अक्टूबर को विश्व दृष्टि दिवस के मौके पर दुनिया में पहली बार की गई एक अनोखी रिसर्च से स्पष्ट होता है कि यदि सिर्फ छह आसान और कम खर्चीले कदम उठाए जाएँ, जैसे- स्कूलों में आँखों की जाँच करना और मौके पर ही पढ़ने वाले चश्मे बाँटना आदि, तो भारत की अर्थव्यवस्था को हर साल 3.6 लाख करोड़ रुपए तक का फायदा हो सकता है। इतना ही नहीं, हर 1 रुपए के निवेश पर 16 रुपए का रिटर्न भी मिलेगा। यह ग्लोबल वैल्यू ऑफ विज़न रिपोर्ट आईएपीबी, सेवा फाउंडेशन और फ्रेड हॉलोज़ फाउंडेशन ने मिलकर तैयार की है, जिसे यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली के दौरान आईएपीबी और यूएन फ्रेंड्स ऑफ विज़न ग्रुप द्वारा आयोजित एक विशिष्ट मीटिंग के दौरान लॉन्च किया गया।
विश्व दृष्टि दिवस पर आईएपीबी की लव योर आइज़ कैंपेन ने भारत के लिए एक्सक्लूसिव नेशनल डेटा जारी किया है, जिसमें दिखाया गया है कि यदि देश में आँखों की सेहत को प्राथमिकता दी जाए, तो कैसे अपार लाभ मिल सकते हैं। यह कैंपेन सभी से अपील करता है कि अपनी आँखों की जाँच करवाकर उनकी देखभाल करें। भारत में लगभग 70 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो बचाई जा सकने वाली दृष्टि हानि (अवॉइडेबल साइट लॉस) से जूझ रहे हैं। इसका असर व्यक्तिगत और आर्थिक दोनों स्तरों पर पड़ता है, जैसे कि बेरोजगारी, पढ़ाई में रुकावट, कम आय, देखभाल का बढ़ता बोझ (जो ज्यादातर महिलाओं पर आता है), मानसिक स्वास्थ्य पर असर और चोट या बीमारी का बढ़ा हुआ खतरा।
भारत के लिए यदि 22,100 करोड़ रुपए का निवेश किया जाए, तो हर साल 3.6 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का फायदा मिल सकता है, जिसमें शामिल हैं:
* बेहतर कार्य उत्पादकता से 2.27 लाख करोड़ रुपए का फायदा* रोजगार में वृद्धि से 78,700 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी* शिक्षा के क्षेत्र में 9,60,000 अतिरिक्त स्कूली वर्षों के बराबर लाभ* देखभाल में कमी से 40,800 करोड़ रुपए की बचत* 8,27,000 से अधिक लोगों को अवसाद से राहत* परिवहन दुर्घटनाओं और मृत्यु दर में 65,000 की कमी
इन आँकड़ों के पीछे वास्तविक जीवन हैं। महाराष्ट्र के फंगुलगाँव के 19 वर्षीय तुला की ही कहानी देख लीजिए। कमजोर नज़र की वजह से उसे कॉलेज छोड़ना पड़ा, लेकिन चश्मा मिलने के बाद उसकी ज़िंदगी बदल गई। तुला कहते हैं, " जब मैं ब्लैकबोर्ड नहीं देख पाता था, तो लगा कि मेरा पढ़ाई का सपना यहीं खत्म हो गया। जिस दिन मुझे चश्मा मिला, उस दिन ऐसा लगा जैसे मुझे ज़िंदगी वापस मिल गई।" रिपोर्ट में छह प्राथमिक क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है, जिन पर सरकारों को दृष्टि हानि रोकने के लिए ध्यान देना चाहिए: समुदाय में दृष्टि स्क्रीनिंग के माध्यम से जल्दी पहचान, जहाँ जरूरत हो वहीं पढ़ने वाले चश्मे देना, आँखों के स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बढ़ाना, सर्जिकल उत्पादकता और टीमों को मजबूत करना, लागत, दूरी और सामाजिक धारणाओं जैसी बाधाओं को दूर करना और नवीन प्रशिक्षण तकनीकों, बायोमेट्री का व्यापक उपयोग और सर्जरी के बाद बेहतर देखभाल मानकों के साथ मोतियाबिंद सर्जरी को और बेहतर बनाना।
मिशन फॉर विज़न, इंडिया की चीफ फंक्शनरी और ट्रस्टी, एलिज़ाबेथ कुरियन कहती हैं, "लगभग 1 अरब लोग रोज़ाना बचाई जा सकने वाली दृष्टि हानि के साथ जी रहे हैं, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, जिससे उनकी उत्पादकता और क्षमता सीमित होती है। दृष्टि में निवेश सिर्फ चैरिटी नहीं है; यह स्मार्ट इकोनॉमिक्स है। एमिशन फॉर विज़न में हम हर दिन देखते हैं कि कैसे एक जोड़ी चश्मा या मोतियाबिंद सर्जरी आजीविका को बहाल कर सकती है और परिवारों को गरीबी से बाहर निकाल सकती है। यदि हम सतत विकास और समानता के लिए गंभीर हैं, तो आँखों का स्वास्थ्य राष्ट्रीय नीति के मुख्यधारा में आना चाहिए। राष्ट्रीय अंधत्व एवं दृश्य क्षीणता नियंत्रण कार्यक्रम इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।"
आईएपीबी के सीईओ पीटर हॉलैंड कहते हैं, "दृष्टि हानि एक सार्वभौमिक समस्या है, जो हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। लेकिन हमारे पास स्पष्ट समाधान हैं। अधिकांश दृष्टि हानि सरल और किफायती उपायों से रोकी जा सकती है, जैसे दृष्टि परीक्षण का विस्तार, चश्मे प्रदान करना और मोतियाबिंद सर्जरी में सुधार। इस विश्व दृष्टि दिवस पर, हम सरकारों और व्यवसायों से लेकर स्कूलों और परिवारों तक सभी से अपील करते हैं कि आँखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। सबूत स्पष्ट हैं: दृष्टि में निवेश करके हम अपने भविष्य में निवेश कर रहे हैं।"
जब दुनिया में लगभग 1 अरब लोग बचाई जा सकने वाली दृष्टि हानि के साथ जी रहे हैं, तब आँखों के स्वास्थ्य की सुरक्षा और प्राथमिकता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। नियमित आँखों की जाँच दृष्टि को सुरक्षित रखने का सबसे आसान तरीका है, जबकि व्यापक प्रणालीगत समाधान यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं कि हर किसी को, हर जगह, आवश्यक देखभाल मिले। अपनी दृष्टि का महत्व समझकर और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करके, हम बदलाव ला सकते हैं, मानव क्षमता को उजागर कर सकते हैं और एक स्वस्थ, अधिक उत्पादक भविष्य का सृजन कर सकते हैं।
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