घट स्थापना के साथ ही नौ दुर्गा की पूजा शुरू, जानिए

By: Dilip Kumar
10/17/2020 4:20:36 PM
नई दिल्ली

17 अक्टूबर, 2020 से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ हो चुका है। त्योहारों के इस समय की शुरुआत नवरात्रि से ही हो जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक देवी की कहानी विशेष है। यह कहानियां मनुष्य को जीवन की कठिनाईयों से निरंतर लड़ते रहने की प्रेरणी देती हैं। भक्त माता की पूजा करते हैं और नौ दिनों के कठिन व्रत रखते हैं। यह सकारात्मकता और समर्पण का त्योहार है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इनका वाहन वृषभ (बैल) है। शैल शब्द का अर्थ होता है पर्वत। शैलपुत्री को हिमालय पर्वत की बेटी कहा जाता है।

navratri 2019 date

नवरात्रि महिषासुर मर्दिनी मां दुर्गा का त्यौहार है। जिनकी स्तुति कुछ इस प्रकार की गई है,


सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।

अर्थ : अर्थात सर्व मंगल वस्तुओं में मंगलरूप, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थ साध्य करानेवाली, शरणागतों का रक्षण करनेवाली हे त्रिनयने, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा नमस्कार है ।


१. मंगलरूप त्रिनयना नारायणी अर्थात मां जगदंबा !

जिन्हें आदिशक्ति, पराशक्ति, महामाया, काली, त्रिपुरसुंदरी इत्यादि विविध नामों से सभी जानते हैं । जहांपर गति नहीं वहां सृष्टि की प्रक्रिया ही थम जाती है । ऐसा होते हुए भी अष्टदिशाओं के अंतर्गत जगत की उत्पत्ति, लालन-पालन एवं संवर्धन के लिए एक प्रकारकी शक्ति कार्यरत रहती है । इसी को आद्याशक्ति कहते हैं । उत्पत्ति-स्थिति-लय यह शक्ति का गुणधर्म ही है । शक्ति का उद्गम स्पंदनों के रूप में होता है । उत्पत्ति-स्थिति-लय का चक्र निरंतर चलता ही रहता है ।

श्री दुर्गासप्तशती के अनुसार श्री दुर्गादेवी के तीन प्रमुख रूप हैं,

१. महासरस्वती, जो ‘गति’तत्त्व का प्रतीक हैं ।

२. महालक्ष्मी, जो ‘दिक’ अर्थात ‘दिशा’तत्त्व का प्रतीक हैं ।

३. महाकाली जो ‘काल’तत्त्व का प्रतीक हैं ।

जगत का पालन करनेवाली जगदोद्धारिणी मां शक्तिकी उपासना हिंदू धर्म में वर्ष में दो बार नवरात्रि के रूपमें, विशेष रूप से की जाती है ।

वासंतिक नवरात्रि : यह उत्सव चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।

शारदीय नवरात्रि : यह उत्सव आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से आश्विन शुक्ल नवमी तक मनाया जाता है ।


 ‘नवरात्रि’ किसे कहते हैं ?

नव अर्थात प्रत्यक्षत: ईश्वरीय कार्य करनेवाला ब्रह्मांड में विद्यमान आदिशक्तिस्वरूप तत्त्व । स्थूल जगतकी दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, प्रत्यक्ष तेजतत्त्वात्मक प्रकाश का अभाव तथा ब्रह्मांड की दृष्टि से रात्रि का अर्थ है, संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वरीय तेज का प्रक्षेपण करनेवाले मूल पुरुषतत्त्व का अकार्यरत होने की कालावधि । जिस कालावधि में ब्रह्मांड में शिवतत्त्व की मात्रा एवं उस का कार्य घटता है एवं शिवतत्त्व के कार्यकारी स्वरूप की अर्थात शक्ति की मात्रा एवं उसका कार्य अधिक होता है, उस कालावधि को ‘नवरात्रि’ कहते हैं । मातृभाव एवं वात्सल्यभाव की अनुभूति देनेवाली, प्रीति एवं व्यापकता, इन गुणों के सर्वोच्च स्तर के दर्शन करानेवाली जगदोद्धारिणी, जगत का पालन करनेवाली इस शक्ति की उपासना, व्रत एवं उत्सव के रूप में की जाती है ।


नवरात्रि का अध्यात्मशास्त्रीय महत्त्व

अ. ‘जग में जब-जब तामसी, आसुरी एवं क्रूर लोग प्रबल होकर, सात्त्विक, उदारात्मक एवं धर्मनिष्ठ सज्जनों को छलते हैं, तब देवी धर्मसंस्थापना हेतु पुनः-पुनः अवतार धारण करती हैं । उनके निमित्त से यह व्रत है ।

आ. नवरात्रि में देवीतत्त्व अन्य दिनों की तुलना में 1000 गुना अधिक कार्यरत होता है । देवीतत्त्व का अत्यधिक लाभ लेने के लिए नवरात्रि की कालावधि में ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ नामजप अधिकाधिक करना चाहिए ।

नवरात्रि के नौ दिनों में प्रत्येक दिन बढते क्रम से आदिशक्ति का नया रूप सप्तपाताल से पृथ्वीपर आनेवाली कष्टदायक तरंगों का समूल उच्चाटन अर्थात समूल नाश करता है । नवरात्रि के नौ दिनों में ब्रह्मांड में अनिष्ट शक्तियोंद्वारा प्रक्षेपित कष्टदायक तरंगें एवं आदिशक्ति की मारक चैतन्यमय तरंगों में युद्ध होता है । इस समय ब्रह्मांड का वातावरण तप्त होता है । श्री दुर्गादेवी के शस्त्रों के तेज की ज्वालासमान चमक अतिवेग से सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंपर आक्रमण करती है । पूरे वर्ष अर्थात इस नवरात्रि के नौवें दिन से अगले वर्ष की नवरात्रि के प्रथम दिनतक देवी का निर्गुण तारक तत्त्व कार्यरत रहता है । अनेक परिवारों में नवरात्रि का व्रत कुलाचार के रूप में किया जाता है । आश्विन की शुक्ल प्रतिपदा से इस व्रत का प्रारंभ होता है ।

नवरात्रि कलश स्था‍पना की तिथि और शुभ मुहूर्त

  • कलश स्था‍पना की तिथि: 17 अक्टूबर 2020
  • कलश स्था‍पना का शुभ मुहूर्त: 17 अक्टूबर 2020 को सुबह 06 बजकर 23 मिनट से 10 बजकर 12 मिनट तक।
  • कुल अवधि: 03 घंटे 49 मिनट

कलश स्थापना कैसे करें

  • नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें।
  • मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं और कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं।
  • अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्सेे में मौली बांधें।
  • अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें।
    इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं।
  • अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें।
  • अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें, जिसमें आपने जौ बोएं हैं।
  • कलश स्थाशपना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्पब लिया जाता है।
  • आप चाहें तो कलश स्था पना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योोति भी जला सकते हैं।

सनातन संस्था
श्री. गुरुराज प्रभु
9336287971

 

 


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