सत्य प्रकाश का कॉलम : एक देश एक भाषा पर जोर दे सरकार

By: Dilip Kumar
9/13/2023 8:00:00 PM

भारत विविधताओं में एकता वाला देश है, जहां पर नाना प्रकार के धर्मावलंबी, नाना प्रकार की भाषाएं बोलने वाले लोग और अलग-अलग सांस्कृतिक महत्व वाले लोग यहां पर पाए जाते हैं । सांस्कृतिक दृष्टि से भारत एक पुरातन देश है। किंतु राजनीतिक दृष्टि से एक आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत का विकास एक नए सिरे से ब्रिटेन के शासनकाल में स्वतंत्रता संग्राम के सहचार्य में हुआ और राष्ट्रीय स्वाभिमान के नवोन्मेष के सोपान में हुआ। हिंदी साहित्य अनेक प्रादेशिक भाषाओं ने राष्ट्रीय स्वाभिमान स्वतंत्रता संग्राम के चैतन्य का शंखनाद घर-घर तक पहुंचा । स्वदेश प्रेम और स्वदेशी भाषा भाव की मानसिकता को संस्कृति और राजनीतिक आयाम दिया। नवयुग के नवजागरण को राष्ट्रीय अस्मिता अभिव्यक्ति और सुशासन के साथ अंतरंग तथा अविच्छिन्नरूप से जोड़ दिया।

वैसे तो भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका रही किंतु सर्वाधिक प्रभावित करने वाली हिंदी भाषा ही थी। भारतीय स्वाधीनता के अभियान और आंदोलन को व्यापक जन आधार देने का काम हिंदी भाषा ने किया। लोकतंत्र की रसदार भावना को जन जन तक पहुंचाने का हिंदी भाषा ने काम किया। जब भारत आजाद हुआ था तब लोगों को यह लगने लगा था कि जब आजादी आएगी तो लोग व्यवहार और राजकाज में हिंदी भाषा या भारतीय भाषाओं का प्रयोग होगा। अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी होगी तथा अनुच्छेद 351 संघ का कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रचार और उत्थान करें ताकि वह भारत की मिश्रित संस्कृति के सभी अंगों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बने किंतु भारत की संघीय सरकार ने हिंदी भाषा को राष्ट्र की भाषा बनाने की वास्तविक पहल नहीं की और नहीं अनुच्छेद 351 का पालन ही किया इसीलिए आज तक हिंदी भाषा को जो स्थान मिलना चाहिए था वह नहीं प्राप्त हो सका।

हिंदी भाषा को जो महत्व केंद्र सरकार को देना चाहिए था वह नहीं मिला उसके साथ हमेशा सौतेला व्यवहार किया गया। इसलिए हिंदी आज तक राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाई। राजनेताओं की हिंदी के प्रति द्वेषपूर्ण भावना ही दिखती है। मानो भारत सरकार की हिंदी के प्रति इच्छा शक्ति ही समाप्त हो गई है। उसे सिर्फ 14 सितंबर को हिंदी दिवस की याद आती है उसके बाद 364 दिन हिंदी के प्रति मुड़कर भी नहीं देखती यही बेरुखी हिंदी को उसका सम्मानजनक स्थान नहीं देती। हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने की जरूरत पर जिन लोगों ने बल दिया वह सभी अहिंदी भाषी लोग थे जैसे महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ बी आर अंबेडकर ,बाबू जगजीवन राम।

इनमें से किसी की मातृभाषा हिंदी नहीं थी किंतु सभी ने हिंदी को महत्वपूर्ण माना और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने पर जोर दिया था । स्वतंत्रता आंदोलन में जिन लोगों ने हिंदी पर बातचीत की और जिन लोगों ने हिंदी की वकालत की उनमें से अधिकतर लोग लोगों की मातृभाषा हिंदी नहीं थी मोहनदास करमचंद गांधी काठियावाड़ से थे और उनकी मातृभाषा गुजराती सरदार वल्लभभाई पटेल भी गुजराती मातृभाषी थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की बंगाली, डॉ बी आर अंबेडकर की मराठी,यह जो पूरा का पूरा परप्रेक्षया है यह उसे सातत्यता में है जो सत्य था इस देश को भाषाई सातत्यता के रूप में मिली है।

वर्ष 1757 में प्लासी के युद्ध के बाद बक्सर का 1764 में युद्ध हुआ फिर इस देश में मुगलिया सल्तनत का पतन और अंग्रेजों का आगमन हुआ इस पूरे परिपेक्ष को देखें तो एक खास चीज दिखाई पड़ती है जो हिंदी की वकालत कर रही है जो हिंदी की पक्ष धरता कर रही है उनमें से अधिकतर लोग ब्रिटिश सरकार के साथ संवाद कर रहे थे। मैं आपको इसलिए बता रहा हूं कि स्वतंत्रता आंदोलन के प्रारंभिक वर्षों में जिन महानुभावों ने हिंदी का पक्ष लिया , वह किसी लाभ के लिए नहीं वह विकल्पहीनता में किया गया चयन भी नहीं था। वह सायास चयन था इस प्रयास सायास चयन का तर्क था कि यह देश हमारा है हमारी भाषा में ही चलेगा।

हिंदी में व्याख्या की घोषित शब्दावली और शर्तें बदल गई हैं नई शब्दावली चंद्रयान शिव शक्ति आदित्य की है यह शब्दावली हिंदी को ज्ञान विज्ञान और समर्थ की भाषा बन रही है। यह हिंदी का नया जगत है । हिंदी का इस नए जगत के साथ समर्थ का संवाद है यह हिंदी का नया उत्साह भाव है हिंदी की नई दुनिया विलाप कि नहीं विकास की है हिंदी आक्रोश की नहीं आशा की भाषा बन रही है । नई हिंदी गुप्त की नहीं ज्ञान की भाषा है । नया समाज इसी चेतना का वाहक रहा है । पहले हिंदी में सुख था , गरीबी थी और इससे महानता पैदा की जाती थी। निराला की बेटी सरोज टीवी से मर गई निराला दवा नहीं करवा पाए तो निराला महान, ईदगाह का हमीद खिलौना नहीं खरीद पाया और चिमटा खरीदना पड़ा तो हमीद महान राजकमल चौधरी कोलकाता के रेड लाइट एरिया में रह रहे थे। राजकमल चौधरी महान नई यथार्थ में कहा कि यह सब बोरिंग और डिप्रेशन नहीं चलेगा। मामला मसाला मिलाओ जिंदगी जय केदार चाहिए ।

लास्ट स्टोरी है दादी की उम्र की प्रेमिकाऐं हैं पोते के उम्र के प्रेमी हैं बिन ब्याही मां बनी हैं सब कुछ नशीला है। जहां जिंदगी एक खाई और धुंआ है। अमृत की ना कोई इच्छा है ना तारक । तब कुछ भी बराबर के लिए नहीं है । ना साहित्य ना रिश्ते ना जीवनअब जो दिखेगा वही बिकेगा। यह लाइफ कंडीशन है इसका कोई विकल्प नहीं है । आपको इसी में जीना है यह आग का दरिया है और डूब कर जाना है इसके खिलाफ आप हो ही नहीं सकते इसका कोई विकल्प नहीं है। आपका संबंध आपकी रचनात्मकता सब कुछ इन्हीं माध्यमों पर निर्भर है।

महात्मा गांधी ने 1917 में सर्वप्रथम हिंदी को राष्ट्रभाषा की मान्यता देने का आग्रह किया था वर्ष 1953 से 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में हम मानते आ रहे हैं किंतु आज तक यह सपना साकार नहीं हो सका। प्रश्न है क्या सरकार ने महात्मा गांधी, डॉ बी आर अंबेडकर और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मान्यता को और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 344 345 346 347 348 349 350 और 351 का उल्लंघन नहीं किया है। ध्यान देने योग्य बात है कि यदि सरकार उल्लंघन नहीं की होती तो देश की राष्ट्रभाषा आज हिंदी होती हिंदी देश को जोड़ने सांस्कृतिक महत्व को प्राप्त कर लिया होता । हिंदी राष्ट्रीय स्वरूप स्थापित करने का काम करती। मुख्य समस्या है जनप्रतिनिधि और सरकार हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा नहीं बनाना चाहती है । ये कहते हैं या बोलते बहुत कुछ हैं मगर करते कुछ भी नहीं है वह एक तरफ हिंदी एक राष्ट्रभाषा की बात करते हैं मगर दूसरी तरफ अंग्रेजी को बढ़ावा देने वाले स्कूलों को भी बढ़ावा देते हैं । प्रश्न सीधा सा है कि जब एक देश में एक राष्ट्रीय नदी एक राष्ट्रीय वृक्ष , एक राष्ट्रीय कर, एक राष्ट्रीय पशु एक राष्ट्रीय फूल एक राष्ट्रीय मिठाई एक , राष्ट्रीय जलीय जंतु स्थलीय जंतु हो सकता है तो एक राष्ट्रीय भाषा क्यों नहीं हो सकती है।

भाषा से देश की पहचान होगी राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा और लोगों में पारस्परिक मजबूत संबंध स्थापित होंगे एक दूसरे से दूर रहकर भी एक दूसरे की भावनाएं समझने में सहयोग मिलेगा । इसलिए भारत की एक देश एक राष्ट्रीय भाषा होनी ही चाहिए। यदि सरकार चाहेगी तो यह काम असंभव बिल्कुल भी नहीं है । देश की आंतरिक रूप से एक सूत्र में रखने के लिए हिंदी भाषा को ही राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलना चाहिए क्योंकि यही भाषा है जिसे भारत में सर्वाधिक नागरिक बोलते और समझते हैं। आज जापान की जापानी, चीन की चीनी, जर्मनी की जर्मन, फ्रांस की फ्रांसीसी पुर्तगाल की पुर्तगाली भाषा हैं सकती है, तो भारत की क्यों नहीं हो सकती है? क्या जिन देशों की राष्ट्रीय भाषा है उनका विकास नहीं हुआ? बिल्कुल हुआं। ये दुनिया पर छाये हुए हैं।

हिंदी मध्यवर्गीय इच्छा और भावना को अभिव्यक्त करने वाली भाषा बन गई । यह हिंदी की नई दुनिया है अब यह सरकारी बाबुओं गरीबों और सरकारी स्कूलों की झोलाछा विद्यार्थियों की ही भाषा नहीं रह गई अब इसमें तमाम रंग और स्वर्ग आए हैं जो आकर्षण और अब भविष्योन्मुखी भी। इन तमाम रंगों और स्वरों के साथ संवाद करना हिंदी की ताकत के साथ संवाद करना है। लोहिया, डॉ बी आर अंबेडकर, नेहरू, गांधीजी और दीनदयाल उपाध्याय के भवबोध को हिंदी में अभिव्यक्त किया जाएगा। वही हिंदी इस देश के साथ संवाद की भाषा होगी। हिंदी का सौभाग्य है कि वह गली मोहल्ला की भाषा है हिंदी का सौभाग्य है कि वह नगरी है वह बाजार की भाषा है इसलिए हिंदी बची रही तो देश के स्वप्न बचे रहेंगे । संस्कृति सतत्यता बची रहेगी । गरीब आदमी के लिए सपना बचा रहेगा। गरीब को माननीय होने के लिए जगह बची रहेगी । दर्जियों के बेटों के लिए दरोगा होने के अवसर बचे रहेंगे । हिंदी गई तो एक सफल और सामर्थ्य समाज का सपना भी चला जाएगा । यह सपना बचाना है इसे बड़ा करना है इसी सपने से चंद्रयान शिव शक्ति और आदित्य बनते हैं । इस सपने की हद और जद में भारत के शाबाद होने का सपना समाहित है।

हिंदी भाषा को भारत सरकार के लिए महत्व देना चाहिए यह भाषा न केवल संवाद और विकास की भाषा है बल्कि भारत में परस्पर मेल मिलाप की भाषा भी बनी हुई है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान करने में हिंदी का कोई तोड़ नहीं। हिंदी भाषा एकता और अखंडता की भाषायर है। देश की सरकार को हिंदी भाषा का स्वरूप राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने हेतु ठोस कदम उठाने चाहिए। यदि देश में एक देश एक चुनाव पर विचार किया जा सकता है तो एक देश एक भाषा को लागू क्यों नहीं किया जा सकता? ऐसा करने पर देश आंतरिक रूप से और बाह्य रूप से मजबूत होगा राष्ट्रीय एकता और अखंडता स्थापित होगी। महात्मा गांधी, डॉक्टर अंबेडकर ,नेहरु , लोहिया और दीनदयाल उपाध्याय,सरदार पटेल जैसे विद्वानों के सपने को साकार करने में हिंदी भाषा मददगार होगी।
लेखक
सत्य प्रकाश
प्राचार्य
डॉ बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़


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