फ़िरोज़ बख़्त अहमद का कॉलम: क्यों मुस्लिमों में समाप्त हो रहा है कांग्रेस का वर्चस्व?

By: Dilip Kumar
3/14/2023 4:23:26 PM

एक दौर था कि कांग्रेस के नेता कहते थे कि बिना मुसलमानों के वोटों के कोई भी सरकार नहीं बन सकती, जो शायद कुछ हद तक ठीक समझा था क्योंकि उस दौर में अर्थात जब कांग्रेस ने 55-60 साल देश में सत्ता चलाई और जब मुस्लिम संप्रदाय भी कांग्रेस को इसी प्रकार से वोट देता था कि मानो या तो अल्लाह मियां ने कह रखा था कि ऐ मुसलमानों, कांग्रेस को वोट दो, या फिर जैसे कुरान में यह कहा गया है। जो भी है, जब-जब मुस्लिमों ने एक-जुट किसी भी पार्टी को मताधिकार दिया तो उसी की सरकार बनी, चाहे वह कांग्रेस हो या 1977 में जनता पार्टी बनी हो। आज यह सब मिथ बन कर रह गया है। इस्क्स मुख्य कारण यह है कि कांग्रेस ने अपने पूर्ण राज में मुसलमान को मात्र वोट बैंक जान कर प्रयुक्त किया सुर काम होने पर टिशु पेपर की भांति फेंक दिया किसे अङ्ग्रेज़ी भाषा में, “यूज़ एंड थ्रो” कहा जाता है। आजका मुस्लिम तबका कांग्रेस द्वारा अपने को ठगा महसूस कर रहा है कि कभ उर्दू के नाम में, कभी आरक्षण के नाम में तो कभी किसी और नाम में मुस्लिमों को इस्तेमाल किया जाता रहा है।

इसके अतिरिक्त अपने 6-7 दशकों के राज में कांग्रेस ने मुस्लिम तबके के हाथ में भीख का पहला प्याला आरक्षण का डाला जिसमें पार्टी ने कभी उर्दू की इकन्नी, आरक्षण की दुअन्नी तो कभी सच्चर कमेटी व श्रीकृष्ण कमीशन की चवन्नी दिखा कर मात्र ज़बानी जमा-खर्च या उसका तिरस्कार ही किया। मुस्लिम नामक कशकोल में एक पैसा तक नहीं डाला। कांग्रेस ने इन सभी वर्षों में मुस्लिम बस्तियों में बजाए स्कूल, कॉलेज, क्रीड़ांगन, हस्पताल, डिस्पेंसरियां, थिएटर आदि खोलने के बजाए ठाणे थाने खोले हैं। यही कारण है कि आज कांग्रेस से मुस्लिम की आस्था समाप्त हो गई हसी और आज उसका वोट सभी पार्टियों को जाता है।

हाल ही मैं एक बड़ी घटना ऐसी हुई कि जिससे एक बार फिर मुस्लिम संप्रदाय कांग्रेस से रूष्ट हो गया है। जब रायपुर में कांग्रेस में अपना 87वां अधिवेशन किया तो उसके विज्ञापन में सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं और स्वतन्त्रता सेनानियों की फोटो लगी हुई थी सिवाए भारत रत्न, स्वतन्त्रता सेनानी व आज़ाद भारत के प्रथम शिक्षामंत्री। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जिस पर मुस्लिंसंप्रदाय ने बड़ी नाराजगी ज़हीर की और सोशल मीडिया पर भी आजतक इसका चर्चा चल रहिया है कि कांग्रेस ने केवल एक ही परिवार को याद रखा है और चाहे वह मौलाना आज़ाद हों, सरदार पटेल हों, या कोई और बड़ा नेता हो, उसकी कोई पूछ नहीं।

इससे अधिक तो प्रधानमंत्री ने मौलाना आज़ाद का मान-सम्मान कर दिया था। बात दरअसल यह हुई कि 2013 में जब नरेंद्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो जब आज़ाद की 11 नवंबर 2013 को 125वीं जन्म वर्षगांठ थी, क्योंकि उनका जन्म 1888 में मक्का में हुआ था। उस समय उनके जमा मस्जिद के निकट बने मज़ार पर कोई भी उन्हें श्रद्धांजलि देने नहीं गया। दिन में लगभग 12 बजे के समय, अपनी मित्र और सांसद, मीनक्षी लेखी से लेखक ने कहा तो उन्होंने आश्वासन दिया कि वह इस बात को गुजरात मुख्यमंत्री मोदीजी के बताएंगी और जो उन्होंने किया। उसी दिन मोदी जी ने गुजरात के किसी कॉलेज से भाषण में कहा कि “आज 11 नवंबर, 2013 को भारत रत्न मौलाना आज़ाद की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर कांग्रेस से किसी ने उन्हें नहीं याद किया जो कि बड़े खेद का विषय है और सिवाय वंशवाद और परिवारवाद से जुड़े सदस्यों के इस पार्टी में न तो भारत रत्न मौलाना आज़ाद की कोई पूछ है और न ही सरदार पटेल जैसे दिग्गज स्वतन्त्रता सेनानियों की!”

यही कारण है कि काफी संख्या में मुस्लिम प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा से जुड़ रहे हैं। इससे अगले वर्ष जब 14 नवंबर 2014 पंडित जवाहरलाल नेहरू की 125वीं वर्षगांठ थी तो उसके उपलक्ष में एक अंतर्राष्ट्रीय स्टार का समारोह हुआ था। वैसे ही मौलाना आज़ाद को कोई पूछने वाला नहीं है क्योंकि पिछले 40 वर्ष से लेखक पूर्व मंत्री व राज्यपाल नजमा हेप्तुल्ला के साथ उनके मज़ार पर उनकी जन्म तिथि (14 नवंबर) व पुण्य तिथि (22 फरवरी) को जाता रहा है, जहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बड़े मंत्री, संसादों को तो छोड़िए, लोकल कारपोरेटर तक जाने का कष्ट नहीं करते सिवाए भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशंस) के अफसरों के, कि जिनके कारण उनके मज़ार की 65 साल से देख-रेख होती चली आई है।

एक और गुनाह कांग्रेस का मौलाना आज़ाद के साथ यह रहा कि जब 1993 में उनके गुजरने के 35 वर्ष बाद उन्हें भारत रत्न दिया तो उनके निकटतम संबंधी उनके भतीजे नूरुद्दीन अहमद (लेखक के पिता) को बज़रिया सदा डाक कोलकाता भिजवा दिया। चूंकि वह बीमार थे और राष्ट्रपति भवन नहीं आ सकते थे तो इस सम्मान की गरिमा को ध्यान में रखते हुए उन्हें कोलकाता के राज भवन में देना चाहिए था। मुस्लिम जनता ने जब यह देखा कि उनके शीर्ष नेताओं और देश की आज़ादी पर निछावर होने वाले मुस्लिम राष्ट्रनायकों के प्रति उनका यह रवैय्या है तो उन्होंने उनसे दूरी अख़्तियार कर ली।

मौलाना आज़ाद के अतिरिक्त अन्य हिन्दू-बड़े मुस्लिम चेहरों को भी कांग्रेस ने भुला दिया है, जिनमें मुख्य नाम हैं, पूर्व राष्ट्रपति डाo ज़ाकिर हुसैन, राष्ट्रपति, डाo राजेन्द्र प्रसाद, लाला लाजपत राय, हकीम अजमल ख़ान, अली बिरादरान यानि मौलाना मुहम्मद अली व शौकत अली, बाबू जगजीवन राम, रफी अहमद किदवाई, सैफुद्दीन किचलु आदि। ये सभी कांग्रेस के अपने दिनों के बहुत बड़े नाम थे और देश के प्रति इनकी बहुत कुर्बानियां भी हैं, मगर समस्या यह है कि मात्र गांधी व नेहरू परिवार के किसी और को कांग्रेस ने टिकने नहीं दिया है। आज भी कांग्रेस की रस्सी जल गई है, मगर बल नहीं गया है।

एक रोचक घटना है कुछ वर्ष पूर्व की कांग्रेस के युवराज राहुल गांधीजी के संबंद में कि इटावा, उत्तर प्रदेश से कांग्रेस के पुराने पदाधिकारी, जमील कुरेशी ने राहुल से मिलने का टाइम लिया तो लेखक को भी साथ ले गए और उन्हें भेंट करने के लिए एक फ्रेम की गई तस्वीर ले गए जिस में पंडी नेहरू के साथ मौलाना आज़ाद थे कि अपने नाना का चित्र देख प्रसन्न होंगे। चित्र उनके हाथ में ठमया गया तो उन्होंने अपने नाना नहरुजी को तो पहचान लिया मगर मौलाना आज़ाद के चेहरे पर उंगली रखते हुए बड़े भोलेपन से पूछने लगे, “यह कौन हैं?” उनके इस पप्रश्न से हमारे पैरों तले की ज़मीन निकाल गई। शायद कांग्रेस में यही कल्चर है कि मात्र एक पुश्तैनी परिवार के किसी को नहीं पहचाना जाए। इसके अतिरिक्त भी मौलाना आज़ाद की तस्वीर के नदारद होने पर और उसकी जगह नरसिम्हा राव की फोटो से भी मुस्लिम तबक़ा काफी बिदका, क्योंकि आज वही बाबरी मस्जिद (जिसे भाजपा गैरकानूनी मानती है), उसके विध्वंस की बड़ी ज़िम्मेदारी भाजपा से अधिक पूर्व प्रधानमंत्री, नरसिम्हा राव पर डालती है। खेद का विषय यह है कि मौजूदा कांग्रेस अब गांधी, आज़ाद, पटेल और नेहरू के रास्ते से छिटक गई है और मार्गदर्शन देने वाला कोई वरिष्ठ नेता आज इसमें नहीं है।

 

(लेखक पूर्व कुलाधिपति, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्विद्यालय, हैदराबाद, वरिष्ठ स्तंभकार और भारत रत्न मौलाना आज़ाद के वंशज हैं)


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