सत्य प्रकाश का कॉलम : रैबीज एक घातक महामारी है

By: Dilip Kumar
9/28/2023 8:40:48 PM

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी दिवस का मनाया जाना अपने आप में विशेष होता है रेबीज महामारी अत्यंत घटक और परेशानी देने वाली महामारी है जिसकी जानकारी न होने के कारण कभी-कभी रेबीज द्वारा फैली बीमारी मानव को के प्राण भी ले लेती है जानकारी जैन जनता पहुंचने के उद्देश्य से यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेबीज दिवस के रूप में मनाते हैं। जिसकी शुरुआत फ्रांसीसी रसायन वैज्ञानिक और सूक्ष्मजीव वैज्ञानिक, लुई पाश्चर की पूण्यतिथि को प्रतिवर्ष रेबीज की रोकथाम के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व रेबीज़ दिवस रूप में मनाया जाना जाता है, जिन्होंने पहला रेबीज टीका विकसित किया था. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर बार रैबीज दिवस पर नयी थीम रहती है जैसे:

2021 रेबीज : तथ्य, डर नहीं। लोगों से डर को खत्म करने और उन्हें तथ्यों के साथ सशक्त बनाने पर आधारित है.
2020 रेबीज को रोकने हेतु : सहयोग करें, टीकाकरण करें
2019 रेबीज : वैक्सीनेट टू एलिमिनेशन
2018 रेबीज : संदेश साझा करें, एक जीवन बचाएं

रेबीज / हाइड्रोफोबिया दुनिया की सबसे खतरनाक लाइलाज बीमारियों में से एक है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की तालिका में रेबीज से होने वाली मौतें बारहवें क्रम पर हैं। किसी आदमी को यदि एक बार हो जाए तो उसका बचना मुश्किल होता है। रेबीज लाइसो वाइरस अर्थात् विषाणु द्वारा होती है और अधिकतर कुत्तों के काटने से ही होती है। परंतु यह अन्य दाँतों वाले प्राणियों, जैसे-बिल्ली, बंदर, सियार, भेड़िया, घोडा, जंगली चूहा, चमगादड़, नेवला, सूअर इत्यादि के काटने से भी हो सकती हैं। इन जानवरों या प्राणियों को गर्म खून का प्राणी (Warm blooded) कहते हैं। देश में प्रतिवर्ष लगभग 15 से 20 लाख व्यक्ति संक्रमण (कुत्ते या अन्य जानवर द्वारा काटने पर) बाद इलाज करवाते है और टीके लगवाते हैं। यह रोग मनुष्य जाति को हजारों वर्षों से ज्ञात है और यह अब भी विकासशील देशों में एक समस्या बना हुआ है। इस बीमारी से, अकेले भारत में ही प्रतिवर्ष पैंतीस हजार जानें जाती हैं।

विश्व में जानवरों के काटने के चालीस लाख मामले प्रतिवर्ष होते हैं। इलाज की अज्ञानता अथवा उपचार के अभाव में साठ हजार मौतें विश्व में प्रतिवर्ष होती हैं। सर्वाधिक मौतें एशिया में होती हैं।बहुत से लोग कुत्ते के काटने के बाद इसपर ज्यादा ध्यान ना देकर केवल घाव का ही उपचार करवाते है तथा टीको का पूरा कोर्स नहीं करते है या पूरी तरह से रेबीज का संक्रमण फ़ैल जाने के बाद ही हॉस्पिटल जाते है जो बहुत बड़ी भूल होती है |

विश्व रेबीज दिवस (28 सितंबर) पर रेबीज को रोकने के लिए कुछ महत्वपूर्ण चरणों का पालन किया जाना चाहिए:

1- रेबीज के बारें में विशेष रूप से बच्चों के बीच जागरूकता प्रसारित की जानी चाहिए।
2- आवारा जानवरों के अनावश्यक संपर्क से बचना चाहिए।
3- घरेलू कुत्तों के साथ-साथ आवारा कुत्तों का भी टीकाकरण अवश्य किया जाना चाहिए।
4- कुछ व्यक्तियों जैसे कि कुत्ता पकड़ने वालों, रेबीज रोगियों के सीधे संपर्क में आने वाले मेडिकल और पैरामेडिकल कर्मचारियों या पशुओं, सड़क पर, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक समय व्यतीत करने वाले यात्रियों को रेबीज से संक्रमित होने का ख़तरा अधिक होता हैं, इसलिए इस वर्ग में आने वाले सभी व्यक्तियों को स्वयं का प्रतिरक्षित करवाना चाहिए।
5- जानवर के काटने पर, एंटी-रेबीज वैक्सीन के लिए तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें।

रेबीज के कारण :
रेबीज विषाणु या वाइरस से होने वाला रोग है। इसलिए रेबीज, लायसा विषाणु के प्रकार :
1 (Lyssa Virus Type-I) के शरीर में प्रवेश के बाद होता है। इस विषाणु को खत्म करने वाला इंजेक्शन तो उपलब्ध है लेकिन इसे पूरी तरह ठीक करने वाली दवा अभी तक नहीं बनी है। इसलिए बचाव की जानकारी सभी लोगो के लिए जरूरी है।

संक्रमण के कारण :

भारत में लगभग 90 प्रतिशत रेबीज का संक्रमण कुत्तों के काटने से होता है। बाकि लोगो को अन्य जानवरों जैसे -सियार, भेड़िया आदि जानवरों द्वारा होता है। रोग के विषाणु पागल (रेबीजग्रस्त) कुत्ते की लार से मौजूद होते हैं जो काटने पर मनुष्य की शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। रोग का प्रसार-प्रसार दो तरह से होता है | जब रेबीज रोगग्रस्त (पागल) कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य को काटता है, तो लार द्वारा विषाणु मनुष्य की तंत्रिकाओं में पहुँच जाते हैं। यदि प्रभावित कुत्ता या अन्य प्राणी मनुष्य की त्वचा के कटे या छिले भाग को चाटे तो भी संक्रमण हो सकता है। संभावना तो यह भी होती है कि त्वचा छिली या उस पर खरोंच भी न हो, तब भी यदि कुत्ता त्वचा को जोर से बार-बार चाटे तो भी रेबीज का संक्रमण हो सकता है। रेबीज के वायरस या विषाणु तंत्रिका से होते हुए धीरे-धीरे दिमाग तक पहुँच जाते हैं।

रेबीज किसी पागल या उग्र पशु, जैसे-कुत्ते, बिल्ली, चूहे, लोमड़ी, भेड़िया, सियार या गीदड़ के काटने के कारण होता है। चमगादड़ व अन्य पशुओं के काटने से भी रेबीज रोग हो सकता है। लेकिन यह भी ध्यान में रखने की जरुरत है की सभी जानवरों में रेबीज का वायरस मौजूद नहीं होता है यह एक बीमारी है जो बहुत ही कम जानवरों में होती है | अधिकतर पाठक यह समझते है की सभी जानवरों में रेबीज का वायरस होता ही है | लेकिन ऐसा सोचना बिलकुल गलत है | रेबीज का इंजेक्शन लगवाने की सलाह इसलिए दी जाती है क्योंकि किसी जानवर में रेबीज पुष्टि करना बहुत कठिन कार्य होता है इस बीच यदि काटे गए व्यक्ति में रेबीज का संक्रमण फ़ैल जाए तो मुश्किल बहुत बढ़ जाती है |

रेबीज लक्षण :

पशु में अजीब व्यवहार, कभी-कभी उदास, बेचैन और चिड़चिड़ा हो जाता है।
मुँह से झाग निकलती है, वह जानवर कुछ खा-पी नहीं सकता।
कभी-कभी पशु पागल हो जाता है और वह राह में पड़ने वाले किसी भी व्यक्ति या चीज को काट सकता है।
रोगग्रस्त पशु 10 दिन के अंदर ही मर जाता है। कुत्तों में रेबीज का पता करना
कुत्तों में रेबीज का पता निम्न लक्षणों द्वारा जाना जा सकता है
जब कुत्ते में छेड़खानी के बिना अपने आप झपटने और काटने की आदत आ जाए।
कुत्ता लकड़ी, घास या अन्य वस्तुओं को भी काटने लगता है।
अधिक हिंसक होना-घर से भागना, यहाँ-वहाँ घूमना और जो भी रास्ते में सामने आए, उसे काटना।
कुत्ता फटी सी आवाज में भौंकता है अर्थात् उसकी पहले वाली आवाज बदल जाती है।
साँस लेने के लिए तेज हाँफना, यह लक्षण अंतिम अवस्था में मिलता है।
कुत्ता या पशु लक्षण मिलने के दस दिनों के अंदर मर जाता है।

रेबीज लक्षण : मनुष्यों मेंकाटी गई जगह पर पीड़ा और झनझनाहट होती है। अनियमित सांस की गति, व्यक्ति रोने की कोशिश करता है। शुरू में व्यक्ति पानी पीने से डरता है, बाद में उसे पानी से ही डर लगने लगता है। ये रेबीज का प्रमुख लक्षण है | कुछ भी निगलते हुए पीड़ा और कठिनाई। मुँह से चिपचिपी और मोटी लार टपकती है। व्यक्ति चौकस होकर शिथिल या उग्र होता है और बीच-बीच में गुस्से के दौरे पड़ते हैं। रेबीज के रोगी की जब मृत्यु निकट आती है तो दौरे के साथ लकवा भी हो जाता है। शरू में बुखार , थकान, झनझनाहट, सिरदर्द और बेचैनी होती है। काटे गए स्थान पर खिंचाव और दर्द भी होता है। इसके बाद जल्दी ही रोगी में इस रोग के अन्य बड़े या प्रमुख लक्षण, जैसे शोर और तेज रोशनी से तकलीफ (Intolerence). रेबीज में कोई भी खाने पीने जी चीज या पेय निगलने में कठिनाई और पानी से डर तथा खाद्य या द्रव पदार्थ लेने पर पेशियों में तीव्र संकुचन (Spasm) होना इत्यादि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। रेबीज में अकसर मौत का कारण सांस क्रिया के लकवाग्रस्त (Respiratry Paralysis) होने से होती है। यदि जानवर ने चेहरे पर नहीं काटा है, तो आमतौर पर रेबीज के लक्षणों को उभरने में दो से छह महीने लगते हैं।यदि आपको शक हो कि काटने वाले पशु को रेबीज या जलांतक है तो जानवर को 10 दिनों के लिए रस्सी से बाँधे या पिंजरे में कैद कर दें। यदि जानवर को रेबीज होगा तो वह 10 दिनों के अंदर-अंदर या तो रेबीज रोग के लक्षण प्रकट करने लगेगा या मर जाएगा। यदि जानवर 15 दिन से पहले मर जाए (या उसे मार दिया गया हो या उसका पता रखना संभव न हो) तो व्यक्ति को तुरंत स्वास्थ्य केंद्र में ले जाएँ जहाँ उसे रेबीज के टीके का पूरा कोर्स दिया जा सके।

घाव का प्राथमिक उपचार :

काटे के घाव में से लार व वाइरस को पानी, साबुन और हाइड्रोजन पैरॉक्साइड से साफ करें। यदि साबुन और हाइड्रोजन पैरॉक्साइड नहीं है तो केवल साफ़ पानी से साफ करें।यह बहुत जरूरी है। घाव का मुंह बन्द नहीं करना चाहिए बल्कि जितना भी हो सके खून बाहर निकालना चाहिए। यदि यह काटने के 3 मिनट के अन्दर किया जाये तो बहुत लाभदायक सिद्ध होता है इससे रोग के विषाणु बाहर निकलने में मदद मिलती है। इसके बाद घाव को सुखा लें | यदि घाव मुंह पर हो तो टिंकचर ऑफ आयोडीन लगाना चाहिए।mजहाँ काटा गया हो, उस जगह को साफ करने के बाद कारबोलिक एसिड (बिना पतला किए) की कुछ बूंदें घाव पर डालें। एक मिनट के बाद काटे के घाव पर स्पिरिट लगाएँ। यदि कारबोलिक एसिड और स्पिरिट न हो तो टिंचर आयोडीन, लाल दवाई (पोटाशियम परमैगनेट) या डेटोल भी प्रयोग कर सकते है | काटा हुआ घाव या छिले के निशान को जल्दी से साबुन से रगड़कर धोना चाहिए। संभव हो तो घाव पर साबुन लगाकर नल की तेज धार से धोएँ फिर स्प्रिट, अल्कोहल अथवा टिंक्चर आयोडीन घाव पर लगाना चाहिए, जिससे उसमें मौजूद विषाणु मर जाएँ। इसके बाद घाव पर पट्टी बाँध दें। घाव पर बीटाडीन (Betadine) मरहम लगायें |

टिटनस टॉक्साइड का इंजेक्शन तथा जीवाणुरोधी दवाएँ भी लें। जिससे घाव द्वारा अन्य तरह के संक्रमणों से बचाव हो सके। यदि व्यक्ति के टेटनस का टीका नहीं लगा हुआ हो तो उसे टेटनस एंटीटॉक्सिन का टीका लगाएँ। काटे के घाव को छूत से बचाने के लिए पैंसिलीन जैसी एंटीबायोटिक दवा दी जानी चाहिए। काटने वाले पशु में जब रेबीज के लक्षण दिखते हैं या वह दस दिनों में या दस दिनों के भीतर मर जाता है। जब काटने वाले कुत्ते या पशु की पहचान नहीं हो पाती, तब भी खतरा मोल न लेते हुए रेबीज-विरोधी टीके लगवाने की सलाह दी जाती है। सभी जंगली पशुओं (जैसे-सियार, रीछ आदि) के काटने पर एंटी रेबीज वैक्सीन इलाज और टीके लें। रेबीज के खतरों को देखते हुए बिना समय व्यर्थ किये हुए आपको इंजेक्शन जरुर लगवा लेना चाहिए|

रेबीज का इलाज

कुत्ते के काटने का इलाज:- कुत्ते ने काट लिया है तो 72 घंटे के अंदर एंटी रेबीज वैक्सीन का इंजेक्शन अवश्य ही लगवा लेना चाहिए। पहले जो टीका (इंजेक्शन) बनाया जाता था, वह संक्रमित पशु के मस्तिष्क की कोशिकाओं से तैयार होता था। वह टीका (इंजेक्शन) पेट की त्वचा में लगाया जाता है। घाव की गंभीरता के अनुसार इसकी मात्रा 2 से 5 मि.लि. तक से 14 दिन तक के लिए होती है। रेबीज के 10,000 उपचारित रोगियों में से 1 व्यक्ति लकवा से ग्रस्त हो जाता है। नया टीका अब बाजार में कोशिका संवर्धित टीका आने लगा है। इसे एच.डी.सी. (Human Diploid Cell) टीका कहते हैं। ये टीके शक्तिशाली होने के साथ पूर्व टीकों से सुरक्षित भी हैं। नए टीके की 1 मि.लि. मात्रा 5 बार अंत:पेशीय (Intra Muscular) 0, 3, 7, 14 वें और 30 वें दिन लगाते हैं। 90 दिन बाद एक और डोज ऐच्छिक मात्रा लगाने की भी सलाह दी जाती है।कई लोग इन्हें खरीदकर लगवाने में असमर्थ होते है इसलिए ये टीके सरकारी हॉस्पिटल में नि:शुल्क लगाए जाते हैं। यदि पशु ने सिर, गरदन, कंधे या छाती पर काटा है तो उस व्यक्ति को तुरंत स्वास्थ्य केंद्र लाकर रेबीज (जलातंक) निरोधक टीके लगवाएँ। उसके लिए 15 दिन तक इंतजार न करें। रेबीज का पहला लक्षण पशु के काटने के 10 दिन से 2 वर्ष के बाद कभी भी दिखाई दे सकता है | संक्रमण के बाद रोग के लक्षण आने अथवा रोग होने में 1 से 3 महीने तक लगते हैं। गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माता को रेबीज का वैक्सीन दिया जा सकता है। यह वैक्सीन माता और बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित हैं। रेबीज के टेस्ट की सुविधा भारत में कुछ संस्थानों में ही उपलब्ध है।

बचाव

अगर आपके घर में पालतू जानवर और बच्चे हैं तो आपको सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि बच्चों को पालतू जानवरों से बहुत प्यार होता है। ऐसे में जरूरी है कि आप सर्तक रहें। अगर आपके घर के आसपास में कोई आवारा जानवर रह रहा हो तो अपने स्थानीय जानवर नियंत्रण एजेंसी को तुरंत इसकी सूचना दें। अपने गली मोहल्ले में घूमने वाले कुत्तों व अन्य जानवरों के संपर्क में नहीं आए। इससे रेबीज का शिकार हो सकते हैं। कुत्ता कुछ खा पी रहा हो तो उसके पास नहीं जायें। रेबीज से बचने के लिए जरूरी है कि अपने घर के पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्लियां व अन्य को जरूरी वैक्सीन लगवाएं। अगर आपके पालतू जानवर को किसी अन्य जंगली जानवर ने काट लिया है तो तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास ले जाकर जरूरी इंजेक्शन लगवाएं।

सावधानी पर ध्यान दें:

मानव(बच्चे, महिला और आदमी) कुत्तों को देखकर कभी भागे ना बल्कि तेज आवाज में चिल्लाएं या किसी डंडे की सहायता उसको अपने शरीर से दूर रखने की कोशिश करें और कुत्ते या फिर किसी भी रैबीज धारी पशु, पक्षी से नजरे ना मिलाएं तथा आसपास के लोगो को अपनी मदद के लिए बुलाएँ | जानवर को परेशान ना करे। उनके कान पूँछ आदि ना खींचे। बच्चो को इन सावधानियो के बारे में शिक्षित करें |

निष्कर्ष:

मानव को ध्यान देना होगा कि यदि जिस कुत्ते या पशु ने काटा है, उसे मारना नहीं चाहिए बल्कि उसे दस दिनों तक रोज देखें। यदि काटने के बाद दस दिनों के अंदर वह मर जाता है या उसमें रेबीज के लक्षण दिखाई देते है तो तुरंत ही शिकारग्रस्त व्यक्ति को रेबीज-रोधक उपचार शुरू करना चाहिए। कुत्ते के काटने के नजदीकी पशु चिकित्सा कार्यालय को भी सूचित किया जाना चाहिए। यह कुत्ते की निगरानी के लिए आवश्यक है। रेबीज पर एक सीमा तक नियंत्रण आवारा, अवांछित कुत्तों की संख्या में कमी लाकर भी हो सकता है। इसके अलावा अपने पालतू कुत्ते का टीकाकरण भी अवश्य करवाना चाहिए। तीन महीने की उम्र में कुत्तों को टीका लगवाना उचित है और उसकी एक एक्स्ट्रा डोज प्रति तीन वर्ष में टीके के प्रकार के अनुसार लगवानी चाहिए। गाँव-शहरों में कुत्तों की नसबंदी करने से भी उनकी संख्या नियंत्रित हो सकती है। और रेबीज जैसे जानलेवा रोग से काफी हद तक बचा जा सकता है । जानकारी लीजिए और जानकारी दीजिए। जानकारी का होना बहुत जरूरी है। इसके लिए भारत सरकार, राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें रैबीज रोकथाम संबंधित तत्काल ठोस और प्रभावी कदम उठाएं तब ही रैबीज का रोक पाना संभव होगा।

प्रस्तुति
सत्य प्रकाश
डॉ बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़


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