जितेन्द्र सिन्हा का कॉलम : महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की करें पूजा, सभी कार्य होंगे सिद्ध

By: Dilip Kumar
10/22/2023 3:10:43 PM

‘नवरात्र' शब्द से नव अहोरात्रों (विशेष रात्रियों) का बोध होता है। इस अवधि में मां दुर्गा के नवरूपों की उपासना की जाती है। 'रात्रि' शब्द सिद्धि का प्रतीक है। भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की अपेक्षा अधिक महत्व दिया है, इसलिए दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्रि आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है। मान्यता यह भी है कि नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा, धरती पर आती हैं और नौ दिनों तक अपने स्वागत करने वाले भक्तों के साथ रहती हैं। मां दुर्गा की रचना देवताओं ने, राक्षसों के भयानक अत्याचारों को समाप्त करने के लिए की थी। महिषासुर और मां दुर्गा ने नौ दिन और नौ रात युद्ध किया था और अंत में, दसवें दिन, मां दुर्गा राक्षस महिषासुर को मारकर विजयी हुईं थी। इसलिए नवरात्रि के नौवें दिन, सभी लोग अपनी आजीविका और काम के उपकरणों की पूजा करते हैं। नवरात्रि के अंतिम दिन यानि नौवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-आराधना होती है। नवमी का विशेष महत्व होता है। इस बार नवमी 22 अक्टूबर को रात 7 बजकर 58 मिनट से शुरू होगी और 23 अक्टूबर को शाम को 5 बजकर 54 मिनट तक रहेगी। शारदीय नवरात्रि के 9 दिन के बाद दशमी पर सिंदूर खेला, विसर्जन और रावण दहन का त्योहार मनाया जाता है, इस बार यह तिथि 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और 24 अक्टूबर को 3 बजकर 14 मिनट तक ही रहेगी।

मां दुर्गा का हर रूप अद्भुत और करुणामय है। मां दुर्गा की नौवीं शक्ति है मां सिद्धिदात्री, जो सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली मां हैं। मां सिद्धिदात्री की कहानी उस समय शुरू होती है जब हमारा ब्रह्मांड एक गहरे शून्य से ज्यादा कुछ नहीं था। वह अंधकार से भरा हुआ था और जीवन का कोई चिन्ह नहीं था। यह वह समय था जब देवी कुष्मांडा ने अपनी मुस्कान के तेज से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसके बाद मां कुष्मांडा ने भगवान ब्रम्हा - सृजन की ऊर्जा, भगवान विष्णु - पालन की ऊर्जा और भगवान शिव - विनाश की ऊर्जा - की, त्रिमूर्ति का निर्माण किया। एक बार जब वे निर्मित हो गए, तो भगवान शिव ने माँ कुष्मांडा से उन्हें पूर्णता प्रदान करने के लिए कहा। तो, माँ कुष्मांडा ने एक और देवी का निर्माण किया जिसने भगवान शिव को 18 प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान कीं। इनमें भगवान कृष्ण द्वारा वर्णित अष्ट सिद्धि (पूर्णता के 8 प्राथमिक रूप) के साथ- साथ पूर्णता के 10 माध्यमिक रूप भी शामिल हैं। यह देवी जिसमें भगवान शिव को ये सिद्धियाँ प्रदान करने की क्षमता थी, माँ सिद्धिदात्री हैं - पूर्णता की दाता। अब, भगवान ब्रह्मा को शेष ब्रह्मांड का निर्माण करने के लिए कहा गया।

हालाँकि, उन्हें सृष्टि के लिए एक पुरुष और एक महिला की आवश्यकता थी, भगवान ब्रम्हा को यह कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण लगा। उन्होंने माँ सिद्धिदात्री से प्रार्थना की और उनसे उनकी मदद करने को कहा। भगवान ब्रम्हा के अनुरोध को सुनकर, माँ सिद्धिदात्री ने भगवान शिव के आधे शरीर को एक महिला के शरीर में बदल दिया। इसलिए, भगवान शिव को अर्धनारीश्वर (अर्ध - आधा, नारी - महिला, ईश्वर - भगवान शिव को संदर्भित करता है) के रूप में भी जाना जाता है। भगवान ब्रम्हा अब शेष ब्रह्मांड के साथ-साथ जीवित प्राणियों का निर्माण करने में सक्षम थे। तो, यह माँ सिद्धिदात्री ही थीं जिन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण में भगवान ब्रम्हा की मदद की और भगवान शिव को पूर्णता भी प्रदान की।

मां सिद्धिदात्री को कमल या सिंह पर विराजमान दर्शाया गया है। उनकी चार भुजाएं हैं और प्रत्येक हाथ में शंख, गदा, कमल और चक्र है। ऐसा माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान का आशीर्वाद देती हैं और उनकी अज्ञानता को नष्ट करती है। मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की शास्त्रीय विधि- विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। भगवान शिव ने भी मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही तमाम सिद्धियाँ प्राप्त की थीं, इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं। इस देवी की कृपा से ही शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। हिमाचल के नन्दापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है। यह भी मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से बाकी मां दुर्गा के अन्य रूपों की उपासना भी स्वयं हो जाती है और अष्ट सिद्धि, नव निधि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।

मां सिद्धिदात्री का मन्त्र

सिद्धगन्धर्व- यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि ।
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

विजयदशमी और दुर्गा विसर्जन

ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां दुर्गा ने महिषाशुर नाम के राक्षस का वध किया था और भगवान राम ने रावण को युद्ध में पराजित किया था, इसलिए दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को अधर्म पर धर्म, बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के लिए भी जाना जाता है। विजयदशमी के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाथ (इंद्रजीत) के पुतलों का दहन किया जाता है। मान्यता यह भी है कि दशमी के दिन गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन, कान छेदन जैसे मांगलिक कार्य करना शुभ होते हैं। पंचांग के अनुसार, विजयादशमी अश्विन माह की शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है और इसकी शुरुआत इस वर्ष 23 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 44 मिनट से 24 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 14 मिनट तक रहेगा। उदयातिथि के अनुसार इस वर्ष 24 अक्टूबर को विजयादशमी पर्व मनाया जाएगा। जबकि दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त 24 अक्टूबर को सुबह 5 बजकर 44 मिनट से सुबह 8 बजकर 03 मिनट तक रहेगा। रावण दहन प्रदोष काल में किया जाता है और प्रदोष काल 24 अक्टूबर को 5 बजकर 43 मिनट से अगले ढ़ाई घंटे तक दशहरे का शुभ मुहूर्त है।


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