एस आर अब्रॉल का कॉलम : सजना, सब मालिक दे रंग ने

By: Dilip Kumar
7/16/2023 6:22:51 PM

भगवान सिर्फ वहां ही नहीं है, जहां हम प्रार्थना करते हैं, भगवान वहां भी हैं जहां हम गुनाह करते हैं। कभी भी किसी के साथ छल-कपट करके अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए, किसी का अपमान ना करें, किसी का भी मन नहीं दुखाना चाहिए। बुरे कर्मों पर लगने वाला दंड बड़ा भारी होता है। हमें पता ही नहीं चलता और हमारे संचित पुण्य, समाप्त हो जाते हैं। एक राजा को भी भीख मांगना पड़ सकता है। कर्म की गठरी बांधे ,जग में फिरे इंसान, जैसा करे वैसा भरे, यही है विधि का विधान।

पुण्य कर्म जमा करें और साथ में यह भी ध्यान रखें कि कहीं हम गलती से उन्हें समाप्त तो नहीं कर रहे हैं । किसी का दिल दुखाना जानबूझकर या गलती से, एक बहुत बड़ा पाप है। यह संसार हमारा घर नहीं एक दिन इसे हमें छोड़कर जाना है। हमारा तो शरीर भी अपना नहीं मृत्यु होने के पश्चात इसे जला या दफना दिया जाता है। मेरी-मेरी क्या करें, कौड़ी-कौड़ी जोड़ कर, जोड़े लख करोड़ चलती बार न कुछ मिला, ली लंगोटी फाड़। जो आभूषण मनुष्य ने मरने से पहले पहने होते हैं वह भी उतार लिए जाते हैं। सब कुछ यहीं रह जाता है।

हर एक जिस्म घायल, हर एक रुह प्यासी, निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी, यह दुनिया है या आलम-ए-बदहवस। यहां एक खिलौना है इंसान की हस्ती, यह मुर्दा परस्तों की है बस्ती, यहां पर तो जीवन से मौत सस्ती, यह महलों, यह तख्तों, ये ताजों की दुनिया, इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया, यह दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया, यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।

कबीर जी ने बड़े सुंदर शब्दों में कहा है-
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोहे,
दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगा तोहे।

लोग मुसीबत के समय भगवान को याद करते हैं। सुख के समय मिठाइयां खाते हैं और हर समय सब की बुराइयां करते हैं। अगर हम सदैव भगवान को याद कर रहें । अच्छे कर्म करें, दूसरों के दिलों को ना दिखाएं, तो दुख हमारे पास भी नहीं भटकेगा। दूसरों की बुराई करने की अपेक्षा अपनी खटिया के नीचे झांक लेना चाहिए।

कबीर जी के शब्दों में-
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।

अनेक लोग ऐसा कहते हैं जब वह बूढ़े हो जाएंगे तब वह भगवान का भजन करेंगे।
कीर्तन करो जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है, हाथ हुए बेकार, ताली बजाने में लाचार, ताली बजाओ जवानी में बुढ़ापा किसने देखा है। चली जा रही है उमर धीरे धीरे जवानी भी जाए, बुढ़ापे का होगा असर धीरे-धीरे, हाथ पाओं के बल न रहेगा, झुकेगी यह कमर धीरे-धीरे, एक दिन शिथिल हो जाएंगे अंग सारे।

-एस आर अब्रॉल
वरिष्ठ स्तंभकार


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