चुनावी वर्ष में वित्तमंत्री के कुबोल
By: Devendra Gautam
6/18/2018 11:30:52 PM
देवेंद्र गौतम
प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की कथनी और करनी पर चाहे जितने भी सवाल उठे हों लेकिन जब वे देशवासियों को संबोधित करते हैं तो उनकी भाषा में अपनापन का बोध होता है लेकिन जब अरूण जेटली कोई बयान देते हैं तो अंदाज़ किसी शहंशाह का रियाया से संबोधन का होता है। मसलन पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद ड्यूटी में किसी तरह की रियायत किए जाने से साफ इनकार किया। बल्कि यह भी हिदायत दी कि लोग पूरी ईमानदारी से टैक्स अदा करें। भीषण महंगाई से जूझ रहे देशवासियों के लिए उनका बयान जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है। सर्लविदित है कि डीजल और पेट्रोल की कीमतों का बाजार पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई का खर्च बढ़ता है और चीजें महंगी होती हैं। यह भी विदित है कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों का दाम दुनिया के अन्य देशों से कहीं ज्यादा है। कम टैक्स वाली वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाकर ज्यादा स्लैब में लाया गया तो फिर अधिक कर वाली वस्तुओं को कम दर के स्लैब में क्यों नहीं लाया जा सकता। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने यह संकेत दिया था कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन जेटली ने स्पष्ट कर दिया कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है। जनता का काम सिर्फ टैक्स देना है। महंगाई बढ़ती है तो बढ़े। लोगों को परेशानी हो रही है तो हो। अगर इसी रह के बयान जेटली जी देते रहे तो मोदी सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी और बढ़ती चली जाएगी और 2019 का चुनाव एनडीए के लिए और चुनौती भरा हो जाएगा। दरअसल जेटली का जनता से कभी सीधा संबंध नहीं रहा है। वे कभी कोई चुनाव नहीं जीते हैं। मोदी सरकार में भी उन्हें पिछले दरवाजे से लाकर महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा गया है। जनता के दुःख-दर्द से उन्हें कुछ लेना-देना नहीं है। अगर जेटली जैसे दो चार शुभचिंतक भाजपा में हों तो मोदी सरकार की कब्र खोदने के लिए विपक्षी दलों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसके लिए जेटली और शाह काफी हैं।
जेटली का बयान ऐसे समय में हुआ है जब मनमोहन सरकार की तुलना में 125 प्रतिशत शुल्क बढ़ोत्तरी कर 150 गुना अधिक उत्पाद शुल्क बटोरने की बात सामने आ चुकी है।
भाजपा की चिंता विपक्षी एकता से निपटते हुए 2019 का चुनाव निकालने की है और जेटली को राजस्व की चिंता है। अगर सत्ता हाथ से फिलती तो फिर राजस्व वसूलने के लिए वे अधिकृत नहीं रह जाएंगे। जेटली जी को यह बात समझ में नहीं आ रही है। भाजपा चुनाव हारी भी तो कम से कम उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाकर सदन तक लाने लायक तो रहेगी ही जेटली जी को पूरा भरोसा है।