पटना साहिब पंज प्यारों क़ो धार्मिक दंड घोषित करने का अधिकार नहीं : अकाली दल
By: Dilip Kumar
7/5/2025 5:49:18 PM
कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। तख्त श्री पटना साहिब के पाँच प्यारे द्वारा शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सरदार सुखबीर सिंह बादल को तन्हैया (धार्मिक दंड) घोषित करने का जो फैसला किया गया है, वह सिख परंपराओं के विरुद्ध है और श्री अकाल तख्त साहिब को चुनौती देने वाला है। क्योंकि श्री पटना साहिब के पाँच प्यारों को इस प्रकार का कोई अधिकार नहीं है कि वे किसी भी सिख को तन्हैया घोषित कर सकें। यह फैसला पर्दे के पीछे काम कर रही उन ताकतों द्वारा सिख परंपराओं और मर्यादाओं को नुक़सान पहुँचाने के लिए करवाया गया है।
शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के प्रधान परमजीत सिंघ सरना ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिब के बारे में जो फैसला इन्हीं लोगों ने किया था, वह भी निःसंदेह सिख विरोधी ताकतों के इशारे पर किया गया था। इन फैसलों का न तो कोई धार्मिक आधार है और न ही अधिकार। हर तख्त साहिब केवल अपने क्षेत्र से संबंधित धार्मिक मसलों पर ही विचार कर सकता है और फैसले ले सकता है। लेकिन पूरे पंथ से संबंधित मसलों पर केवल और केवल श्री अकाल तख्त साहिब पर ही विचार और अंतिम फैसला किया जा सकता है।
सरना ने कहा कि तख्त श्री पटना साहिब के पाँच प्यारे और प्रबंधकों द्वारा बाहरी ताकतों के हाथों में खेलते हुए इस प्रकार के गैर-परंपरागत फैसले करना, छठे पातशाह श्री गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा स्थापित श्री अकाल तख्त साहिब का भी अनादर है। ऐसे विवाद उत्पन्न न हों और संपूर्ण सिख कौम के हित को ध्यान में रखते हुए कई वर्ष पहले, 19 नवंबर 2003 को उस समय के पाँचों तख्त साहिबान के जत्थेदारों द्वारा यह गुरमत निर्णय (गुरमत्ता) किया गया था कि — "सिख परंपरा अनुसार, चार तख्त साहिबानों के जत्थेदारों को स्थानीय स्तर के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार है, परंतु संपूर्ण पंथ और वैश्विक स्तर से संबंधित मसलों पर पाँचों जत्थेदारों को श्री अकाल तख्त साहिब पर बैठकर विचार करना होगा और अंतिम निर्णय लेना होगा।"ऐसे फैसले सिख कौम क़ो कमजोर करने कि शाजिस है।
सरना ने कहा कि ऐसे फैसले लेने वालों को श्री अकाल तख्त साहिब और संपूर्ण गुरु पंथ से टकराव लेने की बजाय, इन फैसलों के लिए श्री अकाल तख्त साहिब पर हाजिर होकर माफ़ी मांगनी चाहिए। अन्यथा उन्हें समझ लेना चाहिए कि जिस दशम पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के स्थान पर बैठकर वे पंथ में फूट डालने का प्रयास कर रहे हैं, उसकी अदालत में उन्हें इसका जवाब ज़रूर देना पड़ेगा।