संप्रदा सिंह : एमआर से लेकर बड़े उद्योगपति बनने की कहानी

By: Dilip Kumar
7/27/2019 9:04:40 PM
नई दिल्ली

बिहार के जहानाबाद के ओकरी गांव निवासी और देश के जाने -माने उद्योगपति संप्रदा सिंह का आज मुंबई में निधन हो गया है। मुम्बई के लीलावती हॉस्पिटल में सुबह 9 बजकर 20 मिनट पर उन्होंने आखिरी सांस ली। बताया जाता है कि वे पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। संप्रदा सिंह के निधन से उद्योग जगत में शोक की लहर व्याप्त है। संप्रदा सिंह के निधन पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, बिहार के शिक्षा मंत्री कृष्ण नंदन वर्मा, पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने शोक जताया है और दिवंगत को अपनी श्रद्धांजलि दी है।

संप्रदा सिंह का जन्म साल 1925 में बिहार के जहानाबाद में मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। उन्‍होंने गया यूनिवर्सिटी से बीकॉम की पढ़ाई की थी और 8 अगस्‍त 1973 को उन्होंने अल्‍केम लैबोरेटरीज लिमिटेड की स्थापना की थी। देश के सबसे बुजुर्ग अरबपति सम्प्रदा सिंह वर्ष 2018 में फोर्ब्स की ‘द वर्ल्ड बिलियनेयर्स लिस्ट ’में शामिल हुए थे। उनकी संपत्ति 1.2 अरब डॉलर थी जिसकी वजह से फोर्ब्स की लिस्ट में वे 1,867वें पायदान पर रहे थे।

संप्रदा सिंह ने 45 साल पहले फार्मा कंपनी अल्‍केम की स्थापना की थी। अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर 26 हजार करोड़ रुपए से ज्‍यादा की वैल्‍यूएशन वाली कंपनी खड़ी करने वाले संप्रदा सिंह कभी एक केमिस्‍ट शॉप में नौकरी किया करते थे। गया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद संप्रदा सिंह खेती करना चाहते थे। पिता के पास करीब 25 बीघा जमीन थी। पढ़ाई पूरी कर वो गांव आए और आधुनिक तरीके से खेती करने की कोशिश की। पढ़-लिखकर खेती करने आए संप्रदा सिंह को देख गांव के लोग कहते थे ‘पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो रे संप्रदा का खेल। ‘

वह धान और गेहूं की जगह सब्जी की खेती करना चाहते थे। खेती शुरू की तो उनके सामने सबसे बड़ी परेशानी सिंचाई की आई। संप्रदा ने डीजल से चलने वाला वाटर पंप लोन पर लिया और उससे सब्जी की सिंचाई करने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुए। उसी साल अकाल पड़ गया और इंसानों और जानवरों के पीने के लिए पानी नहीं मिलता था तो खेती कहां से होती?

संप्रदा सिंह ने 1953 में रिटेल केमिस्‍ट के तौर पर एक छोटी शुरुआत की। उसके बाद उन्होंने लक्ष्मी शर्मा के साथ पटना में दवा की दुकान शुरू की। वह हॉस्पिटल में दवा की सप्लाई भी करने लगे। 1960 में पटना में मगध फार्मा के बैनर तले उन्होंने फार्मा डिस्‍ट्रीब्‍यूशन का बिजनेस शुरू किया।

धीरे-धीरे अपनी मेहनत के बल पर उन्‍होंने कई मल्‍टीनेशनल कंपनियों की डिस्‍ट्रीब्‍यूशटरशिप ले ली। कुछ ही दिनों में उन्‍होंने भारत के पूर्वी क्षेत्र का दूसरा बड़ा डिस्‍ट्रीब्‍यूशन नेटवर्क खड़ा कर दिया। संप्रदा सिंह की दवा एजेंसी अच्छी चल रही थी, लेकिन वह इतने से संतुष्ट होने वाले नहीं थे। वह कारोबार को विस्‍तार देने के इरादे से मुंबई चले गए।

उनको जानने वाले बताते हैं कि संप्रदा सिंह एक लाख रुपये पूंजी लेकर मुंबई गए और दवा कंपनी शुरू की। उन्होंने अल्‍केम लैबोरोटरीज नाम की कंपनी बनाई और दूसरे की दवा फैक्ट्री में अपनी दवा बनवाई। दवा की मांग बढ़ने पर संप्रदा सिंह ने अपनी दवा फैक्ट्री शुरू कर दी। उसके बाद उनकी कंपनी चल पड़ी।

अमीरों की लिस्‍ट में संप्रदा सिंह को शामिल करने वाले फोर्ब्स ने कहा था, ''अपनी एंटीबायोटिक्स क्लैवम और टैक्सिम के लिए जानी जाने वाली जेनरिक कंपनी का शेयर नवंबर 2016 से अब तक दोगुना चढ़ चुका है। मार्च, 2017 में समाप्त वित्त वर्ष के दौरान अल्‍केम का नेट प्रॉफिट 20 फीसदी बढ़कर 13.9 करोड़ डॉलर और रेवेन्यू 91.3 करोड़ डॉलर रहा था।'' इसका साफ मतलब है कि सिंह की कंपनी की कामयाबी का सफर जारी है।


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