'चलो रे डोली उठाओ कहार' कहानी बन गई

By: Dilip Kumar
5/29/2018 12:03:29 AM
नई दिल्ली

कभी अमीरों, रईसों, जमींदारों व दूल्हे राजा की सवारी रही डोली के साथ भी यही हुआ है। शादी के मौके पर दुल्हन की विदाई के लिए आकर्षक ढंग से सज कर तैयार डोली देखने वालों का मन मोह लेती थी। अतीत में गांव साधनविहीन थे। शहर भी गलियों के थे व आवागमन के साधन भी नहीं थे। ऐसे में उस समय डोली आवागमन का सर्वसुलभ व सर्व प्रयुक्त साधन था। गांव की पगडंडियों व शहर की गलियों में सभी के लिए डोली ही सबसे आरामदायक सवारी थी।

समय बदला। गांव की पगडंडियां पक्के सम्पर्क मार्ग बन गए। राजपथ पक्के व चौड़े हो गए। साइकिल से अधिक बाइक, कार व जीप हो गए। भाग दौड़ की जिंदगी में इंसान के पास समय की कमी होती गई। तीव्र गति वाहनों की मांग बढ़ती गई। कछुए की चाल चलने वाली डोली इस स्पर्धा में टिक नहीं पाई। केवल त्यागी ही नहीं बल्कि बिसरा दी गई। हां डोली आज भी कहीं जिंदा है तो गीत, संगीत व साहित्य में। लोक व फिल्मी गीतों में आज भी डोली का विशेष सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है।

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि डोली भारतीय सभ्यता का एक ऐसा अपरिहार्य साधन थी जिसके बिना सम्पन्न लोगों के साथ ग्रामीण जीवन की कल्पना बेमानी थी। वैसे भारतीय सभ्यता के इस धरोहर को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। जिससे कि न केवल हमारी नई पीढ़ी रूबरू हो बल्कि जीवंत हो सके। आज कैसे उम्मीद की जाए कि डोली को हम पुन: अपनाएंगे। कारण कि यह श्रमसाध्य जो है किंतु क्या गत जीवन को हम एकदम विलुप्त हो जाने दें, यह अच्छा नहीं होगा। इसे पुनर्जीवित करने के लिए शादी के कम से कम किसी एक मौके पर तो कुछ समय के लिए इसका उपयोग किया ही जा सकता है।

स्थानीय निवासी बुजुर्ग कहार ने कहा, ''एक जमाने में इस गांव में सबसे ज्यादा डोली थी। लोग दूर-दूर से इसे बुक कराने आया करते थे। अपनी पसंद की डोली एडवांस देकर बुक कर लेते थे।'' ''हम लोगों की एक टीम होती थी, जिसमें 6 आदमी होते थे। डोली लेकर हमें कभी-कभी 10-15 किलोमीटर तक की दूरी पैदल तय करनी पड़ती थी। रात के सफर में एक शख्स हाथ में मशाल और दूसरा हाथ में डंडा लेकर चलता था।''

बुजुर्ग  ने कहा, ''जब डोली का प्रचलन था तब इसे बेहद आकर्षक तरीके से सजाया जाता था। यही बारात की शान हुआ करती थी। इस तरह की डोली करीब 25 साल पहले एक हजार रूपए में तैयार हो जाती थी।'' ''किसी जमाने में गोरखपुर शहर का पांडेयहाता डोली का प्रमुख बाजार हुआ करता था। भारतीय शादी ही में डोली या पालकी का प्रयोग होता था हालांकि 15 साल पहले ही इसका वजूद मिट चुका था। इसकी जगह लग्जरी गाड़ियों ने ले ली है।''


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