भारत मंडपम में BNS, BNSS और BSA की वर्षगांठ पर न्याय प्रणाली की विशेष प्रदर्शनी
By: Dilip Kumar
7/2/2025 10:36:58 PM
1 जुलाई 2024 को लागू हुई नई आपराधिक विधियों—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम—की पहली वर्षगांठ के उपलक्ष्य में, भारत मंडपम, नई दिल्ली में 01 जुलाई से 06 जुलाई 2025 तक एक सप्ताहव्यापी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। इस प्रदर्शनी का उद्देश्य आम जनमानस को नए कानूनी ढांचे की प्रमुख विशेषताओं से अवगत कराना है, साथ ही पुलिस, अस्पताल, फॉरेंसिक विभाग, अभियोजन और न्यायालय—इन आपराधिक न्याय प्रणाली के पाँच स्तंभों के बीच तकनीकी एवं संस्थागत समन्वय को प्रदर्शित करना भी है।
आभासी और संवादात्मक प्रदर्शन
प्रदर्शनी को ऐसा स्वरूप दिया गया है कि यह आगंतुकों को एक जीवंत अनुभव दे सके। इसमें ऑडियो-विज़ुअल, एनीमेशन और लाइव अभिनय के माध्यम से एक आपराधिक मामले की पूरी प्रक्रिया को दर्शाया गया है—अपराध की सूचना मिलने से लेकर जांच, साक्ष्य संग्रह, मुकदमा चलाने और अपील तक। प्रदर्शनी को नौ विषयगत स्टेशनों में बाँटा गया है, जिनमें आपराधिक न्याय प्रक्रिया की हर अवस्था को दर्शाया गया है। इन स्टेशनों पर यह बताया गया है कि कैसे नए कानूनों और उन्नत डिजिटल टूल्स ने जांच और न्यायिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाया है।
नई आपराधिक विधियों एवं तकनीकी नवाचारों की प्रमुख झलकियां:
फॉरेंसिक विशेषज्ञों की अनिवार्य उपस्थिति: ऐसे सभी मामलों में जिनमें सजा सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकती है, फॉरेंसिक विशेषज्ञों का घटनास्थल पर पहुँचना अनिवार्य कर दिया गया है।
- ई-साक्ष्य (eSakshya) का प्रयोग: डिजिटल माध्यम से साक्ष्य संग्रहण और सुरक्षित भंडारण, जिससे कोर्ट में साक्ष्य की स्वीकार्यता सुनिश्चित होती है।
- ई-फॉरेंसिक 2.0 का एकीकरण: CCTNS के माध्यम से सबूतों को फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं में इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजा जा सकता है।
- MedLEaPR ऐप का उपयोग: मेडिकल लीगल केस (MLC) और पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे अस्पतालों द्वारा पुलिस को CCTNS के ज़रिए भेजी जा सकती हैं।
- पुलिस हिरासत रिमांड के लिए विस्तारित अवधि: अब गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर कभी भी पुलिस हिरासत की मांग की जा सकती है।
- डिजिटल ड्राफ्ट चार्जशीट साझा करना: बिना फाइल साइज़ की बाधा के अभियोजन पक्ष के साथ चार्जशीट साझा की जा सकती है।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से साक्ष्य लेना: अब गवाह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए गवाही दे सकते हैं।
- बायोमेट्रिक और फेस रिकग्निशन टूल्स: NAFIS और चित्रखोजी प्रणाली के माध्यम से पुराने अपराधियों की पहचान तेज़ी से हो रही है।
- ग़ैर-मौजूदगी में ट्रायल (Trial in Absentia): कुछ मामलों में आरोपी की अनुपस्थिति में भी ट्रायल की अनुमति।
- जेल अधीक्षक की नई ज़िम्मेदारी: जो विचाराधीन कैदी अपने अपराध की अधिकतम सजा का एक-तिहाई हिस्सा काट चुके हैं, उनके लिए जमानत आवेदन अब जेल अधीक्षक द्वारा स्वतः प्रस्तुत किया जाएगा।
- यह प्रदर्शनी भारत में न्याय प्रणाली को तकनीकी रूप से सुदृढ़ और पीड़ित-केंद्रित बनाने की दिशा में एक उल्लेखनीय प्रयास है।
यह प्रदर्शनी आम जनता, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, कानूनी सेवाओं, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के सभी वर्गों के लिए खुली है। यह प्रदर्शनी दर्शकों को एक सजीव अनुभव देती है कि किस प्रकार नए कानूनों ने न्याय प्रणाली को दंडात्मक से प्रक्रिया-केंद्रित, साक्ष्य-आधारित और डिजिटल रूप से दक्ष बनाया है। सभी को इस ऐतिहासिक पहल का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है।