एस आर अब्रॉल का कॉलम : समाज का बदलता स्वरुप

By: Dilip Kumar
7/16/2023 6:14:24 PM

कुछ दिन पहले तुर्कीए में भयंकर भूचाल आया था। सब कुछ तबाह हो गया था। बड़ी-बड़ी इमारतें जमींदोज हो गईं। धन दौलत, सोना-चांदी जीवन की रक्षा नहीं कर सके। छोटे-छोटे दूध मुहे बच्चे मलबे में दब गए। ईश्वर की लीला को कोई नहीं समझ सकता। आज इंसान इंसान को ही लूट रहा है। एक इंसान दूसरे से धोखाधड़ी करते समय एक पल के लिए भी यह नहीं सोचता कि अगले पल उसके साथ रहेगा कि नहीं। सभी दौलत के ढेर लगाने के लिए अंधी दौड़ दौड़ रहे हैं। यह सच है कि हम सब को मरना है परंतु समय से पहले मौत दुखदाई और पीड़ा दायक होती है। अपराध से कमाया हुआ धन हमारी जीवन रक्षा नहीं कर सकता लेकिन दूसरों को पीड़ा अवश्य पहुंचा सकता है।

धन के ढेर लगाने के बजाय जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए। बच्चों को अच्छे संस्कार देना चाहिए। आज से 50 साल पहले जीवन के सिद्धांत कुछ और थे। किंतु अब वर्तमान में वह पूरी तरह से बदल चुके हैं। घर का कोई बड़ा बुजुर्ग कोई आदेश देता था तो उसको सभी मानते थे। कोई मना नहीं कर सकता था। आदेश और सिद्धांत पर पाली गई सन्तानें योग्य बनी। समय बीत गया जीवन में परिवर्तन आया। दूसरा जीवन सिद्धांत आया जो विचार विमर्श पर आधारित था। बच्चे माता-पिता से विचार-विमर्श करने लगे। बच्चे माता-पिता से पूछने लगे कि ऐसा क्यों वैसा क्यों? विचार-विमर्श करने वाले बच्चों ने अंत में माता-पिता से कहा आपकी बात तो समझ में नहीं आई फिर भी आपके आदेश का पालन होगा। वह समय भी चला गया फिर भारत में तीसरा चरण आया। इसमें बहस शुरू हुई जैसे कि माता-पिता कुछ बोलते बच्चे बहस करने लगते। माता-पिता ने कहा कि बड़ों को प्रणाम करो, तो बच्चों ने कहा क्यों करें?

माता-पिता ने कहा आशीर्वाद मिलेगा बच्चों ने पूछा अगर प्रणाम नहीं करेंगे तो क्या आशीर्वाद नहीं मिलेगा? अगर प्रणाम करने से आशीर्वाद मिलेगा तो यह बड़े किस काम के हैं । इस पीढ़ी ने जब बहस शुरू की तो उसे घमंड भी हुआ वह अपने मां बाप से ज्यादा अकलमंद हैं। फिर चौथा चरण आया अब बात बात पर इंकार करने का दौर आया माता-पिता बच्चों से कुछ भी कहते बच्चे झट से इंकार कर देते। इस तरह बच्चों और माता-पिता में अलगाव बढ़ने लगा और परिवार टूटने लगे। माता-पिता बच्चों को संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। बच्चे गलत रास्तों पर चलने लगे। दुष्कर्म करने लगे। बच्चे वासना की आंधी में उड़ने लगे। समाज का सारा ताना-बाना बिखर रहा है। आज माता-पिता जवान होते बच्चों से डरने लगे हैं।

ऐसा नहीं कि सभी परिवारों में बच्चों को अच्छे संस्कार नहीं दिए जा रहे हैं। एक दिन मुझे एक अस्पताल जाना था। मैंने अपने परिचित से मुझे वहां ले जाने के लिए कहा। परिचित किसी काम में व्यस्त थे और जाने में असमर्थ थे। उन्होंने अपने पत्नी और बेटे को मुझे वहां ले जाने के लिए बोला। माता और बेटा दोनों खुशी खुशी मुझे अस्पताल ले गए। रास्ते में जुगल बाजी होती रही मां बेटा हंसी खुशी करते और विनोद करते रहे रास्ता कब कट गया पता ही नहीं चला। अस्पताल में इधर-उधर उपर-नीचे जाना था। मुझे परचित का बेटा लगभग उठा कर ही ले गया। मेरा MRI का टेस्ट के लिए जूते और कपड़े उतारने थे। बच्चे ने देखा कि मुझसे यह सब नहीं हो रहा था तो उसने बिना किसी संकोच के मेरे जूते और कपड़े उतारे और मुझे MRI रूम तक ले गया। सारे समय तक वह बाहर ही खड़ा रहा। जैसे MRI हुई वह मुझे ले जाकर ड्रेसिंग रुम में कपड़े पहनना दिए। मैं सोचता रहा कि आज के युग में ऐसे बच्चे क्या हो सकते हैं।

आज एक तरफ वासना से ग्रस्त बच्चे लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं। जिसके भयंकर परिणाम भी निकल रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी परिवार हैं जो बच्चों को अच्छे संस्कार देकर सद मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। समाज में आ रही विकृतियों को देखते हुए ढोंगी, पाखंडी संतो-महंतों के द्वारा समाज का विध्वंस भी हो रहा है और धर्म के नाम पर अधर्म की जय हो रही है। पांचवा सिद्धांत भी देखने को मिल रहा है। बच्चे अश्लीलता की सारी हदें पार कर रहे हैं। कपड़े बदन को ढकने के लिए होते हैं लेकिन यहां नए कपड़ों को फार कर चीथड़े बनाकर पहन रहे हैं। आज कपड़े बदन को छुपाने के लिए नहीं परंतु दिखाने के लिए पहन रहे हैं।

-एस आर अब्रॉल
वरिष्ठ स्तंभकार

 


comments