'समाज के हर तबके को जोड़कर आगे बढ़ाने का माध्यम है सहकारिता मॉडल'

By: Dilip Kumar
7/7/2025 2:56:48 PM
नई दिल्ली

कुलवंत कौर के साथ बंसी लाल की रिपोर्ट। “भारत आज जब एक समावेशी और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, ऐसे में सहकारिता क्षेत्र को भी अपनी भूमिका का विस्तार करते हुए नए-नए क्षेत्रों में सक्रियता से भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।” यह विचार दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए व्यक्त किए। यह कार्यक्रम गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति में यूनाइटेड थ्रिफ्ट एंड क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटीज़ फेडरेशन ऑफ दिल्ली लिमिटेड द्वारा ‘सहकारिता वर्ष, संग्रह और सहयोग सम्मान समारोह’ के अंतर्गत आयोजित किया गया, जिसमें सहकारिता आंदोलन से जुड़े उत्कृष्ट कार्यों को सम्मानित किया गया और समाज में सहयोग की भावना को मजबूत करने पर बल दिया गया।

"सहकारिता मॉडल केवल एक व्यापार मॉडल नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन है जो महात्मा गांधी के आत्मनिर्भर समुदायों के दृष्टिकोण के अनुरूप है" —  विजेंद्र गुप्ता


अपने संबोधन में श्री गुप्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2025 को "अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष" घोषित किया है, जिसका विषय है — "सहकारिताएं एक बेहतर विश्व का निर्माण करती हैं।" यह वैश्विक पहल सहकारिताओं की भूमिका को उजागर करती है, जो आर्थिक लचीलापन बढ़ाने, सामाजिक समावेश को बढ़ावा देने और सतत विकास को साकार करने में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। लोकतांत्रिक स्वामित्व और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से, सहकारिताएं लोगों को एकजुट कर उनकी साझा आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं को लोकतांत्रिक स्वामित्व और सामूहिक प्रयासों के माध्यम से पूरा करने का माध्यम बनती हैं। ये संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में विशेष रूप से सम्मानजनक कार्य को बढ़ावा देने, असमानता को घटाने, और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

विधानसभ अध्यक्ष ने आगे कहा कि ‘संग्रह और सहयोग सम्मान कार्यक्रम’ इस बात का उदाहरण है कि स्थानीय सहकारी समितियाँ किस प्रकार सहकारिता के मूल सिद्धांतों — बचत को प्रोत्साहित करना, ऋण सुविधा उपलब्ध कराना, और सशक्त सामुदायिक नेटवर्क का निर्माण करना — को साकार कर रही हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की संस्थाएं विशेष रूप से उन नागरिकों को सशक्त बनाती हैं, जिन्हें पारंपरिक वित्तीय प्रणालियों तक पहुंच नहीं है। ये संस्थाएं उन्हें आजीविका सुधारने के लिए आवश्यक संसाधन और विश्वास प्रदान करती हैं। श्री गुप्ता ने यह रेखांकित किया कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सहकारिता आंदोलन अब विकसित भारत की एक मजबूत आधारशिला के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा कि भारत ने ‘सहकार से समृद्धि’ और ‘विकसित भारत में सहकारिता की भूमिका’ जैसे दो मार्गदर्शक सिद्धांतों को अपनाया है, जो विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता के एक नए पुनर्जागरण को प्रेरित कर रहे हैं और देश की सहकारी व्यवस्था को सशक्त एवं आधुनिक बनाकर पुनर्जीवित कर रहे हैं।

माननीय अध्यक्ष ने यह भी कहा कि इन पहलों का उद्देश्य वित्तीय समावेशन को गहराना, शासन व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना, नए क्षेत्रों में विस्तार करना, और सहकारिताओं को वैश्विक बाजार से जोड़ना है। यह परिवर्तन आज प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), सहकारी बैंकों, कर व्यवस्था, और निर्यात उन्मुख राष्ट्रीय सहकारिताओं की सुदृढ़ता में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जो आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य में सीधे योगदान दे रहे हैं और सहकारिताओं को समान वृद्धि के वाहक के रूप में स्थापित कर रहे हैं। श्री गुप्ता ने सहकारी संस्थाओं से आग्रह किया कि वे पारदर्शिता बनाए रखें, आधुनिक तकनीकों को अपनाएं, और नए दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ें, ताकि वे वर्तमान सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का प्रभावी रूप से सामना कर सकें। उन्होंने सहकारी नेताओं और सदस्यों से आह्वान किया कि वे इस अंतरराष्ट्रीय वर्ष को एक अवसर के रूप में लें, ताकि सहकारिता मॉडल के लाभों के प्रति जनजागरूकता बढ़े और युवाओं को एक अधिक न्यायपूर्ण और सतत भविष्य के निर्माण के लिए प्रेरित किया जा सके।

इस अवसर पर माननीय अध्यक्ष ने दौड़ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले प्रतिभागियों को सम्मानित कर उनका उत्साहवर्धन किया। कार्यक्रम में सहकारी संगठनों के नेताओं, समाज के सदस्यों और गणमान्य व्यक्तियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और सभी ने समावेशी विकास, सामुदायिक कल्याण और विकसित भारत के लक्ष्य की पूर्ति के लिए सहकारिता आंदोलन को सशक्त करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।


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