तारकेश्वर मिश्र का कॉलम : जाति जनगणना को लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा !

By: Dilip Kumar
5/2/2025 2:21:03 PM

मोदी सरकार ने अचानक जाति जनगणना की घोषणा कर सभी को चौंका दिया। यह निर्णय कैबिनेट की राजनीतिक मामलों की समिति में लिया गया। उसे ‘सुपर कैबिनेट’ करार दिया जाता है, क्योंकि उसकी बैठक कभी-कभार ही होती है। बहरहाल इस बार जब भी जनगणना होगी, तब सरकार घर-घर जाकर ‘जाति’ भी पूछेगी, लिहाजा जातियों का नया संकलन तैयार होगा। इस मुद्दे को लेकर राजनीति और श्रेय लेने की होड़ भी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान और आतंकवादियों के पहलगाम हमले से ध्यान भटकाने के लिए यह दांव चला है। यह भी कहा जा रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव के लिए यह फैसला हुआ है। लेकिन यह कोई ऐसा छोटा मुद्दा नहीं है, जिसका इस्तेमाल किसी एक राज्य के चुनाव के लिए हो या ध्यान भटकाने के लिए हो। यह बड़ा मसला है और इतना बड़ा यू टर्न है कि भाजपा के सारे नेता हक्के बक्के रह गए। भाजपा कई बड़े नेता फैसले के बाद ट्रोल होने लगे। लोग उनके पुराने वीडियो और बयान खोज कर निकाल कर रहे हैं और उसे केंद्र सरकार के फैसलों के बरक्स रख रहे हैं।

देश की आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। 1931 में अंतिम जाति जनगणना कराई गई थी। आजादी के बाद 1951 और ’61 में जनगणना तो कराई गई, लेकिन अनुसूचित जाति और जनजाति का ही डाटा सार्वजनिक किया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का मानना था कि इससे जातीय विभाजन के हालात पैदा हो सकते हैं, नतीजतन राष्ट्रीय एकता प्रभावित हो सकती है। नेहरू सरकार ने जो ‘जनगणना अधिनियम’ बनाया था, उसमें भी जाति जनगणना का उल्लेख नहीं था। उसके बाद प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने ‘जाति’ के मुद्दे पर पुरजोर विरोध किया। उस दौर में कांग्रेस का राजनीतिक और चुनावी नारा होता था-‘जात पर न पात पर, मुहर लगेगी ‘हाथ’ पर।’ प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तो ओबीसी के खिलाफ दो घंटे से अधिक समय का भाषण दिया था।

बहरहाल अब बुनियादी मुद्दा और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी का सवाल यह है कि जनगणना कब कराई जाएगी और जाति जनगणना का प्रारूप क्या होगा? दरअसल 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की पहली बार जनगणना कराई गई थी। उसके हर 10 साल के बाद यह क्रम जारी रहा। 1941 में भी जनगणना में जातीय गणना भी की गई, लेकिन उसका डाटा सार्वजनिक नहीं किया गया।

केंद्र में कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए-2 सरकार के दौरान 2011 में जनगणना का एक हिस्सा ही पूरा किया गया। करीब 25 करोड़ शहरी और ग्रामीण परिवारों का सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना का सर्वे किया गया। 2012 के अंत तक डाटा मिला। 2013 तक प्रोसेसिंग नहीं हो पाई। 2014 में मोदी सरकार बनी। ग्रामीण भारत का डाटा तो जारी किया गया, लेकिन जाति को फिर छिपा कर रखा गया। अंतत: 2018 में सरकार ने कहा कि डाटा में गलतियां हैं। फिर सर्वोच्च अदालत में भी यही बात कही। क्रम से 2021 में जनगणना होनी चाहिए थी, लेकिन कोरोना वैश्विक महामारी के कारण जनगणना टाल दी गई। उसके बाद भी चार साल निकल गए, लेकिन जनगणना की प्रक्रिया तक शुरू नहीं की गई।

अब सवाल है कि स्थापित क्रम के मद्देनजर क्या जनगणना 2031 में कराई जाएगी? जाहिर है कि जाति जनगणना भी तभी होगी। मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 तक है। सरकार को महिला आरक्षण कानून भी लागू करना है। परिसीमन का काम भी पूरा होना है। इस साल के अंत में बिहार में चुनाव हैं। 2026 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और असम सरीखे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हैं। 2027 में देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में चुनाव हैं। जाति जनगणना इन चुनावों के दौरान पूरी नहीं हो सकती। बेशक भाजपा-एनडीए इस घोषणा से ही राजनीतिक लाभ उठा सकते हैं।

विपक्षी पार्टियों में होड़ मची है। सब श्रेय लेने में लगे हैं। विपक्ष का दावा है कि उनके दबाव में केंद्र सरकार ने जाति गणना का फैसला किया है। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इसका श्रेय लिया। उन्होंने केंद्र सरकार से रोडमैप बताने और जाति गणना कराने की समय सीमा तय करने की मांग की। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि जाति गणना के आगे आरक्षण बढ़ाने का फैसला होगा। राहुल गांधी ने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को समाप्त किया जाएगा और आबादी के अनुपात में जातियों को आरक्षण मिलेगा। उन्होंने तेलंगाना मॉडल का भी जिक्र किया और कहा कि सरकार को इसके हिसाब से जाति गणना करानी चाहिए। राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके श्रेय लिया तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पटाखे फोड़े।

तेजस्वी यादव ने पटना में अपनी पार्टी के नेताओं और समर्थकों के साथ जश्न मनाया और कहा कि बिहार ने सबसे पहले जाति गणना कराई और उसके नतीजे जारी किए। गौरतलब है कि जिस समय नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की पार्टियों का गठबंधन था उसी समय जाति गणना हुई थी। हालांकि राहुल गांधी इस जाति गणना को खारिज करते हैं और बार बार कहते हें कि तेलंगाना मॉडल पर गिनती होनी चाहिए। बिहार में भी वे कह चुके हैं कि सरकार बनेगी तो नए सिरे से जाति गणना कराएंगे। लेकिन तेजस्वी यादव ने इसका श्रेय लिया क्योंकि जाति गणना के समय वे राज्य के उप मुख्यमंत्री थे।

तीसरी पार्टी जो श्रेय ले रही है वह नीतीश कुमार की जनता दल यू है। जनता दल यू के नेताओं का कहना है कि बिहार चुनाव और नीतीश कुमार के दबाव की वजह से सरकार ने पूरे देश में जाति गणना कराने का फैसला किया है। कहा जा रहा है कि जनता दल यू के नेताओं ने भाजपा को समझाया कि बिहार जीतने के लिए जाति गणना की घोषणा जरूरी है और बिहार जीतना इसलिए जरूरी है ताकि अगले साल असम और पश्चिम बंगाल में भाजपा अच्छा प्रदर्शन करे। वैसे भी नीतीश कुमार के रहते ही बिहार में जाति गणना हुई और आरक्षण बढ़ाने का फैसला हुआ। इसलिए उनकी पार्टी श्रेय ले रही है। कांग्रेस, राजद और जनता दल यू के अलावा समाजवादी पार्टी जैसी कुछ पार्टियां भी हैं, जो इसका श्रेय ले रही हैं।

लोकसभा चुनाव, 2024 के दौरान कांग्रेस, सपा, द्रमुक, राजद आदि दलों ने जाति जनगणना के मुद्दे को खूब उछाला। नारा दिया गया-‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ इसी के आधार पर सवाल किया जा सकता है कि यदि देश में दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों आदि वर्गों की जनसंख्या करीब 90 फीसदी है, तो क्या आरक्षण उतना बढ़ाया जा सकता है? राहुल गांधी ने लगातार 50 फीसदी आरक्षण की ‘दीवार’ को तोडऩे की बात कही है। यह अधिकतम सीमा सर्वोच्च अदालत ने तय कर रखी है। यदि संख्या के अनुपात में आरक्षण और व्यवस्था को बदला नहीं जा सकता, तो जाति जनगणना के फायदे क्या होंगे? हां, शिक्षा और रोजगार में आरक्षण फिर से तय किया जा सकेगा। उसे भी संसद में पारित किया जाएगा। राजनीतिक दलों को सामाजिक गठबंधनों, नेतृत्व, उम्मीदवार चयन की रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। फिलवक्ता तो यह चुनावी मुद्दा ज्यादा लगता है। जाति जनगणना को लागू करने में चुनौतियां बहुत हैं।

—राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार


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