तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर बृहदेश्वर को ग्यारहवीं सदी के आरम्भ में बनाया गया था। यह मंदिर चोल शासकों की महान कला केंद्र रहा है। बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इस भव्य मंदिर को सन1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया। भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर शैव धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्र स्थल रहा है। राजाराज चोल प्रथम ने 1010 एडी में इस मंदिर का निर्माण कराया था। यह मंदिर उनके शासनकाल की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण है। वर्ष 2010 में इसके निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे हुए थे।
एक लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट से निर्माण
मंदिर के निर्माण में एक लाख 30 हजार टन ग्रेनाइट से इसका निर्माण किया गया। यह पत्थर आस-पास के इलाके में नहीं मिलता है। ऐसे में यह रहस्य है कि इतने विशाल पत्थरों को हजारों साल पहले यहां कैसे लाया गया था। मंदिर में पत्थरों को जोड़ने के लिए सीमेंट या किसी किस्म के ग्लू का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसकी बजाए इसे पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है।
हैरान करती है यह खासियत
दुनिया में पीसा की मीनार सहित कई ऊंची संरचनाएं टेढ़ी हो रही हैं, जबकि यह मंदिर आज भी पहले की तरह ही सीधा बना हुआ है। इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह है कि दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखती है। मगर, इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। लोगों की समझ से यह रहस्य आज भी परे है कि ऐसा क्यों होता है?
शिखर पर स्वर्णकलश, वजन 80 टन
इसके शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। मंदिर का कुंभम् (कलश) जो कि सबसे ऊपर स्थापित है, केवल एक पत्थर को तराश कर बनाया गया है और इसका वजन 80 टन का है। बताया जाता है कि इस कलश को वहां तक पहुंचाने के लिए छह किलोमीटर लंबा रैंप (ढलान) बनाया गया था। इस पर लुढ़काकर इस पत्थर को मंदिर के शिखर पर पहुंचाया गया था।
हर कोने से दिखता है मंदिर
13 मंजिला इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है। मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मीटर) है और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। यहां स्थित नंदी की प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। यह 16 फुट लंबी और 13 फुट ऊंची है। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था परंतु तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर को बृहदेश्वर नाम दे दिया था।
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