यहां साक्षात मॉं भगवती हुई थी प्रकट,कृष्ण और रुकमणि के साथ है रिश्ता

By: Dilip Kumar
10/12/2018 8:56:16 PM
नई दिल्ली

बुलंदशहर@दीपक शर्मा। माँ अवन्तिका देवी मन्दिर महाभारत कालीन अतिप्राचीन मन्दिर है। सच्चे मन से भक्त अगर कुछ भी मांगे मॉं अपने भक्तों को कभी भी निराश नहीं करती है। अवंतिका देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देसी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था और बाद में इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मिणी का विवाह भी हुआ था।
अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं, वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां जगदम्बा की है और दूसरी दाईं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां 'अवंतिका देवीÓ के नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है।
अवंतिका देवी मंदिर की ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देसी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था और बाद में इसी मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मिणी का विवाह भी हुआ था।
इस मंदिर का कृष्ण और रुकमणि के साथ रिश्ता है। पौराणिक कथा के अनुसार, यह कथा द्वापर युग की है और रुक्मिणी-कृष्ण विवाह से संबंधित है। कविंदतियों के अनुसार, बुलंदशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुंडिनपुर नगर था। कुंडिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे, जिनके नाम रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहन थीं सती रुक्मिणी। राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुंड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी का पूजन करती थीं। पूजन करने के पश्चात प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, 'हे जगतजननी! हे करुणामयी मां भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों।Ó राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया। शिशुपाल ने अपनी सेना को विवाह से तीन दिन पहले ही कुण्डिनपुर के चारों ओर तैनात कर दिया और हुक्म दिया कि श्रीकृष्ण को देखते ही बंदी बना लिया जाए। राजकुमारी को जब यह मालूम हुआ कि उनका बड़ा भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता है तो वह बहुत दुखी हुई। राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है, इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करें। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया, जब वह मंदिर में पूजन करने गई थीं। जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिंध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गए। घनघोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गईं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया। अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है। पृथ्वी पर जितनी भी सिद्धपीठ हैं, वह सब सतीजी के अंग हैं, लेकिन यह सिद्धपीठ सतीजी का अंग नहीं है। कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) साक्षात प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां जगदम्बा की है और दूसरी दाईं तरफ सतीजी की मूर्ति है। यह दोनों मूर्तियां 'अवंतिका देवीÓ के नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है।


आज हमको भगवान कृष्ण के प्रेम और विवाह की वह अनूठी दास्तान सुनाएंगे, जो शायद ही पहले आपने कभी सुनी हो। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जिला बुलंदशहर यूं तो आमतौर पर अपराधों की राजधानी के तौर पर जाना जाता है, लेकिन इतिहास का पहिया पीछे घुमाने पर पता चलता है कि भगवान कृष्ण ने यहां की जमीन में प्रेम के अंकुर रोपे थे।
माता के सेवक हिमांशु पंडित जी ने बताया कि अब माँ के नवरात्रे चल रहे हैं और नौ दिन तक माँ साक्षात मानों यहीं विराजमान रहती हों। माता के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। उन्होंने बताया कि यहाँ नौ दिन तक मेला लगता है और नवरात्रे शुरू होते ही मन्दिरों को सजा दिया गया है और उन पर फूलों से साज-सज्जा की गयी। माता के रोजाना नए-नए श्रंृगार किये जाते हैं और भक्त माँ के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं। बुलंदशहर में अहार क्षेत्र में माँ अवन्तिका देवी मन्दिर स्थित है यह माता का बहुत ही प्राचीन मन्दिर है और रानी रूक्मिणि भी गुफा द्वारा रोजाना महल से पूजा करने आती थीं और पति रूप में माता से भगवान श्री कृष्ण को मांगा था। माँ अवन्तिका देवी मन्दिर गंगा के किनारे स्थित है। नवरात्रों में यहां श्रद्धालु दूर-दूर से माता के दर्शन करने आते हैं और नारियल, चुनरी चढ़ाकर मनोकामना मांगते हैं। नौ दिन तक विशाल मेले का आयोजन होता है।
फोटो कैप्शन...
बीएसआर 02 - माँ अवन्तिका देवी मन्दिर पर सजा माता का दरबार

 


माँ अवन्तिका देवी मन्दिर पर होती है हर मनोकामना पूर्ण - पंडित हिमांशु
माँ अवन्तिका देवी मन्दिर पर दर्शनों के लिए आते हैं हजारों भक्त


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