दो दिनों की छुट्टी पर हैं मुंबई के डब्बावाले

By: Dilip Kumar
7/12/2019 11:10:28 PM
नई दिल्ली

मुंबई में आम लोगों खासकर वर्किंग क्लास के लिए लंच की सप्लाइ करने वाले डब्बावाले दो दिन की छुट्टी पर हैं। मुंबई डब्बावाला असोसिएशन की ओर से इस संबंध में एक बयान जारी करते हुए कहा गया है कि मुंबई में 12 और 13 जुलाई को टिफिन सप्लाइ का काम नहीं किया जाएगा। डब्बा वालों के इस ऐलान के बाद पहले दिन मुंबई के तमाम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा है। मुंबई डब्बावाला असोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष तालेकर ने शुक्रवार सुबह मीडिया से बात करते हुए कहा था कि 12 और 13 जुलाई को मुंबई में टिफिन्स की सप्लाइ नहीं की जाएगी।

उन्होंने बताया कि मुंबई के सभी डब्बावाले इन दो दिनों के दौरान आषाढ़ एकादशी के अवसर पर आयोजित होने वाली मशहूर पंढरपुर शोभायात्रा में शामिल होंगे। महाराष्ट्र में आषाढ़ी एकादशी का पर्व एक पारंपरिक आयोजन के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर पंढरपुर के विट्ठल मंदिर में विशेष पूजन भी किया जाता है। इससे पूर्व गुरुवार को राज्य के सीएम देवेंद्र फडणवीस ने भी अपनी पत्नी के साथ विट्ठल मंदिर में विधि-विधान से पूजन किया था।

रोज पहुंचाए जाते हैं करीब दो लाख लंच बॉक्स

बता दें कि लगभग पांच हजार डब्बावाले मुंबई के ऑफिसों में लगभग दो लाख लंच बॉक्स हर दिन पहुंचाते हैं। डब्बावाले अपनी त्रुटिहीन वितरण प्रणाली के लिए जाने जाते हैं, जिसका अध्ययन वैश्विक प्रबंधन विशेषज्ञों द्वारा किया गया है। मुंबई डब्बावाला असोसिएशन एक 'रोटी बैंक’ भी चलाता है, जिसके माध्यम से सरकार द्वारा संचालित टाटा मेमोरियल अस्पताल, केईएम अस्पताल और वाडिया अस्पताल में इलाज कराने के लिए आए मरीजों के परिजनों को मुफ्त भोजन दिया जाता है।

मुम्बई के डिब्बावालो से जुड़े रोचक तथ्य

मुम्बई के डिब्बावालो का आदर्श वाक्य है ” अन्नपूर्णा देवोभव ” जिसका अर्थ है इंसान को भोजन कराना ,देवता की सेवा करने के समान है | अपनी इसी भावना के कारण वो ना केवल मुम्बई बल्कि देश विदेशो में काफी मशहूर है | उनकी इसी कार्यशैली के कारण मुम्बई के डिब्बावालो को मुम्बई की लाइफलाइन माना जाता है | पिछले 150 वर्षो से मुम्बई के 2 लाख लोगो तक घर का बना खाना उनके ऑफिस रतक पहुचाते है | 

सन 1890 में पहली बार मुम्बई में Dabbawala की शुरुवात हुयी जब उस दौर के कुछ अंग्रेज और फारसी समुदाय के लोगो को इसकी जरूरत पड़ी | मुम्बई में आज इतनी भीड़भाड़ है कि पैर रखने को जगह नही है और मुम्बई में इस भीड़ की शुरुवात तो पिछले 100 वर्षो से हो चुकी थी | 1890 के दशक में जब गृहिणियो को सुबह जल्दी उठकर अपने पति के लिए टिफिन बनाने में काफी तकलीफ होती थी क्योंकि उस दौर में आज की तरह गैस और प्रेशर कुकर जैसे सामान रसोई में नही हुआ करते है और चूल्हे पर ही सारा काम होता था | तब महादेव हावजी नामक एक व्यक्ति ने नूतन टिफिन कम्पनी के नाम से डिब्बावालो की शुरुवात की |

जब नूतन टिफिन कम्पनी के महादेव हाव्जी ने डिब्बा घर से ऑफिस पहुचाने की शुरुवात की थी उस वक्त केवल 100 ग्राहकों के जरिये उन्होंने शुरुवात की थी जो आज बढकर 2 लाख तक पहुच चुकी है | वर्तमान में रघुनाथ मेडगे पिछले 35 वर्षो से इस संस्था के अध्यक्ष है | वर्तमान में Dabbawala की संख्या लगभग पांच हजार है जो मुम्बई के 2 लाख लोगो को सुबह का खाना ऑफिस में पहुचाते है | इस संस्था के पुरे मुम्बई में छह ऑफिस है |

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इन Dabbawala ने शुरू से ही ऐसी प्रणाली विकसित की है कि इसमें अनपढ़ लोग भी शामिल हो सकते है | इन डिब्बावालो का काम कुछ निशानों के जरिये चलता है जो डिब्बो के उपर लिखा होता है और इसको अनपढ़ भी समझ सकते है | वर्तमान में इस काम में कुछ अनपढ़ लोगो से लेकर थोड़े बहुत साक्षर लोग इसमें शामिल है | इनमे से ज्यादातर लोगो को मराठी भाषा में लिखना पढना आता है | हर डब्बे वाले की आय एक जैसी होती है चाहे उसकी उम्र कितनी भी हो , अनुभव कितना भी हो या फिर कितने भी ग्राहक भी हो |

ये डिब्बावाले ना केवल भारत बल्कि देश विदेशो में इतने मशहूर ही चुके है कि इनकी कार्यशैली को कैद करने के लिए कई संस्थाओ और टीवी चैनलो ने इन पर डॉक्युमेंट्री बनाई है | आपने भी कई बार डिस्कवरी या नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर इनकी डॉक्युमेंट्री देख चुके होंगे | यहा तक की BBC जैसे विश्व के सबसे बड़े चैनल ने भी इनकी कायर्शैली पर कई डॉक्युमेंट्री फिल्मे बनाई है और इनसे मैनेजमेंट का गुर सीखने का तरीका बताया है | 2013 में बॉलीवुड फिल्म “लंचबॉक्स” भी इन्ही डब्बावालो से प्रेरित थी |

वैसे किसी भी संस्था या कम्पनी में कार्य करने हेतु आपको एक विशेष यूनिफार्म पहननी पडती है लेकिन ये लोग बरसों से जो कपड़े पहने रहे है उसी को उन्होंने यूनिफार्म बना दिया है | डिब्बावाले आपको सफेद कुर्ते , पायजामा , सिर पर गांधी टोपी , गले में रुद्राक्ष माला और पैरो में कोल्हापुरी चप्पल में दिख जायेंगे जो इनकी सादगी की पहचान भी है | Dabbawala का काम करने वाले अधिकतर लोग वारकरी समुदाय के है जो विट्ठल भगवान में आस्था रखते है |

प्रिंस चार्ल्स जब भारत आये थे तब उन्होंने डिब्बावालो की कार्य शैली देखी तो वो उनके मुरीद हो गये और उन्हें अपनी शादी में आने के लिए इंग्लैंड आमत्रित किया | इस शादी में मुम्बई के Dabbawala सहित देश विदेश के लगभग 1500 मेहमानों को बुलाया गया था जो डिब्बावालो के लिए सबसे गर्व का अवसर था | इस शादी में नूतन टिफिन कम्पनी के अध्यक्ष रघुनाथ सहित उनके कुछ साथी गये थे और प्रिंस चार्ल्स को उपहार भी दिए थे | ना केवल प्रिंस चार्ल्स बल्कि रिचर्ड बेंसन जैसे प्रसिद्ध बिज़नसमेन भी उनसे बहुत प्रभावित हुए थे |

लगभग 300 में ये सेवा देने वाले ये डिब्बावाले पिछले 150 वर्षो में कभी लेट नही हुए | चाहे मूसलाधार बारिश हो या गर्मी का प्रकोप , ये अपने काम में 100 प्रतिशत देते है | अपनें काम को सुगमता से करने के लिए मुम्बई के ट्रैफिक से बचने के लिए साईकिल का इस्तेमाल करते है | 1 डब्बा अपने ग्राहक तक पहुचने के दौरान छह हाथो से होकर गुजरता है और इसी तरह वापस खाली टिफिन घर तक पहुचने में भी होता है | डिब्बा वालो को six-sigma rating मिली हुयी है जिसका अर्थ है 6 मिलियन ट्रांससेक्शन में गलती की सम्भावना केवल एक होती है |

मुम्बई के पांच हजार डिब्बावाले अगर 2 लाख डिब्बो को अपने निश्चित जगह पर समय पर पहुचा दे तो इससे बड़ा मैनेजमेंट क्या हो सकता है | इसी कारण इन डिब्बावालो को विदेशो से बुलावे आते है | नूतन टिफिन कम्पनी के अध्यक्ष रघुनाथ इन्ही बुलावो पर केन्या ,इटली ,अमेरिका ,नाइजीरिया सहित विश्व के कई देशो में भ्रमण कर चुके है |

महंगाई के इस दौर में अगर आपको कोई सस्ती सेवा उपलब्ध करवाए तो इसे आप निस्वार्थ भावना ही कहेंगे | मुम्बई के डिब्बावालो में आपको मजबूत टीम भावना देखने को मिल जायगी | एक रूट पर काम करने वाले सभी डिब्बावाले आपस में बराबर पैसा बाँट लेते है और उनकी आय में से कुछ हिस्सा ट्रस्ट को देते है | ये ट्रस्ट भी निस्वार्थ भाव से काम करते हुए धर्मशालाये बनवाने और गरीबो की मदद करने जैसे धार्मिक कार्य करते है | वारकरी समुदाय की यही खासियत उनको लोगो के बीच लोकप्रिय बना रही है | डब्बावालो ने 120 वर्षो के इतिहास में केवल एक बार हडताल की जब 2011 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में वो शामिल हुए थे | किस्मत से उस दिन पारसी नव वर्ष के उपलक्ष्य में पब्लिक हॉलिडे था |




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