कालाहस्ती मंदिर में पूजा करने से दूर होता है राहु और कालसर्प दोष

By: Dilip Kumar
8/26/2022 4:33:41 PM

पटना से जितेन्द्र कुमार सिन्हा की रिपोर्ट। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव, वायु रूप में एक कालहस्तीश्वर के रूप में पूजे जाते है। इसलिए यह मंदिर “कालहस्तिश्वर” मंदिर नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लोग बोलचाल की भाषा में “कालाहस्ती” भी कहते है। “कालहस्ती” मंदिर के संबंध में बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण चोला वंश ने 5वीं शताब्दी में किया गया था। जबकि 10वीं शताब्दी के दौरान इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया, चोला वंश के राजा-महाराजा ने विजयनगर के राजा-महाराजा के मदद से की थी। लेकिन मंदिर में बने नक्काशी से ऐसा लगता है कि मंदिर में में बना हुआ सौ स्तंभ वाला भवन भी राजा कृष्णदेव राय के शासनकाल में सन 1516 में बनवाया गया होगा। पूरे देश में राहु और कालसर्प दोष दूर करने के लिए यह मंदिर प्रसिद्ध है। यहाँ मंदिर परिसर में एक साथ लगभग 100 व्यक्ति एक बार एक साथ बैठ कर राहु की पूजा और कालसर्प दोष दूर करने के उपाय करते है। जबकि वास्तव में यह मंदिर भगवान शिव का मंदिर है, लेकिन यहां राहुकाल की पूजा के साथ- साथ कालसर्प की भी पूजा होती है।

लोगों का मानना है कि कालाहस्ती मंदिर जागृत मंदिर में एक है और यहाँ भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। इस संबंध में कहा जाता है कि एक दिन सभी लोग, भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा करने में व्यस्त थे, तभी अचानक से भगवान के शिवलिंग से खून बहना शुरू हो गया। खून इतना बह रहा था की रुक ही नहीं रहा था, जिसको देखकर वहां खड़े सभी लोग डर गए। लेकिन वहां पर खड़े एक कन्नाप्पा नाम के व्यक्ति ने इस दृश्य (नजारे) को देखकर अपनी एक आँख निकालकर शिवलिंग के सामने रख दी और जैसे ही वह अपनी दूसरी आंख निकालने लगा तभी भगवान शिव वहां स्वयं प्रकट हो गये और उन्होंने कन्नाप्पा को ऐसा करने से रोका। और कन्नाप्पा से कहा कि आज। से मै यहाँ निवास करुंगा। तब से यह मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव निवास करते है।

इस मंदिर की सबसे खास बात है की मंदिर में शैव पंथ के नियमों का पालन किया जाता है। मंदिर के पुजारी प्रतिदिन भगवान की पूरे रीति-रिवाजों और रस्मों के साथ पूजा करते है, और तो और, यहां पूरे दिन में चार बार पूजा करने का प्रावधान है। भगवान की पहली पूजा सुबह 6 बजे कलासंथी, दूसरी पूजा 11 बजे उचिकलम, तीसरी पूजा 5 बजे सयाराक्शाई और चौथी एवं आखिरी पूजा रात 7:45 से 8:00 बजे के बीच एक बार फिर सयाराक्शाई की पूजा की जाती है।

यह मंदिर आंध्र प्रदेश में तिरुपति शहर से लगभग 35 किलोमीटर दूर श्रीकालहस्ती गांव में स्थित है। दक्षिण भारत में भगवान शिव के तीर्थ स्थानों में यह मंदिर अहम स्थान रखता है। लगभग दो हजार वर्षो से इसे दक्षिण का कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान “कालहस्तीश्वर” (शिव) के साथ देवी “ज्ञान प्रसून अंबानी” स्थित है। लोगों का यह भी मानना है कि इस स्थान का नाम तीन पशुओं, “श्री यानि मकड़ी, काल यानि सर्प और हस्ती यानि हाथी” के नाम पर किया गया है।

लोगों का कहना है कि तीनों ने ही यहां पर भगवान शिव की आराधना करके मुक्ति पाई थी। क्योंकि मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करके जाल बनाया था, सांप ने शिवलिंग पर लिपटकर आराधना की थी और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया था। इस मंदिर में देश के कोने-कोने से लोग आकर राहु और कालसर्प दोष दूर करने की पूजा करते है। सूत्रों के अनुसार कालाहस्ती मंदिर की सालाना आमदनी सौ करोड़ रुपए से भी अधिक होता है।


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