मिथिला तप व ज्ञान की पवित्र भूमि है : शंकराचार्य

By: Dilip Kumar
5/21/2019 4:11:12 PM
नई दिल्ली

मिथिला तप व ज्ञान की पवित्र भूमि है। महाराज विदेह से लेकर गौतम, कनाड, मंडन, वाचस्पति, अयाची, विद्यापति, उदयनाचार्य आदि विद्वानों ने विश्व को अपनी ज्ञान से प्रकाशित किया है। मिथिला के कण-कण में शिव व शक्ति का निवास कठिन साधना व तप की बदौलत है। ये बातें गोवर्धन पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कही। वे सोमवार को घनश्यामपुर के गोई मिश्र लगमा गांव में आयोजित धर्म संसद में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मिथिला की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का क्षरण हो रहा है। युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता, संस्कृति, संस्कार, जीवनशैली, आहार-व्यवहार आदि से विमुख हो रही है। अपनी गरिमा, धर्म व संस्कृति की रक्षा के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना चाहिए। 

धर्म संसद में पूछे गये एक सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि खान-पान से मानसिक व शारीरिक कार्यक्षमता प्रभावित होती है। मनुष्य जिस प्रकार का आहार ग्रहण करता है तदनुसार उसमें गुण-दोष उत्पन्न होते हैं। एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि सभी योनियों में मनुष्य योनि श्रेष्ठ है। इस जीवन को जो जीविका के लिए समर्पित कर देता है वह कालचक्र से बंधकर घूमता रहता है। जो सत्संग, ध्यान, ईश्वर की साधना तथा धर्म की सेवा में अपने को समर्पित कर देता है उसे ही मुक्ति मिलती है।

शंकराचार्य ने कहा कि मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह सभी प्राणियों से प्रेम करे। प्रकृति, धर्म, संस्कार की रक्षा करे, किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहकर परोपकार, सेवा तथा समर्पण से सद्गति को प्राप्त करे। माथे पर तिलक के संबंध में पूछे गये प्रश्न के जवाब में शंकराचार्य ने इसके महत्व व अनिवार्यता पर विस्तार से चर्चा करते हुए त्रिपुंडधारी शिव को सर्वश्रेष्ठ वैष्णव बताया। बाद में आयोजित दीक्षा ग्रहण कार्यक्रम में दूर-दराज से पहुंचे दर्जनों श्रद्धालुओं ने दीक्षा ग्रहण की। 

इससे पूर्व प्रेमचद्र झा के आवास पर आयोजित भागवत ज्ञान यज्ञ का समापन करते हुए संगरिया, हनुमानगढ़ (राजस्थान) से पहुंचे सुविख्यात कथाकार संत दयानंद शास्त्री ने कहा कि सभी प्राणियों से प्रेम, सभी परिस्थितियों में अविचल, परोपकार, सेवा-समर्पण तथा त्याग से प्राणी सद्गति को प्राप्त करता है। मानव जीवन बहुत कठिन तपस्या से प्राप्त होता है। इसे व्यर्थ न जाने दें। .


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