स्थानीय बच्चों का भविष्य बन रहा है।
कहते हैं कि बाबा ने जब समाधि ली तो उनकी भैरवी गंगाजली ने उन्हें कुछ भेंट दी। उस वक्त बाबा के शव का हाथ खुला और उन्होंने भेंट को स्वीकार किया। आज भी उनकी समाधि लोगों की आस्था की केन्द्र बनी हुई है।


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