अटल जी का समाधि स्थल का निर्माण पीएम मोदी की देखरेख में हुआ है। मूल रूप से इसका ग्रेनाइड के नौ बड़े पत्थरों से हुआ है। इन पत्थरों पर दिख रही हैं कमल की नौ पंखुडिय़ां। इन पंखुडिय़ों के सामने ही नौ द्वार हैं। समाधि का निर्माण रिकॉर्ड 45 दिन में हुआ है। वाजपेयी जी की समाधि, राष्ट्रीय स्मृति और विजय घाट के बीच फैले 11 एकड़ भूभाग के मध्य करीब डेढ़ एकड़ में बनी है। वाजपेयी जी की समाधि के इर्दगिर्द नौ के अंक का अनुभव किया जा सकता है।
यह समाधि नौ बड़े ग्रेनाइड पत्थर से बनी है। प्रत्येक पत्थर का वजन डेढ़ टन है। पूरी समाधि में नीचे से ऊपर तक यह ग्रेनाइट का उपयोग हुआ है। इन पत्थरों पर कमल की नौ पंखुडिय़ां हैं, तो नौ प्रवेश द्वारों के सामने नौ ग्रेनाइट पर वाजपेयी की नौ कविताएं लिखी हैं। परिक्रमा करने वाले सफेद पत्थर धूप से कभी गरम नहीं हो सकते। समाधि स्थल पर लिखी हुई कविताओं का चयन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है। 'सदैव अटल' में 27 किलोग्राम का एक दीपक स्थापित है।
दीपक और कमल का राजनीतिक संदेश साफ झलकता है। आज की भारतीय जनता पार्टी अपने मूल में भारतीय जनसंघ थी। जनसंघ का चुनाव चिह्न दीपक हुआ करता था, तो आज भारतीय जनता पार्टी का कमल का फूल है। 'सदैव अटल' का निर्माण न तो सरकार ने कराया है और न ही इसका भारतीय जनता पार्टी से कोई रिश्ता है। इसका निर्माण न्यास के द्वारा किया गया है। यह सिर्फ संयोग है कि वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते समय ही सरकार ने तय किया था कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि विशिष्ट जन का स्मारक अब सरकार नहीं बनवायेगी।न्यास ने सरकार से सिर्फ भूमि ली है।
न्यास के अध्यक्ष पूर्व सांसद विजय कुमार मल्होत्रा हैं। न्यास में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन, गुजरात के राज्यपाल ओपी कोहली, कर्नाटक के राज्यपाल वजु भाई वाला, बीजेपी महासचिव रामलाल व हिन्दुस्थान समाचार के समूह संपादक पद्मश्री रामबहादुर राय शामिल हैं। भारत रत्न अटल जी के इस स्मारक को आज से आम जनता के लिए भी खोल दिया गया है, जिससे वो अपने सबसे लोकप्रिय नेता को श्रद्धांजलि दे सकें। लंबी बिमारी के चलते 16 अगस्त को अटल जी का देहांत हो गया था। उनके अंतिम दर्शन के लिए जो जनसैलाब उमड़ा था उससे उनकी लोकप्रियकता का साफ अंदाजा लग रहा था। अटल जी की अंतिम यात्रा पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह सहित पूरी कैबिनेट पैदल चली थी।
'सदैव अटल' के नाम से जानी जाएगी अटल की समाधि
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की समाधि विजय घाट पर बनाई गई है। समाधि को कमल के फूल के आकार में बनाया गया है। समाधि स्थल का डिजाइन कुछ अलग है। इसके चारों ओर तीन मीटर की नौ दीवारें बनाई गई हैं। जिन पर लगाए ग्रेनाइट पर सुनहरे अक्षरों में अटल जी की प्रमुख कविताओं की पंक्तियों को लिखा गया है। अटल की समाधि में 135 क्विंटल ग्रेनाइट लगा है। यह प्रयोग पहली बार किया गया है कि समाधि में ईटों का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया गया है।
आंध्र प्रदेश से लाया गया उच्च गुणवत्ता वाला ग्रेनाइट। काले रंग के ग्रेनाइट से बनी समाधि के चारों ओर दूधिया रंग की इटैलियन टाइलें लगाई गई हैं जो गर्मी के समय न तो गर्म होंगी और ठंड के समय ठंडी भी नहीं लगेंगी। समाधि स्थल पर रोशनी के लिए सुंदर दिखने वाली लाइटें लगाई गई हैं। समाधि बनाने के लिए पर्यावरण का खास ध्यान रखा गया है। एक भी पेड़ नहीं काटा गया है। जिस वीआइपी रास्ते में पेड़ आ रहे थे तो पेड़ बचाने के लिए सड़क को मोड़ दिया गया है।
समाधि स्थल के लिए डेढ़ एकड़ भूमि का उपयोग किया गया है। अटल जी का निधन गत 16 अगस्त को हो गया था। एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली थी। राष्ट्रीय स्मृति में उनका अंतिम संस्कार 17 अगस्त को किया गया था। अटलजी की समाधि के पास पहले से ही पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और उनकी पत्नी ललिता शास्त्री की समाधि है। दूसरी तरफ पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, आर वेंकटरमन, शंकर दयाल शर्मा, केआर नारायणन, प्रधानमंत्री आई.के गुजराल, पी वी नरसिंहा राव व चंद्रशेखर की समाधि हैं।
समाधि के चारों ओर कविताओं की पंक्तियां लिखी हैं
'झरे सब पीले पात, कोयल की कुहुक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं। गीत नया गाता हूं।एक हाथ में सृजन, दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं। सभी कीर्ति-ज्वाला में जलते हैं। हम अंधियारे में जलते हैं।आंखों में वैभव के सपने, पग में तूफानों की गति हो राष्ट्रभक्ति का ज्वार न रुकना, आए जिस जिस की हिम्मत हो। जन्म दिवस पर हम इठलाते, क्यों न मरण त्योहार मनाते, अंतिम यात्रा के अवसर पर आंसू का अपशकुन होता है।बाधाएं आती हैं आएं, घिरे प्रलय की घोर घटाएं, पांवों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं, निज हाथों से हंसते हंसते, आग लगाकर जलना होगा। कदम मिलाकर चलना होगा। हमें चाहिए शांति, जिंदगी हमको प्यारी, हमें चाहिए शांति, सृजन की है तैयारी। हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से। आगे आकर हाथ बटाए दुनिया सारी। हरी भरी को खूनी रंग न लेने देंगे। जंग न होने देंगे।'समाधि पर अटल जी के विचार भी अंकित हैं
'मेरे प्रभु। मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना। गैरों को गले न लगा सकूं, इतनी रुखाई भी मत देना।'
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