देश के प्रति गर्व पैदा करती है 'परमाणु'

By: Dilip Kumar
5/25/2018 12:03:51 PM
नई दिल्ली

अभिषेक शर्मा ने 2010 में 'तेरे बिन लादेन' बनाई थी. उसके 6 साल बाद वो सीक्वल 'तेरे बिन लादेन डेड और अलाइव' लेकर आए थे. इसके बाद वो 'द शौकीन्स' भी लेकर आए. अब अभिषेक ने 1998 में राजस्थान में हुए परमाणु परीक्षण पर आधारित फिल्म 'परमाणु' बनाई है. जानते हैं कैसी बनी है फिल्म और क्या है इसकी कहानी...

कहानी: फिल्म की कहानी 1995 से शुरू होती है जब प्रधानमंत्री के ऑफिस में चीन के परमाणु परीक्षण के बारे में बातचीत चल रही थी. तभी IAS ऑफिसर अश्वत रैना ( जॉन अब्राहम) ने भारत को भी एक न्यूक्लियर पावर बनने की सलाह दी. किन्हीं कारणों से उनकी बात प्रधानमंत्री तक पहुंचाई तो गई, लेकिन परीक्षण सफल नहीं हो पाया और अमेरिका ने हस्तक्षेप किया. इसके बाद अश्वत रैना को उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया.

अश्वत के परिवार में उनकी पत्नी सुषमा (अनुजा साठे), माता-पिता और एक बेटा प्रह्लाद भी है. कुछ समय बाद अश्वत का परिवार मसूरी शिफ्ट हो जाता है और लगभग 3 साल के बाद जब प्रधानमंत्री के सचिव के रूप में हिमांशु शुक्ला (बोमन ईरानी) की एंट्री होती है तो एक बार फिर से परमाणु परीक्षण की बात चलने लगती है. हिमांशु जल्द से जल्द अश्वत को खोज निकालता है और परमाणु परीक्षण के लिए टीम बनाने के लिए कहता है.

अश्वत अपने हिसाब से टीम की रचना करता है, जिसमें BARK,DRDO, आर्मी के साथ-साथ अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंटेलिजेंस के भी लोग होते हैं. एक बार फिर से 1998 में परमाणु परीक्षण की तैयारी की जाती है, जिसके बारे में अमेरिका को कानोंकान खबर ना हो इसका सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है. इसी बीच भारत में अमेरिका और पाकिस्तान के जासूसों की मौजूदगी इस परीक्षण को किस तरह से नाकामयाब किया जाए उसका भी ध्यान देती है. अंततः इन सभी विषम परिस्थितियों के बावजूद भारत न्यूक्लियर पावर के रूप में सबके सामने नजर आता है और एक बड़ी शक्ति के रूप में दिखाई देता है यही फिल्म में दर्शाया गया है.

क्यों देखें फिल्म: फिल्म सत्य घटनाओं पर आधारित है. 1998 में भारत में परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका के साथ-साथ आस-पास के देश भी हिल गए थे. इस पूरी घटना को निर्देशक अभिषेक शर्मा ने बखूब दर्शाया है और फिल्म देखते वक्त आपको गर्व महसूस होता है. फिल्म का स्क्रीनप्ले जबरदस्त है, जिसके लिए इसके लेखक सेवन क्वाद्रस, संयुक्ता चावला शेख और अभिषेक शर्मा बधाई के पात्र हैं. फिल्म आपको बांधने में सफल रहती है और भारतीय होने के नाते एक अलग तरह का फक्र भी आपको महसूस होता है.

फिल्म का डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी और लोकेशन बढ़िया है. इसी के साथ समय समय पर प्रयोग में लाई जाने वाली 90 के दशक की फुटेज भी काफी कारगर है, जिन्हें बड़े ही अच्छे अंदाज से फिल्म के स्क्रीनप्ले में प्रयोग में लाया गया है. जॉन अब्राहम ने एक बार फिर से गंभीर लेकिन उम्दा अभिनय किया है. उनकी पत्नी के रूप में अनुजा साठे ने बड़ा ही अच्छा काम किया है. अनुजा इसके पहले बाजीराव मस्तानी और ब्लैकमेल फिल्म में भी अच्छा अभिनय करती हुई दिखाई दी हैं. डायना पैंटी, बोमन ईरानी के साथ-साथ विकास कुमार, योगेंद्र टिंकू, दर्शन पांडेय, अभीराय सिंह,अजय शंकर और बाकी सभी किरदारों ने बढ़िया अभिनय किया है.

फिल्म की कहानी जहां एक तरफ आपको तथ्यों से परिचित कराती है, वहीं दूसरी तरफ उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और वैज्ञानिकों की टीम से एपीजे अब्दुल कलाम के कारनामों के बारे में सटीक जानकारी देती है. 90 के दशक में जहां एक तरफ दुनिया के कई देश भारत के खिलाफ थे, वहीं परमाणु परीक्षण के बाद एक-एक करके भारत एक और शक्तिशाली देशों की संख्या में गिना जाने लगा, जिसे फिल्म देखने के दौरान महसूस किया जा सकता है. फिल्म का संगीत ठीक-ठाक है. दिव्य कुमार का थारे वास्ते गीत फिल्म में बांधे रखता है.

कमजोर कड़ियां: फिल्म में 1998 के परमाणु परीक्षण के इतिहास को दर्शाने की कोशिश की गई है. कई ऐसी बातें हैं जिन्हें शायद सुरक्षा की दृष्टि से डिटेल में नहीं समझाया गया है और अगर छिटपुट बातों को छोड़ दें तो कोई ऐसी कमजोर कड़ी नहीं है.

बॉक्स ऑफिस : फिल्म का बजट लगभग 45 करोड़ रुपए बताया जा रहा है, जिसमें से कि 35 करोड़ रुपए प्रोडक्शन कास्ट है और 10 करोड़ रुपए प्रिंट और पब्लिसिटी में खर्च किए गए हैं. खबरों के मुताबिक भारत में फिल्म 1600 से ज्यादा स्क्रीन्स में रिलीज होगी और अगर वर्ड ऑफ माउथ सही रहा तो फिल्म को अच्छा रिस्पॉन्स मिल सकता है.


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