कृष्ण की रसोई
By: Dilip Kumar
9/30/2025 4:51:47 PM
एक बड़ी प्रीतिकर कथा है। एक पुत्र अपने पिता के पास गया। उसने पूछा पिता श्ब्रह्मश् क्या होता है। पुराना जमाना था। बच्चे आज्ञाकारी थे। पिता ने पूछाए तुमने भोजन कर लियाघ् पुत्र ने कहाए अभी नहीं। तो आज भोजन न करना। पुत्र चला गया। वह दूसरे दिन भी इसी प्रश्न को लेकर उपस्थित हो गया। पिताजी यह श्ब्रह्मश् क्या होता हैघ् पिता ने फिर उससे वहीं कहा কি तुमने भोजन कर लिया हैघ् उसके नहीं कहते ही पिताज्ञा हुई कि आज भी भोजन नहीं करना है। तीसरे दिन बालक दौड़ता हुआ आयाए उसने कहा पिताजी श्मैं जान गयाश् अन्नं ब्रह्मेति जानामिश्। मैं समझ गया कि अन्न ही ब्रह्म है। यह वही भावपक्ष हैए जहां से श्रील प्रभुपाद की प्रेरणा बहती हुई श्अक्षय.पात्रश् योजना में बदल जाती है। जैसे प्रेमचंद ने गोदान में बताया कि खन्ना के पास बहुत पैसा हैए लेकिन न वह खश है न उसकी पत्नी गोविन्दी। सुख के पीछे दौड़ने का अर्थ है श्स्वत्वश् को खो देना। ऐसा न होए हर बालक के मन में प्रार्थना और भूख को संतुष्ट करने का भाव बना रहेए इसी आराधना को ईश्वरीय रसोई मानते हुए संस्थापक अध्यक्ष मधुपंडित दासए इस्कान बंगलुरू और अक्षयपात्र के उपाध्यक्ष चंचलापति दासए राष्ट्रीय अध्यक्ष भरतर्षभदास ने ;मैत्रए उपण् 1ण्13द्ध की तरह भोजन प्रक्रिया को ईश्वरीय पूजा के रूप में माना है। औपनिषदीय मान्यता की तरह सम्पूर्ण अक्षय.पात्र मानना है कि भोजन और भोजन करने वाला ईश्वर के रुप हैं। अनेक रसोइयों के खुलने पर वे इसे कृष्णार्पिणमस्तुश् की तरह लेते हैं। इसी भाव के साथ करोड़ों शालेय विद्यार्थी अक्षय.पात्र की गर्मागर्म और पौष्टिक रसोई प्रार्थना के साथ ग्रहण करते हैं। उन सभी को ;नैतिण् उप.3 7.8द्ध की तरह बताया जाता है कि किसी को भोजन का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। यही नियम है। इसी उपनिषद में कहा गया है कि अन्न जीवन.दात्री है। इसलिए अन्न औषधि भी है।
इस अनुष्ठान की प्रेरणा कृष्ण मूर्ति श्रील स्वामी प्रभुपाद से ही मिली थी। अक्षय.पात्र के संस्थापक मधुपंडित दास ने बंगलुरू में हुई भेंट में बताया था कि एक बार स्वामी प्रभुपाद कोलकाता के पास बसे एक छोटे गांव मायापुर में थे। वे अपनी खिड़की से बाहर देख रहे थे। तभी उनकी नजर कुछ बच्चों और कुत्तों में हो रही जंग पर पड़ी। वे वहां फेंकी हुई जूठन पर लड़ रहे थे। इस दृश्य से श्रील मर्माहित हो गए और उन्होंने तय किया कि उनके किसी भी केन्द्र के आस.पास 10 किलोमीटर की परिधि तक कोई भूखा नहीं रहना चाहिए। अक्षय.पात्र की प्रेरणा और उत्पत्ति के पीछे यही कारुणिक संदेश हैए और इसी का परिपालन प्रतिदिन समर्पित भाव से होते हुए देखा जा सकता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की एक कविता है.
बहुदिन धरेए बहुकोश दुरे
बहुव्यय कोरेए बहुदेश घुरे
देखते गियेधि पर्वत माला
देखते गियेधि सिंधु।
देखे होय ना चक्षु मेलिया
घर होसे शुषु दुई पा फेलिया
सारा देश घुरेए देखा होय न एकही घास उपरे
एकही शिशिर बिन्दुश्
श्मैं कई वर्षों तक हजारों मील घूमाए खूब खर्च करके बहुत सारे देशों में घूमता रहाए पर्वतमालाएंए सागर देखता रहाए लेकिन इन आंखों ने उसे नहीं देखा जो मेरे घर से दो कदमों की दूरी पर था। सब घूमकर जो चीज दिखाई न पड़ सकीए वह थी. घास के शीर्ष पर टंगी बूंद.ओस की बूंद।श् इसे बिल्कुल अमिधा अर्थात जैसा इसका अर्थ हैए थोड़े बदलाव के साथ देखें तो निकट देखने का यह समय नहीं शायद इसलिए नजदीक पर नजर नहीं जाती। न व्यक्ति पर न उसके दर्द पर। शालेय शिक्षा की अनिवार्यता को वैश्विक रुप में स्वीकारा गयाए लेकिन शालेय भूख की तरफ सिर्फ अक्षय.पात्र का ध्यान गया। समाज के उन बच्चों की चिंता हुई जो भूख के शांत होने पर एक नवीन नैतिक और प्रेम.पूर्ण समाज बना सकेंगे। महाभारत के आरण्यपर्व के अनुसार युधिष्ठिर ने अन्न पाने की इच्छा से भगवान् सूर्य की उपासना की थी। उनकी पूजा में खुश होकर सूर्य ने अक्षय तृतीया के दिन युधिष्ठिर को एक ऐसा बर्तन दियाए जिसमें रखा खाना कभी खत्म नहीं होता था। इसलिए उसे अक्षय.पात्र कहा गया। कथा यह भी है कि पांडवों के वनवास के समय पांडवों के पास असंख्य अतिथि आ गए। वे सभी साधु थे। निर्वासित समय में इन सबके लिए भोजन जुटाना असंभव देखकर द्रोपदी ने कृष्ण से प्रार्थना की। कृष्ण ने उसे असीमित भोजन प्रदान करने वाला बर्तन दिया। उसे अक्षय.पत्र कहते हैं। यह कृष्ण की सरोकारी चिंता थी और इस अक्षय.पात्र की चिंता भी सरोकारी हैए और उसे कहीं भी जाकर देखें प्रतिबद्ध टीम और नव.गतिए नवलय और समर्पण के साथ बच्चों और उनकी रुचिनुसार भोजन में सन्नद्ध रहती है।
अक्षय.पात्र का यह सहकर्मए संकल्पना वैदिक संप्रेषण से भी मिलती है। जैसे प्रत्येक वेद के तीन भाग है। जिन्हें मंत्र संहिताए ब्राह्मण और उपनिषद नाम से जाना जाता है। मंत्र अथवा ऋचाओं कोए उनके संग्रह को संहिता कहते हैं। ब्राह्मणों में उपदेश और धार्मिक कर्तव्यों का विधान है। उपनिषद और आरण्यक में दार्शनिक समस्याओं का विवेचन है। इसमें कर्तव्य का भाव और बोध अक्षय पात्र की पूरी संकल्पना को वैदिक मनीषियों में जोड़ता है। समझना होगा कि भौतिक जगत में जिसे कानून कहते हैंए सदाचार जगत में वही धर्म है। जैसे आगस्टाइन ने श्कन्फेशंसश् में कहा कि मैने पृथ्वी से पूछा तुम ईश्वर होए उसने कहा नहीं। मैने समुद्र से उसकी अतल गहराइयों में रहने वाले जीव जन्तुओं से पूछाए उन्होंने कहा नहीं। मैंने आकाशए सूर्यए चंद्रमाए तारों से पूछा उन्होंने भी कहाए नहीं। खोज बढ़ने में प्यास और गहरी हुईए फिर अंदर की आत्मा से पूछा तो उत्तर मिला तुम्हारा परमात्मा तुम्हारे पास हैए वह तुम्हारे जीवन का भी जीवन है। यह बात छांदोग्य उपण् 3रू14 से मिलती है और उसी कृष्ण कोए उसी परमात्मा को अक्षयसह.जीवन में देखता और महसूस करता है। उपनिषदों का उल्लेख आते ही कई भ्रम बड़े हो जाते हैं जैसे उपनिषदों में कहीं नहीं कहा गया कि यह संसार भ्रमजाल है। इसके रचयिता इस प्राकृतिक जगत में जीवन.यापन करते रहे। उन्होने जगत से भागने का कोई विचार नहीं किया। ठीक इसी तरह मधु पंडित दास और उनकी संगठित टीम सम्पूर्ण जगत को कृष्णाभिव्यक्ति मानते हैं। यही कारण है कि अक्षय.पात्र कृष्ण की बालस्वरुप अभिव्यातियों की अभिव्यंजना करता है।
समझना होगा कि पुराण के निरुक्तदार श्यास्कश् ने कहा श्पुरा नवं भवतिश् ;निरुक्त 3ण्19ण्24द्ध जिसमें पुराना नया हो जाता है। प्राचीन होते हुए भी जो परम्पराएं नए युग में सार्थक बनी रहेंए उनका संग्रह पुराण कहलाता है। वायु पुराण में लिखा हैए यस्मात् पुरा ह्यनतिश् जिसमें अतीत सांस लेता हुआ सजीव हो जाएए वह पुराण है। बृहदारण्यकोपनिषद ;2ण्5ण्10द्ध पर अपने भाष्य में शंकराचार्य कहते हैं ऋगवेद में पुरुरवा और उर्वशी का संवाद इतिहास है। इसी वेद के नारदीय सूक्त में दृष्टि से पहले कुछ नहीं थाए आदि ओ निर्माण पर विचार हैए वह पुराण है। इस तरह अक्षय.पात्र की संकल्पनाए उसका आयोजन एक साथ उसे ऋषियों के पुण्य.विचार से जोड़ देता हैए और बताता है कि यह विचार सरणि अत्यंत प्राचीन और आज पुनर्नवा है। यही वजह है कि कृष्ण.भूमि पर अनेक ईश्वरीय रसोई हजारों.हजार बच्चों को पोषित कर रही हैं। ये बच्चे कृष्ण.वलय मेंए उसकी कृपा.छाया में बने रहेए उनकी श्रद्धा अडिग रहेए वे अपने परिवेश के प्रति गर्वित बने रहेए इस दृष्टिकोण से वृंदावन में विश्व का सबसे बड़ा कृष्ण मंदिर ;वृदावन चंद्रोदय मंदिरद्ध बन रहा है।
वृंदावन चंद्रोदय मंदिर का संकल्प कैसे सिद्धि की ओर बढ़ रहा हैए और कहां यह भाव पुराण में जुड़ जाता है। हरिवंश पुराण में बलराम के यमुनाकर्षण का वृतांत रोमांचक रूप में वर्णित है। कहते हैंए बलराम ने यमुना से कहा.हे! महानदी मैं तुम्हारे जल में गोता लगाकर स्नान करना चाहता हूँ। यमुना में सुनी.अनभुनी कर दी। वह उनकी बात पर ध्यान न देकर थोड़ी और दूरी पर बहने लगी। तब बलराम ने हल उठाकर यमुना को खींचा।
स हलेनानताग्रेण इले गुह्य महानदीम्
चकर्ष यमुनां रामो व्यस्थितां वनित्रा मित्र
सा विश्वलजलस्त्रोता ह्रदयप्रस्थित सञ्चया
व्यावर्तत नदी भीता हलमार्गानुसारिणी
लांगलादिष्टमार्गा सा वेगेन बक्रगामिनी
संघर्षणभयत्रस्त्रा योषेवाकुलतां गता
पुलिन श्रोणिबिम्बोष्ठी मृदितैस्तोय ताड़ितैः ॥
फेनमेवल सूत्रैश्च वेगगाम्बुदगामिनी
तरंग विषमापीड़ा चक्रवाकोमुखस्तनी
वेगगम्भीरवकत्राड्वीं त्रस्तमीन विभूषणा
सितहंसेक्षणापांगी काशक्षौमोच्छितांबरा
तीरजोद्धूतकेशान्ता जलस्खलितगामिनी
लांगलोल्लिखितापांगी क्षुभिता सारसंगमा
मत्तेव कुटिला नारी राजमार्गेण गच्छति
कस्यते सा म वेगंन स्रोतः स्खलितगामिनी
उन्मार्ग नीत्रमार्गा सा येन वृंदावनं वनम्॥
तब बलराम ने हल की नोंक झुकाकर उस नदी के किनारे को पकड़कर इस तरह खींचा जैसे किसी स्त्री को पकड़कर खींच रहे हो। यमुना के जल की धार गड़बड़ा गईए घबराई हुई नदी हल की राह के पीछे.पीछे चलने लगी। संकर्षण से ग्रस्त एक स्त्री की तरह आकुल हो गईए पुलिनरूपी श्रोणियों वालीए बिम्बफल जैर्न अधरए वेग से चलते मेघों के समान गतिवालीए मछलियों के आभूषणवालीए गंभीर मुख और काया बालीए तट पर उगे पेड़ों के हिलते केशवालीए हल की नोंद से कुरेदे जाती आंखों की कोरोवालीए क्षुब्ध हुई सागर गामिनीए वह तेजी से खिची चली जा रही थीए उन्मार्गगामिनी उस रास्ते पर ला दी गईए जिधर वृंदावन का वन था। इस तरह विचार करने पर ही समझ पाएंगे कि बरसाने की ईश्वरीय रसोई और वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के विचार का आरंभ कहां हैं।
यह जानना जरूरी है कि आखिर महाभारत में गुणों का सिद्धांत क्यों माना गया हैघ् संभवतया इसलिए कि प्रकृति का जिनसे निर्माण हुआ हैए वे तीन गुण हैं। सत्वए रजस और तमस। प्रत्येक वस्तु में ये तीन गुण बराबर होते हैं। लेकिन इनकी मात्रा समान नहीं होती। इसीलिए प्राणियों को अलग.अलग श्रेणियां की गई हैं। जैसे.देवताए मनुष्य और पशु। ये तीनों गुण परस्पर मिश्रित अवस्था में देखे जाते हैं। नीलकंठ ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि प्रत्येक एक दूसरे का नियंत्रण भी करता है और एक.दूसरे से नियंत्रित भी होता है। तमसए चेष्टाहीनता का गुण है। इसे जड़ता का भाव या व्यामोह की अवस्था भी कहते हैं। इसलिए यह इंद्रियतृति में लगा रहता है। इसका मूल स्वरूप अज्ञान है। संयमीए मनुष्य तभी हो सकता है जब यह काबू में हो। रजोगुणए भावुकतापूर्ण शक्ति है। यह इच्छाओं को उत्तेजना पूर्ण बनाती है। लेकिन जब यह विनम्र होता है तो इससे जन्मता है अनुराग करुणा श्और श्प्रेमश्। सत्व गुण। इससे अन्तरदृष्टि का विकास होता है। इसे मनुष्य के बौद्धिक पक्ष के रूप में भी कहा जाता है। इसीलिए इसकी सघनताए सौजन्यता और स्थिरता को बढ़ावा देती है। इसका धर्म है श्क्रियात्मक ज्ञानश् और इसका लक्ष्य है श्कर्तव्य पालनश्।
इसीलिए नई पीढ़ी में अनुरागए करुणाए प्रेम और कर्तव्य पालन की धारा अविरल बहती रहे। अक्षय.पात्र और इस्कान भूख से भजन तक की यात्रा से वैश्विक हिन्दुत्व के लिए निरंतर प्रयासरत है। यह वही नंदादीप है जिसका प्रञ्जवलन श्अभय चरण डेश् अर्थात् श्रील प्रभुपाद ने भक्ति और वेदांत के दो ध्रुवों की समझ से दूर रहकर एकाकार कर दिया। इस भाव.बोध की आरंभिक वही अक्षय पात्र है। भाषा होए व्यक्ति होए संगठन हो बढ़ता वही है जो सबको प्यार करता है। सह.अस्तित्व में विश्वास करता है। महादेवी वर्मा ने श्चांदश् नामक पत्रिका के संपादन के समय एक प्रयोग किया था। उन्होंने श्हिन्दुस्तानी हिन्दीश्ए श्मराठी हिन्दीश्ए श्मलयाली हिन्दीश्ए श्पंजाबी हिंदीश्ए श्बांग्ला हिन्दीश् में अनेक लेखों का प्रकाशन किया। यह वही बात है जिसे बृहदारण्य उपनिषद्ध कहता है। आत्मज्ञानी ही ब्रह्माण्ड को जानता हैए जान सकता है। इसलिए प्रभुपाद जी ने मात्र ईशवरीय अस्तित्व श्कृष्णश् कहा। बच्चों में उनकी चेतना में विराजित कृष्ण को प्रणाम करने की एक विधि का नाम है अक्षय.पात्र। इसे आप श्रील प्रभुपाद की प्रेरणा और परंपरा भी कह सकते हैं। जैसे लुई हैरिप ने कहा है श्परम्परा वह नींव है जिसे उसे माननेवाला अनुपाततः अपने जीवन के कुछ वर्षों में उस धरातल तक पहुंच जाता है जहां तक पहुंचने में सामान्यतया शताब्दियों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। एलन टेट जिसे बहिर्मुख और अंतरमुख कहते हैंए वह वास्तव में अभिधार्थ और विवक्षितार्थ है। शब्द और अर्थ के बीच का संदिग्ध अंतराल उपस्थित न हो और नई पीढ़ी को बाधित न करे। यही कारण है कि मधुपंडित दास प्रार्थना को अनिवार्य मानते है। इससे आप श्रील प्रभुपाद की आम के बारे में मिली अन्तरदृष्टि के साथ जोड़कर समझ सकते हैं। उन्होंने कहा है श्अपनी कच्ची अवस्था मैं भी आम को आम कहा जाता हैए पकने के बाद अपने मनोहारी और स्वादिष्ट स्वभाव में भी वह आम ही रहता है। ऐसे ही जब कोई नवागंतुक श्हरे कृष्णश् का उच्चारण करता है तो उसकी गतिविधियां ईश्वर के प्रेम की परिधि में होती हैं। कृष्ण को प्रसन्न करने वाली होती है। लेकिन कर्मए ज्ञान और योग की गतिविधियों जब तक भक्ति से ओत.प्रोत नहीं होतीए तब तक कृष्ण को प्रसन्न करने के योग्य नहीं होतीं। कहा जाता है कि दर्शन महज बौद्धिक है। पहली बात तो यह कि यह सच नहीं हैए सच हो तब भी दर्शन श्दृशश् धातु से बनता है। इसमें प्रत्यक्षीकरण ;परसेप्सनद्ध अनिवार्य है और प्रत्यक्षीकरण महज बौद्धिक नहीं हो सकता। हमारे यहां मनमाइंडश् का पर्यायवाची नहीं है। इसमें ज्ञानेंद्रियों को संवेदित करने वाला यह आस्वाद भी हैए जो तत्काल अनुभव का विषय बनता है। जिसे अंग्रेजों के छंदों के लिए श्निश्चित आकांक्षाश्; डेफिनिटर्जस ऑफ एक्सपेक्टेंसीद्ध कहते हैं। वह निश्चित संकीर्णता ;डेफिनेट नेरोनेसद्ध को उखाड़ फेंकता है।
विचार की इस विधायी और सुदृढ़ जमीन पर अक्षय.पात्र अनथक कार्य कर रहा है। वह समय को केन्द्र में रखकर भावी पीढ़ी की चिंता मेंए उनकी छिपी हुई भूख को संबोधित करता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। यह कभी उन समुदायों में भी हो सकती है जहां आबादी की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए खाद्य आपूर्ति पर्याप्त है। अक्षय पात्र इस बात से वाकिफ है कि जब लोग पर्याप्त मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर फलोंए सब्जियों के साथ अपने आहार में विविधता लाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं। इसका आशय यह है कि विटामिन श्एश् लोहाए जस्ताए फोलिक एसिडए आयोडिन को कभी कुपोषण का एक रूप हैं। इसे किसी भी तरह नई पीढ़ी पर प्रभावी नहीं होने देना है। यह ष्अक्षय पात्रश् का संकल्प है। ऐसा इसलिए सोचा गया कि थकान या उर्जा की कमी की समस्याए संक्रमणों से लड़ने या प्रतिरक्षा की कमी ;इम्युनिटीद्ध या मानसिक समस्याएं जैसे ध्यानए एकाग्रताए फोकसए स्मति में कमी ये विद्यार्थियों की आम समस्याएं हैं। ये विकसित न हो और बच्चों को जकड़ न सकेंए अक्षय.पात्र की हर रसोई में इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। यह सब समकालीन वैज्ञानिक शोध और समझ के बाद किया गया क्रियान्वयन है। आप पाएंगे कि युनिसेफ को रिपोर्ट एडोलेसेंटए डाइटए न्यूट्रिशनए एंड ग्रोइंग वेल इन ए चेजिंग वर्ल्ड के अनुसार भारत में 40 प्रतिशत से अधिक किशोर छिपी हुई भूख से त्रस्त हैं। सरी शाम नहीं भरे दिन अपनी बुनियादी समस्याओं से जूझती यह पीढ़ी वर्तमान समय की सभ्यताओं को मनुष्यगत चुनौती है।
अक्षय.पत्र के संस्थापक अध्यक्ष मधुपंडित पास ने बताया कि जनसंख्या विस्फोट के नाम पर कई तरह की बातें की गई। किसी भी देश की आबादी उस देश के लिए सिर्फ जिम्मेदारी नहीं होतीए बल्कि उस देश की संपदा भी होती हैए वह जिम्मेदारी महज तभी होती है जब आप उसे भरपेट पौष्टिक भोजन नहीं दे पाते। प्रकृति में कहीं किसी के लिए भोजन की कमी नहीं है। कोई भी जंगल में भूद्ध में नहीं मारा। जिस नदी में घड़ियाल होते हैंए वहां मछलियां होती ही हैं। घड़ियाल का भोजन मछलियां हैं। एक घडियाल एक दिन में करीब तीन हजार मछलियां खाता है। जहां भी घड़ियाल होते हैंए वहीं एक घड़ियाल की तुलना में तीस हजार मछलियां होती हैं। आशय साफ है कि प्रकृति के हाथ में जहां और जब भी प्रबंधन रहाए भूख कभी समस्या नहीं रही। समस्या तो मनुष्य के हाथ में प्रबंधन चले जाने के बाद शुरू हुई।
श्री मधुपंडित दास ने कहा कि अक्षय.पात्र एक तरह की आंदोलनी यात्रा है और हर यात्रा में अवरोध आते हैं। इस यात्रा में भी आएए लेकिन कृष्ण.कृपा में हर अवरोध दूर होता गया। कृष्ण ने गीता के अठारवें अध्याय के 58 वें श्लौक में कहा.
ष्मच्चितः सर्वदुर्गाणि
मत्प्रसादासरिष्यसि
अथचेत्व महङ्कारान
न श्रोयसि विनङ्क्ष्यसिष्
अर्थात यदि तुम मेरा सदैव स्मरण करते होए तब मेरी कृपा से तुम सभी कठिनाइयों और बाधाओं को पार कर जाओगे। यदि तुम अभिमान के कारण मेरे उपदेश को नहीं सुनोगे तो तुम्हारा विनाश हो जाएगा। और मैं क्या मेरे सभी साथी जिनका सरोकार बच्चों की भूख थीए तन्मयता सेए समर्पण सेए सेवाभाव से इसमें जुटे रहे और अक्षय.पात्र आज वट.वृक्ष की तरह बड़ा हो गया है। लेकिन अमूमन अवस्थाएं प्रकृति की तरह नहीं होती जैसे बॉब मार्ले ने के लिखा. ष्तुम कहते हो तुम्हें बारिश में प्यार हैए लेकिन उसमें चलने के लिए तुम छाता इस्तेमाल करते होए तुम कहते हो तुम्हें सूरज से प्यार हैए लेकिन जब वह चमकता है तो तुम छाया तलाश करते हो। ठीक इसी तरह जब व्यवस्थाएं प्यार की दुंदुभी बजाती हैं तो भरोसा नहीं आता कि इससे नई पीढ़ी की मुट्ठी में सूरज की रोशनी और ताजादम बरसी बारिश भी होगी।
अक्षत.पात्र की आरंभिक यात्रा भी संकल्प से सिद्धि की यात्रा है। कृष्ण कृपा और स्वाभी प्रभुपाद की अनवरत प्रेरणा से 1500 बच्चों के लिए रसोई शुरु हुई। इसकी डिजाइनए बॉयलर सब कुछ यहीं और मधु पंडित दास के अनुसंधानए परिश्रम और विचार की त्रिवेणी से हुआ। उनसे मिलें तो पाएंगे कि उनमें वैश्विक सफलता के बावजूद ष्वृक्ष जैसी सहिष्णुता और तृण जैसी विनम्रताश् दिखाई देती है। वे चलती फिरती आध्यात्मिक पंचवटी हैं। उन्होंने अक्षय.पात्र के उषा.काल का उललेख करते हुए बताया कि शुरुआत तो 1500 बच्चों से हो गईए लेकिन चारों तरफ से इसकी मांग आने लगी। एक से डेढ लाख प्रार्थना.पत्र इस बारे में आ गए। मेरी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरु होती है। नौ बजे तक तो साधना चलती रहती है। यह प्रतिदिन का नियम है। उस समय मैं चिट्ठियों को देखताए सोचता कि इन लोगों को क्या जवाब दूं। मेरे साथ उस समय चित्रांग चैतन्य दासए चंचलापति और मेनुवादन दास भी थे। चर्चा में संकल्य पर सभी सहमत थेए करने को लेकर उद्यत भी थेए लेकिन और समय लिया जाएए इसलिए कि इसे कभी रोका नहीं जा सकेगाए रोकना भी नहीं है। मुझे रोज आभास होता कि लाखों बच्चे भूखे हैं और उनके लिए भोजन जुटाने का आदेश स्वामी प्रभुपाद दे रहे हैं। साधना के समय भान होता कि प्रभु ढ़ाढस भी दे रहे हैं कि ष्उठा दिया कदम अगर तो खत्म है हर सफरष्। 99 की बात हैए मुझे लगने लगा कि मैं बच्चों का एक तरह से दोषी हूं। मुझे जल्दी से जल्दी इसके लिए सार्थक और आवश्यक कदम उठाने ही होंगे। बेंगलुरू से से बारह घंटे की दूरी पर धर्मस्थला हैए वहीं गया। वहीं से अक्षय पात्र की आरंभिक तैयारियां शुरु हुईं। यह पूरी संघर्ष गाथा आस्था की विजय.गाथा है। जैसे पेड़ का ठाट क्या होता है तो कहना होगा वसंत और हरियालीए शेष सूखापन तो सिर्फ काठ है। वैसे ही बच्चों का हरापन उनकी मुस्कुराहट में व्यक्त होता है और मुस्कुराहट पोषित शरीर की अभिव्यक्ति है।
श्री मधु पंडित दास ने बताया कि ऐसा नहीं कि सब कुछ सहजए स्वाभाविक तरीके से हमेशा होता रहा। भगवान कृष्ण परीक्षा भी लेते गए जैसे जांच रहे हों कि हमारे संकल्प के पीछे कितना समर्पण है। तीन बरस का रहा होगा अक्षय पात्र। पांव तो यात्रा के लिए बढ़ा दिया थाए उसके वापस लेने की गुंजाइश थी नहीं। धनाभाव हो गया। कैसे करेंघ् इस चुनौती से कैसे उबरेंघ् फिर भाव आता रहा कि कृष्ण की असीम अनुकंपा में यह आरंभ हुआ हैए और कृष्ण किसी को भी मझधार में नहीं छोड़ते। लेकिन एक लाख बच्चों के लिए रोजाना का प्रबंध करना आसान नहीं था। प्रति थाली करीब 6 रुपए खर्च आता था। तीन रुपए मरकार की तरफ से इमदाद थीए लेकिन शेष का इंतजाम तो अक्षय.पात्र को करता था। अर्थात तीन लाख रुपए प्रतिदिन का खर्च। मासिक रूप से जोड़े तो 45 लाख रुपए। इसे वहन करने के लिए बैंक से कर्ज भी लिया गया। 2ण्50 करोड रुपए इस तरह जुटे।
शुरुआत में मो 20.30 समर्पित आटो में बैठकर घर.घर जाते थे। लोगों से बात करते और उसका परिणाम इस बात की मुनादी करता है कि कोई भी काम धन के अभाव में नहीं रुक सकताए जरूरत इस बात की है कि आप अपने लक्ष्य को लोगों तक कैसे और कितनी मजबूती से संप्रेषित कर पाते हैं। जब.जब बोर्ड मीटिंग होती आमतौर पर हंगामेदार होती। सबकी अपनी रायए कुछ का कहना था कि सिर्फ समर्पितों की टीम से काम नहीं चलेगा। लेकिन विकल्प की बात पर श्री मधुपंडित दास ने पहल की। उन्होंने बाहर से युवकों को जोड़कर मार्केटिंग टीम खड़ी करने का प्रस्ताव रखा। वह टीम नियमित वेतन पर रखी गई। फिर सवाल उठे कि वेतन कहां से दिया जाएगा। इस पर इस्कान बेंगलूरू की तरफ से वेतन दिया गया। धीरे.धीरे कृष्ण के कृपाशीष से आज अक्षय.पात्र आपको इस स्वरुप में दिखाई देता है।
अक्षय.पात्र के नामकरण की कहानी भी दिलचस्प है। कुछ कदम चलने के बाद अपनी ज्ञात प्रकृति का पूरा महाद्वीप लिए मधुपंडित दास मुरलीमनोहर जोशी के पास गए। श्री जोशी उस समय मानव संसाधन मंत्री थेए यानी तब अटलजी की सरकार थी। योजनाए ध्येय और संकल्प सुनकर जोशीजी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने ही इसका नामकरण श्अक्षय.पात्रश् किया और इतना ही नहीं इसकी बेंगलूरु स्थित रसोई का उद्घाटन भी किया। अक्षय.पात्र के साथ आस्था की रीढ़ हैए इसलिए इसके साथ जो जुड़ जाता हैए वह इसके विश्वास का हिस्सा हो जाता है। मिशन और प्रोफेशन की इस संधि को लोग आज भी कौतुक से देखते हैं। बताते हैं कि अब भीए कभी.कभी जोशी जी अक्षय.पात्र से संवाद कर उसकी प्रगति की सूचना लेते रहते हैं। क्यों न लें। यह एक परिवर्तनकारी पहल है। इसने शालेय भूख को संबोधित करके स्कूल में नामांकनए उपस्थिति और प्रतिधारण दरों को बढ़ावा दिया है। इतना ही नहीं अक्षय पात्र की इम निष्ठा योजना से सामाजिक समावेशन और समानता को भी गति मिली है। यह अपसोसनाक आंकड़ा है कि हमारे देश में सबसे ज्यादा कुपोषित लोग हैं। आयरन और फोलिक एसिड के कम सेवन से बच्चे एनीमिया में पीड़ित हो जाते हैं। हमारे यहां ऐसे बच्चों की दर विश्व औसत से 15 फीसदी ज्यादा है। इन बच्चों का स्वास्थ्य और शिक्षा अक्षय.पात्र का अहर्निश लक्ष्य है। इसलिए भी कि संतुलित आहार हड्डियों को मजबूत करनेए मस्तिष्क विकास में सहायता करनेए प्रतिरक्षा को बढ़ाने और विकास कार्यो को विनियमित करने में मदद करता है। यही कारण है कि इसके नियमित भोजन में प्रोटीनए कार्बोहाइड्रेटए वसाए और सूक्ष्म पोषण तत्वों जैसे विटामिनए खनिज और पानी का बराबर ख्याल रखा जाता है।
यहां हर कच्ची देह की वसंत गंध की चिंता की जाती है। यह कहा नहीं जा रहाए इसे देखा जा सकता है। उन लोगो से भी मिला जा सकता है जो देश की धड़कन हैं और आरंभ से अक्षय पात्र में जुटे हैंए जिनकी निजी और सामूहिक चिंताओं में सिर्फ अक्षय.पात्र बसता है। ऐसा ही एक चेहरा मंजुला चंद्रप्पा का है। दस वर्षों से जुड़ी मंजुला से बात की शुरुआत करते ही आप जान जाएंगे कि उसे अक्षय.पात्र के रूप में जैसे आकाश की मंदाकिनी मिल गई हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि उसे यहां काम मिला। उसे वस्तुतः जीवन का एक उद्देश्य मिल गया। ईश्वरीय रसोई में बच्चों के लिए काम करते हुए वह कब सृष्टि के अनूठे छंद में बदल गईए उसे भी नहीं पता। उसकी ननद उसे यहां लेकर आई थी। पहले ही दिन में उसे यहां घर जैसा माहौल मिला। खास बात यह कि घर में तीन बेटियों के भोजन की चिंता रहती थी यहां आने के बाद हजारों हजार बच्चों की चिंता रहने लगी। घर पर अपनी बेटियों को भोजन कराने के बद मिलने वाले सुकून का आनंद रहता था और यहां चैत की पुरा.भाषा की तरह अनेक बच्चों को भोजन बनाने का आनंद है। वह इसे परमानंद की तरह देखती हैं। मंजुला की बड़ी बेटी स्नातक के दूसरे वर्ष में पढ़ती है। दूसरी दसवीं में हैं और तीसरी छोटी है। उसने बताया कि यहां के भोजन का आस्वाद बच्चें को इतना पसंद आया कि जब से छोटे थे तो भोजन करते ही नहीं थेए साथ टिफिन बांधकर भी ले जाते। उसे लगता है कि मांओं के हाथों का भोजन बच्चों तक पहुंच रहा है। पहले मैं सिर्फ अपने बच्चों के लिए करती थी और आज अनगिनत बच्चों के लिए करती हूं। यह कहते हुए मंजुला की आंखों में गर्वित मातृत्व को छलकते हुए देखा जा सकता है। कृष्ण.कृपा से उसकी सभी बेटियों मेधावी हैं और शुरू से ही उन स्कूलों में पढ़ी हैं जहां अक्षय पात्र का प्रसार रस है।
बहुत स्पष्ट और साफ सोचती है मंजुला! अपनी बेटियों के भविष्य पर भी। उसमें पसीने की खुशबू से उपजा आत्मविश्वास है। वह समय कीए धूप की भाषा को ठीक.ठीक पढ़ना जानती है और इसीलिए कहती है कि वह अपनी बेटियों को उनकी तसल्ली तक पढ़ाएगीए फिर उन्हें इच्छित काम करने देंगी। जैसे वह बेटियों के भविष्य की संभावनाओं की खिड़कियां खोल रही हो। मंजुला अपने बचपन से ही अक्षय पात्र की रसोई के स्वाद से जुड़ गई थी। उसके स्कूल में भी यहीं की रसोई का भोजन आता था। दसवीं कक्षा में आते.आते परिजनों ने विवाह कर दिया। पारिवारिक दिक्कतें थीए इसलिए आगे पढ़ नहीं पायी। इसकी टीस उसके मन में है और इसीलिए वह अपनी बेटियों की उड़ान के लिए पंख देना चाहती है। उसने बताया.
अब तो रसोई में मशीनें आ गईए लेकिन शुरू में सब्जी हाथ से काटी जाती थी। वादन दास प्रभु ने मशीने मंगवाकर सिर्फ यहां लगाई ही नहींए हम सभी को उन मशीनों को चलाना सिखाया। बाजाप्ता प्रशिक्षण दिया और आज वह रह काम उन मशीनों के साथ भी आसानी से कर लेती है। मशीनों के आने के बाद भी किसी को हटाया नहीं गया और इसीलिए अक्षय पात्र हम सभी का घर आंगन है।
ष्मैंने उसको जब.जब देखा
लोहा देखाए लोहे जैसा
तपते देखाण् गलने देखाए ढलते देखा
मैने उसको गोली जैसा चलते देखाश्
केदारनाथ सिंह की ये पंक्तियां श्रम के पक्ष में खड़े किसी भी आदमी की पंक्तियां हैए उसके व्यक्तित्व की पंक्तियां हैं। इनमें वाद का मवाद नहींए संकल्प में संबद्ध मुट्ठियों की घोषणा है। ऐसे ही एक शाला का नाम है बालाजी चेनप्पा बालाजीए पहली रसोई के पहले शख्सो में एक है। यानी पिछले 18 वर्ष में लगातार अक्षय.पात्र के अक्षत सपूत की तरह जुड़े हैं। उन्होंने कन्नड में बतायाए वे दुनिया की किसी और भाषा में भी बताते तो यही बतातेए कि वे बेंगलूरू के यशवतंपुर रेलवे स्टेशन पर रहते थे। बालाजी एक दिन बस में कहीं जाने के लिए निकला। रास्ते में बस की खिड़की से उसे इस्कान मंदिर दिखाई दिया। वह जा कहीं और रहा था और उतर गया मंदिर। दर्शन किएए प्रसाद पाया और पाया संतोष। फिर भीए स्थिरताए स्थायित्व की चाह में लौटते हुए मंदिर के एक समर्पित से पूछ लिया. यहां कोई काम मिल पाएगाघ्श् उन्होने बड़े प्रेम से कहा हांए जरूर। तुम कल आ जाओ। दूसरे दिन पहुंचने पर मुझे ईश्वरीय रसोई में काम मिल गया। स्वाभाविक रुप से नई जगहए नया काम। ऐसे में सब कुछ आप पर नहीं छोड़ा जा सकता। मैं भी सहायक के तौर पर यानी बावर्ची के सहायक के हुप में चार साल काम किया फिर मुझे बावर्ची का पद और काम सौंप दिया गया। मेरे दो बच्चे हैंए एक बेटा और एक बेटी। उसने बताया कि वह 2003 में यहां आया था। शुरू.शुरु मैं मंदिर में प्रसादम् के कार्य में लगा। उस समय इतना विश्वास नहीं हुआ था। शुरु में होता भी नहीं। उस समय हम लोग एक कुकर में 50 किलो चावल डालते थे। आज एक कूकर में 120 किलो चावल डाला जाता है। शुरू में 60 हजार लोगों कहें या बच्चों का भोजन जाता था। 2011 में यह मंख्या बढ़कर एक लाख हो गई। यह एक रसोई की क्षमता से कहीं ज्यादा था। उस समय ठीक.ठाक एक्सास्ट सिस्टम भी नहीं था। हर जगह भाप भर जाती थी। बहुत तकलीफ होती थी। महन आठ राइस कूकर और पांच सांभर कूकर हमारे पास थे। हम तब पुलावए टमाटर चावल और दही के अलावा मिक्स वेज पुलावए खाना पोंगल ;नमकीन मिक्चरद्ध ;शुरू में मिक्चर हाथ से बनाया जाताए बाद में मशीन आ गईद्ध भोजन में बैंगन भातए बिसी ;गरमद्ध बेले ;दामद्ध भात ;चावलद्ध बनाया और परोसा जाता था। चपाती 2003 से 2010 में जुड़े गई।
इसी तरह मीठे में रवा पायसम ;खीरद्धए स्वीट पोंगलए मूंग दाल पायसमए सिवैयाए चना दाल ;हाइग्रीव पायसमद्ध खीर गुड़ मेंए नारियल डालकर दी जाती रही। बात यह है कि आज भी बच्चे अक्षय.पात्र को अपनी मां का बनाया और उसी स्वादए स्पर्श और प्रेम का भोजन मानते हैं। यह वही द्वैतवाद से जुड़ रहा है जिसे पूर्णप्रज्ञ और आनंद तीर्थ माधवाचार्थ द्वैतवाद कहते हैं। वे विष्णु को सर्वोच्च तत्व मानते हैं। वे मानते हैं कि चैतन्य स्वरूप होने पर भी वह निर्गुण नहींए जगत का निमित्त कारण है। विष्णु शरीरी होते हुए भी नित्य और सर्वतंत्र स्वतंत्र है। यही कारण है कि वेणुवादक प्रभुजी जिनका उल्लेख मधु पंडित दास भी करते है वे अपनी सम्पूर्ण निष्ठा और तपश्चर्या को बच्चों के लिए व्यय करते हैं।
वेणुवादन प्रभु जी उस शख्सियत का नाम है जिन्हें अकुलाए बच्चे बिल्कुल उसी तरह घेरकर चलते हैं जैसे चलती है हवा पत्तों को घेरकर। अब तो एक पीढ़ी युवा हो गई। वे बताते है कि उन्हें अप्रैल 2000 में चंचलापति दास ने बुलवायाए पूरी योजना बतायी और मुझसे अपेक्षा थी कि मैं नई बनने और उभरने वाली प्रणाली का यथोचित क्रियान्वयन देखूं। माधवारा गांव कहलाता है जैसे यह बेंगलुरू का ही हिस्सा है। वहां के हेडमास्टर से बैठक हुई। उनसे निवेदन किया कि बच्चों को प्रसादम् वितरित करना है। वे पर्याप्त प्रसन हुए। उन्होंने कहा कि अनेक बच्चे घर से खाना लेकर नहीं आते हैं। कई बार कई शिक्षिकाओं में बच्चों को भोजन कराया है। दोपहर का भोजन जरूरी है। लेकिन इसकी पूर्व स्वीकृति लेनी होगी। शासकीय विद्यालय ब्लाक एजुकेशन आफिस के तहत आते हैं। उन्ही से स्वीकृति लेनी थी। उन्होंने बतायाए यह वह समय था जब अक्षय.पात्र का नामकरण भी नहीं हुआ थाए फिर भी इतना तय हो गया था कि शालेय भूख के लिए कुछ न कुछ किया जाना है।
शुरुआत में इसे लोग ष्इस्कान खानाष् कहने लगे। उस समय ष्खिचड़ीश् वितरित की जा रही थी। अलग से व्यवस्थित रसोई भी नहीं थी। खाना मंदिर के अंदर की रसोई में ही बनता और बंटता था। इस्कान मंदिर तीन से पांच हजार लोगों में प्रसादम वितरित करता था। लेकिन इसका बच्चों के लिए विस्तार करने पर चार गुना ज्यादा इंतजामात करने थे। बमुश्किल उस समय 4.5 लोग काम करते थे। इसलिए किसी भी दिन किसी के जिम्मे कोई भी काम आ जाता था। मैंने भी बच्चों के लिए कई बार भोजन बनाया।
इसीलिए आप देख पाते हैं कि क्षुधा.अनुराग की पुरातन ताकतें मनुष्य की प्रकृति के सनातन गुण हैं। इन्हीं गुणों में से एक क्षुधा को अक्षय.पात्र और इससे जुड़े निष्ठावान लोग संबोधित कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जो विक्टर कजिन जैसे लोगों के दावे कि श्सबसे उच्च श्रेणी के दार्शनिक लाभ को हासिल करते हैंश्ए इसका खंडन करते हैं। और सिर्फ बौद्धिक तर्क और टांग खिंचाई में नहीं लगे रहतेए मनुष्य के लिए काम करते हैं। इसलिए जगन्नाथ रथ यात्रा के समय तय हुआ कि हम लोग बच्चों को भोजन वितरित करेंगे। उसी दिन से 1500 बच्चों को नियमित भोजन देने का काम शुरु हो गया। शायद वह जून का महीना था। उस समय बायलर तो थाए लेकिन कॉइल वायलर नहीं था। पत्तों पर बच्चों को भोजन प्रसादी दी जाती थी। वे खाने के बाद उसे स्कूल के पास या प्रांगण में कहीं फेंक देते थे। इस सबके लिए कुछ स्थानीय नेताओं और उद्योगपतियों ने अपनी गुल्लक खोल दी।
स्पर्धा सदैव होती रहती है। स्पर्धा मनुष्य का स्वभाव है। अनंतकुमार उस समय के सांसद थे। उनकी पत्नी पहले से अदम्य चेतनाश् ट्रस्ट चलाती थीं। वे भी बच्चों को भोजन देने का काम करती थीं। उनका एक गोद लिया स्कूल भी था। मजा यह कि उसे भी भोजन अक्षय.पात्र से जाया करता। मगर बाद में वे लोग कई हजार बच्चों को भोजन वितरित करने लगे। ऐसा नहीं था कि खिचड़ी जैसा भोजन जिसे हम लोग वितरित कर रहे थेए सबको पसंद था। आरंभ के दिनों में बच्चों ने जरूर उसे खायाए लेकिन बाद में अरुचि हो गई। इसकी एक वजह यह भी थी कि खिचड़ी दक्षिण भारत का लोकप्रिय भोजन नहीं है। इसके बाद अक्षय.पात्र ने स्थानीय खादए गुणवत्ता के साथ भोजन परोसना आरंभ कियाए जिसे बच्चों ने बहुत सराहा।
प्रभु रत्न अंगद ने बताया मैं राजस्थान 16 बरस रहा। जयपुर के झालाना डूंगरी जो आज शहर का हिस्सा हो गया है। भास्कर के पास ही था। जगतपुरा में सरकार ने जमीन आवंटित की। बाद में वहीं चले गए। उन्होंने कहाए वैसे में बेंगलुरू का हूं। राजस्थान बहुत अच्छा हैए वहां के लोग बहुत संस्कारी हैं। जयपुर से मैने और कमलेश्वर ने दैनिक भास्कर शुरू किया था। इसे वहां आज भी नव.प्रवर्तनकारी कहते हैं।
2004 में हमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का निमंत्रण प्राप्त हुआ। वास्तव में से थोड़े दिनों पहले ही मुख्यमंत्री बनी थीं। उनका आग्रह था कि इसे तुरंत शुरु किया जाए। हमने कहा जल्दी तो नहीं हो सकेगा। जमीन की बात थी। सरकार ने स्वीकार कर लिया थाए मगर हम जानते थे कि इसमें समय लगता है। उस समय के जयपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारी ने पर्याप्त मदद की। वहां तो चपाती बनानी थीं। यहां हमारा अनुभव अलग था। लेकिन वहां तो यहां का भोजन चलना नहीं था। इसलिए हमने हाथों से भोजन बनवाना शुरू किया। तब मशीनें आई नहीं थीं। तवे लगाने पड़ेए लेकिन इससे स्वास्थ्य समस्याएं होने लगीं। फिर हमने उबले गेहूं नमक डालकर देना शुरु किया। इसे घाघरी कहते हैं। दूसरे विद्यालयों में भी प्रार्थनाएं आने लगी कि कृपया हमारे विद्यालय में भी भोजन शुरु करवा दें।
उस समय मेरे अलावा चित्रांग चैतन्य प्रभु साथ थे। आज वे हमारे बीच नहीं है। उस समय जालंधर में चपाती की मशीन थी। 2003.4 की बात है। वह निर्माता था। उसने एक मशीन बनाई थीए लेकिन उसमें चपाती फूलती नहीं थी। वह पापड़ हो जाती थी। फिर हमने उसे निरस्त कर दिया। पटौदी;हरियाणाद्ध के पास एक और निर्माता था। धीमे काम करता था। लेकिन उसने दो हजार चपाती बनाने कीए यानी एक घंटे में दो हजार चपाती बनाने की मशीन बना दी। फिर उसमें संशोधन हुआ। पहले एक तरफ से चपाती सिकती थीए इस बार वह लौटकर पलटकर आती और दूसरी तरफ से सिकने के बाद नीचे प्रज्ज्वलित आग के संपर्क में आकर फूल जाती थी। यह बिल्कुल घर में बनने वाली चपातियों की तरह थी। प्रभु रत्न अंगद अकेले समर्पित साधु हैंए जिन्होंने लगभग पूरे राजस्थान में अक्षय.पात्र का परचम फहरा दिया।
राजस्थान में एक जिला है बारा। यहां भुखमरी की समस्या थी। सहरिया जनजाति में सबसे ज्यादा थी। वसुंधराजी ने कहा कि इन लोगों के लिए कुछ करो। हमारे पास हर जगह केंद्रीकृत रसोई थी। यहां पहली बार विकेन्द्रीकृत रसोई बनाई। सहरिया जाति की महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाया। उनका एक सुपरवाइजर बनाया। वे लोग खाना बनाते थे। खाना उनके परिवार के लिए भी होता था। विकेंद्रीकृत रसोई इसलिए बनवाई कि बारिश में अनेक गांव कट जाया करते थे। 18 हजार बच्चों को भोजन देते थे। सहरिया वे लोग हैं जिनके पास कुछ नहीं है सिवाय भूख के। उनका दिल जीतना बड़ी समस्या थी। मैं वहीं रहता थाए रात को भी वहीं रुकता। लोगों के साथ जीवंत संपर्क में था। मैने उस समय महिलाओं पर काम किया। महिलाएं उम्मीद से भरी लगती थी। उन्होंने साथ भी दिया। उन लोगों को भजन बहुत अच्छा लगता है। वे उसमें भक्ति में उतरा जाती हैं। जैसे मीरा को समझना हो तो तर्क और बुद्धि से नहीं समझा जा सकता। उसे भक्ति मेंए श्रद्धा में सुनना पडे़गा। वैसे ही सहरियायों को सुनना और समझता हो तो भक्ति मेंए श्रद्धा में सुनना पड़ेगा। श्आप बिना मुझे कछु न सुहावैश् उनका प्रीतिकर गीत है। लेकिन वे ज्यादातर भजन हाड़ौती में गाती हैं हिंदी से मिलती.जुलती है। हम उन लोगों को सुबह बुलवाकर भजन गाने के लिए कहते और समाप्ति पर प्रसादी वितरण करते। हलुआ और बिस्कुट बांटते। बच्चों को वहां बिस्कुच बहुत पसंद हैं।
सहरिया जनजाति बारा जिले के किशनगंज और शाहबाद तहसील में पाई जाती है। यह मध्य प्रदेशए राजस्थान और उण्प्रण् में भी पायी जाती है। मध्यप्रदेश के शिवपुरीए गुनाए विदिशाए ग्वालियर और मुरैना में ये लोग बहुतायत में पाए आते हैं। इन्हें कोलारियन समुदाय का माना जाता है। जनरल कनिंघम के अनुसार एक समय में यह जनजाति ;प्रीजिटिव ट्राइवद्ध प्रभावशाली शासक वर्ग का हिस्ता थी। गोंडों से पराजित होने के बाद उनके दुर्दिन शुरु हो गए। इनकी भाषा सहरिया भाषा कहलाती हैए जो भीली भाषा से जुड़ी मानी जाती है। अर्थात सहरिया भाषा का गोत्र भीलों की भाषा में जुड़ता है। इनके घर मिट्टी और लकड़ी के बने होते हैं। ये जंगलों से भोजन इकट्ठा करते थेए जंगल कट जाने या कम हो जाने की वजह से अब खेती करते हैं। इन्ही मुख्य फसलों या पसंदीदा फसलों में मक्का और बाजरा है। यह मध्यप्रदेश की अकेली संरक्षित जनजाति है। यह वह दुर्भाग्यशाली जनजाति हैए जो सर्वाधिक भूख से प्रताड़ित होती है। मरती हैए मगर सरकारें भूख से मौतों को स्वीकार नहीं करती। इन्हें खाद्यान्न सुरक्षा नहीं मिल पातीए इसलिए कि इनके पास जरुरी दस्तावेज नहीं होते। ग्वालियर के रुद्रपुरा गांव में बारिश से हलाकान ये लोग आज भी अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं। ऐसी जनजाति के लिएए जिसके लिए राज्य सरकय की सुविधाएं भी अपर्याप्त नजर आती हैंए अक्षय.पात्र जैसी समर्पित और सरोकारी संस्थाओं को पूरे प्राण.पण से इन्हें बचाने के लिए और आगे आना होगा।
यह बिल्कुल वही बात है जिसे अक्षय.पात्र के प्रभु रत्न अंगद ने श्यथार्थवादी दृष्टिकोण से तर्कश् जिसे तत्ववाद भी कहते हैंए बिल्कुल उसी तरह सहरिया जनजाति की समस्या को हल करने के लिए उठाया। यह माधवाचार्य का दर्शन है। अक्षय पात्र प्रभु रत्न अंगद की तरह मानता है कि ग्यजिगत आत्माएए जिन्हें जीवात्मा के रूप में जाना जाता है। स्वतंत्र वास्तविकताओं के रुप में मौजूद हैं और ये अलग.अलग हैं। इसलिए सभी का ध्यान रखना अनिवार्य है। इसका ध्यान रखा भी गया। और प्रामाणिक यह है कि ज्यादातर सहरिया भक्त हो गए। वैसे वे प्रकृति के हिसाब से पूजा करते हैं। दिवाली पर हिंडा गीत गाते हैं और होली पर राई और फाग। लेकिन वे संभावनाओं से भरे लोग हैं। उनके लिए प्रेम के लिए न तो समय का अंतर होता है न स्थान का। इसलिए वे अक्षय पात्र को प्रेम से अपना लेते हैं। ये लोग कमजोर जनजाति ;पीवीटीजीद्ध में वर्गीकृत किए गएए जिनकी औसत उम्र 35 से 40 बरस देती है। आप दुर्भाग्य देखिए जनाब कि ये लोग गर्भ से कुपोषित होते हैं। इनके बीच काम करके अक्षय पात्र ने इतिहास रच दिया है।
कुछ ऐसे बच्चों से भी मुलाकात हुईए जो बचपन से अक्षय.पात्र में जुड़े हैं। उनमें अरिथा दिवाकरन भी एक है। उसे एक नजर देखकर लगता है कि वह अपने संकल्प की एक असाध्य वीणा बजाते हुए चल रही है। उम्मीद की ऐसी सुबह जिसकी तरफ रुद्ध जीवन की हर कुंडी खुलने को मजबूर है। प्रवृत्ति से एक मांग है निथरती हुईए एक अनथक प्रार्थना। आरण् टीण् नगर बेंगलुरू की यह संकल्पना एक आटो ड्राइवर की बेटी है। जिसने भारती पब्लिक स्कूल से माध्यमिक शाला उत्तीर्ण कीए फिर दसवीं में 82 फीसदी अंक हासिल किए। पिछले तीन वर्षों से अक्षय पात्र के आइटी विभाग में काम कर रही है। पहले बचपन में अक्षय.पात्र का भोजन किया और अब उसी के साथ जीवन यापन। वह अपना पूरा जीवन संस्था के साथ बिना शर्त बिताने को राजी है। उसने बताया कि बचपन में स्कूल में जो सुस्वादु भोजन आता थाए अच्छा लगता था पर पता नहीं थाए कहां से आता है। अब तो अक्षय.पात्र की निरंतर प्रगति उसका सपना भी है और सैकड़ों लोगों की तरह संकल्प भी।
वस्तुतः वदि आप यूनेस्को की सभी के लिए शिक्षा वैश्विक निगरानी रिपोर्ट 2000 से 2015 देखें तो भारत में स्कूल से बाहर 6 से 11 आयु के बच्चों की संख्या 14 लाख है। यह भारत को स्कूल न जाने वाले बच्चों की सबसे अधिक संख्या वाले शीर्ष 5 देशों में शुभार करता है। स्वाभाविक रूप से स्कूल से बाहर रहना इन बच्चों को उनके शिक्षा के अधिकार और आकांक्षा के अधिकार से वंचित करता है। इसके साथ ही जो बच्चे किसी तरह स्कूल जाते भी हैंए उनमें से अनेक परिवार दो वक्त का भोजन भी नहीं जुटा पाते। लिहाजाए उनमें से ज्यादातर भूखे ही स्कूल आते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि वे कक्षा की गतिविधियों पर ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं और इससे शिक्षा का उद्देश्य ही विफल हो जाता है। इन स्थितियों में स्कूल में गर्म मध्याह्न भोजन देश भर में लाखों बच्चों और उनके परिवारों के जीवन को आसान बनाता है। बना रहा है। सरकार के साथ काम करते हुए अक्षय.पात्र यह सुनिश्चित करना चाहता है कि भूख के कारण कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। प्रत्येक स्कूल दिवस में गर्म भोजन प्रदान करके फाउंडेशम उनके भोजन के अधिकार के साथ.साथ उनके शिक्षा और आकांक्षा के अधिकार को कायम रखता है। भोजन बच्यों के सृजनात्मक विकास को सुनिश्चित करता है। इसलिए परोसे जाने वाले भोजन के पोषण को पर्याप्त महत्व दिया जाता है।
अक्षय.पात्र की यह पहल बच्चों को स्कूल जाने के लिए और माता.पिता के लिए अपने बच्चों को निरंतर विद्यालय भेजने के लिए प्रोत्साहन के रूप में भी काम करती है। यह बच्चों की नामांकन दरए उपस्थिति प्रदर्शन और पोषण में सुधार करता है और इतना ही नहीं बच्चों के स्कूल छोड़ने की दर को भी कम करता है। इस प्रकार उनके शिक्षा के अधिकार में योगदान देता है। इतना ही नहीं बच्चे के दिन के एक वक्त के भोजन की देखभाल करके अक्षय पात्र उनके परिवारों की आर्थिक सहायता के रूप में भी कार्य करता है। पोषण और शिक्षा से बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास होता है। इसके साथ एक साथ भोजन करने की आदत का प्रसार करके बच्चों में सामाजीकरण को बढ़ावा देता है। उनमें एकता का भी संचार होता है। निरंतर अपने ध्येय की ओर अग्रसर यह फाउण्डेशन 77 केन्द्रीकृत रसोई का संचालन करता है। महज दो स्थानों पर विकेन्द्रीकृत प्रणाली अपनाई जाती है। ये रसोई स्वाद और गुणक्ता को लगातार बनाए रखने के लिए व्यंजनों का ठीक.ठीक अनुपालन सुनिश्चित करती है। भोजन की सूची को इस तरह से बनाया जाता है कि बच्चों को आवश्यक पोषक तत्व रोजाना मिलते रहें।
इन्हीं सबके चलते 2006 में अक्षय.पात्र को हावर्ड बिजनेस स्कूल में श्केस स्टडीश् के लिए चुना गया। इसमें कहा गया कि केन्द्रीकृत रसोई मॉडल के अनेक लाभ हैं। इसमें सबसे कम लागत पर बड़ी संख्या में बच्चों को खिलाने में सक्षम होने का वादा शामिल था। आज अक्षय.पात्र बच्चों की भोजन सूची को स्थानीय सुरुचि के अनुसार तैयार करता है और इस बात के लिए सदैव सचेत रहता है कि बच्चे एक जैसे भोजन को खाकर ऊबने न लगें। उनमें भोजन की सरसता के बजाय नीरसता न व्याप्त हो जाए। इतना ही नहीं अक्षय.पात्र पोषण स्थिति में सुधार करने के साथ.साथ पोषण संबंधी चिंताओं को दूर करने का भी प्रयास कर रहा है। ऐसी ही एक चिंता बच्चों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का प्रसार है। सूक्ष्म पोषक तावों की कमी कुपोषण के प्रमुख कारणों में से एक है। इसका बच्चों के स्वास्थय के विभिन्न पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है।
अक्षय.पात्र सदैव इस बात के लिए सजग है कि बच्चों तक पहुंचने वाला भोजन उन्हें पूर्णरुपेण सक्षम और समर्थ बनाने में कारगर है। उनकी यह अभिप्रेरणा संभवतया श्रील प्रभुपाद है बहुधा कहे जाने वाले इस वाक्य से भी आती हैए जिसमें वे कहा करते श्हमारा लक्ष्य घर वापस जाना हैए वापस भगवान के पास जाना है। यह सब अक्षय पात्र को आध्यात्मिक ऊर्जा से सन्नद्ध करता रहता है। यह ईश्वर के प्रति श्प्रसुप्त प्रेमश् को जागृत कर देता है और यही भाव उसे दूसरे किसी एनजीओ से अलग करता है। यही कारण है कि अक्षय पात्र की रसोइयों में नवाचारए नवीनीकरण हमेशा दिखाई देता है। जैसे 2016 में शुरु किया गया फोर्टिफाइड चावल कार्यक्रम। इसमें जरूरी पोषक तत्वों के विटामिन और खनिज की मात्रा को कृत्रिम तरीके से बढ़ाया जाता है। इससे यह होता है कि कु.पोषण की आशंका ही समाप्त हो जाती है। कर्नाटक के बेंगलुरूए बेल्लारीए हुबलीए मैसूरए मंगलुरु के अलावा उण्प्रण् के लाबनऊ और गुजरात के अमदाबाद में यह शुरू भी हो गया है। इसी तरह फोर्टिफाइड गेहूं के आटे का उपयोग राजस्थान और गुजरात में शुरू हो रहा है। अब तय किया गया है कि भविष्य में जल्द ही पूरे देश में बच्चों को इसका लाभ पहुंचाया जाएगा। लक्ष्य और संकल्प को साधने के कारण ही अक्षय.पात्र फाउंडेशन ने 2 अप्रैल 2024 को न्यूयार्क के संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में चार अरब लोगों को भोजन कराने की ऐतिहासिक उपलब्धि का जश्न मनाया। यह वहीं कार्यक्रम है जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संदेश में कहा श्बेहद गर्व और खुशी के साथश् मैं अक्षय.पात्र फाउण्डेशन की पूरी टीम को चार अरब भोजन परोसने की उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने पर बधाई देता हूं। जैसे ही हम इस मील के पत्थर का जश्न मनाते हैंए हमें उस आंतरिक मूल्य पर विचार करना चाहिएए जो भोजन हमारी जीवंत संस्कृति में रखता है। बच्चों के पहले श्चावल के भोजनश् के पवित्र अन्नप्राशन समारोह से लेकर संतुलित आहार के महत्व पर जोर देने वाली थाली की अवधारणा तकए हमारा सामाजिक लोकाचार पोषणए आहार और विविधता के बीच एक अंतर संबंध बनाता है। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भोजन परोसने से इस मील के पत्थर का महत्व और भी उजागर होता हैए जो वैश्विक कल्याण के लिए जुनून दिखाता है।
बच्चों के अधिकारों के समर्थक नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा श्अक्षय.पात्र उन लाखों बच्चों को स्कूल छोड़ने से रोकने में सफलतापूर्वक सक्षम रहा हैए जो उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति के कारण अन्यथा श्रम में धकेल दिए जाते। उनका नोबल कार्य युवाओं को उसकी वास्तविक क्षमता हासिल करने में मदद करके देश को कई कदम आगे ले जाएगा।
और इसी जगह इन्फोसिस के चेयरमैन एनण् आरण् नारायणमूर्ति ने कहा श्प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की मजबूत नींव के बिना कोई भी देश अपने नागरिकों के लिए समृद्धता बढ़ाने के लिए एक मजबूत और टिकाऊ मार्ग नहीं बना सकता है। ऐसी नींव के लिएए बच्चों के लिए पौष्टिक भेजन की आवश्यकता होती है। अक्षय.पात्र की भव्यता और यह सुनिश्चित करने के लिए नेक लड़ाई कि कोई भी बच्चा भूख के कारण शिक्षा से वंचित न रहेए इस जटिल पहेली में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मैं इस सुनियोजित और मजबूत मध्याह्न भोजन योजना के लिए अक्षय पात्र के नायकों की सराहना करता है। सलाम करता हूं और बधाई देता हूं।
बावजूद इसके अक्षय.पात्र के सम्पूर्ण प्रबंध मेंए उसकी अगुआई करने वाले मधुपंडित दास से कोई पूछता है कि इसका अर्थशास्त्री कौन हैघ् तो वे चिर.परिचित मृदु मुस्कान से कहते हैं श्यह सर्वव्यापक हैए मगर दिखाई नहीं देता। सारी ताकतों के पीछे की सबसे बड़ी ताकत कृष्ण। इस तरह के आस्थावादी तत्वबोध को देखते हुए टीण्एस इलियट ने कहा था.श्भारतीय दार्शनिकों की सूक्ष्मताओं को देखते हुए अन्य देशों के अधिकांश महान दार्शनिक स्कूल के बच्चों जैसे लगते हैं।श्
जैसे माधवाचार्य ने कहाए ईश्वर और आभा अलग. अलग हैं। ईश्वर ब्रह्मांण और आत्माओं का निर्माता हैए लेकिन वह स्वयं आत्मा नहीं है। उन्होंने कहा कि आत्मा और वस्तुएं ईश्वर के बिना मौजूद नहीं हो सकती। सारे जीव भगवान के अनुचर हैं। यह जगत सत्य है। इसलिए इसे सच को यथार्थ रूप में परिभाषित कर उनके लिए प्रायोगिक काम करने का बीड़ा मधुपंडित दास की ज्ञानिकए आध्यात्मिक और परिश्रमी यात्रा का प्रतिफलन है। इसी का परिणाम है कि वे श्रीधर व्यंकट जैसे शख्स को अक्षयपात्र का सीइओ चुन लेते हैं। मार्केटिंग का शख्सए भारी.भरकम तनख्वाहए अंतरराष्ट्रीय अनुभव और इस्कान की अवधारणा के साथ कृष्ण प्रेमी श्रीधर व्यंकट। उसकी आंखों में नीला आकाश हैए विश्वास में भरा हुआए पहाड़ी नदियां हैए धूप धुले जिंदगी के पत्थर हैं और हैं संकल्प। व्यंकट रोजाना कृष्ण के दर्शन करते हैं। समूचा परिवार कृष्ण.भक्ति में लीन। हर कदम और फैसले को कृष्ण के कदमों में श्जैसे तुझे स्वीकार होश् के साथ रख देते हैं। नामित भालए नमित आत्मा और पूर्ण समर्पण के साथ मधु पंडित दास के एक बुलावे पर वे अपनी पुरानी और यशस्वी दुनिया को छोड़कर जुड़ गए थे। विस्तार के सपनेए हकीकतों के आंकड़ें और नव.जीवन के प्रति अपनी धड़कन का सितार बजाने को उत्सुक श्रीधर बातचीत में दूसरी दुनिया का शख्स लगता है। उन्हें पहले अक्षय.पात्र का कार्यकारी निदेशक चुना गया था। उनके पुराने और नए वेतन की बात उठी तो मयुपंडित दास ने कहा कि कोई चिंतित न होए श्रीधर का वेतन श्इस्कानए बेंगुलुरूश् से दिया जाएगा।
श्रीधरए आज अक्षय.पात्र को सोचतेए विचारतेए जीतेए ओढ़ते बिछाते हैं। उनकी वैचारिक राह में सिर्फ और सिर्फ अक्षय पात्र है। वे अक्षय पात्र को महज एनजीओ नहीं मानतेए आध्यात्मिक आराधना भी कहते हैं।
अक्षय.पात्र की संवेदनात्मक कार्य योजना को समझने के लिए कोविड.19 के समय को याद करना होगा। अपने दीप्त दृगए सौम्य मुखए तेजोमय ललाट के स्वामी अक्षय.पात्र और इस्कान बेंगलुरू के वाइस चेयरमेन श्री चंचलापति दास की आवाज में भरोसे का घनत्व है। किसी नदी की बूंदों की तरह उनके शब्दों में सातत्य रहता है। एक से दूसरे वाक्य के बीच की गति में संप्रेषित करती ऊर्जा की चमक रहती है। जैसे ईशावास्योपनिषद अनुभवजन्य सत्य की बात कहता हैए वह मानता है कि सब कुछ ईश्वर का है। वहीं श्मैंश् और श्मेरेश् के खड़े रहने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती। ठीक इसी तरह चंचलापति अपने हर कार्य कोए अपनी निष्पत्तियां को मैं और मेरी की नजर से नहीं देखते। बी.डी आस्पेंस्की की एक पुस्तक है श्टर्शियम आर्गानमश्। रूस का गणितज्ञ था। बाद में कहते हैं वह रहस्यवादी संत हो गया। उसने कहाए दुनिया में केवल तीन किताबें महत्त्वपूर्ण हैं। एक पश्चिम के तर्कशास्त्र के पिता अरस्तु की श्आर्गनमश् नाम है उसका। इसका अर्थ है श्ज्ञान का सिद्धांतश् दूसरी रोजर बैकन की श्नोवम आर्गनमश् ज्ञान का नया सिद्धांत और तीसरी मेरी श्टर्बियम आर्गनमश्घ् मजे की बात यह है कि उसने अपनी पुस्तक के अंत में लिखाए श्बिफोर द फर्स्ट एग्झिस्टेड द थर्ड वाजश् । यह भारतीय तर्क पद्धति का ढंग है। पश्चिम का ढंग है कि निष्कर्ष हमेशा अंत में मिलता है। भारत ऐसा नहीं सोचाए वह सोचता है जिसे खोज रहे होए वह सब में मौजूद है। इस सदा से मौजूद तत्व की सेवा में चंचलापति दिखाई पड़ते हैं।
कोविड 19 में अक्षय.पात्र ने इसी मनोभाव के साथ स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय कियाए ताकि उन क्षेत्रों की पहचान की जा सकेए जिन्हें तत्काल देखभाल की जरूरत है। अक्षय.पात्र में अपनी रसोई नेटवर्क का उपयोग खाद्य राहत केन्द्रोंए अस्पतालोंए मलिन बस्तियोंए रेलवे स्टेशन तक भोजन पहुंचाने में किया। तब जब परिवेश मौत के आतंक से ग्रस्त थाए तब जब घरों से निकलने में अजीब भय लगता था। तब जब अपनेपन की परिभाषाएं बदल रहीं थीए उस समय चंचलापति और उनके संगठन ने हेप्पीनेस किट का वितरण शुरु किया। उन्होंने बताया कि इससे चार वयस्कों और दो बच्चों की आवश्यकता आसानी से पूरी हो जाती थी। यह किट इसलिए भी महत्वपूर्ण उल्लेख की मांग करता है कि इसमें किराने के सामान के अलावा बच्चों के लिए नोटबुकए अन्य शैक्षणिक सामग्रीए लड़कियों के लिए सेनेट्री नेपकिन और जागरूकता फैलाने वाली एक पुस्तिका भी थी।
इसे जानना इसलिए जरुरी है कि जमीन पर यदि संवेदनाएं नहीं दिखाई पड़े तो मनुष्य का विश्वास लंगड़ाने लगता है। इसी कोशिश में मनुष्य की बुनियादी भाषा सांकेतिक रह गई। सरोकारों की उपस्थित आप अक्षय.पत्र की हरेक योजना और क्रियान्वयन में देख सकते हैं। अक्षय.पात्र सचेत था कि गर्भावस्था के समय आयरन की कमी होने से महिलाएं एनेमिक हो सकती हैं। मां और बच्चे के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसे देखते हुए अक्षय.पात्र ने श्शक्ति किटश् की शुरुआत की। इसमें प्रोटीन मिश्रणए प्रोटीन दलियाए आयुर्वेदिक प्रतिरक्षा बूस्टरए दालेंए मुंगफलीए हरे मूंगए हल्दी पाउडर भी शामिल था। महामारी के कारण स्कूल बंद होने से बच्चे शिक्षा के साथ.साथ दोपहर के भोजन से श्री वंचित रह गए। इसलिए उनके दरवाजे तक भोजन भेजने का प्रबंध हुआ। कमजोर समुदाय के लोगो तक सूखा राशन भेजा गया। इसमें चावलए दालए रिफाइंड तेलए मसाले और आलूए कद्दू जैसी चीजें भी थीए जो दीर्घायु रहती है। इतना ही नहीं अक्षय.पात्र ने बेंगलुरूए दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से अपने घर लौटने वालों को श्रमिक ट्रेनों में नाश्ता पानी पहुंचाने की अनथक कोशिश की। कोविड वेक्सीन को लेकर फैले और फैलाए जा रहे भ्रमों को दूर करते हुए अक्षय पात्र ने टीकाकरण अभियान चलाया।
इसे थोड़ा समझना भी पड़ेगाए यह मात्र सूचना नहीं है। जैसे आकाश हमारे अनुभवों की एक स्थिति है। उसमें सब हैं और वह किसी में नहीं। अगर आकाश को भी किसी में होना पड़े तो इसके लिए एक बड़े आकाश को खोजना होगा। फिर तो आप तार्किक रूप से यह श्इनफिनिट रिग्रेसश् अंतहीन नासमझी में पड़ जाएंगे। आकाश अपनी सचनेस मेंए खड़ा रहता है। जस का तसए यहां फूटी घटनाओं में संवेदना और जुड़ जाती है। इसलिए कि यह मनुष्यों के लिएए उनके द्वारा किया गया या निष्पादित किया गया काम है। इसलिए उपनिषद कहता है पूर्ण से उस पूर्ण से यह पूर्ण निकला। यह भारतीय संन्यास का भाव है जो कहता है यह हो रहा है। वह कर नहीं रहाए करेगा तो गृहस्थ हो जाएगा। इस भाव की चर्चा चंचलापति कर रहे हैं। इस भाव से ही वे अपने लिए काम को देखते हैं। उन्होंने कहाए लेकिन यह समझ की बात है। जिन्हें समझ नहीं ने द्वंद्व में पड़े रहते हैं। इसलिए सहज कर्म भी उन लोगों के लिए असहज हो जाता है और वे विरोध में खड़े हो जाते हैं। अक्षय पात्र के लिए जैसे.जैसे विद्यालयों की संख्या बढ़ीए बच्चे बढ़ने लगे। हमारे लिए यह आनंद काए सौभाग्य का क्षण थाए अब भी है।
कुछ समूह ऐसे भी थेए जिन्हें पीडा होने लगी कि अक्षय पात्र अपनी धार्मिक आस्थाओं के साथ नई पीढ़ी में उतर रहा है। उन्होंने कहना और प्रचारित करना शुरू किया कि ये प्याज और लहसुन नहीं देते हैंए भोजन में। यही कारण है कि बच्चों को वैसा पोषण नहीं मिल पा रहा जिसकी उन्हें जरूरत होती है। उन्होंने इस गलत बात को इतना प्रचारित किया कि मुद्दा बन गया। यहाँ तक कि इस आधार पर अक्षय.पात्र के संबर्द्धित संकल्प को बंद करने का बीड़ा उठा दिया। अखबारों में खबरें छपने लगी। विरोधी समूह ने एनजीओ बनाया। उसके जरिये भी शोर मचाते रहे। इसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि हमें डीसी को लिखकर देना पड़ा कि हम अक्षय.पात्र संकल्प का और विस्तार नहीं करेंगे। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यसचिव उन लोगों के प्रतितर्कों से राजी नहीं थे फिर भी उन्होंने कहा कि दबाव बहुत है। वस्तुतः वे लोग ना.समझी में सिर्फ आलोचना नही कर रहे थेए वे सोची.समझी राजनीति और मनोवृति के चलते विरोध कर रहे थे। जैसे एलीट सेक्युलरवादी करते और कहते रहे कि ईसाइयत और सभ्यता पर्यायवाची हैए वैसे ही इन लोगों ने विरोध करते.करते बदहवासी की भी सीमाएं लांघते हुए प्रचारित किया कि अक्षय.पात्र प्रबंधन से मिलने वाली मदद का इस्तेमाल रीयल.एस्टेट में कर रहा है और इस तरह उन्होंने मानवीय संस्पर्थ और वत्सलता पर पत्थर बरसाए। वे लोग जो इसकी वत्सलताए समर्पण और कार्यशैली के प्रशंसक थेए परेशान और हैरान होने लगे। कहा भी उन लोगो ने कि जब तक यह साफ नहीं हो जाता मुश्किल होगाए इमदाद करना। फिर अक्षय.पात्र के अपने तर्कों का सिंहद्वार खोला और उन्हें बिन्दुवार अदालत में उत्तर दियाए बिल्कुल वैसे ही जैसे पाणिनी की श्अष्टाध्यायी इसे गुणों का आधान और दोषों का निराकरण कहती है। यह सार्थक जीवन.विधि में आर्तस्वरों को जोड़नेए और अभिव्यक्त करने का माध्यम बना। चंचलापति की आंखें उस सबको याद करते हुए सजल हो आईं कि सदैव कृष्ण प्रसंग में कंस का उदय जरूर होता है। उन्होंने बताया कि ग्यारह महीने में 200 पेज की रिपोर्ट आई और अंध.द्वीप पर गुजर करने वालों के नेत्र खुल गए और लपलपाती जुबां बंद हो गई। इन लोगों की हालत तो बिल्कुल वैसी थी श्कहां चराग जलाएंए कहां गुलाब रखेंए छतें तो मिलती हैंए लेकिन मकां नहीं मिलता।श् के लोग सिर्फ अंधे कुएं में आंख पर पट्टी बांधकर पत्थर उछालते हैंए जिनसे महज शोर उठता हैए होता कुछ नहीं। यह बूढ़ों के मुहांसे से ज्यादा कुछ नहीं होता।
लेकिन अक्षय.पात्र के लिए समर्पितए कृष्णार्पित लोग ईशावास्योपनिषद की तरह मानते हैं कि यहां का सत्यए ज्योति सेए प्रकाश से ढंका है। और जानते होंगे कि प्रकाश के आधिक्य में आंखें अंधी हो जाती हैं। जिनकी आंखें और पात्रता कमजोर है या नहीं हैए वे इस सच को देख नहीं पाए। श्उनके पांव के नीचे जमीन नहींए कमाल है फिर भी उन्हें यकीन नहीं।श् इसलिए उन 11 महीनों के अंतराल के बाद जब सत्य का ढक्कन खुला तो वे अवाक रह गए। उनकी साजिशें बेनकाब हो गईं और अक्षय पात्र का रथ पुनः निर्विध्न बढ़ने लगा।
जैसा अमेरिकी वैज्ञानिक रुडोल्फ किर ने प्रमाणित किया कि मंगल कामना से भरा व्यक्ति जल से भरी मटकी लेकर उसका छिड़काव बीजों पर करता है तो उनमें जल्दी अंकुरण हो जाता है। उनमें रासायनिक परिवर्तन भले न हो परन्तु गुणात्मक परिवर्तन अवश्य हो जाता है। वैसे ही अक्षय.पात्र की योजना और क्रियान्वयन शालेय विद्यार्थियों की भूख को संबोधित योजना है। और यह किर के गुणात्मक परिवर्तन के तथ्य को विद्यार्थियों में परिलक्षित भी करता है। इसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं भरतार्पभ दास प्रभु ! अक्षय पात्र की चार अरबवी थाली के प्रवर्तककए प्रशासनए प्रबंधनए सरोकार और समर्पण का चेहरा हैं भरत प्रभु! आप वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के उपाध्यक्ष भी है। यहाँ एक विराट मंदिर की महती योजना आकारित हो रही हैए कृष्ण संकीर्तन के साथ। वैसे ही जैसे श्री चैतन्य महाप्रभु ने कृष्णभावनामृत आंदोलन के प्रचार.प्रसार को ष्आनंदाम्बुधि वर्धनम्ष् कहा है। चंद्रोदय मंदिर अभी रुपाकारित हो रहा हैए फिर भी यदि आप यहां जाएं तो विस्मित हुए बिना नहीं रहेंगे। विस्मित इसलिए कि वहां एक तरह से कृष्ण.युग निर्मित हो रहा है।
मंदिर परिसर में ही भरत मुनि से संवाद हुआ। जैसे मार्कबुअर ने कहा है कि संवाद से बड़ी घटना धरती पर उदित नहीं हुई। उन्होंने बताया कि एक माइंड सेट है कि विज्ञान से ही हमें पूरा ज्ञान मिलता है। स्कूलए कालेजों में पढ़ाने की विधि भी ऐसी है। हाइपोथिसिस सिंथेसिस। मैं आरंभ में बेंगलुरु के जैन विद्यालय में पढ़ा। फिर नेशनल कॉलेज में पढ़ा। वहां का प्रसिद्ध महाविद्यालय है। उसके संस्थापक नर्सिंग मूर्ति थे। वे भी विज्ञान के विद्यार्थी थे और गांधीवादी थे। मेरी दिलचस्पी भौतिक शास्त्र में थी। उस समय मेरा एक दोस्त था श्रीकांत। अब तो वह चिकित्सक हो गयाए संपर्क में भी नहीं हैए लेकिन हम लोग तब जीवन से संबंधित सवाल उठाया करते। जैसे जीवन क्या हैघ् जीवन का उद्देश्य क्या हैघ् एक जिज्ञासा थीए मगर सोच का अभाव था। यह समस्या सिर्फ हम दोस्तों की नहीं समूची शिक्षा प्रणाली की है। वह उठाना तो सिखाता हैए मगर उत्तर देना नहीं। मेरा एक और मित्र था दिवाकर! बाद में उसने दीक्षा भी ली। हम लोग बहस तो करते ही थेए पहुंचते कहीं नहीं थे। उसी समय हमारी मुलाकात चंचलापति प्रभु से हुई। हमने उनसे भी पूछा। उन्होंने कहा यह जिज्ञासाए यह प्यास अच्छी है लेकिन इनके उत्तर विज्ञान में नहीं मिलेंगे। अध्यात्म में मिलेंगे। इसके लिए इस्कान जाइएए वहां भक्तों से मिलिए । आप समझिए इतनी बड़ी सृष्टि के लिए एक सृष्टा तो चाहिए। यह हमारे जीवन का ष्टर्निंग पाइंटश् बन गया।
भरत प्रभु जिस टर्निंग पाईंट की बात कह रहे हैंए इस पर श्रील प्रभुपाद ने कहा है कि चेतना स्वयं तो सनातन हैए किंतु भौतिक इंद्रियों के सम्पर्क में आने से यह अनेक प्रकार में प्रकट होती है। प्राण का उदाहरण अधिक उपयुक्त है। प्राण एक हैए किंतु विभिन्न इंद्रियों के संपर्क में वह देखनेए सुनने आदि आदि शक्तियों के रूप में प्रकट होता है। इसी तरह जब कोई व्यत्ति कृष्ण भावना.भावित हो जाता है तो वह श्धीरश् मान लिया जाता है। श्धीरस्तत्र न मुह्यानिश्। और उस समय वह अपनी चेतना की झूठी पहचान भौतिक प्रकृति के रुपांतरों के रूप में करके मोहग्रस्त्र नहीं होता।
भरत प्रभु से मैंने पूछा क्या वजह है कि आज बस्तियों से संवेदना समाप्त हो रही है। भौतिकी और रसायन विज्ञान के इतनी उन्रति कर लीए मगर आज तक मिट्टी नहीं बना पाया। तिब्बत और बोकान के बीच 1700 पत्थर के टुकड़े मिले। उन पर ग्रूव्स बने हुए हैं। जैसे एलपी रिकार्ड पर बने होते हैं। अर्थात इस पर मनुष्य की आवाज अंकित होती थी लेकिन आज भी विज्ञान पत्थर पर मनुष्य की आवाज अंकित नहीं कर पाया। आप जिस महाविधालय में पढ़ रहे होंगे वहां बच्चे वैज्ञानिक या प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होंगेए ऐसे में अध्याय का विचार कहां से आया। उन्होंने इसे पूर्वजन्म का संयोग बताया। उनका कहना था यह बिल्कुल वैसा है जैसे किसी के भागवत के पृष्ठ पर बांसुरी रख दी हो। वे अपने बोलने में क्वांरे शब्द लाते हैं। अर्थात् जिसमें भाषा ही नहीं अनुभव भी दिखाई देता है। जो उन्हें रही.सही आध्यात्मिक अनुभूतियों से अलग करता है। आपके पिला इंजीनियर थे। एक छोटे से गांव से आकर बेंगलुरु बस गए। बाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बन गए। पारिवारिक आस्था से जैन भरत प्रभु के बताया कि बचपन में वे श्रवणबेलगोला और गोमतेश्वर भी गएए लेकि जो प्यास भीतर जगीए वह श्रील प्रभुपाद की कृपा प्रसाद में तृप्त हो सकी। उनके बाद चंचलापति जी से मिला। वे मेरे शिक्षण गुरु हैं।
एक बड़ी चर्चित यूनानी कथा है। एक राजा हुआ मिडास। कथा कहती है कि एक दिन उससे देवदूत मिलने आया। मिडास बहुत धनाढ्य थाए लेकिन उसकी पिपासा शांत नहीं होती थी। राजा में देवदूत को अपना बगीचा दिखाया। झरना दिखाने से पहले उसने उसमें शराब मिला दी। उसने सोचा इसके बाद मैं जो मांगूगाए देवदूत वह उसे दे देगा। ऐसा हुआ भी। देवदूत के उससे प्रसन्न होकर पूछा मांगों क्या मांगते होघ्
उसने कहा मैं जिस चीज को छू लूं वह सोने की हो जाए। वैसा ही हुआ। फिर उसने पत्पनी को छुआए वह स्वर्ण प्रतिमा में बदल गई। रोटी को छुआ यह सोने की हो गई। उसके सैनिक उसके पास आने में डरने लगे। वह चिल्लाने लगा कि तुम अपना आशीर्वाद वापस ले लो। मुझे मेरी अंगुलियों का स्पर्श लौटा दो। भरत प्रभु! कुछ देर विचारमग्न रहेए फिर कहा कि मेरी रुचि दुनियादारी में कभी रही नहीं। उन्होंने मंदिर को आश्रय.स्थल भी बताया। यह विश्वास और प्रार्थना का आश्रय स्थल है। ज्ञान और आराधना इसका आधार है। इस भाव को मधु पंडित दास और चंचलापति ने आकार दिया।
पुनः अक्षय.पात्र की ओर लौटते हुए भरत.प्रभु ने कहा कि विद्यालय जाने वाले बच्चों को गर्म और पौष्टिक भोजन दिया जाए। इस बात का भी ध्यान रखा गया कि वे जहां रहते हैं उन्हें वहां की तरह के स्वाद का भोजन दिया जाए। श्फुड फार आलश् हमारी आंतरिक इच्छा है। वैसे भी यह कार्यक्रम स्टेट सेंट्रल प्रेगाम है। श्आप उन्हें प्रोत्साहित करें और उन्हें सशक्त बनाएंश् यह बच्चों के लिए अक्षय.पात्र संचालकों का सूत्र वाक्य है। एक पोषित और शिक्षित भारत अक्षय.पात्र का ध्येय है। इसी कार्यक्रम के समांतर आंगनवाड़ी केन्द्रों में गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं और उनके बच्चों को सेवा प्रदान करते हैं। यह पहल दीर्घावधि में बच्चों में कु.पोषण रोकने के अक्षय पात्र के प्रयासों की आधारशिला है। इसमें महिलाओं को विशेष रूप से मातृ.अवधि के दौरान पौष्टिक आहार सुनिश्चित कराना शामिल है। यह उनके और उनके बच्चों के अस्तित्व और कल्याण के लिए आवश्यक है। शिशुओं और बच्चों के लिए प्राप्त पोषणए भविष्य के विकास और भविष्य की नींव के रूप में कार्य करता है। तेलंगाना में नरसिंगी और कुंडी में क्रमशरू 530 और 448 केन्द्र हैं। इन्ही जगहों पर नाश्ता कार्यक्रम को पायलट परियोजना के तहत शुरु किया गया। इसरे परिणाम भी पर्याप्त अच्छे आए। अनुपस्थिति कम हो गई और शैक्षणिक प्रदर्शन में भी सुधार देखा गया। अक्षय.पात्र का लक्ष्य इस कार्यक्रम को कम से कम समय में अधिकतम लोगों तक पहुंचाना है। अक्षय.पात्र उपेक्षित छात्रों की शैक्षिक संभावनाओं को बढ़ाने के लिए भी सक्रिय और प्रतिबद्ध है। देश भर में फिलहाल इसकी रसोई में 800 से ज्यादा वाहन हैं। हरेक वाहन एक दिन में एक मार्ग को सपूरित करता है। इन वितरण वैन ;महिन्दीए टाटाए इसुजुद्ध के कंटेनर के जाने के लिए इंसुलेटेड बॉडी और हनीकाम्ब निर्मित रैक के साथ अनुकूलित किया गया है। इससे भोजन सुनिश्चित तौर पर बच्चों तक गर्मागर्म पहुंचता है।
अक्षय.पात्र फाउंडेशन इस सारे कार्य को सम्पूर्ण समर्पण के भाव से करता है। प्रबंधन का एक प्रिय श्लोक है चैतन्य महाप्रभु का। श्आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अयुरुक्रमे कुर्वन्त्य हेतुकी भक्तिम इत्याम्भूत गुणो हरिः॥श् अभिप्राय यह है कि जो लगे संतुष्ट है और बाहरी भौतिक इच्छाओं से आकृष्ट नहीं होतेए वे भी श्री श्रीकृष्ण की प्रेममयी सेवा में आकृष्ट होते हैं। उनके कार्यकलाप भी दिव्य हैं। जैसे को तैसा अनुवाद न भी करेंए तब भी इनके संन्यासियों और निष्ठावान समर्पितों को देखकर चौंक उठेंगे। खास कुछ यूं कि अनेक युवर.युवतियां कभी अक्षय पात्र के भोजन के लाभान्वित होते रहे हैंए उनमें कुछेक नौकरियां या व्यवसाय करने लगे। इस पर भी अक्षय.पात्र की परिधि लांघना नहीं चाहते। अनेक ऐसे नौजवानों से आज भी अक्षय.पात्र का रिश्ता यथावत है।
जयंथए आज यह एक बैंक में व्यापार विकास अधिकारी है। उसने कहा कि अक्षय.पात्र के दोपहर के भोजन ने मुझे रोजाना स्कूल पहुंचने के लिए प्रेरित किया। मैं मौलीपारा गांव में रहता थाए अपने माता.पिता के साथ । स्कूल बहुत दूर था। वे पढ़ाना तो चाहते थेए लेकिन दूरी और शहरी वातावरण की आहट में डरे.डरे रहते थे। इस बीच शिक्षक तेजस्विनी की मुलाकात मेरे माता.पिता में हो गई। वे कन्नड़ पढ़ाती थीं। हमा्रा गांव कोडाकू जिले में ;कर्नाटकद्ध में है। शायद मेरे पालक इसी बात से चिंतित रहे होंगे। तेजस्विनी शिक्षक ने जिस तरह से मेरी पैरवी कि इस बालक को पढ़ाना चाहिए। फिर मुझे सरकारी विद्यालय में प्रवेश मिल गया। अक्षय.पात्र के भोजन के स्वाद और पौष्टिकता के कारण मैं मीलों पैदल चलकर स्कूल जाता। क्रम चलता रहाए उसके बाद ही सफलता के द्वार और दरीचे देखे। मेरी स्मृति में सिर्फ अक्षय पात्र हैए जो बिना किसी
ढिंढोचरीपन के अपने काम को दक्षतापूर्वक कर रहा है। अक्षय.पात्र के भोजन ने न केवल पौष्टिक आहार दियाए बल्कि एकाग्रता से अध्ययन करने की सामर्थ्य भी प्रदान की। मुझे लगता है कि सात्विक आहार मनुष्य को ठीक दिशा में सोचने का सबसे बड़ा संबल प्रदान करता है।
एक और नौजवान साथी हैं वृजेश के पटेल। आजकल अहमदाबाद में प्लांट मेंटनेस इंजीनियर हैं। उन्होंने बताया कि हमारे स्कूल के दिनों में मिड.डे मील योजना चल रही थी। स्थानीय लोग भोजन पकाते थे। भोजन सुबह बनाया जाता और दोपहर में बांटा जाता। इस अंतराल में भोजन एकदम ठंडा हो जाता। भोजन खुले में बनता था। इससे समझ ही सकते हैं कि हाइजीन का तो कोई सवाल ही नहीं उठता था। आधे से ज्यादा भोजन व्यर्थ ही नष्ट हो जाता था। लेकिन अक्षय.पात्र का भोजन स्टेनलेस स्टील के टिफिन में सर्व किया जाता। इसने भोजन की सुरक्षा और हाईजीन दोनों पर नजर रखी जा सकती थी। मेरा पसंदीदा भोजन खिचड़ी था। अक्षय.पात्र के दाल.ठोकली परोसने से पहले मैने कभी इसे खाया हीं थाए लेकिन एक कर खा लिया तो मैं घर पर भी दाल.ठोकली की मांग करने लगा। जीवन आगे बढ़ने लगाए अपनी गति से। हमारे घर में खेती होती है। पूरा परिवार किसान परिवार है। मेरे पिता ने मुझसे कभी कोई सवाल नहीं किया। सिवाए इसके कि अपना ध्यान सिर्फ पढ़ाई पर लगाओ। समर्पणए प्रार्थना यह भाव शायद अक्षय.पात्र की घुट्टी में थाए जिसे हर विद्यार्थी अपनी पात्रत्तानुसार जीता था। आज मैं जहां हूं वहां से दिखाई पड़ता है कि पिता का सपना पूरा करने का लक्ष्य अक्षय पात्र के निरंतर निरहंकारी सेवा भाव से मिला।
इसी तरह नाथद्वारा ;राजस्थानद्ध की दुर्गा गुर्जर ने बताया कि वह पांचवी कक्षा तक निजी विद्यालय में पढ़ीए लेकिन उसके बाद शासकीय विद्यालय में आ गई। अमरोहा के शासकीय विद्यालय के शिक्षकों ने बहुत प्रोत्साहित किया। इसी वजह से उसने कहाए मैंने अनेक प्रतियोगिताओं में हिस्सेदारी की और उनमें जीत दर्ज की। इसमें जूडो और टेबिल टेनिस शामिल है। उस समय बच्चों को भी अक्षय.पात्र भोजन दिए जाने को प्रमुखता से बताया जाता था। इससे बच्चे तो प्रभावित होते हीए पालक भी अप्रभावित न रह पाते। मुझे तब रोटीए सब्जी और मीठी लस्सी बहुत पसंद थी। हमासे शिक्षक सभी बच्चों को पौष्टिक आहार की अनिवार्यता बताते और यह सुनिश्चिन भी करते कि सभी बच्चे भरपेट भोजन कर सकें। इसी कारण में जूडो की जिलास्तरीय प्रतियोगिता में दूसरे नंबर पर और कुश्ती में पहले नंबर पर आई। हाईस्कूल के बाद मैंने लालबाण गर्ल्स कालेज से स्नातक की डिग्री ली। मैं अपनी तरफ से सभी बहनों से यह कहना चाहूंगी कि शिक्षा अनिवार्य है ही लेकिन खेलों में रुचि रखें ताकि सफलतम जीवन की आधारशिला रखी जा सके।
एक और नाम है अजिथ नायक। यह अक्षय.पात्र की योजनाओं के वर्तुल में रहा बालक आज नौजवान है। एक तरह का साक्षी है त्रस्त आंतों और बिलखते पेट का। जन्मना बीजापुरी ;कर्नाटकद्ध के अजिथ के जिला बीआरएल में सुरक्षा.प्रहरी रहे। माता घर चलाने के लिए यहा़ं वहां भोजन पकाती थी। ये लोग अपने काम के लिए अलसुबह निकल जाते। इसलिए मैं स्कूल बिना नाश्ता किए निकल जाता। इन लोगो को और परेशान करना नहीं चाहता था। यह दिनचर्या का हिस्सा था। लेकिन जल्दी ही स्कुल भी अक्षय.पात्र से जुड़ गया और दोपहर के भोजन के समय हमें सांभरए चावलए पुलावए मीठा पोंगल मिलने लगा। शनिवार को तो और भी लजीज भोजन मिलता। क्या बताऊं शनिवार के भोजन का स्वाद आज भी मेरी स्मृति से निथरकर जुबां पर आ जाता है।
इसी का नतीजा है कि परीक्षा में मेरी अच्छी रैंक आईए यहां तक कि मैं अपनी शाला का अध्यक्ष चुना गया। मुझसे पढ़ाई या कक्षा में आगे पढ़ने वाले दोस्तों में मुझे बताया कि अक्षय पात्र उन सभी विद्यार्थियों की मदद करता रहता है जो शाला में अच्छे नंबर लाते हैं। मेरे पास शाला में अच्छे अंक हासिल करके स्कालरशिप पाने के अलावा कोई चास नहीं था। मैं अपने परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहता था। अक्षय.पात्र ने मेरी भरपूर मदद की। किताबों से लेकर स्कालपरशिप और बस पास से लेकर अनेक तरह की इमदाद की और मैं सिविल इंजीनियर बन गया। अब भी मुझे लगता है कि अक्षय.पात्र मेरे पीछे खड़ा है और प्रेरित कर रहा है और कुछ बेहतर करने के लिए। यह वही प्रेम का अटूट बंधन है जिसे भक्त कह नहीं पाता और यदि कह भी दे तो आप समझ नहीं पाते। कृष्ण जिसे श्रेयः उत्तमय ;सर्वोच्च कल्याणद्ध के लिए कर रहे हैंए अक्षय पात्र बालक.बालिकाओं के सर्वोच्च कल्याण की भावना के साथ निरंतर कर्मरत है। यह जिसे अजिथ नायक स्मृति से निथारकर लाता हैए वह स्वाद की स्मृति का अनुभव है। किसी स्वाद की श्रेष्ठता व्यंजन में ही नहीं होतीए यह मां के दिए पहले एहसास से जुड़ी होती है। इसलिए सबका अपना मातृ.लोक होता है।
लोकेश पुरोहित आजकल नाथद्वारा में काम करते हैं। वे वहां क्वालिटी एक्जीक्यूटिव हैं। उसने कहा कि अनेक पालकों को अलसुबह काम पर निकलना पड़ता है। उनके पास भोजन बनाने का वक्त भी नहीं होता। ऐसे परिवारियों के लिए मध्याह्न भोजन एक तरह का वरदान है। मुझे अक्षय.पात्र का भोजन कक्षा छठवी से आठवी तक मिला। नवमीं में अक्षय.पात्र के गर्मागर्म और स्वादिष्ट भोजन की याद प्रतिदिन आती। इसे यूं समझना होगा कि कोई भी व्यक्ति जब भी दूध पी रहा होता हैए वह किसी और का नही मां का ही दूध पीता है। ऐसे ही अक्षय.पात्र के संकल्पबद्ध वटवृक्षी आयोजन में जब भी कोई बच्चा यहां का भोजन करता है वह मां का भोजन ही ग्रहण करता है। उसी चिंताए सरोकार और आत्मीयता में गूंथा हुआ।
लोदेश अपने शिक्षकों आरके हेडा और इंदुमाला से बेहद प्रभावित है। उसने कहा कि इन लोगों ने मुझे अनेक जिला स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया। इनसे ही मैने समय समायोजन सीखा। वर्ष 2019 में मैं बीएससी प्रथम वर्ष का छात्र था और उसी समय से मैं अक्षय.पात्र के सेवा कार्य से जुड़ गया। यह स्वाद और साहचर्य का मिश्रण था। मैंने दूसरा साल यहीं कार्य करते हुए पूरा किया। मैं सुबह यहां के प्रोडक्शन में काम करता और बाद में कालेज जाता। परीक्षाओं के समय में अध्ययन के लिए अवकाश लेता। कोविड.१९ के समय तो मैंने अनेक भूमिकाएं निभाईंए इसका मुझे संतोष है। असल में ग्रामीण परिवेश अभी भी शिक्षा के लिए बहुत अनुकूल नहीं है। जैसे ही बच्चें 10 वीं या 12वीं में पहुंचते हैंए उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे काम करें। अपेक्षा ही नहींए सीधे.सीधे कहा जाता है कि कुछ काम करो चार पैसे आएंगे।
एक और पात्र है नाम है आरुषि। वह पंचशील नगरए भोपाल ;मप्रद्ध की है। इसके पिता वाहन चालक हैं और स्वाभाविक रुप से मां गृहिणी। आरुषि आठवीं में पढ़ती है। उसे अक्षय.पात्र का मध्याह्न भोजन बहुत प्रिय है। उसका पसंदीदा भोजन खीरए पूरीए दाल.चावलए फल और गेहूं का केक है। घर में मुश्किलात हैं फिर भी आरुषि का हौसला बुलंद है। वह अपने शब्दों पर जोर देकर कहती है कि वह डाक्टर बनेगी।
इस सबसे अभिभूत अक्षय.पात्र के सह.संस्थापक और फाउंडेशन के उपाध्यक्ष चंचलापति दास कहते हैं कि इस सबको देखकर मैं मनुष्यता और आशावाद से लबालब भर जाता हूंण् हम समझते हैं कि स्वस्थ और शिक्षित युवा हमारे राष्ट्र की मेरुरज्जु है। हम सौभाग्यशाली हैं कि इसमें सहभागिता कर पा रहे हैं। हम सचमुच भारत सरकार और राज्य सरकारों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं कि उन्होंने हमें बच्चों और देश की सेवा के योग्य माना। इसे वेणु गीत के मुकुंद गान के साथ समझना ज्यादा रुचिकर होगा। जैसे नदियां मुकुंद का गान सुनकर भाव.विभोर हो जाती हैंए उर्मियों की भुजाओं से कमल के उपहार लेकर उनके चरणों में रख देती हैं। अक्षय.पात्र का सम्पूर्ण परिश्रम ऐसे ही भाव.विभोरित क्षणों का निर्णय है।
आपात स्थितियों से भी जूझकर जीता जा सकता हैए यह इसके प्रबंध कौशल को दुगुनी शक्ति से प्रभावित करता है। कोविड.१९ के समय अक्षय.पात्र ने करीब दो वर्षों में २४४० लाख भोजन सरकार के राहत कार्यों के साथ एक साथ वितरित किया। उन्हें जिसकी इस भोजन की सर्वाधिक आवश्यकता थी। इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि पके हुए भोजन के साथ जरूरतमंदों को भोजन के किट भी वितरित किए गए। इनमें दैनिक रोजेदारी करने वाले मजदूरए निर्माण कार्यों से जुटे श्रमिकों को जरूरतभर का किराने का सामान भी मुहैया कराया गया। इनके अलावा कोविड से सीधे जूझने वाले डाक्टरोंए एंबुलेंस चालकों और पुलिसकर्मियों को भी भोजन उपलब्ध कराया गया।
अक्षय.पात्र प्रबंधन सदैव इस बात के लिए सतर्क और सजग रहा है कि हाशिये पर खड़े विद्यार्थियों में शिक्षा के प्रति पूर्ण समर्पित भाव का अलख जलता रहे। इसीलिए अक्षय.पात्र ने हाशिये पर खड़े समुदाय के बच्चों को उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृत्तियां देना आरंभ की। इन छात्रवृत्तियों से बच्चे न केवल आर्थिक रूप में सबल हुए बल्कि उनकी आगे बढ़ने की आकांक्षाएं भी पूरी हो सकीं। इसी तरह विद्यालय पुर्ननवा कार्यक्रम भी अक्षय.पात्र चलाता है। इसके तहत विद्यार्थियों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया जाता है। खाद्य सुरक्षा और गुणात्मकता को बनाए रखने पर जोर दिया जाता है ताकि भोजन व्यर्थ न जाए। भंडारण और वितरण के समय भी भोजन को व्यर्थ खर्च होने से बचाया जा सके। इससे बच्चों के भोजन करने की आदत में सुधार होता हैए भोजन की खपत में इजाफा होता है और भोजन के व्यर्थ जाने के परिणाम में कमी आती है। अक्षय.पात्र देश में कक्षा में भूख और कु.पोषण के सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिएए भारत सरकार की पीएम पोषण पहल;पूर्व में मिड.डे.मीलद्ध योजना को लागू करने के लिए अनथक प्रयास करते हैं। ष्हमारा दृढ़ विश्वास है कि बाल पोषण और शिक्षा में निवेश मानव विकास के लिए सबसे प्रभावी प्रवेश बिंदुओं में से एक है। इस विश्वास से प्रेरित होकरए हम बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए हर स्कूल के दिन गर्मए पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध कराने में जुटे हुए हैं।ष्सन २००० से ही अक्षय.पात्र ने अपनी हर रसोई में तकनीक का प्रभावी ढंग से उपयोग कर उसे सार्वजनिक.निजी भागीदारी के साथ भोजन पहुंचाने का कारगर प्रयास किया है। इतना ही नहीं अक्षय.पात्र ने रसोई का व्यापक नेटवर्क तैयार किया और इसमें भारत सरकारए राज्य सरकारोंए केंद्र शासित प्रशासनोंए कारपोरेट घरानों और परोपकारी लोगों के साथ भागादारी की। इतना ही नहींए सामाजिक कारणों को संबोधित करने के लिए पूरी की पूरी प्रणाली विकसित की। ये प्रयास मुख्यतः दो महत्वपूर्ण सतत विकास लक्ष्यों;एसडीजीद्ध के साथ सीधे रेखांकित हैं। एसडीजी.२.भूखमरी को समाप्त करना और एसडीजी.४.गुणात्मक शिक्षा। यही वजह है कि इसके लाभार्थी देश भर के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में कम आय वाले परिवारों के बच्चे हैं। अक्षय.पात्र भोजन को लागत.प्रभावी तरीके से तैयार करने और वितरित करने के लिए सुव्यवस्थित संचालन और औद्योगिक प्रक्रियाओं का उपयोग करके एक केंद्रीकृत रसोई मॉडल का उपयोग करता है।तमाम किस्म की प्रगति के आंकड़ों के बावजूद भारत गरीबीए खाद्य असुरक्षा और बाल कुपोषण के उच्च स्तर से जूझ रहा है। निराला ने एक बार कहीं लिखा था ष्सीमा के अंदर घिरकर रहना जिस तरह मनुष्य की प्रकृति हैए उसी तरह सीमा के संकीर्ण बंधनों को पार करना या कर जाना भी मनुष्य की प्रकृति हैष् और यही वह बात है जो अक्षय.पात्र को नव.पल्लवों के साथ हृदय से जोड़ती है। इसीलिए भी कि अक्षय.पात्र भूख जैसी मूलभूत जरूरत पर तो ध्यान देता ही है उन्हें उड़ान के लिए इच्छित पंखों को सृजित करने का काम भी करता है। आर्थिक प्रगति हुई है फिर भी हमारा देश कु.पोषण की चिंताजनक दरों से जूझ रहा है। आज माना जा रहा है कि पांच वर्ष से कम उम्र के ३५ण्५ प्रतिशत बच्चे बौनेए १९ण्३ प्रतिशत कमजोर और ३२ण्१ प्रतिशत कम वजन वाले होते हैं। बचपन में कु.पोषण के दीर्घकालिक गंभीर परिणाम होते हैं। इसलिए हमारे देश में जनसांख्यिकीय लाभांश का दोहन करने और सतत विकास हासिल करने के लिए कु.पोषण पर अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। यदि कु.पोषण दर इसी अनुपात में आगे बढ़ती रहे तो आर्थिक विकास क्षमता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। खराब पोषण बचपन के विकासए शिक्षा के परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इतना ही नहीं वह गरीबी के चक्र को बनाए रखता है।अक्षय.पात्र की हर रसोई मानकीकृत खाना पकाने के नियमों का अनुपालन करती है। इतना ही नहींए दक्षता को अधिकतम करने के लिए स्व.चालन काभी लाभ उठाता है। यही कारण है कि विस्तृत योजनाए संसाधन एकत्र करना और हितधारक जुड़ावी रणनीतियों से २०२४ तक रोजाना करोड़ों बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने वाली रसोइयों को निरंतर विकास मिला। अक्षय.पात्र बढ़ते पैमाने को मापने के लिए परिचालन संबंधी मानकों जैसे परोसे गए भोजनए बच्चों तक पहुंच और कवर किए गए स्कूल और विकास दर पर बारीकी नजर रखता है।आइआइएससी द्वारा प्रकाशित स्कूल फीडिंग प्रोग्राम की सफलता साक्ष्य रिपोर्ट स्कूल फीडिंग प्रोग्राम;एसएफपीद्ध की सफलता पर तीन केस साक्ष्य प्रदान करती है और कार्यक्रम के प्रभाव को भी इंगित करती है।१ण् समीक्षा किए गए अध्ययनों में से ८२ प्रतिशत सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को लक्षित करके बाल स्वास्थ्य और पोषण पर सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करते हैंए जिससे बच्चों में संक्रमण की संवेदनशीलता कम हो जाती है। स्कूल के भोजन से पर्याप्त कैलोरी और ऊर्जा मिलती है जो आयरन की कमी से निपटने में मदद करती हैए जिससे बच्चे एनिमिक नहीं होते।२ण् मध्याह्न भोजन के नियमित सेवन से बच्चे के कम वजन और मोटापे की संभावना कम हो जाती है।३ण् बेहतर आहार से बच्चे के खराब स्वास्थ्य से स्वस्थ होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे बच्चा बुखारए दस्त और खांसी से भी बचा रहता है।
निश्चित रूप से नए रसोईघरों के निर्माण के लिए आवश्यक पूंजीगत व्यय जुटाना एक चुनौती है। इसका सामना अक्षय.पात्र कारपोरेट व्यक्तिगत दानदाताओंए फाउंडेशनों और सरकारी भागीदारी के साथ करता है। यह वित्तीय स्थिरता पाने के लिए वाणिज्यिक भोजन बिक्री के जरिए ष्क्रास सब्सिडीष् जैसे अभिनव मॉडल की खोज करता है। इसके अलावा अक्षय.पात्र की प्राथमिकता स्थिरता हासिल करना है। वह अपने स्कूल भोजन कार्यक्रम के जरिये समाज विकास को गति देने और पर्यावरण संरक्षण में अपनी सकारात्मक भूमिका का निर्वाह भी कर रहा है। अक्षय.पात्र भूख और हमारी भावी पीढ़ियों की क्षमताओं परइसके दुर्बल प्रभाव से निपटने के लिए प्यार और देखभाल के साथ भोजन परोसने की इच्छा रखता है। इतना ही नहींए अपने लक्ष्य को स्थायी रुप से प्राप्त करने के लिए वह निरंतर नवाचार करता रहता है।
अक्षय.पात्र बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ ष्हब एंड स्पोकष् मॉडल जैसे दृष्टिकोणों की खोज रहा हैए जिससे केंद्रीकृत रसोई नए स्कूलों के करीब छोटे स्पोक रसोई में आधा पका भोजन उपलब्ध होता है। सरकार के आंगनबाड़ी कार्यक्रम के माध्यम से प्री.स्कूल बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए इसके मॉडल का लाभ उठाने की संभावना है। अक्षय.पात्र सरकारी संस्थाओं और अन्य गैर सरकारी संगठनों को प्रशिक्षित भी करता है। वह रसोई डिजाइनों को भी अनुसरण के लिए साक्षा करता है।
अनवरत कार्यक्रम मन और कृष्ण भक्ति और कृष्णोपासना में उतराए लोग ब्रह्मवैवर्तपुराण की तरह अपनी जीवन शैली और समर्पण से अनूठा उदाहरण बन गए हैं। आप देखें तो पाएंगे कि भागवत में भक्त की भावना को हमारे आसपास की दुनिया के उपमानों और बिंबों से साकार किया गया है। जैसे.
अजातपक्षा इव मातरं खगाःस्तन्यं यथा वत्सतरा सुधार्ताःजैसे बिना पंखों के चूजे अपनी मां को देखना चाहते हैंए जैसे भूख से व्याकुल बछड़े दूध के लिए अकुलाते हैंण्ण्ण्ण्। बिल्कुल इसी कारुणिक भाव से अक्षय.पात्र विद्यालयों के उन बच्चों तक पहुंचने के लिए नवाचार करता रहता हैए जिन्हें वस्तुतः इनकी जरूरत है।
अक्षय.पात्र की यात्रा इस बात का उदाहरण है कि गैर.लाभकारी संस्थाओंए निगमोंए समुदायों और सरकार के बीच रणनीतिक सार्वजनिक निजी भागीदारी;पीपीपीद्ध मॉडल किस तरह बचपन की भूख और शिक्षा तक पहुंचे जैसे सामाजिक मुद्दों के लिए स्थायी समाधान कर सकता है।इसका केंद्रीकृत रसोई मॉडल दर्शाता है कि कैसे औद्योगिक प्रक्रियाएं और परिचालन उत्कृष्टता स्केलेबल सामाजिक प्रभाव को उत्प्रेरित करती है। आज वंचित बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश करकेए अक्षय.पात्र सभी समुदायों के उत्थान के लिए मानव क्षमता का पोषण कर रहा है। अक्षय.पात्र के सीईओ श्रीधर वेंकट से बेंगलुरू में हुई निजी बातचीत में कहा था कि भोजन में फोर्टिफाटड चावल या बाजरा शामिल करके भोजन के मानकों को बढ़ाया जा सकता है। ये बढ़ेंगे तो कुपोषण समाप्त हो जाएगा। अक्षय.पात्र के अधिसंख्य लोग जो जहां हैए जिसके पास जो जिम्मेदारी हैए वह उसे ही नहीं निभाताए बल्कि नवाचार करने को उत्सुक रहता है।
यही वजह है कि अक्षय.पात्र का भरोसा सिर्फ बच्चों के स्वस्थ रहने में ही नहींए बल्कि उनके लिए साफ और सुरक्षित भविष्य जुटाने में भी है। कृष्णभावामृत से ओत.प्रोत अक्षय.पात्र बच्चों के हरे.भरे भविष्य को लेकर चिंतित है। इसलिए अक्षय.पात्र ने अपनी करीब १२ रसोइयों पर सौर ऊर्जा स्थापना की है। इससे बिजली का बिल आधा हो जाता है। यहां स्कूल रिलेशन आफिसर की जिम्मेदारी होती है कि वह देखे कि भोजन की अधिकतम खपत हो और भोजन व्यर्थ न जाने पाए। इसके अलावा जैविक अवशेषों को बायोगैस में बदला जाता हैए ताकि उसका भी इस्तेमाल पशुचारे में किया जा सके। इतना ही नहींए वाहनों के बेड़े में १४८ सीएनजी वाहन और २६ इलेक्ट्रिक व्हीकल हैं। इसकी हर इकाई अपशिष्ट उपचार संयंत्र से संबद्ध है। यह अपने यहां खपत होने वाली ३० फीसदी ऊर्जाए नवीनीकरण उर्जा से प्राप्त करते हैं।
व्यवहारए अपनत्व और नवाचार के अक्षय.पात्र परिसर की प्रिया माहेश्वरी भुज ;गुजरातद्ध में कक्षा आठवीं में पढ़ती हैं। उसकी इच्छा है कि बड़ी होने पर वह भारतीय सेना में शरीक हो। ष्मैं देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होना चाहती हूं। मेरे इस सपने में मेरी मां का सपना भी बुना हुआ है।ष् प्रिया इस आख्यानको भी बदलना चाहती है कि सीमा पर सिर्फ पुरुषों की तैनाती ही कारगर है। मैं तो चाहती हूं कि अनेकानेक लड़कियां सीमा पर खड़ी होकर देश को सुरक्षित रखें। मैं चाहती हूं कि पुरुष.वादी विमर्श बदले और सीमा पर ज्यादा से ज्यादा देश की बेटियां डटकर देश का गौरव बढ़ाएं।
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प्रिया ने बताया कि अक्षय.पात्र का भोजन अत्यंत स्वादिष्ट है। मैं ही नहीं मेरे अन्य कई साथी भी इसके स्वादिष्ट होने का गुणगान करते हैं। महें यहां नाश्ता भी मिलता है और भोजन तो दिव्य होता है। उसे खाने के बादण्ण्ण्हंसते हुए वह बोली कि हम घर पर खाना ही नहीं खाते। उसने एक अंगुली ओंठो पर रखी और दबी हंसी में बोली कि पहले हम बहुत दुबले.पतले थे। कई तो मजाक भी उड़ाते थे कि कभी हवा भी तेज चली तो यह लड़की उड़ जाएगी। लेकिन आज हम पूरी तरह स्वस्थ हैं। उसने बताया दुबले होने की वजह से कई लड़के चिढ़ाते भी थे कि ऐसी हालत में सेना में कौन रखेगाघ् तो मैं कहा करती कि हरेक शख्स अपनी तरह से सोचता है और टिप्पणी पर टिप्पणी करना जरूरी तो नहीं। हमें पहले अपनी तरफ देखना चाहिए कि हम क्या कर सकते हैं। बजाय इसके कि आप दूसरे पर टिप्पणी करें। वास्तव में होना तो यह चाहिए कि आप अपने सभी साथियों को उनकी आकांक्षाओं क पूर्ति के लिए प्रोत्साहित करें। यह श्रवणं कीर्तनोविष्णुरू की तरह है कि वह उठते.बैठतेए खाते.पीते अपने लक्ष्य को सुनती और बुनती है।
आप थोड़ा सा विचार करें तो पाएंगे कि भूखए अच्छी जिंदगी और शिक्षा में सबसे बड़ी बाधा है। एक बड़ा वर्ग है जो बच्चों को उनके नियत समय पर अध्ययन करने के बजाए काम करने के लिए भेज देता है ताकि वे अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में मददगार बन सकें। दूसरी तरफ ऐसे भी बच्चे हैं जो किसी तरह स्कूल तो पहुंच जाते हैं लेकिन कुछ खाए बिना। उनके माता.पिता दो जून की रोटी की तलाश या जुगत में अलसुबह घर छोड़ देते हैं। कुछ ऐसे भी घर हैं जहां पालक अपने बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाते।
इनमें से ज्यादातर बच्चे विद्यालयों में भूखे ही आते हैं। नतीजतनए वे शाला के पाठ्यक्रम पर गौर नहीं कर पाते। इसलिए मध्यान्ह भोजन लाखों बच्चों के जीवन को आसान बनाता हैए इतना ही नहीं देश भर के परिवारियों की जिंदगी को भी सुगम बनाता है। भोजन की निश्चितता बच्चों में विद्या के लिए प्रोत्साहन का काम करती है और इसीलिए त्वरित निर्णय लेने वाले परिवार बच्चों को काम पर भेजने के बजाए स्कूल भेजने को प्राथमिकता देते हैं। एक बच्चा यदि एक वक्त का भोजनए स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजनए एक बार भी स्कूल में प्राप्त कर लेता है तो परिवार की पोषण की चिंता में बढ़ी कमी आ जाती है। अक्षय.पात्र इसी बात को संबोधित करता है कि बच्चों में बसी भूख से जूझने के लिए गर्मए पौष्टिक और सुस्वादु भोजन प्रतिदिन मुहैया कराया जाए। इसीलिए अक्षय.पात्र भारत सरकार के प्रधानमंत्री पोषण योजना के क्रियान्वयन सहयोगी की तरह काम करता है।
आप पहले भिज्ञ हो चुके हैं कि एक तरह का किचन सेंट्रलाइज्ड ;केंद्रीकृतद्ध होता है और दूसरी तरह का किचन विकेंद्रीकृत होता है। दुर्गम और दूरस्थ इलाकों में अमूमन विकेंद्रीकृत रसोई ही होती है। ये ऐसी जगह होती हैंए जहां केंद्रीकृत रसोई की स्थापना मुश्किल काम होता है। ऐसी ही जगहों पर अक्षय.पात्र ने विकेंद्रीकृत रसोई की प्रस्थापना आरंभ कीए जैसा आप राजस्थान के बारां जिले के पास देख सकते हैं। यहां एक या दो स्कूलों के लिए रसोई तैयार होती है और उसे स.समय निर्धारित विद्यालयों तक पहुंचाया जाता है। यहां की रसोई की खासियत यह है कि इन्हें ज्यादातर वहां की स्थानीय महिलाएं ही चलाती हैं। जैसे बारां में सहरिया जाति की महिलाएं रसोई को संभालती हैं। हालांकिए इस पर पूरा नियंत्रण अक्षय.पात्र प्रबंधन का होता है।
भारत सरकार के निर्धारित मानकों के अनुसार ही इन सभी जगहों पर पौष्टिक भोजन तैयार होता है। अक्षय.पात्र ने वैज्ञानिक तरीके से स्थानीय विभिभताओं के मद्देनजर मेन्यू तैयार किया है। जैसे उत्तर भारत में रोटी आधारित मेन्यू और दक्षिण भारत में यानी ओडिसाए असम में चावल आधारित मेन्यू रखा जाता है। अक्षय.पात्र पर्याप्त मात्रा में मेक्रोन्युट्रिएन्टस यानी पोषक तत्व पर्यावरणीय पदार्थ हैए जिनका उपयोग जीवों द्वारा ऊर्जाए विकास और कार्यों के लिए किया जाता है। पोषक तत्व के आधार परए इन पदार्थों की आवश्यकता कम या अधिक मात्रा में होती है। जिनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में होती हैए उन्हें मेक्रोन्यूट्रिएन्टस कहा जाता है। अर्थात् वसाए प्रोटीन और कार्बोहाइट्रेस की सर्वाधिक जरूरत होती है। इसके अलावा माइक्रोन्युट्रिएन्टस जिनका इस्तेमाल हालांकि कम होता हैए फिर भीए प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रभावी कामकाज और समग्र स्वास्थ्य के लिए ये आवश्यक हैं। जिंकए विटासिन एए सी व डी जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व शरीर में एक विशिष्ट भूमिका निभाते हैं और बिमारियों से प्रभावी ढंग से लड़ते हैं। इन सबका ध्यान भी अक्षय.पात्र अपने मध्यान्ह भोजन में रखता है। इतना ही नहीं बच्चे एक जैसे भोजन के स्वाद से ऊबे नहींए इसका भी विशेष ध्यान रखा जाता है। मेन्यु को सुस्वादु बनाए रखने के लिए अचार और मीठे पदार्थों को भी इसमें जोड़ा जाता है। अक्षय.पात्र इसीलिए किसी से भी अलग है क्योंकि वह गीता के ष्कर्मयोगेन् योगीनाम्ष् योगी.पुरुष कर्म करने वाले होते हैंए इस भाव.बोध पर चलता है। जैसे फ्रांस में ऑगस्ट कोंट नामक समाजशास्त्री हुआ उसने बताया कि विवेचन थियोलॉजिकल और मेटाफिजिकल पद्धति से होता है। उसके बाद ही सकारात्मक या पाजिटिव स्वरूप प्राप्त होता है।
हमारे यहां कहा भी गया है.ष्अष्टादशपुराणानां सारं.सारं समुद्घृतम्परोपकाराय पुण्याय पापाय परिपीड़नम्ष्परोपकार करना पुण्य कर्म है और दूसरों को पीड़ा देना पाप कर्म है। यही अठारह पुराणों का सार है। इसी तरह महाभारत में बुद्धि और मन का भेद बताने के लिए व्याख्या की गई है। बुद्धि व्यवसाय करता है..व्यवसायात्मिका बुद्धि मनो व्याकरणात्मकम्अर्थात् सार.असार विचार करके बुद्धि निर्णय करती है और मन.व्याकरण अर्थात विस्तार या अगली अवस्ता करने वाली इंद्रिय है अर्थात् बुद्धि व्यवसायात्मिका है। इस शब्द का गीता में भी उल्लेख है। आशय यह कि अक्षय.पात्र कोई व्यावसायी संगठन नहीं। यह गीता के ष्मनसस्तु परा बुद्धिष् को मानता है और काम करता है। इसलिए उसके किसी भी कार्य में व्यवसायी भाव नजर नहीं आता। सम्पूर्ण संगठन कृष्णमयीता से जुड़ा है। यह अचरज भरा तब तक हो सकता हैए जब तक आप इसे नजदीक से देखें नहीं। लगता है कहीं कोई बांसुरी की तान हैए उस पर सबके सब अर्थात् संगठन से जुड़े लोग एक विशेष लय में गति करते हैं। फिर चाहे वह सरकारी निर्धारत प्रारूप के अनुसार पौष्टिक भोजन का नियमन करना हो या विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय स्वाद का मसला होए उसकी तैयारी होए सबमें एक समान गति और लय दिखाई पड़ती है। बच्चे जब दोपहर के भोजन के लिए इकट्ठे होते हैं तो उनका भोजन कोलेकर स्वीकार सबसे बड़ी चीज है। उन्हें लगना ही चाहिए कि वे घर में ही भोजन कर रहे हैं। पौष्टिक और स्वादिष्ट। यह सिर्फ कहा या लिखा ही नहीं जा रहाए इसे किसी भी जगह की रसोई में जाकर देखा जा सकता है कि किसी भी स्वाद को परम स्वाद में कैसे बदला जा सकता है। अक्षय.पात्र अनादि शब्द हैए आध्यात्मिक तपश्चर्या की एकाग्र ऊर्जाए एक स्थित समान जिसने हर शुष्क हृदय को लुभा लिया होए एक अविराम स्पर्श की पुलकन से भरे हाथ रोज बढ़ते हैंए उन सबके लिए जो प्रतिदिन उसके लिए प्रतीक्षारत होते हैं। यही कारण है कि जहां भी अक्षय.पात्र की रसोई का स्वाद पहुंचा उसकी गंध दूसरे विद्यालयों तक साथ.साथ पहुंची और इसीलिए गुवाहाटीए असम की सुनीता सिन्हा ने बताया कि यहां काम करना पूजा करने जैसा लगता है। मुझे यहां काम करना खूब पसंद हैए हालांकि यहां काम पर्याप्त होता हैए लेकिन कभी काम का दबाव महसूस नहीं होता। मुझे इसलिए भी यहां अच्छा लगता है कि मेरे भी अपने बच्चे हैं और यह भोजन उन तक भी पहुंचता है। हम भोजन तैयार कर बहुत एहतियात से बच्चों तक पहुंचाते हैं। इसलिए भी कि ये सभी बच्चे हमारे अपने हैं। उन्हें खाना सुस्वादु लगता है। उन्हें जितना अच्छा लगता है उतनी हमारी तन्मयता बढ़ती जाती है।
बेंगलुरू की वसंतपुरा का कहना है ष्यहां हम सभी लोग हिल.मिलकर एक टीम की तरह काम करते हैं। मुझे यह सब बेहद पसंद है। इस सबसे ज्यादा संतोष इस बात का है कि यह भोजन बच्चों तक नियमित पहुंचता है। हमें महसूस होता है कि हम भी समाज के लिए कुछ कर पाते हैं। हम अक्षय.पात्र के जरिये अपनी तमाम क्षमताओं को झोंककर थकते नहीं बल्कि संतुष्ट होते हैं। यह हमें सुकून देता है।ष्देहरादूनए उत्तराखंड के चालक मयंक उपाध्याय ने बताया ष् हम हमेशा समय पर पहुंचने का प्रयास करते हैंए क्योंकि बच्चों को तब तक भूख लगने लगती है। ये बच्चे पहाड़ी हैं। ये लोग बहुत दूर से स्कूल आते हैं। बच्चे स्वादिष्ट भोजन से बहुत खुश होते हैं। स्वाभाविक रुप से जब हम विद्यार्थियों को भोजन देते हैं और उनकी खुशी जब बाछों और आंखों से छलकती है तो हमें गहरा संतोष मिलता है। कभी कहीं किसी को हम बताते हैं कि हम अक्षय.पात्र में काम करते हैं तो तत्काल उसका उत्तर मिलता है कि तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हैंए यह सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है।ष्भुज ;गुजरातद्ध का चालक है मणिलाल अलाभाई बोरिचा। यह भी अक्षय.पात्र की गाड़ी का चालक है। उसका कहना है ष्मुझे बच्चों की सेवा करके बिल्कुल ऐसा लगता है जैसे में अपने बच्चों के लिए कुछ कर रहा हूं। मुझे वे बच्चे पराए नहीं लगते। जब बच्चे मुस्कराते हैंए मेरे चेहरे पर भी स्वानुगत मुस्कुराहत उतर आती है। मेरा सबसे छोटा बेटा भी अक्षय.पात्र के लाभान्वितों में से एक है। मेरी बेटी को यहां का भोजन बहुत पसंद है। खासकर दाल.भात;चावलद्ध। मैं यहां सदैव काम करना चाहता हूं। मेरा बस चले तो मैं ११० साल की उम्र में भी यहां काम करूं।
अक्षय.पात्र स्नेह और नवाचार का यौगिक है। इनकी पहली रसोई जब उत्तर भारत में शुरू हुई तभी रोटी की मशीन बनाई जा सकी। यह आसान काम नहीं था। इसके लिए लुधियाना में एक पापड़ बनाने की मशीन का पता लगा। उसमें ही लगातार नवचारी प्रयोगों से हजारों रोटियां एक साथ बनाए जा सकने की मशीन खड़ी हुई। अब तो कुछेक घंटों में ही ५० हजार रोटियां बनाई जा सकती हैं। विभिन्न सामाजिक.आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चे एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। भौगोलिकए आर्थिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं के बावजूद १६ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के ७७ स्थानों पर बच्चों में इस तरह की एकताए एकजुटता के दर्शन होते हैं। भोजन ही वह धुरी है जो अनेकानेक पालकों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती है।
अक्षय.पात्र शिक्षा से वंचित लोगों को देख नहीं सकताए फिर भूख की वजह से कोई शिक्षा से वंचित हो जाएए यह हो नहीं सकता। उसके संघर्ष में जार्ज मेकलोरिन के संघर्ष को देखा जा सकता है। वे १९४८ में ओक्लाहोमा विश्वविद्यालय में दाखिल हुए। अश्वेत थे। समझ सकते हैं कि उन्हें गोरे बच्चों से अलग बैठाया जाता। लेकिन जल्दी ही उन्होंने अपना नाम कॉलेज के तीन टॉप छात्रों में शुमार कर लिया। उन्होंने खुद लिखा है कि मैंने अपने आपको अपने काम में इतना समर्पित कर दिया कि साथी मुझे ढूंढने लगे और शिक्षक ध्यान देने लगे। शिक्षा में हथियार से ज्यादा शक्ति है और इसी बात की प्रतिरक्षा में अक्षय.पात्र जुटा हुआ है। अहर्निश! उसकी धारणा है कि कोई आज छाया में इसलिए बैठा हुआ है कि किसी ने काफी पहले यहां पौधा लगाया था और इसीलिए अक्षय.पात्र की उम्मीद कई पंखों वाली चिड़िया हैए जो आत्मा से उड़ान भरती हैए गाती है और गाना कभी बंद नहीं करती। मैथिलीशरण गुप्त ने इस भाव को यों व्यक्त किया.
ष्वास उसी में है विभुवर का है बस सच्चा साधु वहीं
जिसने दुखियों को अपनायाए बढ़कर उनकी बांह गही
आत्मस्थिति जानी उसने ही परहित जिसने व्यथा सही
परहितार्थ जिनका जीवन हैए है उनसे ही धन्य मही।।ष्
मधु पंडित दास को देखेंए पढ़ें और सानिध्य पाएं तो आपको प्लेटो के ष्फीडोष् से कठोपनिषद की तुलना करनी पड़ती है कि विचार उसी समय सबसे उत्तम होता हैए जबकि मन और अंदर संग्रहित होता हैए और अन्य कोई पदार्थ उसे कष्ट नहीं देताए यथा न शब्दए न दृश्यए न दुखए न सुख और जब उसे शरीर से कोई प्रयोजन नहीं होताए लेकिन उसकी महत्वाकांभा परमब्रह्म की प्राप्ति के लिए ही लक्षित होती है। इसीलिए वे हर काम को ष्कृष्णार्पणमस्तुष् की तरह करते हैं और यह सभी उसका विस्तार है। उनकी आध्यात्मिक चेतना के कारण ही समर्पितों का एक बड़ा समूह इकट्ठा हो गया हैए जिनके परिश्रम की हवा मात्र से बच्चों में कर्तव्यपरायणता जागने लगती है।
गुवाहाटीए असम की सैकिया हाईस्कूल की छात्रा जेस्मिन सैकिया अभी से गरीबों के प्रति सरोकारों से लबरेज है। वह डॉक्टर बनना चाहती है। उसका कहना है कि वह गरीबों की मदद करना चाहती हैए इसीलिए भी कि मैंने पाया कि गरीबों की आर्थिक स्थिति की वजह से उन्हें यथोचित चिकित्सा नहीं मिल पाती। मैं उन्हें यथोचित चिकित्सा मुहैया कराऊंगी।
ठीक ऐसे ही विश्वास और संकल्प से भरे तरुण का नाम है धर्मवीर। वह बीकानेर;राजस्थानद्ध के स्कूल में पढ़ता है। अक्षय.पात्र के भोजन ने उसमें पौष्टिकता तो दी ही हैए एक तरह का संबल और संकल्प भी दिया है। उसका कहना है कि बड़ा होकर आइएएस बनूंगा ताकि बीकानेर का विकास कर उसे शहर में बदल सकूं। मेरे भाई ने मुझे बताया कि यदि मैं आइएएस बन जाता हूं तो इस क्षेत्र का चहुंमुखी विकास कर सकूंगा। मेरे घर के पास एक छोटा सा शासकीय विद्यालय हैए मैं इसे ही अंग्रेजी माध्यम स्कूल में बदल दूंगा।वाराणसी;उप्रद्ध का एक बालक है अनुज कुमार। यह केंटोनमेंट बोर्ड म़ॉडल प्राइमरी स्कूल का छात्र है। उसका कहना है कि वह आइएएस बनना चाहता है। मैं सदैव सामाजिक और आर्थिक रुप से विपन्न उन सभी साथियों की मदद करना चाहता हूं जिन्हें अब तक गुणात्मक शिक्षा और भोजन की कमी का एहसास रहा हो। हमारे देश में सभी प्रतिभावान लोगों को समान अवसर नहीं मिला करते। मैं बड़ा होकर समान अवसरों की तलाश करूंगा। मैं उन सभी की प्रतिभाओं का सम्मान करूंगा और मुझे यकीन है कि वे देश का गर्व साबित होंगे।
यशस्विनी होगन्नाहट्टीए बेंगलुरू की छात्रा है। उसे अक्षय.पात्र का भोजन बेहद स्वादिष्ट लगता है। उसका कहना है कि ये लोग सभी को बहुत अच्छा और पेटभर भोजन मुहैया कराते हैं। हमेशा वह भोजन गर्मागर्म मिलता है। न तो यह ज्यादा तीखा होता है न उसमें ज्यादा नमक होता है। मुझे लगता है कि इससे अच्छे भोजन की कल्पना भी हम नहीं कर सकते।
जेडण्पीण् गर्ल्स स्कूलए कुप्पम;आंध्रप्रदेशद्ध की बीण् नव्याश्री कहती है कि वह आइएएस अधिकारी बनना चाहती है। मैं चाहती हूं कि सभी का भविष्य बेहतर हो और वे गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। मुझे बहुत खराब लगता है कि जब उम्रदराज लोगों को मैं सड़क पर भीख मांगते देखती हूं। मैं बड़ी होकर उन लोगों के लिए पक्के आवास बनवाऊंगी और ऐसे तमाम बच्चों को भी स्कूल में दाखिला दिलवाऊंगीए जो काम करने के कारण स्कूल न जा पा रहे हों। मैं उन्हें उनके लक्ष्यों के प्रति सजग करूंगी ताकि वे अपने जीवन में कुछ अच्छा कर सकें।
इसी तरह अपने सपनों की आकांक्षा को पूरा करने में जुटी अनीशा दिग्गाए भुवनेश्वर;उड़ीसाद्ध की रहने वाली हैं। वह बताती हैं कि उसे मेक.अप और सौंदर्य का जुनून था। मेरे आसपास के लोग मुझसे मेकअप करवाने की हठ करते रहते हैंए लेकिन मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं। मैंने जब यह बात अपनी शिक्षिका को बताई तो उन्होंने कहा कि इसमें दिक्कत कहां हैघ् तुम कास्मेटिक सर्जन बन सकती होए इससे तुम्हारी दोनों साधें पूरी हो जाएंगी।
गुनगुन कश्यपए गदरपुर उत्तराखंड की है। कहती हैंए हम तीन भाई.बहन हैं और प्रतिदिन यहीं अक्षय.पात्र का भोजन करते हैं। मेरे मां को सुबह काम पर जाना पड़ता है। पिता बीमार हैं। इसलिए हम लोग बिना नाश्ता किए ही स्कूल आ जाते हैं जो भोजन हमें स्कूल में मिलता है वह हमारे दिन का पहला भोजन होता है। मगरए मुझे और हमारे सभी भाई.बहनों को इसका स्वाद बहुत अच्छा लगता है। मुझे अक्षय.पात्र का आलू.सोयाबीन और हलवा खूब भाता है।
दादरा और नागर हवेली का सूर्यदीप वसंत सालागर हॉस्टल में रहता है। उसने बतायाए छुट्टी के दिनों में हम दिन में दो बार खाना बनाते हैं। अपने आपए बिना किसी की मदद के। लेकिन स्कूल के दिनों में हमें खाना नहीं बनाना पड़ताए इसलिए कि इन दिनों में अक्षय.पात्र का भोजन परोसा जाता है। न केवल यह बेहद स्वादिष्ट होता हैए अपितु हर दिन अलग.अलग भी होता है। मेरा पसंदीदा भोजन है सुरजने की फली और सांभर।
कर्नाटकए बेंगलुरू की कर्नाटक पब्लिक स्कूल की शिक्षक केण्एसएपह्नावती का कहना है कि दृढ़ निश्चयए निरंतरता और अनुशासन से किया गया कोई भी कार्य जोरदार होता हैए लेकिन अक्षय.पात्र ने इसे अपनी लगन से हासिल किया है। मुझे काम करते हुए पच्चीस बरस बीत गए। हम लोग बी कभी.कभार बीमार हो जाते हैंए लेकिन अक्षय.पात्र अपनी सेवाओं मेंए समय में कभी चूक नहीं करता। प्रतिदिनए निरंतरए समर्पण और स्नेह के साथ अक्षय.पात्र उपस्थित होता है।
सैकिया गर्ल्स हाईस्कूल गुवाहाटी के शिक्षक बदरुद्दीन का कहना है कि हमारे बच्चे अक्षय.पात्र के भोजन को अत्याधिक पसंद करते हैं। इसकी गवाही उनके माता.पिता और बालक भी देते हैं। कुछ बच्चे जरूर घर से टिफिन लाते हैंए लेकिन ज्यादातर बच्चे अक्षय.पात्र का भोजन ही खाते हैं। वे भोजन से बेहद संतुष्ट हैंए इतने कि घर जाकर पालकों को बताते भी हैं कि आज क्या खाया। आप आसानी से देख सकते हैं कि इससे बच्चों के स्वास्थ्य में खासा इजाफा हुआ है। उन्हें भोजन इतना प्रिय है कि पेट भर खाते हैं मुस्कराते हुए।
आप देखें कि कैसे विद्यार्थियोंए शिक्षकोंए सहकर्मियों का यह समायोजन हुआ और होता जा रहा है। इसे ब्राउनिये के शब्दार्थ में समझें कि ईश्वर ने समस्त अंतरिक्षए पृथ्वी और प्रकाश पुंजों ए पशुए पक्षीए मीन और कीट पतंगों कोए एकत्र कर प्रतिष्ठित किया मानव मेंए विभिन्न जीवन शृंखलाओं का पुनर्गठन करए समस्त सृजन के योगए इस सूक्ष्म ब्रह्मांड मानव को रचाए और इसी तरह प्लेटो ने टीमीयस ग्रंथ में विश्व ब्रह्मांण और जगत के मध्य विश्व एवं मानव के सादृश्य का वर्णन किया है। अभिप्राय यह है कि अक्षय.पात्र एक आंदोलन है.यथार्थ जगत से आध्यात्मिकता की ओर बढ़ता हुआ। स्वाभाविक रूप से उसमें त्याग हैए समर्पण हैए अकर्ता का भाव हैए सब कुछ कृष्ण के लिए का संकल्प हैए इसलिए ये लोग जब भी कुछ तय कर लेते हैंए उसके साथ जगतकर्ता जुड़ जाता है।
होरासियो क्विरोगा की स्पेनी कहानी है। एक गांव में एक आदमी रहता था। उस पर अपने छोटे भाई की जिम्मेदारी थी। एक दिन वह बीमार हो गया। डॉक्टर ने कहा आप पहाड़ पर चले जाएं। आप अच्छे निशानेबाज भी हैंए आते समय मेरे लिए किसी की अच्छी सी खाल ले आएं। मैं पैसे पहले दिए देता हूं। रही बात भाईकीए उसे मैं देख लूंगा। वह चला गया। थोड़े ही दिनों में वह स्वस्थ हो गया। एक दिन वह भोजन की तलाश में निकला। उसे मादा कछुआ दिखी। वह घायल थी। उसके गले तक निशानात थे। खून बह रहा था। वह उसे घर ले आया। खूब तीमारेदारी की। इतनी कि वह स्वस्थ हो गई। और वह धीरे.धीरे फिर बीमार हो गया। अपनी अस्वस्थता में वह किसी शहर का नाम बड़बड़ाता और कहता मैं वहीं ठीक हो सकता हूंए मगर में इतना तैर भी नहीं सकता। उस कछुआ ने मजबूत लताओं से उसे बांधा अपनी पीठ पर उसे ले चली। लगातार चलने से वह भी बीमार हो गईए लेकिन एक दिन उसने सुबह सूरज को चमकते देखा। इत्तफाकन चिड़ियाघर का निदेशक उधर आ गया। उसने अपने मित्र को पहचान लिया। वह ठीक हो गया। अब वह अपने बगीचे में कछुआ को रखता है और वह भी यही चाहती है कि उस आदमी का स्नेहभरा हाथ उसकी पीठ पर हो। हाथ धरे बिना वह कहीं न जाए।
समूचे अक्षय.पात्र की आराधना हर बच्चे की पीठ पर भरोसे का हाथ है। वे अक्षय.पात्र को अपने जीवन की अनूठी थाती मानते हैं। इसमें यहां काम करने वाले चालक से प्रबंधन तक का हाथ हैए जो अपनी संपूर्ण निष्ठा से स.समय भोजन उन सभी तक पहुंचाते हैं जो प्रतीक्षारत हैं। विवेकपूर्ण जीवन निरूस्वार्थ निष्ठावाले जीवन को ही तो कहते हैं। कॉलरीज ने लिखा.
उत्तम उपासक वह है जो मनुष्यए पशु.पक्षी
सबसे एक समान प्रेम करता है
सर्वोत्तम उपासक वह है जो छोटे.बड़े
समस्त पदार्थों से एक समान प्रेम करता है।
जैसे बर्कले कहता है विचारों की विद्यमानता ही आत्मा को बनाती है। ऐसी ही एक आत्मा का नाम सुवर्णा है। आप केंटोनमेंट बोर्ड प्राइमरी स्कूल बनारस की मुख्य शिक्षक हैं। उन्होंने बताया कि ज्यादातर बच्चे अपने घरों की स्थितियों के कारण कुछ खाकर नहीं आ पाते हैं। उनके हालात इतने विषम हैं कि उन्हें पीने के लिए शुद्ध जल भी नहीं मिल पाता। इसलिए भी यह मध्यान्ह भोजन उनके लिए जीवन रेखा बन गया है। अक्षय.पात्र इन्हें प्रोटीनए कार्बोहाइड्रेट और भी काफी कुछ पौष्टिक भोजन के लिए नियमित प्रदान करता है। बच्चे इससे अतिआनंदित हो जाते हैं। अब तो सरकार ने गुणात्मक पौष्टिकता पर और जोर देना भी आरंभ कर दिया है।
मुरमुरिया टी इस्टेट के प्रमुख शिक्षक आदित्य मांडल का कहना है कि अक्षय.पात्र की वजह से ज्यादा से ज्यादा बच्चे उपस्थित रहने की कोशिश करते हैं। उन्हें मालूम है कि शाला में पहुंचने पर उन्हें गर्मागर्म और स्वादिष्ट भोजन मिलेगा। यदि वे समय पर शाला में नहीं पहुंचेंगे तो उसका एक दिन के भोजन का नुकसान हो जाएगा। इनके ज्यादातर घरों की हालत ऐसी नहीं है कि वे सुबह नाश्ता करके आ सकें। यदि वे भूखे होते हैं तो शालेय गतिविधियों के प्रति अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। अच्छे भोजन और अच्छी शिक्षा के बीच अक्षय.पात्र का योगदान चिरस्मरणीय रहेगा।
इसके अलावा भी अक्षय.पात्र अनेक गतिविधियां चलाता हैए उनमें से एक है वृद्ध माताओं के लिए भोजन। अक्षय.पात्र वृंदावन;उप्रद्ध के आश्रमों में रहने वाली वृद्ध माताओं के लिए एक विशेष कार्यक्रम संचालित करता है। इस पहल के तहत अक्षय.पात्र यह सुनिश्चित करता है कि इन माताओं को प्रतिदिन पोषणयुक्त भोजन दोनों समय प्राप्त हो ताकि वे सम्मान और गरिमा के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। अक्षय.पात्र यह पहल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम;एनएफएसएद्ध 2013 के अनुरूप है। जिसका उद्देश्य लोगों को पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन की निरंतर उपलब्धता के माध्यम से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा प्रदान करना हैए ताकि सभी को गरिमामयी जीवन मिल सके।
अक्षय.पात्र फाउंडेशन ने हमेशा आपदा की स्थिति में अपनी रसोई अवसंरचना का उपयोग करते हुए आपातकालीन खाद्य सहायता मुहैया करने का प्रयास किया है ताकि लोगों को उचित पोषण मिल सके और अच्छा स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।
मानवता से जुड़े प्रयासों में खाद्य सहायता की महत्ता को समझते हुए फाउंडेशन ने देश के विभिन्न हिस्सों में सरकार के राहत कार्यों में निरंतर सहयोग देने का प्रयास किया है। अक्षय.पात्र ने समय के साथ आपदा की स्थिति में मानवीय सहायता प्रदान करने की अपनी कार्यक्षमताओं को आवश्यकता आधारित नजरिये के साथ सुदृढ़ किया है। इसमें शामिल है.
. गर्म और पौष्टिक पके हुए भोजन की आपूर्ति मोबाइल किचन का उपयोगए अस्थायी रसोई की स्थापनाए आवश्यक किराना किट का वितरण।
. आपदा की स्थिति में बड़े पैमाने पर भोजन वितरण संचालन को संभालने की क्षमता।
. विशेष रूप से प्रशिक्षित समर्पित कर्मचारी जो आपदा के समय में मानकों को बनाए रखते हुए सेवाएं प्रदान करते हैं।
. जल्दी से भोजन पकाने और वितरण की व्यवस्था खड़ी करने के लिए आवश्यक संसाधन और कौशल
. राशनए बिस्किट जैसी अन्य खाद्य सामग्रियों का वितरण
इन्हीं क्षमताओं की बदौलत कोविड.19 के समय अक्षय.पात्र फाउंडेशन ने शिक्षा के लिए भरपेट भोजन से राहत के लिए भोजन की ओर अपनी दिशा मोड़ी। इस दौरान फाउंजेशन में अपने संसाधनों को सक्रिय किया और साझेदारियों का लाभ उठाकर देश भर में संकटग्रस्त आबादी की सहायता हेतु खाद्य राहत अभियान चलाया। फाउंडेशन ने पके हुए भोजनए आवश्यक किराना किटए हेपीनेस किटएफैमिली हैपीनेस किट और शक्ति किट शामिल हैं।
इसके अलावा छात्रवृत्ति कार्यक्रम चलाया। शिक्षा को प्रोत्साहित करने और वंचित समुदायों के विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सहयोग देने हेतु छात्रवृत्ति कार्यक्रम संचालन करता है। यह कार्यक्रम छात्रों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने में मदद करता हैएजिससे वे अपने शैक्षणिक लक्ष्यों को आत्मविश्वास के साथ प्राप्त कर सकें। यह उनके कौशल और प्रतिक्षा को विकसित करने की नींव रखता है ताकि वे अपने जीवन में आने वाले अवसरों का भरपूर लाभ उठा सकें।
इसके अलावा अक्षय.पात्र एलुमनी नेटवर्क;एण्एण्एनद्धरू यह उन पूर्व लाभार्थियों का एक मंच हैए जिन्होंने कभी अक्षय.पात्र की मध्यान्ह भोजन योजना या छात्रवृत्ति कार्यक्रम से लाभ प्राप्त किया था। इसके माध्यम से उन्हें नई दक्षताएं सीखनेए रोजगार परामर्श और नेटवर्किंग जैसे अवसर उपलब्ध कराए जाते हैं।
इन सबका साक्ष्य रहे बेंगलुरु के वास्तुकार धनुष ने कहा कि हमारा बचपन पढ़ाईए खानाए सोना और खेलना इन्हीं चार चीजों के इर्द.गिर्द घूमता था। इनमें से भोजन एक अहम हिस्सा था और अक्षय.पात्र की वजह से उसमें कभी कमी नहीं आई।
नाथद्वाराए राजस्थान की समाजसेविका अंजलि पालीवाल ने बताया कि जब मैं अपने स्कूल के दिनों को याद करती हूं तो सबसे पहले अक्षय.पात्र के परोसे गए मध्यान्ह भोजन की याद आती है। इस भोजन में हमें कक्षा में ध्यान लगाने में मदद की। इसी संगठन की प्रेरणा से ही मैं समाजसेवा में आ सकी।
अक्षय.पात्र समाज के प्रवहमान बिंदुओं पर भी गहराईए तन्मयता और राग से जुड़ा रहकर अपने कार्य को अंजाम देता है। कक्षायी भूख जैसे भविष्य और वर्तमान की चिंताकुलता ने उसे इस संकल्प को उठाने को प्रेरित किया। स्कूलों की स्पर्धाए व्याकुलताए खीझ भरी त्वरा और उपलब्धि के बावजूद हीनता बोध से भर देने वाली त्वरा के बीच भूख बच्चों को विकल कर देती है। इसी विकलता को सबलता में बदलने का काम अक्षय.पात्र कर रहा है और इसीलिए आज वह दुनिया का सबसे बड़ा गैर सरकारी स्कूल भोजन कार्यक्रम है। अक्षय.पात्र फाउंडेशन बच्चों में भूख की समस्या को समाप्त करने के फाउंडेशन के मिशन के समर्थन में धन जुटाने और जागरूकता फैलाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में हजारों स्वयंसेवकोंए युवा राजदूतों और दानदाताओं को शामिल करता है।
इन सब कारणों से ही अभिजीत परमार विजयभाई रायपुरा प्राथमिक विद्यालय के सबसे प्रतिभाशाली छात्रों में से एक हैं। अभिजीत कक्षा आठ में पढ़ रहा है। उसे इलेक्ट्रानिक उपकरण बनाने का शौक है। उसकी रचनात्मकता और इलेक्ट्रानिक्स के प्रति जुनून ने उसे स्कूल में चर्चित बना दिया। वह कहता है मुझे विज्ञान पढ़ने में आनंद आता है। यह मेर पसंदीदा विषय है। मुझे बिजली के उपकरणों के साथ खेलना बहुत अच्छा लगता है। मैं हर साल होने वाली विज्ञान प्रदर्शनी में हिस्सेदारी करता हूं और ऐसे गेजेट बनाने की कोशिश करता हूं जो दैनिक जीवन की समस्याओं को हल कर सकें। इसके लिए मैं दोस्तों द्वारा दिए गए टूटे उपकरणों के पुर्जों का उपयोग करता हूं।
पिछले साल मैंने और मेरे दोस्त ने एक गति आधारित अलार्म बनाया था। उसने बताया कि जब भी हम पानी की टंकी भरने के लिए मोटर चालू करते हैं तो समस्या इसे बंद करने में होती है। किसी को नियमित अंतराल में जांच करते रहना पड़ता है। फिर भीए ज्यादातर समय टंकी ओवरफ्लो हो जाती हैए जिससे पानी क बर्बादी होती है। इस चुनौती से निपटने के लिए हमने एक डिवाइस बनाई। इस अलार्म को टंकी के बाहर रखते हैं और तार के एक सिरे को टंकी के अंदर एक निश्चित गहराई में लगाते हैं। ढक्कन बंद करने के बाद पानी के स्तर के बढ़ने का इंतजार करते हैं। जब पानी तार को छूता हैए तो डिवाइस अलार्म बजता है और सभी को सचेत कर देता है कि टंकी भर गई। इससे हमारे विचार और अविष्कार की प्रशंसा की गई। लेकिन हम प्रतियोगिता नहीं जीत पाए। उसकी आंखों में गर्व और निराशा के मिश्रित भाव थे। उसने कहा कि हम सिर्फ इसलिए हार नहीं मान सकते क्योंकि मैं एक प्रतियोगिता हार गया। मैं लगातार कुछ न कुछ करता रहता हूं। मैं घर भी बिजली के उपकरणों के साथ प्रयोग करता रहता हूं। हाल ही में मैंने एक टूटी हुी रिमोट कार से एक बोतल और मोटर का उपयोग करके एक छोटी मोटर.बोट बनाई। मेरी बहन इससे खूब खेलती है।
ऐसे बच्चे मिलान कुन्देरा के उपन्यास लाइफ इज एल्सवेयर का जवाब होते हैं। इसमें एक मां स्कूल के अध्यापक से यह पता लगाने को कहती है कि उसका बच्चा आदमी के धड़ पर जानवरों के सिर क्यों बनाया करता हैघ् निरूसंदेह यह घरेलू परिस्थितियों का निरूशब्द प्रस्फुटिकता है। लेकिन अभिजीत परमार जैसे बच्चे केस स्टडी की तरह होते हैं।
अभिजीत की अभिरुचि उसकी आकांक्षाओं से मेल खाती है। वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बनना चाहता है और यही उसके पिता की भी अभिलाषा है। हालांकि उसे पता है कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह यात्रा बेहद कठिन होगी। परिवार को गुजारा करने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। दोनों बच्चे बड़े हो रहे हैं। उन्हें उचित पोषण की जरूरत है। अक्षय.पात्र की वजह से उनकी यह चिंता दूर हो गई है। अभिजीत के पिता विजयभाई माली का काम करते हैं और माता गृहिणी। उसने कहाए मेरी बहन और मुझे अक्षय.पात्र द्वारा स्कूल में परोसे जाने वाला भोजन बहुत पसंद है। वह स्वादिष्ट तो होता ही हैए उसमें हर दिन अलग.अलग तरह की चीजें होती हैं।
इसका अर्थ यह है कि बच्चों के पोषण और शिक्षा में निवेश करना मानव विकास के सबसे प्रभावी प्रवेश बिंदुओं में से एक माना जाता है। यह एक ऐसा तथ्य है जो स्कूल फीडिंग कार्यक्रमों को एक राजनीतिक हस्तक्षेप के रुप में रेखांकित करता है। इन कार्यक्रमों की आर्थिक दृष्टि से उपयोगिता को वैश्विक स्तर पर विभिन्न संस्थाओं ने अध्ययन कर विस्तार से प्रलेखित किया है। विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसारए विद्यालयों में प्रदान किए गए भोजन से प्राप्त शैक्षणिक और पोषण संबंधी लाभों के कारण उत्पन्न आर्थिक फायदे जीवन भर चलते हैं। इसका अनुमान है कि स्कूल भोजन कार्यक्रमों में एक डालर के निवेश पर शिक्षाए स्वास्थ्य और उत्पादकता के रुप में दस डालर का प्रतिफल मिलता है। इसी तरहए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के एक अध्ययन में दर्शाया गया है कि पोषण पर किया गया प्रत्येक एक डालर का निवेश अठारह डालर का आर्थिक लाभ उत्पन्न करता है।
अक्षय.पात्र यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि उसके कार्यों के सभी क्षेत्रों में धन.संग्रह से लेकर गतिविधियों की रिपोर्टिंग तक पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बना रहे और इसके लिए वह सुशासन की सर्वोत्तम नीतियों का कड़ाई से पालन करता है। संचालन की प्रभावशीलता के लिए वह सदैव नियमोंए विधियों और श्रेष्ठ प्रथाओं का पालन करता हैए नैतिक धन संग्रह नीतियों को अपनाता है। और वित्तीय पारदर्शिता तथा सूचना प्रकटीकरण के उच्चतम मानकों को स्वेच्छा से बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
अक्षय.पात्र का संकल्प है कि बच्चे ही अक्षय.पात्र फाउंडेशन के समस्त प्रयासों का केंद्र हैं और हमेशा रहेंगे। चाहे वह स्कूल फीडिंग कार्यक्रम हो या मध्यान्ह भोजन के प्रभाव को बढ़ाने के लिए डिजाइन की गई गैर.भोजन संबंधी पहलकदमी। अक्षय.पात्र का यह भी संकल्प है कि वह बच्चों के लिए खाद्य और पोषण सुरक्षा पर केंद्रित प्रमाण आधारित समाधानों के माध्यम से अपने भोजन कार्यक्रम को उन्नत बनाने का निरंतर प्रयास करेगा। साथ हीए कार्यान्वयन की प्रभावशीलता तथा दक्षता को और अधिक मजबूत करने के लिए नए अवसरों की खोज करेगा। इस गहन विश्वास के साथ कि वैश्विक स्तर पर सहयोग और साझेदारियां जमीनी स्तर पर पहलों को प्रभावी ढंग से लागू करने की कुंजी हैए अक्षय.पात्र दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारियों की स्थापना करता रहेगा। ताकि दीर्घकालिक चुनौतियों के लिए टिकाऊ समाधान होने जा सकें। साथ हीए यह फाउंडेशन हरित पहलों जैसे बायो गैस संयंत्र और सोलर पेनल के माध्यम से पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने का भी प्रयास करेगा।
फाउंडेशन पायलेट प्रोजेक्ट के रुप में सामुदायिक रसोईघरों और स्कूल आधारित रसोईघरों की स्थापना की संभावनाओं का अध्ययन कर रहा हैए जो पर्यावरणीयए सामाजिक और शासन दृष्टिकोण के साथ अधिक निकटता से जुड़ा होगा। ये रसोईघर स्कूल फीडिंग कार्यक्रम में समुदाय की भागीदारी और स्वामित्व को बढ़ाने में मदद करेंगे। इसे ध्यान से पढ़ें तो समझेंगे कि जैसे चिड़िया जड़ता के विरुद्ध गति और उद्यम का आख्यान चरती है ठीक उसी तरह अक्षय.पात्र का अप्रत्याशित संसार में अवश्यंभावी की पताका फहराने को सबद्ध है। इसलिए विचार के संकल्प के उसके तमाम दरवाजे खुले हुए हैं।
अक्षय पात्र जैसे ये संकल्प जीवन में वसंत लाने की कवायद की तरह है। वैसे भी फूलों में रंगों का खिलना बहार आने की घोषणा भर नहीं होती। जब तक चारों तरफ एकरस बहता न दिखाई देए बगरा हुआ नजर न आए वसंत नहीं कहा जा सकता। एक तरह से यह ऋतुओं का दानपति है अर्थात् वृषभ है। बैल के अर्थ में इसका उपयोग बाद में शुरू हुआ। वृष का अर्थ है.कामदेवए नंदी। विष्णु के हजारों नामों में एक वृष भी है। शिव को वृषपति भी कहते हैं। वृष का अर्थ होता है बरसाने वाले और भा यानि प्रकाश तत्व का संकलित रूप। कृष्ण चरित में राधा का उल्लेख वृषभानुजाए वृषभानुकन्याए वृषभानुनंदिनी के रुप में आता है। वृषभ का एक रुप रिषभ यानि प्रमुख भी होता है। इन अर्थों में अक्षय.पात्र अपने संकल्पों और उनके अनुपालन में अग्रगण्य है।
नरेश सक्सेना की कविता है.
ष्मुझे एक सीढ़ी की तलाश है सीढ़ी की
दीवार पर चढ़ने के लिए नहीं
बल्कि नींद में उतरने के लिए।ष्
अक्षय.पात्र के तमाम सन्यासी बच्चों को रटा.रटाया विश्वास बांटने में यकीन नहीं करते। वे उनमें श्रद्धा जमाते हैं। श्रद्धा चित्त की गुणवत्ता है। विश्वास उधार है। जितनी भी प्रायोगिक विधियां हैंए वे किसी से यह नहीं कहती कि विश्वास करोए महज प्रयोग करने को कहती हैं। वैज्ञानिक विश्वास नहीं कर सकताए वह कोई परिकल्पना लेकर सीधे उस पर काम करना शुरू कर देता हैए प्रयोग करता हैए प्रयोग ठीक बैठता है तो वह निष्पत्ति लेता है। श्रद्धा प्रयोग से आती है। रामकृष्णए चैतन्यए मीरा भाव के लोग हैं। बंगाल के मनीषी केशवचंद्र सेनए रामकृष्ण से मिलने गए। वस्तुस्थिति यह है कि वे मिलने नहीं उन्हें हराने गए थे। रामकृष्ण निपट देहातीए पांडित्यपूर्ण तो बिल्कुल नहीं थे। केशवचंद्र सेन देश के सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा थे। कुशाग्र भी और तार्किक भी। जब केशवचंद्र दक्षिणेश्वर पहुंचे तो भीड़ लग गई कि देखें क्या होता है। बहस शुरू हुई तो केशव चकित थे कि रामकृष्ण उनके तर्कों का आनंद ले रहे थे। वे जब ईश्वर के खिलाफ कुछ कहते तो रामकृष्ण उठकर झूमने लगते। केशवचंद्र ने रामकृष्ण से कहाए ये क्या कर रहे हैं। आपको मेरे तर्कों का जवाब देना हैए इस पर रामकृष्ण ने कहाए तुम्हें देखकर मेरी श्रद्धा मजबूत हुई है। ईश्वर के बिना ऐसी प्रतिभा असंभव है और मैं भविष्यवाणी करता हूं कि देर.सबेर तुम मुझसे भी बड़े भक्त होने वाले हो। केशवचंद्र ने रामकृष्ण के पैर छुएए आप मुझे पहले आस्तिक मिले हैंए जिससे बहस व्यर्थ है। आपको देखकर मुझे परमात्मा की पहली झलक मिली है। बिना प्रमाण दिए आप उसके प्रमाण है। बिल्कुल इसी तरह अक्षय.पात्र और इस्कान बेंगलुरु बिना प्रमाण दिए स्वयं प्रमाण हो चुके हैं। ऐसा वहां आने वाले बताते हैं।
शिक्षा को सुगम बनाने और वंचित बच्चों की शाला में भूख समाप्त करने के उद्देश्य से अक्षय.पात्र ने यह प्रयास किया। इसकी प्रभावशीलता पर सेंटर फार सोशल रिसर्च;एसीनेल्सन ओआरजी प्राण् लिण् का एक प्रभागद्ध ने टीएपीएफ के मध्यान्ह भोजनए स्कूल नामांकनए उपस्थितिए कक्षा प्रदर्शन और छात्रों की पोषण स्थिति में प्रभाव का आकलन करने के लिए 2006 से प्रभाव मूल्यांकन का अध्ययन किया है। इसी शृंखला में 2008 और 2010 में भी अध्ययन किया गया जैसे...
1ण् पुरीरू अध्ययन कवरेज. 20 स्कूलों के साथ 495 परिवारों का साक्षात्कार लिया गया। कक्षा एक से आठवीं तक के 495 छात्रों के मानव शास्त्रीय माप लिए गएए कक्षा आठ और दसवीं के 75 छात्रों का साक्षात्कार संबंधी स्कूलों के प्रधानाचार्यध्प्रधानाध्यापिका एवं अन्य वरिष्ठ शिक्षकों के साथ भी साक्षात्कार किए गए ताकि इस कार्यक्रम पर उनकी धारणा को दर्ज किया जा सके।
नामांकन पर प्रभाव. तीन शैक्षणिक वर्षों यानी 2006.07ए 2007.08 और 8.9 के लिए नामांकन पर प्रभाव की तुलना की गई। प्राथमिक विद्यालय;कक्षा एक से पांचद्ध में कुल मिलाकर 15ण्3 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। लिंगानुपात की दृष्टि से देखे तो यह वृद्धि बालिकाओं में अधिक 18 प्रतिशत थी जबकि बालकों में 12ण्8 फीसदी थी। उच्च प्राथमिक या माध्यमिक;कक्षा 6 से 7द्ध के मामले में कुल वृद्धि 12ण्9 फीसदी रही। इस श्रेणी में बालिकाओं ने 15ण्5 के साथ बालकों के 10ण्3 फीसदी की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया।
कक्षा छोड़ते;ड्राप आउटद्ध दर पर प्रभाव. पिछले पांच वर्षों के लिए अध्ययन किया गया। इसे कोहोर्ट विश्लेषण कहते हैंए यानी एक विशेष तरह का अनुदैर्ध्य अध्ययन। इससे पता लगाया जा सके कि ड्राप.आउट दर कैसी हैघ् 2006 के शैक्षणिक वर्ष में यह आंकड़ा बालकों के लिए 11ण्6 प्रतिशत और बालिकाओं के लिए 11ण्3 प्रतिशत था और वर्तमान शैक्षणिक वर्ष में ये आंकड़े बालकों के लिए 12ण्8 प्रतिशत और बालिकाओं के लिए 15ण्5 प्रतिशत है। कक्षा एक से सातवीं के छात्रों में पिछले पांच शैक्षणिक वर्षों की तुलना करने पर उपस्थिति दर में एक स्पष्ट प्रभाव देखा गया। बालक और बालिकाओं की उपस्थिति दर 2005 में क्रमशरू 71ण्87 और 73ण्3 प्रतिशत थीए जिसमें हर वर्ष सुधार दर्ज किया गया और शैक्षणिक वर्ष 2009 में यह दर क्रमशरू बालकों के लिए 81ण्17 और बालिकाओं के लिए 86ण्7 प्रतिशत रही।
छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन में बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआए लेकिन फिर भी सुधार हुआ है। 2001 में बालकए बालिकाओं की पुनरावृत्ति दर 7ण्17 और शून्य प्रतिशत रहीए जो 2009 में थोड़ी अधिक रही। मगरए टीएपीएफ के मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम के बाद 85 प्रतिशत प्रधानाचार्यध्प्रधानाध्यापिका और शिक्षकों ने उपस्थिति दर में सुधार देखा। इनमें से अधिसंख्य;80 प्रतिशतद्ध उत्तरदाताओं ने कहा कि कार्यक्रम के बाद से नामांकन दर में सुधार पाया गया। लगभग 75 प्रतिशत शिक्षकों ने महसूस किया कि मध्यान्ह भोजन के बाद कक्षा प्रदर्शन में सुधार हुआ है। इतना ह नहीं लगभग 80 फीसदी शिक्षकों ने सह.पाठ्यक्रम गतिविधियों पर भी प्रभाव को स्वीकारा। उन्होंने मध्यान्ह भोजन का छात्रों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव बताया।
इसी तरह खाद्य की गुणवत्ता और मात्रा के संबंध में सभी प्रधानाचार्यध्शिक्षकों ने खाद्य की मात्रा को उपयुक्त और पर्याप्त बतायाए पिछले छह महीने में किसी भी प्रकार की कमी की सूचना नहीं दी। करीबन 75 फीसदी उत्तरदाताओं ने भोजन को हमेशा साफ.सुधरा और स्वच्छ निरुपित किया और करीबन 85 फीसदी ने भोजन को अत्यधिक पौष्टिक बताया। लगभग 70 प्रतिशत ने भोजन को हमेशा स्वादिष्ट बताया और सभी उत्तरदाताओं ने कहा कि परोसते समय भोजन सदैव गर्म होता है।
माध्यमिक और प्राथमिक के सभी विद्यार्थियों ने बताया कि वे दोपहर का भोजन स्कूल में ही प्राप्त करते हैं। कम से कम चार में से एक छात्र स्कूल आने से पहले नाश्ता नहीं करता। इन बच्चों ने बताया कि अपने दोस्तों के साथ खाना अच्छा लगता है। ;लड़के 90ण्67ए लड़कियां 79ण्1 प्रतिशतद्ध इससे हमारे माता.पिता का समय बचता है।;लड़के 68ण्8ए लड़कियां 44ण्27 प्रतिशतद्ध
नमूना छात्र.छात्राओं में 43 प्रतिशत छात्र कच्चे मकानों में रहते थे। इनके 9 प्रतिशत पिता और 18 प्रतिशत माताएं निरक्षर थीं। लगभग 26 प्रतिशत पिता और 36 प्रतिशत माताएं केवल प्राथमिक स्तर या उससे कम तक ही पढ़ी थी। इनके 25 प्रतिशत पिता गैर.कृषि मजदूरी में लगे थे। 22 प्रतिशत किसानी और 28 प्रतिशत छोटे व्यापारियोंए खुदरा व्यापार में लगे थे। 82 प्रतिशत माताएं गृहिणी थी। इनमें 58 फीसदी परिवारियों की मासिक आय तीन हजार रुपये से कम थी और 26 फीसदी से अधिक की आय तीन हजार से 4ए999 के बीच थी।
करीब 80 फीसदी से ज्यादा माता.पिता मध्यान्ह भोजन के प्रति जागरूक पाए गए। 73 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि उनका बच्चा नियमित रुप से भोजन लेता है। 55 फीसदी से ज्यादा पालकों ने बताया कि स्कूल में स्वच्छ और साफ भोजन प्रदान किया जा रहा है। 57 फीसदी से ज्यादा लोगों ने भोजन की मात्रा को पर्याप्त बताया।
आप देखें कि नामांकन के आंकड़े शैक्षणिक वर्ष 2003.2007 के दौरान अधिक सक्रिय थेए उसके बाद पिछले पांच वर्षों में यह स्थिर हो गए। यह दर्शाता है कि मध्यान्ह भोजन का प्रभाव 10ण्20 प्रतिशत की सीमा वृद्धि के रूप में देखा गया और बाद में स्थिर होगया। टीएपीएफ का भोजन कार्यक्रम 2005.06 में बेंगलुरु के लगभग सभी स्कूलों तक विस्तारित हुआ।
यह उस यात्रा का ब्योरा है जिसे इकहार्ट कहता है कि समय नहीं बीतताए हम बीतते हैं। फ्रांस के प्रसिद्ध दार्शनिक इमेन्युएल कांट ने इसी सबको मानव धर्म कहा है। यहां धर्म का अभिप्राय सिर्फ धारणा तक है।
अहमदाबाद के स्कूल अध्ययन में 20 विद्यालयों और 528 परिवारों का साक्षात्कार लिया गया। कक्षा एक से आठवीं तक के 528 विद्यार्थियों के मानवशास्त्रीय माप लिए गए और कक्षा आठ से 10वीं तक के 20 विद्यार्थियों के गहराई से साक्षात्कार लिए गए। इसके साथ हीए नमूने के तहत नमूनाए स्कूल के हेडमास्टरए प्रधानाध्यापिका और वरिष्ठ शिक्षकों से भी जाना गया कि इस कार्यक्रम के बारे में उनका नजरिया क्या हैघ् वे इसे कैसे देखते हैं। इसी पद्धति का उपयोग बेंगलुरुए मंगलूर में भी किया गया।
माध्यमिक और उच्च प्राथमिक के 87 फीसदी बच्चों ने बताया कि वे कभी भोजन को छोड़ते नहीं। 86 प्रतिशत बच्चों ने भोजन के सुस्वादु होने की बात कही। उनका कहना था कि भोजन सदैव ही सुस्वादु होता है। करीब 92 प्रतिशत बच्चों ने बताया कि जरूरत लगने पर वे दूसर बार भी भोजन लेते हैं। 97 फीसदी बच्चों ने यह भी कहा कि भोजन लेने के उपरांत किसी को भी किसी तरह की शिकायत नहीं हुई। इस तरह अक्षय.पात्र की योजना और क्रियान्वयन से विद्यालयों में बच्चों की औसत उपस्थिति में इजाफा हुआ है और पिछले अकादेमिक सत्र में लड़के और लड़कियों की उपस्थिति दर में सुधार हुआ है। अक्षय.पात्र के विस्तारए वितरण की तुलना ब्राजील के नेशनल स्कूल फीडिंग प्रोग्राम से की जा सकती है। ब्राजील के एकीकृत खाद्य और पोषण सुरक्षा नीति दृष्टिकोण ने खाद्य प्रणाली में अन्तरक्षेत्रीयता को बढ़ावा दियाए स्वस्थ भोजन तक पहुंचने क गारंटी देने को स्पष्ट किया। इससे स्कूल के भोजन की गुणवत्ता में सुधार हुआ है। ब्राजील की बहुद्देशीय खाद्य और पोषण सुरक्षा रणनीति ने स्कूल में भोजन के विस्तार को प्राथमिकता दी और कार्यक्रम के डिजाइन और क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण बदलाव लाए।
अक्षय.पात्र से जुड़े साधुमना लोगों के मन में रसखान की तरह वृंदावन प्रेम निकेतन है। लगभग सभी वैष्णव ग्रंथों में वृंदावन कृष्ण की भूमि की तरह पाया जाता है। यहां न दुख है न विषाद। सिर्फ माधुर्य हैए और माधुर्य नित्य है। वृंदावन को मधु.वन भी कहा जाता है। सूरदास ने वृंदावन और मधुवन दोनों शब्दों का उपयोग किया है। कहते हैं.
ष्नित्य धाम वृंदावन स्यामए नित्य रूप राधा बृज बाग
नित्य रासए जल नित्य बिहारए नित्य मान खांडिताभिसारण्ण्ण्ष्
वृंदावन का धाम और कृष्ण नित्य है। बृज की स्त्रियां तथा राधा का रुप नित्य है। रासए जल.बिहारए मानए खंडिला;नायिकाद्ध अभिसार सब नित्य है। यह नित्यताए यह सातत्य ही अक्षय.पात्र को वृंदावन चंद्रोदय मंदिर से जोड़ता है। यही वजह है कि इनके सारे समर्पित सदैव एक नई ऊर्जा से भरे दिखाई पड़ते हैं। जो कुछ भी वे करते हैंए वह सब कृष्ण के लिए ही हैए ऐसा मानकर करते हैं।
अक्षय.पात्र का प्रबंधन का कहना है ष्सच्चाई की शक्ति और ईमानदारी हमारे सभी कार्यों की नींव है। यह एक निरंतरता है। हम जिन लोगों के साथ काम करते हैंए रहते हैंए सेवा करते हैंए वे हम पर भरोसा कर सकते हैं। हम अपनी शब्द सामर्थ्य और संकल्प के अनुसार काम करते हैं। हम रोपे गए विश्वास के जरिये अपनी प्रतिष्ठा का निर्माण करते हैंए इतना ही नहींए उसे सुदृढ़ भी करते हैं। हम दूसरों को अनुचित तरीके से प्रभावित नहीं करते और न ही किसी को करने देते हैं। संक्षेप में कहें तोए संगठन की प्रतिष्ठा यहां काम करने वाले लोगों के नैतिक प्रदर्शन को दर्शाती है।ष्
इतना ही नहींए अक्षय.पात्र प्रबंधन का मत है कि हम तब ईमानदारी को व्यवहार में लाते हैंए जब हम ईमानदार होते हैं। हम केवल वही वादे करते हैंए जिन्हें हम यथोचित रुप में पूरा कर सकते हैं। हम टकराव और आशंकित टकराव की स्थिति से बचते हैं। निश्चित ही इसके लिए जरूरी है कि हम सभी ऐसी किसी गतिविधि में भाग न लें जो हमारे निजी हितों और संगठन के हितों में टकराव उत्पन्न करे। अक्षय.पात्र मानता है कि निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा स्वतंत्र पहल के लिए आवश्यक है।
अक्षय.पात्र एक बेहतर दुनिया के लिए प्रतिबद्ध संगठन का नाम है। करुणा यहां सिर्फ शब्द नहीं अपने समूचे अर्थ में व्यक्तित्व और प्रतिदिन के कार्यों का अभिन्न हिस्सा है। करुणा सक्रिय संवाद के लिए स्थान बनाती है। इसके भीतर प्रतिफलित होने पर तनाव कम होता है और उत्पादकता स्वयमेव बढ़ जाती है। अक्षय.पात्र अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और आर्थिक विकास के संतुलन को ठीक.ठीक पहचानता है। करुणा एक सकारात्मक भावना हैए जो हमारे जीवन में दूसरों के प्रति विचारशील और सभ्य होने से जुड़ी होती है। यह दूसरों के प्रति समझए धैर्य और दयालुता के साथ प्रतिक्रिया देने की भावना है। ऋषियों की वाणी हैष्नेह नानाअस्ति किंचनष्;कठोपनिषदद्ध वस्तुतरू अनेकता दिखाई पड़ती हैए मगर होती नहीं। सबके मूल में एक ही कृष्णामृतए अव्यय और नित्य तत्व है। ज्यां पाल सार्त्र ने अपनी आत्मकथा लिखीए उसका नाम है ष्वर्डसष्.शब्द। चारों तरफ यूं तो कलरव हैए कहीं.कहीं शब्द और कुछेक स्थानों पर ही करुणा की उपस्थिति दिखाई पड़ती है।
इसीलिए अक्षय.पात्र मनुष्यों ही नहीं अन्य प्राणियों के प्रति भी कारुणिक भाव रखता है। करुणा को सिर्फ मनुष्यों तक ही सिमटकर नहीं रह जाना चाहिएए अपितु नीचे के स्तर तक भी बहना चाहिए। अक्षय.पात्र अपने कार्यों की गुणवत्ता और दक्षता को और बेहतर करने के साथ ही पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने का प्रयास भी करता है।
अक्षय.पात्र ने अपनी पहली सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला अहमदाबाद में स्थापित की है। खेत से लेकर थाली तक भोजन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से यह प्रयोगशाला अप्रैल 2015 में स्थापित की गई थी। इसे अत्याधुनिक तकनीक और सटीक परीक्षण उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। इसी के साथ अक्षय.पात्र एक समग्र मॉनिटरिंगए इवेल्युएशन और इम्पैक्ट एसेसमेंट सिस्टम तैयार कर रहा हैए जिसके जरिये हम न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण स्थिति को माप सकेंगेए बल्कि उनकी शैक्षणिक प्रगति और सामाजिक विकास का भी मूल्यांकन किया जा सकेगा। वैसे आज मध्यान्ह भोजन योजना के परिणामों का ज्यादातर मूल्यांकन गुणात्मक स्तर पर होता हैए जबकि जरूरत इस बात की भी है कि तथ्यों पर आधारित आंकड़ों के माध्यम से इसकी प्रभावशीलता को समझा जा सके।
एमण्ईण्आइण्ए ;मॉनिटरिंगए इवेल्युएशन एंड इम्पैक्ट एसेसमेंटद्ध सिस्टम लाभार्थियों के स्वास्थ्यए मानसिक और शारीरिक विकास और सामाजिक स्थिति को मापने के लिए कई संकेतकों और मानकों पर आधारित होगा। इस प्रणाली को एक विस्तृत डायग्राम और यूजर मेन्युअल के साथ प्रस्तुत किया जाएगाए ताकि अन्य दूसरी तरह के अध्ययन भी किए जा सकें। यह न केवल हमारे कार्यों के प्रभाव को मापने में मदद देगाए बल्कि इससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर अक्षय.पात्र अपने कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावी बना सकेगा। यह प्रणाली लाभार्थियों के पोषण में हुए सुधार और एलर्जी जैसी जानकारियों को भी दर्ज करेगीए ताकि भविष्य में भोजन.योजना को और भी बेहतर बनाया जा सके।
समय के साथए अक्षय.पात्र ने देश भर में अपने कार्यों का विस्तार करते हुए सरकार के इस प्रयास में भागीदारी निभायी है कि देश में कोई भी बच्चा भूख के कारण शिक्षा से वंचित न रह जाए। आने वाले समय को अवसर मानते हुए फाउंडेशन अब केवल भोजन तक सीमित न रहकर लाभार्थियों के समग्र विकास की दिशा में और अधिक नवाचार लेकर आ रहा है।
बदलावी नजरियारू
अक्षय.पात्र का नजरिया केवल पोषण और स्वास्थ्य आधारित नवाचारों तक सीमित नहीं है। उसका लक्ष्य है कि वह विभिन्न स्तरों पर सकारात्मक बदलाव लाए जैसे कि स्कूलों के बेहतर बुनियादी ढांचे में सहयोग देनाए छात्रोंए शिक्षकों और गैर शिक्षण कर्मचारियों के व्यवहार में सहजता लाना और बच्चों के लिए जीवन बदलने वाले प्लेटफार्म तैयार करने की दिशा में भी सजगता लाना। यह उनका ध्येय है और इसीलिए यह सब अक्षय.पात्र को एक अलग पायदान पर खड़ा करता है। साफ है कि अक्षय.पात्र लाभार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए सन्नद्ध है। इसका उद्देश्य केवल बच्चों की वर्तमान स्थिति को ही बेहतर बनाना नहीं हैए बल्कि उन्हें इस योग्य बनाना है कि वे आगे चलकर अपने परिवारियोंए समुदायों और देश में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकें।
अक्षय.पात्र फाउंडेशन ने महात्मा गांधी के स्वप्न और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ष्स्वच्छ भारत मिशनष् को साकार बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस पहल का उद्देश्य बच्चों में स्वच्छता और साफ.सफाई की आदतों को नियमित और व्यवस्थित रूप में विकसित करना है। यह एक अभियान हैए जिसके तहत अक्षय पात्र देश के अपने सभी लाभार्थी बच्चों को साफ.सफाई के महत्व के प्रति जागरूक करेगा। इसके तहत स्कूलों में विभिन्न गतिविधियां आयोजित की जाएंगीए जिनमें बच्चों को साफ.सफाई से जुड़ी जानकारीए व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जाएगा।
बच्चों को स्कूलों के साथ.साथ अपने घरों में भी स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाएगा ताकि स्वच्छता उनकी आदत का हिस्सा बन सके और वे एक बेहतर और स्वस्थ जीवन शैली की ओर अग्रसर हो सकें। अक्षय.पात्र इसके अलावा अभिभावकों के लिए भी कार्यशालाएं आयोजित करेगा ताकि समुदाय के स्तर पर स्वच्छता संस्कृति का स्वरूप ले सके।फाउंडेशन इस पहल को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न संगठनों और संस्थाओं के साथ साझेदारी के लिए भी उत्सुक हैए जो अपने अनुभव और विशेषज्ञता के माध्यम से इस अभियान को सहयोग और गति प्रदान करेंगे।बच्चों के अनोखे सपनों को संबल देने और उनके जज्बात की तस्वीर बना देने के लिए ष्गिविंग एवटी ड्रीम ए चांसष् की शुरूआत २०१६ में की। इसका उद्देश्य था उन बच्चों को जिनके पास विशेष अभिरुचियां और सतरंगे सपने हैंए उन्हें एक ऐसा मंच दिया जाए जहां से वे अपने जुनून को पहचान सकें। इतना ही नहीं उसे साकार भी कर सकें। बिल्कुल ऐसे ही जैसे निर्झर को नदी के हाथ कोई पानी मिल जाए। यह पीढ़ी के निर्माण की दिशा में साधना हैए महज काल्पनिक सुझाव नहीं है। इसके पीछे भाव यह है कि तरुणाई और अरुणाई सुनसान में न कटे।पायलेट वर्ष में इस पहल के तहत तीन बच्चों को उनकी रुचि के क्षेत्र में प्रशिक्षण और मार्गदर्शन दिया गया। इसकी सफलता ने इतना उत्साहित किया कि अक्षय.पात्र ने इसका विस्तार किया और ३०० से ज्यादा बच्चों को डांसए थियेटरए फुटबॉलए कुकिंग जैसे विविध क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिलवाया। जैसे कबीर ने कहा.ष्कामए क्रोधए अरु लोभ विसर्जितए हरिपद चिन्है सोईष्
जब व्यक्त इन तीनों को विसर्जना कर देता हैए तीनों के पार हो जाता हैए तभी वह हरिपद को पहचान पाता है। इसका अर्थ ही है समर्पणए पूर्ण समर्पण। इसी भाव से अक्षय.पात्र हर कदम गहराई लिए होता है।अक्षय.पात्र फाउंडेशन की विभिन्न पहलों की सफलता केवल संगठन के प्रयासों तक सीमित नहीं हैए बल्कि यह उन सशक्त साझेदारियों का परिणाम है जो हमने समय.समय पर विभिन्न संस्थानों और संगठनों के साथ बनाई है।
भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें हमारे सभी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इसके अलावा ष्फूड फोर्टिफिकेशनष् के क्षेत्र में हमने चंजीए ळंपदए न्यूट्रिशन इंटरनेशनल;छप्द्ध और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसे प्रतिष्ठित संगठनों के साथ भागीदारी है। मिलेट्स;मोटे अनाजद्ध को मध्यान्ह भोजन में शामिल करने की पहल के तहतए अक्षय.पात्र ने इंटरनेशनल क्रय रिसर्च और सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजीकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ नालेज पार्टनर के रूप में साझेदारी की है। इन संस्थानों के विशेषज्ञों के सहयोग से लाभार्थियों के स्वास्थ्य और पोषण पर मिलेट्स के प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है।इसके अलावा अक्षय.पात्र ष्सर्कल ऑफ केयरष् और ष्गिविंग एवरी ड्रीम ए चांसष् जैसी दीर्घकालिक पहलों को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए अन्य संगठनों के साथ भी सहयोग कर रहे हैं। टाटा ट्रस्ट्मए बेन एंड कंपनीए क्रिएटिंग फ्यूचर्सए जनग्रहए इनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट बडोदरा की एमएस यूनिवर्सिटी और माउंट कार्मल कालेज बेंगलुरु जैसी संस्थाएं साथ चल रही हैं।
अक्षय.पात्र ने मॉडल स्कूल परियोजना के अंतर्गत बेंगलुरुए भुवनेश्वरए पुरी और वृंदावन के ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों के स्कूलों का मूल्यांकन किया है। अब इन चयनित स्कूलों में योजनाबद्ध गतिविधियों का क्रियान्वयन शुरू किया जाएगा। इन परियोजना का उद्देश्य ऐसे मॉडल स्कूल बनाना है जो उत्कृष्टता के प्रतीक बनें और जिनका अन्य स्कूलों में अनुसरण किया जा सके। यह सब ष्मैं कहता तू जागत रहियोष् की तरह है। हर जगह जागरूकता का महामंत्र अक्षय.पात्र का संकल्प है। यह एक प्रेमपूर्ण और समर्पित समाज रचना की तैयारी है। इसकी प्रतिध्वनियां आप इनके परिवृत्त में आए बच्चों से संवाद कर सुन सकते हैं।एक विद्यार्थी है.शंकर। वह अपने स्कूल की स्टुडेंट एसोसिएशन का सदस्य है। उसे स्कूल और उसके आसपास के परिसर को साफ रखने की जिम्मेदारी दी गई है। उसकी मां सगर्व बताती है कि शंकर एक दयालु और मददगार बच्चा है। वह उन्हें पानी भरनेए बकरियों को चराने में भी मदद करता है। वह कभी किसी के लिए मना नहीं करताए बशर्ते उसका स्कूल न छूटे। उसकी मां मुस्कराते हुए कहती है यदि स्कूल के समय उसे कोई घरेलू काम बता दे तो वह मना तो नहीं करना लेकिन झुंझला उठता है।
अनवरत आप देख रहे हैं कि अक्षय.पात्र गीता के अनुसार.ष्कायेन वाचा मनसेन्द्रियें वांए
बुद्धयात्मना वानुसृत स्वभायतकरोति यह यत् सकले परस्यैनारायणयेति सपर्पयेत्तत्ष्श्रील प्रभुपाद के अनुसार ष्बद्ध जीवन में अर्जित विशेष स्वभाव के अनुसार मनुष्य अपने शरीरए वचनए मनए इन्द्रियए बुद्धि और शुद्ध चेतना से जो कुछ करता है उसे यह सोचते हुए परमेश्वर को अर्पित करना चाहिए कि यह ष्भग्वान नारायण की प्रसन्नता के लिए है।ष् यह अक्षय.पात्र की अक्षय यात्रा की चेतन यात्रा का मूल स्वभाव है। यही वह बुनियादी वजह है जो इसके वलय में आने वाले छात्रों को कुछ कर गुजरने का भाव जागृत करती है। एक पुरानी कहावत है ष्जैसा खाए अन्न वैसा होवे मनष्।एक बालिका हैए उसका नाम मधुस्मिता है। वह पढ़ाई में अव्वल है और अभी से बुद्धि से भी परिपक्व। वह भलीभांति इस बात को समझती है कि पढ़ाई के साथ.साथ किसी की मदद करना कितना जरूरी होता है। उसका मन बुनाईए कढ़ाई और क्राफ्ट्स जैसी चीजों में खूब रमता है। वह चाहती है कि वह ऐसी शिक्षिका बनेए जो अपने विद्यार्थयों को न केवल किताबों का ज्ञान देए बल्कि जीवन की समझ भी दे। उसके माता.पिता सीमित संसाधनों में उका लालन.पालन कर रहे हैंए लेकिन उन्हें अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए लगन और जीवन की समझ पर गर्व है। उनका मानना है कि शिक्षा वह चाभी है जो मधुस्मिता को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाएगीए एक ऐसा भविष्य जिसे वह अपने हाथों से बुन रही है।मधुस्मिता न केवल पढ़ाई में होशियार हैए बल्कि उसे प्रकृति से भी बड़ा लगाव है। यह उसकी ड्रांइग में साफ.साफ नजर आता है। वह चहकती हुई बताती है उसे पहाड़ बनाना बहुत अच्छा लगता है। उसके मुख्य शिक्षक या कहें प्रधानाचार्य विकासचंद्र महाशूद्र भी मानते हैं कि मधुस्मिता एक दिन जरूर बहुत अच्छी शिक्षक होगी। फिलहाल वह कक्षा दूसरी की छात्रा हैए मगर कक्षा के गणित में कमजोर बच्चों की वह मदद करती है। उन्होंने कहा कि अगर वह इसी तरह पढ़ाई करती रही तो उसकी आगे की शिक्षा के लिए हम भी यथासंभव मदद करेंगे।
मधुस्मिता का दिन सुबह जल्दी शुरू होता है। वह बताती है ष्मैं उठती हूंए ब्रुश करती हूंए चाय.नाश्ते के बाद पढ़ाई करती हूं। फिर स्कूल के लिए तैयार होती हूं। स्कूल में हम रोज कुछ नया सीखते हैंए उसके बाद थोड़ा खेलते हैंए फिर घर लौट आते हैं। घर आकर वह फिर खेलने चली जाती है। शाम होते ही मां के साथ बैठकर होमवर्क करती है। इस बीच वह अपनी दो साल की बहन निहिता के साथ खेलने का समय भी निकाल लेती है। उसकी मां उसकी सबसे अच्छी दोस्त है। वह अपनी मां को रोजाना के अपने एहसास की हर खबर बताती है। जैसे स्कूल में क्या हुआघ् नया क्या सीखाए भोजन में क्या मिला वगैरह। उसने बताया स्कूल में उसे सब्जीए दालए खिचड़ीए पायसम मिलता है। अपनी अंगुलियों पर गिनते हुए बड़े रोचक स्वर में वह यह सब गिनवाती है। उसकी मां बताती हैए उसे दाल सबसे ज्यादा पसंद है। मैं घर में चावलए दालए सब्जी बनाती हूंए लेकिन वह सब्जी नहीं खाती। लेकिन जब स्कूल में पायसम मिलता है तो वह चावल की तरफ देखती ही नहीं।
स्कूल में उसे सबसे अधिक खुशी मिलती है अपने रुद्रए नयनए मानस्मिता और जोतिन के साथ समय बिताने में। ये सभी उसके ष्वेस्ट.फ्रेंड्सष् हैं। वह उत्साह से बताती है ष्हम सभी एक साथ स्कूल जाते हैंए कबड्डीए झूला और हेरा.हेटी जैसे खेल साथ में खेलते हैं।असम के गोयमाओ गांव में बुनाई के करघे लगभग हर घर में पाए जाते हैं। ये केवल पारंपरिक कपड़ों का जरिया ही नहीं असम की समृद्ध धरोहर का प्रतीक भी हैं। असम की महिलाएं इन हस्तशिल्प कपड़ों को बड़े गर्व के साथ पहनती हैं और यह और ऐसी परंपराएं मधुस्मिता जैसे बच्चों को भी प्रेरणा देती हैं कि वे अपने जीवन को मेहनतए प्रतिभा और शिक्षा के धागों से बुनेंए ताकि उनके भविष्य का क्षितिज उज्ज्वल हो सके। कभी बुनाई और मछली पकड़ना गोयमाओ गांव के लोगों की आजीविका थीए लेकिन समय के साथ स्थितियां बदलीं। मधुस्मिता के दादा बताते हैं कि कई साल पहले यहां के लोग ब्रह्मपुत्र नद में मछली पकड़कर गुजारा करते थे लेकिन अब नद का रूप और प्रवाह बदल गया है। इससे मछली पकड़ने का व्यवसाय कठिन होता जा रहा है। इसके चलते अब लोग नोकरियों की तरफ रुख कर रहे हैं। मधुस्मिता के पिता वीरेनदास अब गुवाहाटी की एक वाहन स्पेयर पार्ट कंपनी में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि मैं पिछले तीन.चार सालों से इस कंपनी में काम कर रहा हूं। घर के हालात पहले से थोड़े सुधरे हैं। तनख्वाह तो ज्यादा नहींए लेकिन किसी चीज का अभाव भी नहीं।मधुस्मिता की मांए सुनमिना अपनी बेटी की सहजता और समय की पाबंदी की बहुत सराहना करती है। वह कहती हैं ष्मधुस्मिता पढ़ाईए स्कूल जाने और खेलने में भी समय की बहुत पाबंद है। वह सदैव स्कूल समय पर जाती है और लौटने पर स.समय होमवर्क पूरा कर लेती है।
यद्यपि दास परिवार सीमित साधनों में जीवन बिता रहा है फिर भी यह परिवार मधुस्मिता की पढ़ाई से कोई समझौता नहीं चाहता। उनके लिए शिक्षा कोई विकल्प नहीं जरूरत है। ये लोग शिक्षा को ऐसा आधार मानते हैंए जो भविष्य को संवार सकता है। मधुस्मिता के पिता मानते हैं कि चाहे निजी नौकरी करनी हो या या सरकारीए शिक्षा एक बुनियादी आवश्यकता है। वे नहीं चाहते कि उनकी बेटियां वही कठिनाई झेलेंए जो उन्होंने झेली। वे संकल्पित होते हुए कहते हैं ष्शिक्षा बहुत जरूरी है और मैं कोशिश करूंगा कि इस विषय पर कोई समझौता न हो।ष् हालांकि उनकी आंखों में झलकती चिंता बताती है कि हालात आसान नहीं हैंए लेकिन हौसला मजबूत है। ष्द ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूलष् एक ऐसा विद्यालय है जो बच्चों की नैसर्गिक क्षमताओं को पहचानने और उन्हें निखारने का प्रयास करता है। यह स्कूल विशेष रूप से उस क्षेत्र के रियांग शरणार्थी बच्चों को शिक्षा और विकास का अवसर प्रदान करता है। ऐसा कहा जाता है कि रियांग पहले ऊपरी वर्मा;अब म्यांमारद्ध के शान राज्य से चटगांव पहाड़ी इलाकों और फिर त्रिपुरा के दक्षिणी हिस्से में आए थे। इसी तरहए दूसरे समूहों ने १८वीं शताब्दी के दौरान असम और मिजोरम के रास्ते त्रिपुरा में प्रवेश किया। रियांगए इंडो मंगोलायड नस्ल से संबंध रखते हैं।
काशीरामपाराए त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से लगभग १९० किमीण् दूर बसा एक छोटा.सा गांव हैए जहां अधिकतर मिजोरम से आए रियांग शरणार्थी बसे हैं। इस गांव की यात्रा में आप घुमावदार सड़़कों और घने जंगलों से गुजरते हैं। रास्ते में पसरी चुप्पी को तोड़ती पंछियों की चहचहाहट और कभी.कभी गुजरती जीपों का शोर। जीपें भी इतनी खचाखच भरी होती हैं कि आप देखकर उनकी सुरक्षा के प्रति चिंतित हो उठें। जीप की छत तक पर लोग बैठे होते हैं। पहाड़ी के तल में जम्पुई पहाड़ी की तरफ मुंह करके स्थित है ष्द ग्रेट इंडिया टेलेन्ट स्कूलष्। यह स्कूल ग्रेट इंडिया टेलेन्ट फाउंडेशन की पहल हैए जिसे अक्षय.पात्र का समर्थन प्राप्त है। इसकी स्थापना इस विश्वास के साथ की गई कि भारत की ग्रामीण आबादी में असीम प्रतिभा और क्षमता विद्यमान है। यह एक अंग्रेजी माध्यम स्कूल हैए जो बच्चों की स्वाभाविक रुचियों क्षमताओं की पहचान कर उन्हें पल्लवित करने का कार्य करता है। यह मुख्य रूप से रियांग शरणार्थी बच्चों को शिक्षा प्रदान करता है। इस क्षेत्र में कुल छह शऱणार्थी शिविर हैं। इनमें से नैसिंघपारा और आशापारा शिवरों से ज्यादातर बच्चे आते हैं। यह स्कूल अपने दूसरे शैक्षणिक वर्ष में है और अब तक इसका नामांकन बढ़कर ५५० विद्यार्थियों तक पहुंच चुका है। यहां बच्चों को पाठ्यपुस्तकेंए अभ्यास.पुस्तिकाएं और स्कूल में मध्यान्ह भोजन निःशुल्क दिया जाता है। जल्दी ही स्कूल में एक आवासीय परिसर की व्यवस्था भी की जाएगी जिसमें दो हजार बच्चों के रहने की व्यवस्था होगी।आजकल श्योअर वर्कस इन्फोटेक प्राण् लिण् में काम कर रही हर्षिता ने बताया कि पहले मैं निजी स्कूल में पढ़ती थीए पारिवारिक स्थितियों के कारण मैं वहां से शासकीय विद्यालय में आ गईए लेकिन मैं सचमुच भाग्यशाली थी कि नए स्कूल में आ गई। स्कूल की अनेक विशेषताएं थीं। मगरए इसमें सबसे बड़ी विशेषता भी अक्षय.पात्र का निःशुल्क भोजन। मुझे अक्षय.पात्र का भोजन बहुत पसंद था। कोई निजी विद्यालय इस तरह का भोजन नहीं देता हैए ऐसे में उस एहसास की बात भी नहीं की जा सकती। हर्षिता अपने संस्थान में प्लानिंग कोआर्डिनेटर है।उसने बताया हम लोग बिना नाश्ता किए यानि निराहार स्कूल पहुंचते और ग्यारह बजे मिलने वाले भोजन की बाट जोहते। हमें शनिवार को घी के साथ बिसी बेले भात और शुक्रवार को रसम और चावल दिया जाता। यह सब मेरा पसंदीदा भोजन था। भोजन इतना स्वादिष्टए पौष्टिक और गर्म होता कि इसे लेकर मन में भी कभी मलाल नहीं हुआ। इसके साथ ही हमें रोजाना दूध भी दिया जाताए स्वाभाविक रूप से उसे पीना अत्यंत आनंददायी होता। मैं ही नहींए साथ के सभी बच्चे बड़े आनंद से छककर भोजन करते। अर्थात् अक्षय.पात्र का भोजन तृप्तिदायक होता था।हर्षिता ने बताया जब मैं कक्षा आठवीं में आयी तो मैंने अक्षय.पात्र की स्कालरशिप योजना और अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होने पर शासन की ओर से लेपटॉप दिए जाने की बात सुनी। इस सूचना ने मुझे प्रेरित किया कि मैं अधिकतम परिश्रम कर उतने अंक ले आऊं जिसकी जरूरत मुझे इसका लाभार्थी बना सकती है। इस काम में यानी लगातार अध्ययनरत रहने में मेरे सभी शिक्षकों ने न केवल मुझे प्रोत्साहित कियाए बल्कि अध्ययन में आने वाली हर बाधा को दूर करने में मदद भी की। ऐसा ही व्यवहार रिश्तेदारों ने भी किया। दसवीं कक्षा में तो मेरे शिक्षकों ने सभी विद्यार्थियों की अतिरिक्त कक्षाएं भी लीं और हर कठिनाई को दूर करने में मदद दी। इस भी के अनथक प्रयासों और मदद के कारण ही मैं लगातार आठवींए नवमी और दसवीं कक्षा में प्रावीण्य सूची में आ सकी।कक्षा दसवीं के बाद अक्षय.पात्र ने मुझे स्कालरशिप से लगातार नवाजा। मैं उन सभी दयालु लोगों की नतभाल आभारी हूंए जिन्होंने मुझ जैसे अनेक विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य तक पहुंचने में मदद की।
यह अक्षय.पात्र है जिसने अपने संकल्पों से बच्चों की प्रश्नाकुलता को सहज और गहरा बनाते हुए उत्तर में बदल डाला है। जैसे तिनके.तिनके होकर बिखरने का मुहावरा कदाचित घास का मुहावरा तो नहीं हैए यह तो मनुष्य ने कहीं कभी गढ़ा होगाए वर्ना घास तो सदैव साथ होती हैए पूले में होती है या बाग में होती हैए मगर बिखरती नहीं तिनका.तिनका। इसी तरह बच्चों के हौसलों को इकट्ठा रखने की तजबीज अक्षय.पात्र कर रहा है। वह आस की टहनी पर लटके पत्तों को हरितलवक ही प्रदान नहीं करता उन्हें वृत्तों से मजबूती से जोड़ने का काम भी कता है। कहते हैं.
ष्नफस.नफस में न जिसके बहारें ताजा होष्. जिसकी श्वास.श्वास मेंए जीवन में वसंत न हो।ष्जो रंगों.बू न बिखेरे वो जिंदगी क्या हैष्. और जिसकी जिंदगी में फूल न खिलेंए जिसकी जिंदगी में आल्हाद न होए वह क्या जीवन है। अक्षय.पात्र की मान्यता ही यह है कि हरेक में अद्भुद् महिमा छिपी है। जब तक यह प्रकट न हो जाएए बेचैनी रहेगी। लेकिन यह बेचैनी व्यर्थ नहीं हैए यह जरूरी है। यह सृजनात्मक है। अक्षय.पात्र हरेक बच्चे के भीतर छिपे संकल्पित भावों को उद्घाटित करने में लगा है। बिल्कुल वैसे ही जैसे कहते हैं ष्कस्तुरी कुंडल बसैष्। वह इसी कस्तूरी की याद दिलाने में लगा देश का इकलौता संगठन है।कहते हैं एक नया.नया विक्रेता कंपनी के पुराने और सफल विक्रेता के पास गया। उसने कहा यह काम मेरे बूते का नहीं है। मैं इसके लायक नहीं हूं। मैं जहां भी गया वहां से बे.इज्जती कराके लौटा हूं। पुराने विक्रेता ने कहा.अजीब बात है। मुझे यह सब करते बीस साल हो गए। कई बार लोग मेरी बात सुनने को भी राजी नहीं हुए। कई बार मेरी जिद थी कि मेरी बात सुन ली जाए तो उन्होंने मुझे धक्के देकर बाहर निकलवा दियाए लेकिन किसी ने मेरी बेइज्जती नहीं की। ये अलग.अलग नजरिया है। नजरिये पर काबीज रहना और आगे बढ़ते जाना अक्षय.पात्र के खोजे गए सूत्रों में से एक है।
यह अनसुनी कहानी है सुरेश चौधरी की। सुरेश आज महात्मा गांधी शासकीय विद्यालय जयपुर;राजस्थानद्ध में लाइब्रेरियन है। उसने बताया कि मैं कक्षा आठवीं में थाए जब मध्यान्ह भोजन की शुरूआत हुई। हममें से कई विद्यार्थी उलझन में थे और आश्चर्यचकित भी कि आखिर कैसे सबके लिए एक नियत समय में भोजन तैयार हो जाता है। लेकिन अक्षय.पात्र की रसोई को देखने के बाद हम सभी इससे बेहद प्रभावित हुए। हमने देखा कि रसोई तैयार करने में हाईजीन का जबरदस्त ख्याल रखा जाता है और जो भोजन हमें दिया जाता वह इतना सुस्वादु और पौष्टित होता थाए जितना शायद हमारे घरों में भी नहीं बनता था।रातों.रात सभी बच्चों का भोजन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया। जो भी ऊहापोह थीए वह बदल गई। बसए फिर क्या थाघ् सभी को भोजन में पर्याप्त आनंद आने लगा। कई बात तो हम अपने लंच बाक्स में भोजन लेकर घर भी जातेए ताकि उन्हें बता सकें कि सचमुच हम कितना अच्छा और पौष्टिक भोजन करते हैं।कक्षा बारहवीं में आइआइटी.जेईई परीक्षा के लिए तैयारी कीए लेकिन मैं लक्ष्य संधान करने में वंचित रह गया। मैं हतोत्साहित हो गया और उसकी जगह बीएससी की तैयारी के साथ ही प्रांतीय सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगा। मेरी तैयारी ने गुल खिलाया और मैं लेब असिस्टेंट के लिए चुन लिया गया। इसमें मेरे अनथक परिश्रम का भारी योगदान था। फिर मैने लाइब्रेरियन के लिए डिप्लोमा किया और उसमें भी चुन लिया गया।
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूं कि मैंने अपनी सेवा के तीन वर्ष पूरे कर लिए हैं और जो कल मेरे सहपाठी थे वे आज भी किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। मेरे चाचाजी कहा करते थे कि पांच वर्ष का परिश्रम ५० सालों की सफलता दिला जाता है। मैंने उनकी बात को दिल से लगाया और आज इसे अपने सहपाठियों से कभी.कभार साझा करता हूं।मैं आर्थिक रूप से विपन्न विद्यार्थियों के स्कूल में लाइब्रेरियन हूं। मैंने अक्षय.पात्र के संतुलित और गर्मागर्म भोजन के प्रभाव को देखा। इनके भोजन में आवश्यक पोषक तत्व और मेन्यू की विविधता बच्चों को सभी तरह के आहार से लाभान्वित करती है। इसके साथ ही मैं कहना चाहता हूं कि मेरा आज भी पसंदीदा भोजन खिचड़ी है।धारवाड़ए कर्नाटक के एमण्काम के विद्यार्थी वासवराज का कहना है कि प्री.यूनिवर्सिटी में तो हम टिफिन ले जाते थेए लेकिन स्कूल में हमें अक्षय.पात्र का भोजन मिलता था। हम सभी खुशी.खुशी साथ बैठकर भोजन करते। मेरी पसंदीदा चीजों में चावलए सांभरए दही था। हमें एक सुनिश्चित समय तकरीबन साढ़े दस बजे भोजन परोसा जाता। शनिवार को हमें पुलाव और सांभर मिलता और हममें से ज्यादातर की बांछें खिल जाती। वह आज भी मेरे बचपन के बेहतरीन संस्मरण का हिस्सा है। इसीलिए उसकी याद अब भी आती रहती है।
हम लोग अपने घरों में एक ही तरह का सांभर बनाते हैंए लेकिन अक्षय.पात्र की रसोई में तरह.तरह का सांभर बनाए और परोसे जाते हैं। उनमें मसूर दालए सब्जियां आदि अनेक पोषक तत्वों की भरमार होतीए जो बच्चों के बढ़ने और विकसित होने में मदद करते।
वासवराज ने बतायाए मेरे पास स्कूल के दिनों की अपने सुनहली यादें हैंए वे अब भी यदा.कदा बासंती हवा की तरह पास से गुजरती हैं। उस समय तो यह सब मैं इतनी शिद्दत से समझ नहीं पाता थाए शायद इसलिए कि मैं उतना बड़ा नहीं हुआ थाए फिर वह बात दोस्तों की हो या भोजन कीए उतनी गहराई से समझना नहीं हो पाता था। लेकिन अब वे सभी याद आते हैंए वे दोस्तों की स्वाभाविक उर्मियां या गर्मागर्म भोजन का साथ बैठकर रसास्वादन करना। सब.कुछ।उसने कहा कि मैं इन दिनों एम काम कर रहा हूं। मैं कृषि क्षेत्र में उद्यमी बनने को उत्सुक हूं। चूंकि मेरे माता.पिता किसान हैंए इसलिए थोड़ी बहुत जानकारी तो मुझे है। इसे आप बुनियादी जानकारी कह सकते हैं। मुझे बखूबी पता है कि हम कहां पिछड़ रहे हैंए खासकर किसानी में। मैं निश्चित कृषि.क्षेत्र में नई तकनीक को जुटाना और उसे आरंभ करना चाहता हूं। लेकिन मैं आगे जैसा भी करूं मेरी स्मृति पर अक्षय.पात्र की अमिट छाप है और वह रहेगी।
यह सब सहज या अपने आप नहीं हो जाता। यह भक्ति भाव से किए गए कार्य का प्रक्षेपण है। यह नई पीढ़ी को जगाने की अवस्था है। जैसे गीता में कहा गया ष्या निशा सर्वभूतायां तस्यां जागर्ति संयमीष् वहां भीए उस स्थिति में भी जो जागता हैए वह योगी है। अक्षय.पात्र अधिकांश रूप में आने वाले सिर्फ अपने कार्य से ही प्रसाद ही नहीं वितरित करताए बल्कि उसमें प्रेम.प्रसादी अन्वित होती है।
बेंगलुरु में एक पायलेट प्रोजेक्ट के तहत ब्लाकचेनए आइओटी और डेटा एनालिसिस को भी जोड़ा गया है। डिजिटल थर्मामीटरए हैंड हेल्ड फीडबैक डिवाइस और एआइ आधारित मांग पूर्वानुमान उपकरण यह सुनिश्चित करते हैं कि भोजन पौष्टिकए गर्म और बच्चों की जरूरत के मुताबिक हो और समय पर पहुंचेण्
अक्षय.पात्र ने यह भी दिखाया है कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सेवा.भावना कैसे अनुस्यूत हो सकती है। कैसे जुड़ सकती है। कई रसोईघरों में सोलर पेनल लगाकर भोजन पकानेए पानी गर्म करने और बिजली की जरूरतें पूरी की जा रही हैं। रसोई में बचा हुआ जैविक कचराए बायो गैस में बदला जाता हैए जिससे दोबारा ईधन तैयार होता है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स और कंपोजिट यूनिट की मदद से पानी और कचरे को फिर से उपयोग में लाया जाता है। कस्टम मेड स्टील कंटेनर और ईंधन स्मार्ट ट्रांसपोर्ट वाहन कार्बन फुटप्रिंट कम करते हैं। अक्षय.पात्र का यह हरित माडल स्पष्ट करता है कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवा साथ.साथ चल सकती हैए इसलिए इसे एक साथ निभाया जा सकता है।
विद्यालयों में समय पर एक थाली में परोसा गया भोजन निश्चित ही बच्चों की जीवन दिशा बदल रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह सिर्फ भोजन नहीं बल्कि स्वास्थ्यए शिक्षा और भविष्य का निवेश है। आल्हादित बच्चों के सामने परोसी हुई थाली उनके जीवन में उनके सपनों और भविष्य में बदलाव लाने की प्रक्रिया की शुरुआत है। पीएम पोषण योजना आज भारत की सबसे बड़ी बाल पोषण योजनाओं में से एक है। इसका प्रभाव सिर्फ पोषण तक सीमित नहीं है। यह शिक्षाए सामाजिक समरसताए स्वच्छताए लैंगिक समानताए आत्मविश्वास और सतत विकास की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।
नागार्जुन की कविता है ष्भूखष्
ष्कई दिनों तक चूल्हा रोयाए चक्की रही उदासकई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पासकई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्तकई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्तष्
और नरेश सक्सेना ने कहा..भूख सबसे पहले दिमाग खाती हैउसके बाद आंखेंए फिर जिस्म में बाकी बची चीजों कोबच्चे तो उसे बेहद पसंद हैंजिन्हें वह सबसे पहले और बड़ी तेजी से खाती है।
वस्तुतः भूखा बच्चा पढ़ नहीं सकता। यह एक सीधा और गहरा सच है। पीएम पोषण योजना ने इस समस्या का समाधान किया है। बच्चों को स्कूलों में स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन मिलता है तो स्कूलों में स्वाभाविक रुप से उपस्थित दर बढ़ जाती है। बच्चे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। ड्रापआउट दर कम हो जाती है। इतना ही नहीं बच्चों में एकाग्रता बढ़ती है और उनका शैक्षणिक प्रदर्शन सुधरता है। आज भारत में कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल सिर्फ शिक्षा केंद्र नहींए बल्कि भरोसेमंद भोजन का केंद्र बन चुके हैं।
कु.पोषण हमारे देश की एक जटिल सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या रही है। पीएम पोषण योजना और अक्षय.पात्र फाउंडेशन जैसे संगठनों ने इस दिशा में ठोस और रचनात्मक परिवर्तन किए हैंए जिन्हें देखा और महसूस किया जा सकता है। अक्षय.पात्र कि इस अनथक पहल से बच्चों को आवश्यक कैलोरीए प्रोटीनए आयरन और विटामिन मिलते हैं। स्वाभाविक रूप से इससे बच्चों में थकानए कमजोरी या एनीमिया;रक्ताल्पताद्ध जैसी समस्याएं नहीं होती हैं। उनके मानसिक और शारीरिक विकास में सुधार आता है। इसी से उनकी प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है और स्वास्थ्य में निखार आता है। एक.सा भोजनए एक.सी थाली और कतार में साथ बैठकर भोजन करने से बच्चों में सामाजिक समरसता का विकास होता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना रहा कि जैसे शरीर में अंग निर्माण यह आत्मा करती है वैसे ही राष्ट्र में ऐसी संस्थाएं राष्ट्र की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए निर्मित होती हैं। यदि कारखाना खोल लिया तो जिस प्रकार अपने काम का निर्वाह करने कि लिए उसमें तरह.तरह के विभाग होते हैंए कहीं मशीनए कहीं भवनए कहीं बिक्री उसी प्रकार राष्ट्र भी अनेक प्रकार के विभागए जिन्हें हम संस्थाएं कहते हैंए का निर्माण करता है। संस्थाओं का जन्म राष्ट्र अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता है। बिल्कुल ऐसा हीए प्रायोगिक रूप में अक्षय.पात्र का संचालन हैए जहां जातिगत मनोभावों और भेदभाव के उभरने अथवा पालने की आशंका भी नहीं रहती। वह जो साथ बैठना हैए साथ भोजन करना हैए वह सामूहिकता और समानता की भावना को विकसित करता है। यह सहज होना है। सभी बच्चे वे चाहे जिस आधारभूमि से आए होंए साथ बैठकर अपने अनुभव साझा करते हैं। आप कल्पना कीजिए कि नए भविष्य की नई तस्वीर कैसी होगी। सचमुच यह समतामूलक समाज की नींव होगीए जिसे आप बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर कहे बिना नहीं रह पाएंगे। इसी के समांतर आप उन लाखों महिलाओं को देख पाते हैं जो पीएम पोषण योजना के तहत रसोई से जुड़ी हैं। भोजन पकानेए परोसने और आपूर्ति से जु़ड़ी हजारों महिलाएं आज स्वावलंबन और आत्मसम्मान की राह पर हैं। अक्षय.पात्र ने इन महिलाओं को सिर्फ पसीने की कमाई से ही नहीं जोड़ाए अपने मातृत्व के रेशमी रिश्तों के प्रसार से भी जोड़ा है। इसमें जुड़ी अधिसंख्य महिलाएं मानती और बताती हैं कि घर में तो एक.दो बच्चों के लिए भोजन पकाते थेए मगर यहां तो लाखों बच्चों के लिए भोजन बनता है। इनमें हमारे बच्चे भी होते हैं। यह सब सुकून देता है। काम करने की प्रेरक शक्ति की तरह। यह सब कहना है देश के अनेक स्थानों पर चल रहे अक्षय.पात्र की रसोई से जुड़ी अनेकानेक महिलाओं का।देश में अनेक योजनाएं हैंए पहले भी थींए लेकिन ज्यादातर लोक.कल्याणकारी होने पर भी जमीन पर उनका प्रभाव उम्मीद से कम दिखाई देता है। शिक्षाए स्वास्थ्यए ग्रामीण विकासए महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर सैकड़ों योजनाएं बनींए लेकिन जिस आशय से भी बनीं थींए वह पूरा किसी न किसी तरह से नहीं हुआ। गहराई से देखें तो पाएंगे कि क्रियान्वयन में कमीए पारदर्शिता की समस्या और तकनीक से दूरी वे कारण रहे जिन्होंने योजनाओं को चिरजीवी नहीं बनने दिया। लेकिन जब योजनाएं दृष्टिए दक्षता और दायित्व के साथ लागू होती हैंए तो उन्होंने लायी है। इसे आप अक्षय.पात्र के उदाहरण से समझ सकते हैं। इस संगठन ने महज भोजन ही नहीं परोसाए बल्कि दिखाया है कि अगर नीतियों में नवाचारए तकनीक और सतत विकास की सोच शामिल हो तो लाखों जिंदगियां संवर सकती हैं। अक्षय.पात्र ने दिखाया कि यदि योजना के मूल में सेवा.भावए मानवीय दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प हो तो वह जनांदोलन बन सकती है।
अक्षय.पात्र अपने समूचे व्यवहार में संचालन में पारदर्शी है। यह सिर्फ कहा नहीं जा रहाए इसे देखा जा सकता है। दान प्रबंधन से लेकर फीडबैक सिस्टम तक। नतीजतनए यह लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब होता जा रहा है और यही वजह है कि दानदाताओे की निरंतर भागीदारी ने इसे चार अरबवीं थाली के मुकाम तक पहुंचा दिया। अक्षय.पात्र सरकार की पीएम पोषण योजना का पीपीपी मॉडल हैए जहां सरकारी सहायताए कारपोरेटए सीएसआर और समाजसेवी संस्था का संयोजन एक सशक्त प्रणाली बनाता है। यह बताता है कि सरकारी योजनाओं में गैर.सरकारी दक्षताए तकनीक और पारदर्शिता जुड़ती है तो परिणाम क्रांतिकारी होते हैं। मेरा मानना है कि अन्य योजनाओं में भी यदि इसी प्रकार का मॉडल खड़ा कर दिया जाए तो हम हर कल्याणकारी योजना को जमीन पर पल्लवित होते देख सकेंगे। जरूरी है साफ सोचए तकनीक साथ हो और नीयत नेक हो तो हर सपने को हकीकत में बदला जा सकता है।
इसे देखकर आपको सिर्फ और सिर्फ मीरा का ख्याल आ सकता हैए बल्कि आना चाहिए। वह कहती हैं ष्पिय को पंथ निहारत सिगरीए रैन बिहानी हो।ष् मैने और कुछ नहीं किया। मैंने तो सिर्फ उसकी प्रतीक्षा की। अक्षय.पात्र के संस्थापक मधु पंडित दासए इसका समूचा श्रेय कृष्ण कृपा को देते हैं। वे कहते हैं जब निद्राए जागरण में बदल जाए तब सक कुछ अमृत में बदल जाता है। फिर नया प्रभात आता हैए जीवन में भीए अनुभव में भी। ष्रैन बिहानी हो।ष् रात्रि बीत जाती है और अपने आप प्रभात हो जाता है।
वे कहते हैं एक है विवेक और एक है वासना। विवेक आगे की तरफ खींचता है और वासना पीछे की तरफ। भक्ति से विवेक जगा रहता हैए फिर हर काम आसान हो जाता है। क्यों फिर हर काम की जिम्मेदारी आप कृष्ण पर छोड़ देते हो और कृष्ण पूर्ण हैंए इसलिए किसी काम को अधूरा नहीं छोड़ता। यही कारण है कि आप हर तरफ भरोसे से भरी सुबह देखते हो।मीरा का जिक्र आया तो अक्षय.पात्र की राजस्थान.यात्रा की चर्चा भी होनी चाहिए। अक्षय.पात्र की राजस्थान में दस शाखाएं हैंए जिनमें से नौ केंद्रीकृत और एक विकेंद्रीकृत रसोई है।
शाखा स्थापना वर्ष लाभान्वित बच्चे
जयपुर २००४ १०ए०००
बारां २००५ ६०००
नाथद्वारा २०११ ३५ए०००
जोधपुर २०१४ १०ए०००
अजमेर २०१६ १३ए५००
भीलवाड़ा २०१८ १३ए५००
झालावाड़़ २०१८ ९ए०००
उदयपुर २०१८ १८ए०००
चितौड़ २०१९ ८ए५००
बीकानेर २०१९ २०ए५००
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ये कागजी आंकड़े नहीं आंखन देखी है। २००४ में जयपुर से आरंभ हुई इस रसोई की यात्रा शुरुआत से ही इतनी भव्य नहीं थी। पर्याप्त कठिनाई के साथ १५०० बच्चों का भोजन हाथों से बनाया जाता। सब्जीए चावल बड़े.बड़े भगोने में बनाई जाती। रोटी हाथों से बेली जाती और तबे पर बनाई जाती। फिर ष्कृर्ष्णापणमस्तुष् कहते हुए धीरे.धीरे ५०० रोटी प्रति घंटे बनाने की मशीन लगाई गईए फिर २००० रोटी प्रति घंटे बनाने वाली मशीन का उपयोग किया जा रहा है। इससे प्रदेश के दस जिलों में लगभग ३९०० स्कूलों में २ लाख ५० हजार बच्चों को दैनिक भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
अक्षय.पात्र के राजस्थान आगमन के साथ ही प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बारां जिले में भी अक्षय.पात्र को आरंभ करने का आग्रह किया। जानते ही होंगे कि बारां जिला आर्थिकए शैक्षणिक और सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ा माना जाता रहा है। यहां की किशनगंज और शाहबाद तहसील में सहरिया जनजाति निवास करती हैए जिनका जीवन मजदूरी पर निर्भर करता है। इन्हीं के लिएए इन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए वसुंधराराजे चितिंत थीं और अक्षय.पात्र कटिबद्ध।
सहरिया जनजाति के दंपती दिन भर मजदूरी में लगे रहते हैं और शाम होते ही शराब में खो जाते हैं। इसलिए लापरवाहीए झगड़ा.फसाद इनकी दिनचर्या बन गया। आर्थिक पिछड़ेपन और शराब की वजह से बच्चों को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। माता.पिता के घर से चले जाने के बाद बड़े बच्चे छोटों की देखभाल के लिए घर रह जाते या यहां.वहां आवारागर्दी करते। जो मिला खा लियाए नहीं मिला नहीं खाया। इसलिए ज्यादातर बच्चे कुपोषित होते थे। शिक्षा से इनका नाता नहीं था। शिक्षक इनको जैसे.तैसे बुलाकर ले जाते लेकिन ये ठहरते नहीं थे। इसी घुप्प अंधेरे में आस.किरण के रुप में सरकार ने अक्षय.पात्र को देखा और ९९ गांवों में सेवाभाव से विकेंद्रीकृत रसोई शुरु की। इसके तहत केंद्रीकृत स्टोर भंवरगढ़ गांव के सरकारी भवन में स्थापित किया गया। हर विद्यालय में आवश्यक संसाधनों के साथ इन सभी रसोईघरों में अक्षय.पात्र के वाहनों द्वारा रोजाना काम आने वाली सामग्री का वितरण किया जाता है।हर रसोई में गांव की ही महिलाओं को विशेषकर आदिवासी महिला को लगाया जाता है ताकि उन्हें रोजगार मिल सकें और गांव वाले इस सबसे अपनत्व के साथ जुड़ सकें। आप स्वयं देखकर कहेंगे कि अक्षय.पात्र की स्थापना के बाद से यहां आमूलचूल परिवर्तन आया है। बच्चों का शिक्षा से जुड़ाव अब दबाव नहीं स्वभाव का हिस्सा बन गया है। विद्यालयों में उनका ठहराव बढ़ा है। उनकी समझ बढ़ी है। इस बात को आप बच्चों से मिलकर ही समझ पाएंगे कि कल तक सड़कों पर निरुद्देश्य भटकने वाले ये बच्चे अब बुनियादी बातें ही नहीं जीवन की जरूरी चीजें भी ठीक.ठीक समझने लगे हैं। विद्यालयों में नामांकन बढ़ा है। यह अपने आप नहीं हुआ। अक्षय.पात्र ने नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में अधिक से अधिक बच्चों को विद्यालय लाने के लिए चलचित्र वाहन की सहायता से माता.पिता को प्रोत्साहित किया। धीरे.धीरे बच्चे भी समझ गए कि स्कूल जाने पर ही भोजन मिलेगा। ऐसी समझ के बाद जो बच्चे पहले स्कूल नहीं जाते थेए वे भी जाने लगे। उम्मीद है कि वह दिन दूर नहीं जब शराब की दुर्गंध में जीने वाली जनजाति की कहानियां हौसलों और नई हसरत की नई कहानियों में बदल जाएंगी और ये लोग भी देश की मुख्यधारा में शरीक हो जाएंगे।आज अक्षय.पात्र में १८७ महिला कुक कम हेल्पर काम कर रहे हैं। इनमें से ६० फीसदी सिर्फ सहरिया हैं। अक्षय.पात्र से जुड़ने के बाद से उनके जीवन में सार्थक बदलाव आया है। नियमित रोजगारए साफ.सफाई के प्रति सजगताए नियमित प्रशिक्षण से अन्यान्य कार्यों के प्रति उनमें जागरूकता बढ़ी है।
आप समझें कि किसी भक्त को भगवान के पास नहीं जाना पड़ताए भगवान स्वयं भक्त के पास आते हैं। भक्त को महज पुकारना होता है और कृष्ण चल पड़ते हैं। आप चाहें भी तो कैसे पहुंचेंगे। आपके नन्हें पांव उस तक कैसे पहुंचेंगे। वही आता हैए उतरता है। मधु पंडित दास के लिए यह पूरा आयोजन भक्ति है। निश्चित ही उसका प्रकार है। इसलिए वे किसी वर्ग कोए गांव या अंचल को अपने ध्येय से दूर नहीं मानते। आज सहरिया महिला कुक खाना बनाकर छात्रों में वितरित करने से पूर्व भगवान को भोग लगाती हंए इतना ही नहीं ष्हरे कृष्णए हरे कृष्णए कृष्ण कृष्ण हरे.हरेए हरे राम हरे राम राम.राम हरे.हरेष् महामंत्र के प्रति भी चेतना का विकास भी आदिवासी महिलाओं में देखने को मिलता है। यह निश्चित ही उस सूर्य नमस्कार से जुड़ा हैए जो सूर्य के लिए ही नहीं होता। यह बहुत अर्थवान है। एक घड़ी भर का उपयोग कि हाथ जुड़ जाएंए भाव से झुक जाएंए प्रार्थना से मंत्र से भर जाएं तो कृष्ण की रोशनी बरसने लगती है।
ऐसे और इसी तरह के भावों के साथ राजसमंद जिले के नाथद्वारा में अप्रैल २००६ में निकटवर्ती गांव ओडन में अक्षय.पात्र रसोई का श्रीगणेश हुआ। नाथद्वारा वैष्णव बल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ हैए जहां प्रभु श्रीकृष्ण की बाल रूप में सेवा की जाती है। प्रारंभ में १३५ स्कूलों के सात हजार बच्चों के लिए अस्थायी रुप से सरकार से भवन की सुविधा लेते हुए कार्य शुरू हुआ। यच धर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ नाम से प्रसिद्ध हल्दीघाटी के पास ही स्थित है। भक्ति और शक्ति की धरा मेवाड़ में अक्षय.पात्र का यह पहला प्रयास थाए जिससे आदिवासी क्षेत्र में शुरू की गई मध्यान्ह भोजन योजना जल्दी ही वटवृक्ष बनने लगी और नवंबर २०११ में अत्याधुनिक केंद्रीकृत रसोई के साथ यह सेवा और संगठित और प्रभावशाली हो गई। पहले के रसोईघर में ज्यादातर काम अधिसंख्य महिलाएं हाथों से ही करती थींए स्वाभाविक रूप से उनकी संख्या भी ज्यादा थी। केंद्रीकृत रसोई में हर काम के लिए मशीनें आ गईं तो भी उन महिलाओं को किनारे नहीं किया गया। हटाया नहीं गया। उन्हें उन मशीनों के लिए प्रशिक्षित किया गया और उन्हें रोजगार में बनाए रखा गया। इस अभिनव प्रयोग को अक्षय.पात्र के दूसरे केंद्रों में भी यथावत अपनाया गया। समय के साथ तथा शिक्षकों के अनुरोध पर अन्य विद्यालयों को जोड़ते चले गए। आज तीन ब्लाकों की २३ पंचायतों के ६१० स्कूलों के ३५ हजार बच्चों को प्रतिदिन स्वच्छए पौष्टिक और स्वादिस्ट भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। यह रसोईघर न केवल बच्चों को भरपेट भोजन देता है बल्कि उनके यथोचित पोषण का भी पूरा ध्यान रखता है। यहां परोसे जाने वाले भोजन में रोटीए सांभरए मिक्स दालए कस्तूरी मैथी और हींग फ्लेवर वाला जीरा राइसए मिक्स सब्जीए मीठे चावलए मीठा दलियाए आलू.छोले की सब्जीए खाखरा आदि दिए जाते हैं।
साल २०२० में जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थीए तब अक्षय.पात्र नाथद्वारा की रसोई ने मिसाल कायम कर आसपास की पंचायतों और शहरी क्षेत्रों में जरूरतमंदों को सूखा राशन और तैयार गर्म भोजन पहुंचाया। स्कूली बच्चों को ष्हेपीनेस किटष् दी गई। नाथद्वारा शहर और आसपास के गांवों में स्थापित क्वारंटाइन सेंटर्स पर भर्ती मरीजों को ही नहीं चिकित्सा स्टाफ को भी दोनों समय का भोजन उपलब्ध कराया गया।अक्षय.पात्र भोजन ही नहींए बच्चों के समग्र विकास के लिए भी समर्पित है। लाभान्वित स्कूलों में ष्गुड टच.बेड टचष् जैसे संवेदनशील विषयों पर शिक्षकों और बच्चों को जागरूक किया गया। ष्विश्व स्वरूपमष् के प्रांगण में सरकार द्वारा आयोजित हल्दीघाटी युवा महोत्सव में भी संस्था ने भोजन से व देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। खेल.कूद प्रतियोगिताएं आयोजित कर बच्चों में उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया गया। अक्षय.पात्र ने बच्चों को स्कूल बेगए थालीए जूते और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लैपटाप व टेबलेट भी प्रदान किए हैं। संस्था बच्चों की सेवा के लिए तत्पर तो है ही कटिबद्ध भी है। यह बेहद संतोषजनक है कि संस्था अपने कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की भी चिंता करती है। ऐसे समय में जब संवेदनशीलता में चारो तरफ कमी नजर आती हैए तब संवेदना के प्रति सजगता आपको ढाढस से भर देती है। लगता है मनुष्य की चिंता और सरोकार निर्दयी लगते समय में भी मूल्यवान हैए जो भरोसे से लबालब भर देते हैं कि भविष्य के युवा के पास संवेदना का सूखा नहीं प़ड़ेगा। सभी कर्मचारियों और प्रतिबद्धों के लिए समय.समय पर खेलकूद और यात्राओं का भी आयोजन किया जाता है। साथ हीए उन्हें फूड सेफ्टी से संबंधित नियमित प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस सबसे संस्था स्वमेव सेवाए समर्पण और सामाजिक उत्तरदायित्व का जीवंत उदाहरण बन जाती है। इससे साबित होता है कि यदि कहीं भीए कोई भी नेक इरादों से किसी भी काम में जुट जाए तो वह समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।ठीक इसी संकल्पबोध के साथ अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच बसे भीलों के शहर या पूर्व के वेनिस कहे जाने वाले उदयपुर में २०१८ में केंद्रीकृत रसोई की शुरूआत हुई। ४५ शासकीय विद्यालयों के पांच हजार छात्रों से आगाज हुआ और आज २७५ विद्यालयों के ३५ हजार बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जा रहा है। आप यहां देखकर चमत्कृत रह जाएंगे कि इस अत्याधुनिक रसोई में ४० हजार प्रतिघंटा चपाती बनाने वाली मशीनए १२०० लीटर क्षमता के सब्जी बनाने वाले कूकरए ५०० लीटर क्षमता वाले चावल बनाने वाले कूकरए १००० किली प्रति घंटे चावल सफाई वाली मशीनए १२०० किलो प्रतिघंटा सब्जी काटने वाली मशीन संस्था के लक्ष्य को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए कार्यरत हैं।उदयपुर के आसपास ४० किमी के दायर में ज्यादातर भीलए मीणाए गमेती आदि आदिवासी जनजाति के लोग रहते हैं। यहां बच्चों के लिए भोजन एकरस ही नहीं होता उन्हें उनकी अपेक्षानुसार बदल.बदलकर भोजन दिया जाता है। इसमें पुलावए जीरा राइसए सब्जीयुक्त खिचड़ीए राजस्थानी सांभरए कस्तूरी मेथीयुक्त दालए हिंगदाल के साथ ही रसोई घर की बेकरी में बने कूकिज भी वितरित किए जाते हैं। यह बताता है कि सिर्फ भोजन ही नहींए अक्षय.पात्र का मूल सरोकार बचपन है। इसे ढालना हैए संवारना है और बेहतर भविष्य के नागरिक तैयार करना है।
यह बिल्कुल ऐसा है जैसा मीरा कहती है ष्आप मिलो किरपाकर स्वामीष् भक्त सिर्फ यही कहता है कि कृपा करो। ज्ञानी के पास दावे भी हैं और सवाल भी। उसे सवालों के उत्तर चाहिए। ज्ञानी कहता है कि इतना कुछ कियाए त्यागए तपए ध्यानए साधना इसका प्रत्युत्तर चाहिएए लेकिन भक्त का कोई दावा नहीं। ष्तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासीष्। भक्त के पास आंसू हैंए पुकार हैए प्रार्थना हैए प्यास है। इसमें करुणा भर दो। ष्सा त्वस्मिन परमप्रेम रूपाष् भक्ति ईश्वर के प्रति परम प्रेमरूपा है।ष्अमृतस्वरूपा चष् अमृत स्वरूपा भी है। ष्यल्लब्धता पुमान सिद्धो भवतिए अमृतो भवतिए तृप्तो भवतिष् जिसको पाकर मनुष्य सिद्ध हो जाता हैए अमर और तृप्त हो जाता है;नारद सूक्तद्ध। देवर्षि नारद के अनुसारए समस्त कर्मों को भगवान को अर्पण करना और भगवान का थोड़ा सा भी विस्मरण होने से परम व्याकुल होना भक्ति है। ष्अव्यावृत भजनात्ष् अखंड भक्ति से भक्ति साधन संयम होता है। ष्अनिर्वचनीय प्रेम स्वरूपंष् प्रेम के स्वरूप का बखान नहीं किया जा सकता। ष्मुकास्वादनवत्ष् गूंगे के स्वाद की तरह है। ठीक इसी भावलोक में महाप्रभु चैतन्य की कृष्ण के प्रति उत्कट भक्ति ने चैतन्य भक्ति आंदोलन खड़ा कर दिया। चैतन्य का तो अर्थ ही है चेतनाए जागृतिए जीवनए ज्ञान। इसकी शुरूआत जरूर नवद्वीप ;बंगालद्ध से हुई लेकिन उत्तर भारत में भी भक्ति प्रसार में इसका कोई सानी नहीं। ढोलए झांझ और शरीर की लयबद्ध गति धार्मिक उत्साह का संचार करती रही। अभिप्राय यह है कि अक्षय.पात्र का यह सारा कार्य कृष्ण.भक्ति है। यह अखंड भक्ति है। अटूट संकीर्तन। एक आश्वस्त प्रार्थना है जो न केवल बच्चों को बल्कि इस सबसे जुड़े लोगों को भी तृप्ति देती है। हर बालक में कृष्ण छवि को निहारने का प्रयत्न और अपने हर प्रयास को समर्पित कर देने का भाव मामूली संस्था को शेष सभी से एकदम अलग खड़ा करता है।
एक विश्वासी संकल्प की दुनिया है अक्षय.पात्र। कहते हैं ष्इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूंए मत बुझाओए पांव देखकर दुनिया चलेगी।ष् जो नहीं समझ पा रहे उनकी कठिनाई समझी जा सकती है। उनकी कठिनाई भाषा की कठिनाई है और यह कठिनाई आज की नहीं हैए बरसों.बरस से है। क्योंकि संवाद दो तरह के लोगों में हो रहा है। चाहे कृष्ण.अर्जुन संवाद होए बुद्ध.आनंद संवाद हो या जीसस.ल्यूक का संवाद हो या अक्षय.पात्र व आलोचकों का संवाद हो। यह डायमेट्रिकली अपोजिट है। एकदम भिन्न। फिर भी संवाद जारी है और यकीन है जैसे ल्यूक राजी हो गयाए जैसे आनंद के प्रश्न गिर गए जैसे अर्जुन प्रकाशित हो गया वैसे ही अक्षय.पात्र और इसके समर्पित संन्यासियों से भी उनके आलोचकों को राजी होना होगा। इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते हैं। एक सेठ के पास एक संन्यासी गया। सेठ ने कहा नौकरी करोगे। सेठ चालाक था। तेज.तर्रार और प्रेक्टिकल। उसने सोचा अगर यह मान लेता है तो इसका संन्यास गयाए फिर भी यह ठहर गया तो उतनी बदमाशी तो नहीं करेगाए जितना कोई औसत आदमी करेगा। थोड़े ही समय में संन्यासीए सेठ की हर चालबाजी से वाकिफ हो गया। संन्यासी ने सेठ को तीर्थयात्रा की कहानी सुना.सुनाकर राजी कर लिया यात्रा के लिए। उसने कहा यात्रा की तैयारियां क्या करनी हैघ् संन्यासी ने कहा मैं बताता चलूंगा। जब भी सेठ किसी से गड़़बड़ करताए संन्यासी कह उठता तीर्थयात्रा पर चलना है। जैसे ही वह यह कहता सेठ बेईमानी नहीं कर पाता। धीरे.धीरे एक अंतराल हो गयाए सेठ पूरी तरह बदल गया। एक दिन संन्यासी ने वहां से कदम बढ़ाते हुए पूछा.सेठजी! तीर्थयात्रा पर चलना है। उसने कहा अब क्या करेंगे जाकर अब तो यहीं तीर्थ आ गए हैं। अक्षय.पात्र के संन्यासी इसी तरह लोगों को तैयार करते हैंए इसलिए यह पूरा आयोजन एक धार्मिक उत्सव में बदल गया है। जहां कदाचारए भ्रष्टाचार की आशंका भी नहीं जन्मती।
अमरीका में एक वैज्ञानिक ने प्रयोग किया। उसने एक गमले में वट.वृक्ष लगाया। उसने गमले की मिट्टी नापी। पानी भी डालता को उसका नाप रखता था। वृक्ष बड़ा हो गया तो उसने वृक्ष और गमले को नापा। वृक्ष को अलग से नापा तो हैरान रह गया। वृक्ष तो सैकड़ों पौंड का हो गया और गमले की मिट्टी डेढ़ पौंड कम हुई और वह भी वृक्ष में नहीं गई। यह वृक्ष कहां से आयाघ् इसमें थोड़ा दान मिट्टी काए आकाश काए हवा का और पानी का था। इस सबके बाद भी जिसका पता नहीं चला वह दान शायद कृष्ण का हैए ईश्वर का है। आकाशए पृथ्वीए मिट्टी और चेतना इस सबको ध्येय.निष्ठ विन्यास में व्यक्त करने वाली संस्था है अक्षय.पात्र। ये सिर्फ पदार्थ पर ही काम नहीं करतीए आस्था पर भी करती है।
आज का जो समय है उसे केयर्ड के शब्दों में कहें तो यह पदार्थ को ध्यान से देखने में अत्यंत व्यग्र समय है। ऐसे तीक्ष्ण समय में अक्षय.पात्रए आकाशगंगा हैए जिसमें कोई द्वीप नहीं हैए उदास और बेख्वाब आंखों के लिए जरूरी सपनों की आवश्यक उड़ान। गुवाहाटी ;असमद्ध में हरे कृष्ण आंदोलन विभिन्न क्षेत्रों में अनवरत काम कर रहा है। यह अक्षय.पात्र का ही आनुषांगिक संगठन है। यह भगवत् गीता और श्रीमद्भागवत के आधार पर कृष्ण चेतना को व्यक्त करता है। लोगों में नैतिकए सरल और उदात्त जीवन की प्रेरणा के लिए संलग्न यह संस्थान ष्सब चलें.साथ चलेंष् की भावना से काम कर रहा है। संस्था ने स्वामी प्रभुपाद के शुभेच्छित निर्देश का अनुगमन करते हुए एम्स के लिए ष्प्युअर फॉर क्युअरष् योजना से जुड़ते हुए सभी जरूरतमंदों के लिए ४ फरवरी २०२४ से सात्विक भोजन की शुरुआत की। उन्हें गर्म और पौष्टिक भोजन वितरित किया जाता है। संस्था अक्षय.पात्र के साथ अनेक गतिविधियां भी संचालित करती है। २०.२२ मई २०२४ को श्री श्री लक्ष्मीनरसिंहा प्राण.प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया। प्राण.प्रतिष्ठा दक्षिण भारत के सम्मानित पुजारी के हाथों संपन्न हुआ। कार्यक्रम के कीर्तन और प्रार्थना में हजारों लोगों ने नतभाल भाग लिया। इसी तरह ७ जुलाई २०२४ को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली गई। सुबह ४ण्३० बजे आरंभ हुई कपूर आरती में अनेक विशिष्ट जनों समेत हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लियाए उत्साहपूर्वक सड़कें साफ हुईं। फिर भव्य.दिव्य आरती जिसमें करीब ५ हजार लोगों ने हिस्सेदारी की। सभी ने रात्रि भोज प्रसादम में भी शिकरत की। इसी तरह हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी संस्था के सभी केंद्रों पर सोल्लाह मनाई जाती है। मैं स्वयं गुवाहाटी के ष्पूर्वांचल प्रहरीष् दैनिक समाचार पत्र का संपादक रहा हूं। उस अखबार ने कृष्ण जन्माष्टमी का विवरण देते हुए लिखा कि मंदिरों को भव्य और दिव्य रूप में सजाया गया। नगर के मंदिर ठाकुरवाड़ीए गीता मंदिरए राम मंदिरए श्याम मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। इस पावन अवसर पर महानगर हरे राम.हरे रामए राम.राम हरे हरेए हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण.कृष्ण हरे रहे से गुंजायमान रहा। इस्कान मंदिर गुवाहाटी के अध्यक्ष श्री जीवादास ने पूर्वांचल प्रहरी को बताया कि महोत्सव की शुरुआत प्रातः बेला में मंगल आरती से हुईए इसके बाद दर्शन आरतीए अखंड हरिनाम कीर्तनए भगवान श्रीकृष्ण के संस्कारए संध्या आरतीए पुजारियों और भक्तों द्वारा महाभिषेक किया गया। सच ही तो है कृष्ण कहते हैं मूढ़ मुझे नहीं भजते। फिर कौन भजता है। जिज्ञासुए मुमुक्षुए सात्विक और सदाचरण वाले बुद्धिमान। वे ही समझते हैं कृष्ण की शब्दावली। कर्मए अकर्म और विकर्म। जिसमें कर्ता मौजूद कर्मए जिसमें कर्ता नहीं अकर्मए कर्म और अकर्म के बीच विकर्म यानी ष्विशेष कर्मष्। जैसे आप सांस ले रहेए यह न कर्म है और न अकर्म यह विशेष कर्म है। इसलिए समझने का विषय यह है कि कैसे एक संगठन या संस्था अकर्म तक पहुंचती है। एक.दो नहीं अनेक और वे अपने ध्येय में लगे रहते हैं।
२९ अक्टूबर २०२४ को नीपको ने इस संस्था के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत कैंसर रोगियों को सात्विक भोजन दिया जाना था। इसका उद्देश्य था कि वीए बरूआ कैंसर इंस्टिट्यूटए जो नीपको की सीएसआर स्कीम के तहत थाए वहां जरूरतमंद रोगियों को मदद दी जाए। महज साल भर में ३७ए५०० भोजन वितरित करना था। इसी तरह असम में मानवीय आधार पर क्षयरोग;टीएबीएद्ध से ग्रसित रोगियों में पौष्टिकता की दृष्टि से प्रदेश के पांच जिलों में ५४९१ पौष्टिक किट वितरित किए गए। इसमें विटामिनए मिनरल और अन्य पौष्टिक तत्वों की बहुतायत थी। इन्हें कामरूपए जोरहटए माजुलीए गोलाघाट और नलवारी में वितरित किया गया ताकि उनकीअण् प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ायी जा सके।बण् स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सके।सण् क्षय रोग से उबरने में उनकी मदद की जा सके।समय के बीच अनागत के भय से दुबले हुए जा रहे लोगों के लिए यह और इस जैसे संस्थान आशा का सेतु हैं। आप देखें कि
।२०००।....................................................
यह यात्रा कर्नाटक के बेंगलुरु के पांच स्कूलों के १५०० बच्चों को भोजन कराने से शुरू हुई
...............................................................।२००१।
...............................................................भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मिड.डे मील;एमडीएमद्ध भोजन योजना ;अब पीएम पोषण योजनाद्ध को लागू करने का आदेश दियाए जिससे अक्षय.पात्र के स्कूल भोजन कार्यक्रम को प्रोत्साहन मिला।
...............................................................।२००२।
...............................................................अक्षय.पात्र की रोटी बनाने वाली मशीनें एमडीएम क्षेत्र में तकनीकी नवाचार की दिशा में पहला कदम है।
...............................................................।२००३।
..............................................................बच्चों के लिए एमडीएम कार्यक्रम अक्षरा दासोहा के लिए कर्नाटक सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गएए जिससे अक्षय.पात्र एमडीएम क्षेत्र में सार्वजिनक.निजी भागीदारी शुरू करने वाला पहला गैर सरकारी संगठन बन गया।...............................................................।२००४।
..............................................................इंफोसिस के सहयोग से हुबली में सबसे बड़ा अत्याधुनिक मेगा किचन स्थापित किया गया।
...............................................................।२००५।
...............................................................राजस्थान के बारां के सुदूर इलाके में स्थापित पहले विकेंद्रीकृत रसोई मॉडल के साथ पहुंच संबंधी बाधाओं को दूर किया गया।...............................................................
।२००६।
...............................................................एसी नील्सन ने अक्षय.पात्र के स्कूल लंच कार्यक्रम पर एक अध्ययन कियाए जिसमें पाया गया कि पहल की शुरुआत के बाद से उपस्थिति और नामांकन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
...............................................................।२००७।
...............................................................हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने अक्षय.पात्र पर एक केस स्टडी प्रकाशित की।
...............................................................।२००८।
..............................................................अंतर.राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों ;आइएफआरएसद्ध का अनुपालन करने वाला पहला एनजीओ बन गया।
.भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंटस संस्थान ;आइसीएआइद्ध से एनजीओ क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ वित्तीय रिपोर्टिंग के लिए गोल्ड शील्ड पुरस्कार
...............................................................
।२००९।
...............................................................कुल मिलाकर ५०० मिलियन भोजन परोसने का पहला महत्पूर्ण मील का पत्थर हासिल किया।
...............................................................
।२०१०।
...............................................................विश्व बैंकए स्वीड़िशए अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी;एसआइडीएद्ध और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा शहरी गरीबों के लिए सेवाओं में नवाचार पुरस्कार प्राप्त किया।
...............................................................।२०११।
...............................................................लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में विश्व के सबसे बड़़े स्कूल भोजन कार्यक्रम के रूप में मान्यता प्राप्त।
.तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से प्रशस्ति.पत्र प्राप्त
...............................................................
।२०१२।
...............................................................एक अरबवां संचयी भोजन परोसा गया साथ ही एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया गया
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।२०१३।
...............................................................लगातार पांच वर्षों तक गोल्ड शील्ड पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आइसीएआइ हॉल ऑफ फेम में शामिल होने वाला पहला एनजीओ बना ष्अक्षय.पात्रष्।
पीएम पोषण योजना के लिए राष्ट्रीय संचालन.सह.निगरानी समिति के सदस्य रुप में नामित
...............................................................
।२०१४।
...............................................................खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्रणाली ;एफएसक्यूएसद्ध के कुशल प्रबंधन के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए सीआइआइ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया।.अक्षय.पात्र को सीआइआइ;भारतीय उद्योग परिसंघद्ध द्वारा एशियाई मेक ;सर्वाधिक प्रशंसित ज्ञान उद्यमद्ध पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
...............................................................।२०१६।
...............................................................तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की उपस्थिति में आयोजित एक कार्यक्रम में २ बिलियन संचयी भोजन परोसा गया।
...............................................................
।२०१७।
...............................................................रियांग समुदाय के बच्चों को समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए काशिरामपाराए त्रिपुरा में ग्रेट इंडियन टेलेंट स्कूल का उद्घाटना।...............................................................।२०१८।
..............................................................देश के तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीराम नाथ कोविंद से बाल कल्याण के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया।
.केरल में बाढ़ के दौरान मानवीय खाद्य राहत सहायता प्रदान की गई।
..............................................................।२०१९।
...............................................................प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में ३ बिलियन संचयी भोजन की उपलब्धि का स्मरण किया गया।
.नाश्ते की पहलए कलईउनावुथीत्तम के लिए ग्रेटर चेन्नई कारपोरेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर।.तत्कालीन राष्ट्रपति श्री कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गांधी शांति पुरस्कार २०१६ प्राप्त किया।
...............................................................
।२०२०।
..............................................................कोविड १९ महामारी से प्रभावित लोगों को पका हुआ भोजन और राहत किट के रूप में खाद्य राहत सामग्री निरंतर वितरित की गई। ३१ दिसंबर २०२० तक ११ करोड़ से अधिक भोजन परोसा गया।
...............................................................
।२०२१।
...............................................................कोविड.१९ खाद्य प्रयासों के तहत २० करोड़ संचयी भोजन परोसने की उपलब्धि हासिल की।
.भारतीय विज्ञान संस्थान ;आइआइएससीद्ध के साथ साझेदारी कर अक्षय.पात्र रिसर्च लैब का गठन किया गया
..............................................................।२०२२।
..............................................................अक्षय.पात्र को न्याय संगतए समतामूलक और टिकाऊ भविष्य की ओर अग्रसर करने के लिए सामाजिक भलाई और प्रभाव के लिए महात्मा गांधी पुरस्कार मिला।
.प्रत्येक स्कूल दिवस में २ मिलियन बच्चों को सेवा प्रदान करने की उपलब्धि हासिल की।
...............................................................
।२०२३।
...............................................................बाजरा मंत्रः भारत की जी.२० अध्यक्षता का पाक.कला का मुख्य बिंदु में विशेष रूप से प्रदर्शित.सीएसआर जर्नल द्वारा भारत के शीर्ष १० एनजीओ में शामिल
...............................................................
।२०२४।
...............................................................अक्षय.पात्र के ४ बिलियन;अरबद्ध भोजन वितरण की उपलब्धि का न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्मरण किया गया।...............................................................
यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया हैए एक तरह का तप । यही कारण है देश के सुदूर अंचलों तक जहां अमूमन संस्थाएं जाने का साहस नहीं करती थींए अक्षय.पात्र और उसके साथी संगठन वहां भी पहुंचे हैं। मैं स्वयं उत्तरी त्रिपुरा के काशिरामपारा गया हूं। अगरतला से १९० किमीण् दूर घने जंगलों से घिरे परिवेश में बसा है। यहां की रियांग समुदाय के बच्चों में शिक्षा का उद्देश्य भरने का संकल्प ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल के जरिए संस्था कर रही है। यह सूचना घटना की नहीं शिक्षा क्रांति की है। रियांग वस्तुतः मिजोरम से विस्थापित समुदाय है। ये मुख्यतः कोकबोरब और ष्रू भाषा बोलते हैं। तीस हजार से ज्यादा लोग इस समुदाय के आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। काशिरामपारा में ही ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल है। यह स्कूल रियांग समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा और बेहतर जीवन जीने के अवसर प्रदान करता है। इसे आप जाकर देख सकते हैं कि घाटियों और पहाड़ियों को पारकर स्कूल पहुंचने वाले बच्चों में अध्ययन की ललक जगाने का काम इस स्वाभाविक अंदाज में हुआ कि आज तकरीबन ७०० बच्चे प्रतिदिन पहुंचते हैं। इन्हें अंग्रेजी माध्यम में मुफ्त शिक्षा के अलावाए मुफ्त पाठ्य पुस्तकेंए स्टेशनरीए गणवेश और जूते भी मुफ्त में दिए जाते हैं। स्पष्ट है कि संस्था हर बच्चे के भोजन के अधिकार और शिक्षा के अधिकार को कायम रखते हुए सतत विकास लक्ष्यों;एसडीजीद्ध की प्राप्ति में योगदान देना चाहती है। जैसे पौष्टिक भोजन के वादे के माध्यम से भुखमरी को समाप्त करना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना। इसके अलावा यह प्रयास अप्रत्यक्ष रूप से अन्य सतत विकास लक्ष्यों में योगदान देता हैए जिनमें लोगों के लिए अच्छा स्वास्थ्यए कल्याण के साथ ही असमानताओं को कम करना है। निसंदेह यह स्कूल एक दिन शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से व्यापक ग्रामीण विकास की विशेषताओं वाला विशाल शिक्षण समुदाय होगा। संस्था हरेकृष्ण मंदिर और अक्षय.पात्र के सहयोग से इस सबके साथ बच्चों में वैदिक संस्कार दे रही है। अक्षय.पात्र फाउंडेशन और हरे कृष्ण आंदोलन असम के अध्यक्ष जनार्दनदास मूलतः इसके आर्किटेक्ट हैं।
जहां वातायन की हवा गीत नहीं गाती थीए जहां मुर्झाये हुए चेहरेए हहराते पेड़ों को देखकर खुश नहीं हो पाते थेए वहां के बच्चों में उनके चेहरे पर सुर्ख गुलाब की आभा का पूरा श्रेय स्वामी जनार्दन दास को जाता है। आपके ही मार्गदर्शन में परियोजना के मुख्य प्रशासक शुभांशु देव ;सेवानिवृत्ता आइआरएसद्ध समूचे कार्यक्रम को विचार.आचार को पूर्ण समपर्ण से क्रियान्वित करने में लगे हैं। शुभांशु देव से त्रिपुरा प्रवास के समय भेंट हुई। उन्होंने बारीकी से रियांग समुदायए उनके लोकस्वरए लोकगीतए नृत्य और भाषा.शैली के अलावा क्षेत्र में अन्य विकास कार्यों की जानकारी भी दी और अवलोकन भी कराया। चिलचिलाती धूप थी उस दिन। घने पेड़ों से छनकर आती धूप भी बहुत तीखी थीए लेकिन स्कूल में बच्चों की उपस्थिति शत.प्रतिशत थी। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए। भजन गाएए नृत्य किए। ये बच्चे समूची वर्णमाला की तरह थे। इंसानी मुहब्बत की अबोली लेकिन आंशिक घोषणाएं। यह सब देखकर बड़ा सुकून मिला कि ढ़िढोरची विज्ञापनों के दौर में भी उम्मीदें जिंदा रखने की कवायदें जारी हैं। निःशुल्क शिक्षाए भोजनए कपड़ेए किताबेंए वाहन सुविधा सभी बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही है। निश्चित ही ऐसी पहलें भरोसे की पहाड़ पर लालटेन का काम करती हैं। यदि सरकार और समाज ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करते रहें तो किसी भी बच्चे का क्षितिज न दूर होगा न धूमिल।
काशिरामपारा के इस स्कूल की खासियत यह है कि यहां न केवल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती हैए बल्कि संस्कृत आधारित वैदिक मूल्य शिक्षा भी दी जाती है। इसमें भगवतगीता पाठ और तुलसी पूजा शामिल है। अर्थात् आधुनिक शिक्षा के साथ.साथ सनातन संस्कृतिए नैतिक शिक्षा और भारतीय मूल्यों की गहराई से शिक्षा दी जा रही है। अक्षय.पात्र फाउंडेशनए देश भर में करो़ड़ों बच्चों को पौष्टिक भोजन देने में अग्रणी हैं यहा भी दोपहर का भोजन निःशुल्क उपलब्ध करा रहा है। हरेकृष्ण मंदिर के संत और शिक्षक बच्चों को आध्यात्मिक और चारित्रिक उन्नति के लिए विशेष प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसलिए माना जाना चाहिए कि यह स्कूल केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहींए बल्कि सामाजिक आंदोलन बन चुका है। ग्रामीण समुदाय के अनेक अभिभावकों ने इस यात्रा में बताया कि उनके बच्चों को जो जीवन यहां मिला हैए वह कभी सपने में भी संभव नहीं लगता था।
बेंगलुरु में एक पायलेट प्रोजेक्ट के तहत ब्लाकचेनए आइओटी और डेटा एनालिसिस को भी जोड़ा गया है। डिजिटल थर्मामीटरए हैंड हेल्ड फीडबैक डिवाइस और एआइ आधारित मांग पूर्वानुमान उपकरण यह सुनिश्चित करते हैं कि भोजन पौष्टिकए गर्म और बच्चों की जरूरत के मुताबिक हो और समय पर पहुंचेण्
अक्षय.पात्र ने यह भी दिखाया है कि पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सेवा.भावना कैसे अनुस्यूत हो सकती है। कैसे जुड़ सकती है। कई रसोईघरों में सोलर पेनल लगाकर भोजन पकानेए पानी गर्म करने और बिजली की जरूरतें पूरी की जा रही हैं। रसोई में बचा हुआ जैविक कचराए बायो गैस में बदला जाता हैए जिससे दोबारा ईधन तैयार होता है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स और कंपोजिट यूनिट की मदद से पानी और कचरे को फिर से उपयोग में लाया जाता है। कस्टम मेड स्टील कंटेनर और ईंधन स्मार्ट ट्रांसपोर्ट वाहन कार्बन फुटप्रिंट कम करते हैं। अक्षय.पात्र का यह हरित माडल स्पष्ट करता है कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सेवा साथ.साथ चल सकती हैए इसलिए इसे एक साथ निभाया जा सकता है।
विद्यालयों में समय पर एक थाली में परोसा गया भोजन निश्चित ही बच्चों की जीवन दिशा बदल रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि यह सिर्फ भोजन नहीं बल्कि स्वास्थ्यए शिक्षा और भविष्य का निवेश है। आल्हादित बच्चों के सामने परोसी हुई थाली उनके जीवन में उनके सपनों और भविष्य में बदलाव लाने की प्रक्रिया की शुरुआत है। पीएम पोषण योजना आज भारत की सबसे बड़ी बाल पोषण योजनाओं में से एक है। इसका प्रभाव सिर्फ पोषण तक सीमित नहीं है। यह शिक्षाए सामाजिक समरसताए स्वच्छताए लैंगिक समानताए आत्मविश्वास और सतत विकास की दिशा में एक प्रभावशाली कदम है।
नागार्जुन की कविता है ष्भूखष्
ष्कई दिनों तक चूल्हा रोयाए चक्की रही उदासकई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पासकई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्तकई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्तष्
और नरेश सक्सेना ने कहा..भूख सबसे पहले दिमाग खाती हैउसके बाद आंखेंए फिर जिस्म में बाकी बची चीजों कोबच्चे तो उसे बेहद पसंद हैंजिन्हें वह सबसे पहले और
बड़ी तेजी से खाती है।
वस्तुतः भूखा बच्चा पढ़ नहीं सकता। यह एक सीधा और गहरा सच है। पीएम पोषण योजना ने इस समस्या का समाधान किया है। बच्चों को स्कूलों में स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन मिलता है तो स्कूलों में स्वाभाविक रुप से उपस्थित दर बढ़ जाती है। बच्चे पढ़ाई में ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। ड्रापआउट दर कम हो जाती है। इतना ही नहीं बच्चों में एकाग्रता बढ़ती है और उनका शैक्षणिक प्रदर्शन सुधरता है। आज भारत में कई ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल सिर्फ शिक्षा केंद्र नहींए बल्कि भरोसेमंद भोजन का केंद्र बन चुके हैं।
कु.पोषण हमारे देश की एक जटिल सामाजिक और स्वास्थ्य समस्या रही है। पीएम पोषण योजना और अक्षय.पात्र फाउंडेशन जैसे संगठनों ने इस दिशा में ठोस और रचनात्मक परिवर्तन किए हैंए जिन्हें देखा और महसूस किया जा सकता है। अक्षय.पात्र कि इस अनथक पहल से बच्चों को आवश्यक कैलोरीए प्रोटीनए आयरन और विटामिन मिलते हैं। स्वाभाविक रूप से इससे बच्चों में थकानए कमजोरी या एनीमिया;रक्ताल्पताद्ध जैसी समस्याएं नहीं होती हैं। उनके मानसिक और शारीरिक विकास में सुधार आता है। इसी से उनकी प्रतिरोधक क्षमता में बढ़ोतरी होती है और स्वास्थ्य में निखार आता है। एक.सा भोजनए एक.सी थाली और कतार में साथ बैठकर भोजन करने से बच्चों में सामाजिक समरसता का विकास होता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना रहा कि जैसे शरीर में अंग निर्माण यह आत्मा करती है वैसे ही राष्ट्र में ऐसी संस्थाएं राष्ट्र की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए निर्मित होती हैं। यदि कारखाना खोल लिया तो जिस प्रकार अपने काम का निर्वाह करने कि लिए उसमें तरह.तरह के विभाग होते हैंए कहीं मशीनए कहीं भवनए कहीं बिक्री उसी प्रकार राष्ट्र भी अनेक प्रकार के विभागए जिन्हें हम संस्थाएं कहते हैंए का निर्माण करता है। संस्थाओं का जन्म राष्ट्र अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए करता है। बिल्कुल ऐसा हीए प्रायोगिक रूप में अक्षय.पात्र का संचालन हैए जहां जातिगत मनोभावों और भेदभाव के उभरने अथवा पालने की आशंका भी नहीं रहती। वह जो साथ बैठना हैए साथ भोजन करना हैए वह सामूहिकता और समानता की भावना को विकसित करता है। यह सहज होना है। सभी बच्चे वे चाहे जिस आधारभूमि से आए होंए साथ बैठकर अपने अनुभव साझा करते हैं। आप कल्पना कीजिए कि नए भविष्य की नई तस्वीर कैसी होगी। सचमुच यह समतामूलक समाज की नींव होगीए जिसे आप बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर कहे बिना नहीं रह पाएंगे। इसी के समांतर आप उन लाखों महिलाओं को देख पाते हैं जो पीएम पोषण योजना के तहत रसोई से जुड़ी हैं। भोजन पकानेए परोसने और आपूर्ति से जु़ड़ी हजारों महिलाएं आज स्वावलंबन और आत्मसम्मान की राह पर हैं। अक्षय.पात्र ने इन महिलाओं को सिर्फ पसीने की कमाई से ही नहीं जोड़ाए अपने मातृत्व के रेशमी रिश्तों के प्रसार से भी जोड़ा है। इसमें जुड़ी अधिसंख्य महिलाएं मानती और बताती हैं कि घर में तो एक.दो बच्चों के लिए भोजन पकाते थेए मगर यहां तो लाखों बच्चों के लिए भोजन बनता है। इनमें हमारे बच्चे भी होते हैं। यह सब सुकून देता है। काम करने की प्रेरक शक्ति की तरह। यह सब कहना है देश के अनेक स्थानों पर चल रहे अक्षय.पात्र की रसोई से जुड़ी अनेकानेक महिलाओं का।देश में अनेक योजनाएं हैंए पहले भी थींए लेकिन ज्यादातर लोक.कल्याणकारी होने पर भी जमीन पर उनका प्रभाव उम्मीद से कम दिखाई देता है। शिक्षाए स्वास्थ्यए ग्रामीण विकासए महिला सशक्तिकरण जैसे विषयों पर सैकड़ों योजनाएं बनींए लेकिन जिस आशय से भी बनीं थींए वह पूरा किसी न किसी तरह से नहीं हुआ। गहराई से देखें तो पाएंगे कि क्रियान्वयन में कमीए पारदर्शिता की समस्या और तकनीक से दूरी वे कारण रहे जिन्होंने योजनाओं को चिरजीवी नहीं बनने दिया। लेकिन जब योजनाएं दृष्टिए दक्षता और दायित्व के साथ लागू होती हैंए तो उन्होंने लायी है। इसे आप अक्षय.पात्र के उदाहरण से समझ सकते हैं। इस संगठन ने महज भोजन ही नहीं परोसाए बल्कि दिखाया है कि अगर नीतियों में नवाचारए तकनीक और सतत विकास की सोच शामिल हो तो लाखों जिंदगियां संवर सकती हैं। अक्षय.पात्र ने दिखाया कि यदि योजना के मूल में सेवा.भावए मानवीय दृष्टिकोण और दृढ़ संकल्प हो तो वह जनांदोलन बन सकती है।
अक्षय.पात्र अपने समूचे व्यवहार में संचालन में पारदर्शी है। यह सिर्फ कहा नहीं जा रहाए इसे देखा जा सकता है। दान प्रबंधन से लेकर फीडबैक सिस्टम तक। नतीजतनए यह लोगों का भरोसा जीतने में कामयाब होता जा रहा है और यही वजह है कि दानदाताओे की निरंतर भागीदारी ने इसे चार अरबवीं थाली के मुकाम तक पहुंचा दिया। अक्षय.पात्र सरकार की पीएम पोषण योजना का पीपीपी मॉडल हैए जहां सरकारी सहायताए कारपोरेटए सीएसआर और समाजसेवी संस्था का संयोजन एक सशक्त प्रणाली बनाता है। यह बताता है कि सरकारी योजनाओं में गैर.सरकारी दक्षताए तकनीक और पारदर्शिता जुड़ती है तो परिणाम क्रांतिकारी होते हैं। मेरा मानना है कि अन्य योजनाओं में भी यदि इसी प्रकार का मॉडल खड़ा कर दिया जाए तो हम हर कल्याणकारी योजना को जमीन पर पल्लवित होते देख सकेंगे। जरूरी है साफ सोचए तकनीक साथ हो और नीयत नेक हो तो हर सपने को हकीकत में बदला जा सकता है।
इसे देखकर आपको सिर्फ और सिर्फ मीरा का ख्याल आ सकता हैए बल्कि आना चाहिए। वह कहती हैं ष्पिय को पंथ निहारत सिगरीए रैन बिहानी हो।ष् मैने और कुछ नहीं किया। मैंने तो सिर्फ उसकी प्रतीक्षा की। अक्षय.पात्र के संस्थापक मधु पंडित दासए इसका समूचा श्रेय कृष्ण कृपा को देते हैं। वे कहते हैं जब निद्राए जागरण में बदल जाए तब सक कुछ अमृत में बदल जाता है। फिर नया प्रभात आता हैए जीवन में भीए अनुभव में भी। ष्रैन बिहानी हो।ष् रात्रि बीत जाती है और अपने आप प्रभात हो जाता है।
वे कहते हैं एक है विवेक और एक है वासना। विवेक आगे की तरफ खींचता है और वासना पीछे की तरफ। भक्ति से विवेक जगा रहता हैए फिर हर काम आसान हो जाता है। क्यों फिर हर काम की जिम्मेदारी आप कृष्ण पर छोड़ देते हो और कृष्ण पूर्ण हैंए इसलिए किसी काम को अधूरा नहीं छोड़ता। यही कारण है कि आप हर तरफ भरोसे से भरी सुबह देखते हो।मीरा का जिक्र आया तो अक्षय.पात्र की राजस्थान.यात्रा की चर्चा भी होनी चाहिए। अक्षय.पात्र की राजस्थान में दस शाखाएं हैंए जिनमें से नौ केंद्रीकृत और एक विकेंद्रीकृत रसोई है।
शाखा स्थापना वर्ष लाभान्वित बच्चे
जयपुर २००४ १०ए०००
बारां २००५ ६०००
नाथद्वारा २०११ ३५ए०००
जोधपुर २०१४ १०ए०००
अजमेर २०१६ १३ए५००
भीलवाड़ा २०१८ १३ए५००
झालावाड़़ २०१८ ९ए०००
उदयपुर २०१८ १८ए०००
चितौड़ २०१९ ८ए५००
बीकानेर २०१९ २०ए५००
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ये कागजी आंकड़े नहीं आंखन देखी है। २००४ में जयपुर से आरंभ हुई इस रसोई की यात्रा शुरुआत से ही इतनी भव्य नहीं थी। पर्याप्त कठिनाई के साथ १५०० बच्चों का भोजन हाथों से बनाया जाता। सब्जीए चावल बड़े.बड़े भगोने में बनाई जाती। रोटी हाथों से बेली जाती और तबे पर बनाई जाती। फिर ष्कृर्ष्णापणमस्तुष् कहते हुए धीरे.धीरे ५०० रोटी प्रति घंटे बनाने की मशीन लगाई गईए फिर २००० रोटी प्रति घंटे बनाने वाली मशीन का उपयोग किया जा रहा है। इससे प्रदेश के दस जिलों में लगभग ३९०० स्कूलों में २ लाख ५० हजार बच्चों को दैनिक भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
अक्षय.पात्र के राजस्थान आगमन के साथ ही प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने बारां जिले में भी अक्षय.पात्र को आरंभ करने का आग्रह किया। जानते ही होंगे कि बारां जिला आर्थिकए शैक्षणिक और सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ा माना जाता रहा है। यहां की किशनगंज और शाहबाद तहसील में सहरिया जनजाति निवास करती हैए जिनका जीवन मजदूरी पर निर्भर करता है। इन्हीं के लिएए इन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए वसुंधराराजे चितिंत थीं और अक्षय.पात्र कटिबद्ध।
सहरिया जनजाति के दंपती दिन भर मजदूरी में लगे रहते हैं और शाम होते ही शराब में खो जाते हैं। इसलिए लापरवाहीए झगड़ा.फसाद इनकी दिनचर्या बन गया। आर्थिक पिछड़ेपन और शराब की वजह से बच्चों को दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। माता.पिता के घर से चले जाने के बाद बड़े बच्चे छोटों की देखभाल के लिए घर रह जाते या यहां.वहां आवारागर्दी करते। जो मिला खा लियाए नहीं मिला नहीं खाया। इसलिए ज्यादातर बच्चे कुपोषित होते थे। शिक्षा से इनका नाता नहीं था। शिक्षक इनको जैसे.तैसे बुलाकर ले जाते लेकिन ये ठहरते नहीं थे। इसी घुप्प अंधेरे में आस.किरण के रुप में सरकार ने अक्षय.पात्र को देखा और ९९ गांवों में सेवाभाव से विकेंद्रीकृत रसोई शुरु की। इसके तहत केंद्रीकृत स्टोर भंवरगढ़ गांव के सरकारी भवन में स्थापित किया गया। हर विद्यालय में आवश्यक संसाधनों के साथ इन सभी रसोईघरों में अक्षय.पात्र के वाहनों द्वारा रोजाना काम आने वाली सामग्री का वितरण किया जाता है।हर रसोई में गांव की ही महिलाओं को विशेषकर आदिवासी महिला को लगाया जाता है ताकि उन्हें रोजगार मिल सकें और गांव वाले इस सबसे अपनत्व के साथ जुड़ सकें। आप स्वयं देखकर कहेंगे कि अक्षय.पात्र की स्थापना के बाद से यहां आमूलचूल परिवर्तन आया है। बच्चों का शिक्षा से जुड़ाव अब दबाव नहीं स्वभाव का हिस्सा बन गया है। विद्यालयों में उनका ठहराव बढ़ा है। उनकी समझ बढ़ी है। इस बात को आप बच्चों से मिलकर ही समझ पाएंगे कि कल तक सड़कों पर निरुद्देश्य भटकने वाले ये बच्चे अब बुनियादी बातें ही नहीं जीवन की जरूरी चीजें भी ठीक.ठीक समझने लगे हैं। विद्यालयों में नामांकन बढ़ा है। यह अपने आप नहीं हुआ। अक्षय.पात्र ने नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में अधिक से अधिक बच्चों को विद्यालय लाने के लिए चलचित्र वाहन की सहायता से माता.पिता को प्रोत्साहित किया। धीरे.धीरे बच्चे भी समझ गए कि स्कूल जाने पर ही भोजन मिलेगा। ऐसी समझ के बाद जो बच्चे पहले स्कूल नहीं जाते थेए वे भी जाने लगे। उम्मीद है कि वह दिन दूर नहीं जब शराब की दुर्गंध में जीने वाली जनजाति की कहानियां हौसलों और नई हसरत की नई कहानियों में बदल जाएंगी और ये लोग भी देश की मुख्यधारा में शरीक हो जाएंगे।आज अक्षय.पात्र में १८७ महिला कुक कम हेल्पर काम कर रहे हैं। इनमें से ६० फीसदी सिर्फ सहरिया हैं। अक्षय.पात्र से जुड़ने के बाद से उनके जीवन में सार्थक बदलाव आया है। नियमित रोजगारए साफ.सफाई के प्रति सजगताए नियमित प्रशिक्षण से अन्यान्य कार्यों के प्रति उनमें जागरूकता बढ़ी है।
आप समझें कि किसी भक्त को भगवान के पास नहीं जाना पड़ताए भगवान स्वयं भक्त के पास आते हैं। भक्त को महज पुकारना होता है और कृष्ण चल पड़ते हैं। आप चाहें भी तो कैसे पहुंचेंगे। आपके नन्हें पांव उस तक कैसे पहुंचेंगे। वही आता हैए उतरता है। मधु पंडित दास के लिए यह पूरा आयोजन भक्ति है। निश्चित ही उसका प्रकार है। इसलिए वे किसी वर्ग कोए गांव या अंचल को अपने ध्येय से दूर नहीं मानते। आज सहरिया महिला कुक खाना बनाकर छात्रों में वितरित करने से पूर्व भगवान को भोग लगाती हंए इतना ही नहीं ष्हरे कृष्णए हरे कृष्णए कृष्ण कृष्ण हरे.हरेए हरे राम हरे राम राम.राम हरे.हरेष् महामंत्र के प्रति भी चेतना का विकास भी आदिवासी महिलाओं में देखने को मिलता है। यह निश्चित ही उस सूर्य नमस्कार से जुड़ा हैए जो सूर्य के लिए ही नहीं होता। यह बहुत अर्थवान है। एक घड़ी भर का उपयोग कि हाथ जुड़ जाएंए भाव से झुक जाएंए प्रार्थना से मंत्र से भर जाएं तो कृष्ण की रोशनी बरसने लगती है।
ऐसे और इसी तरह के भावों के साथ राजसमंद जिले के नाथद्वारा में अप्रैल २००६ में निकटवर्ती गांव ओडन में अक्षय.पात्र रसोई का श्रीगणेश हुआ। नाथद्वारा वैष्णव बल्लभ संप्रदाय की प्रधान पीठ हैए जहां प्रभु श्रीकृष्ण की बाल रूप में सेवा की जाती है। प्रारंभ में १३५ स्कूलों के सात हजार बच्चों के लिए अस्थायी रुप से सरकार से भवन की सुविधा लेते हुए कार्य शुरू हुआ। यच धर्मोपल्ली ऑफ मेवाड़ नाम से प्रसिद्ध हल्दीघाटी के पास ही स्थित है। भक्ति और शक्ति की धरा मेवाड़ में अक्षय.पात्र का यह पहला प्रयास थाए जिससे आदिवासी क्षेत्र में शुरू की गई मध्यान्ह भोजन योजना जल्दी ही वटवृक्ष बनने लगी और नवंबर २०११ में अत्याधुनिक केंद्रीकृत रसोई के साथ यह सेवा और संगठित और प्रभावशाली हो गई। पहले के रसोईघर में ज्यादातर काम अधिसंख्य महिलाएं हाथों से ही करती थींए स्वाभाविक रूप से उनकी संख्या भी ज्यादा थी। केंद्रीकृत रसोई में हर काम के लिए मशीनें आ गईं तो भी उन महिलाओं को किनारे नहीं किया गया। हटाया नहीं गया। उन्हें उन मशीनों के लिए प्रशिक्षित किया गया और उन्हें रोजगार में बनाए रखा गया। इस अभिनव प्रयोग को अक्षय.पात्र के दूसरे केंद्रों में भी यथावत अपनाया गया। समय के साथ तथा शिक्षकों के अनुरोध पर अन्य विद्यालयों को जोड़ते चले गए। आज तीन ब्लाकों की २३ पंचायतों के ६१० स्कूलों के ३५ हजार बच्चों को प्रतिदिन स्वच्छए पौष्टिक और स्वादिस्ट भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। यह रसोईघर न केवल बच्चों को भरपेट भोजन देता है बल्कि उनके यथोचित पोषण का भी पूरा ध्यान रखता है। यहां परोसे जाने वाले भोजन में रोटीए सांभरए मिक्स दालए कस्तूरी मैथी और हींग फ्लेवर वाला जीरा राइसए मिक्स सब्जीए मीठे चावलए मीठा दलियाए आलू.छोले की सब्जीए खाखरा आदि दिए जाते हैं।
साल २०२० में जब पूरी दुनिया कोविड महामारी से जूझ रही थीए तब अक्षय.पात्र नाथद्वारा की रसोई ने मिसाल कायम कर आसपास की पंचायतों और शहरी क्षेत्रों में जरूरतमंदों को सूखा राशन और तैयार गर्म भोजन पहुंचाया। स्कूली बच्चों को ष्हेपीनेस किटष् दी गई। नाथद्वारा शहर और आसपास के गांवों में स्थापित क्वारंटाइन सेंटर्स पर भर्ती मरीजों को ही नहीं चिकित्सा स्टाफ को भी दोनों समय का भोजन उपलब्ध कराया गया।अक्षय.पात्र भोजन ही नहींए बच्चों के समग्र विकास के लिए भी समर्पित है। लाभान्वित स्कूलों में ष्गुड टच.बेड टचष् जैसे संवेदनशील विषयों पर शिक्षकों और बच्चों को जागरूक किया गया। ष्विश्व स्वरूपमष् के प्रांगण में सरकार द्वारा आयोजित हल्दीघाटी युवा महोत्सव में भी संस्था ने भोजन से व देकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। खेल.कूद प्रतियोगिताएं आयोजित कर बच्चों में उत्साह और आत्मविश्वास का संचार किया गया। अक्षय.पात्र ने बच्चों को स्कूल बेगए थालीए जूते और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लैपटाप व टेबलेट भी प्रदान किए हैं। संस्था बच्चों की सेवा के लिए तत्पर तो है ही कटिबद्ध भी है। यह बेहद संतोषजनक है कि संस्था अपने कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की भी चिंता करती है। ऐसे समय में जब संवेदनशीलता में चारो तरफ कमी नजर आती हैए तब संवेदना के प्रति सजगता आपको ढाढस से भर देती है। लगता है मनुष्य की चिंता और सरोकार निर्दयी लगते समय में भी मूल्यवान हैए जो भरोसे से लबालब भर देते हैं कि भविष्य के युवा के पास संवेदना का सूखा नहीं प़ड़ेगा। सभी कर्मचारियों और प्रतिबद्धों के लिए समय.समय पर खेलकूद और यात्राओं का भी आयोजन किया जाता है। साथ हीए उन्हें फूड सेफ्टी से संबंधित नियमित प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस सबसे संस्था स्वमेव सेवाए समर्पण और सामाजिक उत्तरदायित्व का जीवंत उदाहरण बन जाती है। इससे साबित होता है कि यदि कहीं भीए कोई भी नेक इरादों से किसी भी काम में जुट जाए तो वह समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।ठीक इसी संकल्पबोध के साथ अरावली की सुरम्य पहाड़ियों के बीच बसे भीलों के शहर या पूर्व के वेनिस कहे जाने वाले उदयपुर में २०१८ में केंद्रीकृत रसोई की शुरूआत हुई। ४५ शासकीय विद्यालयों के पांच हजार छात्रों से आगाज हुआ और आज २७५ विद्यालयों के ३५ हजार बच्चों को मध्यान्ह भोजन दिया जा रहा है। आप यहां देखकर चमत्कृत रह जाएंगे कि इस अत्याधुनिक रसोई में ४० हजार प्रतिघंटा चपाती बनाने वाली मशीनए १२०० लीटर क्षमता के सब्जी बनाने वाले कूकरए ५०० लीटर क्षमता वाले चावल बनाने वाले कूकरए १००० किली प्रति घंटे चावल सफाई वाली मशीनए १२०० किलो प्रतिघंटा सब्जी काटने वाली मशीन संस्था के लक्ष्य को सिद्धि तक पहुंचाने के लिए कार्यरत हैं।उदयपुर के आसपास ४० किमी के दायर में ज्यादातर भीलए मीणाए गमेती आदि आदिवासी जनजाति के लोग रहते हैं। यहां बच्चों के लिए भोजन एकरस ही नहीं होता उन्हें उनकी अपेक्षानुसार बदल.बदलकर भोजन दिया जाता है। इसमें पुलावए जीरा राइसए सब्जीयुक्त खिचड़ीए राजस्थानी सांभरए कस्तूरी मेथीयुक्त दालए हिंगदाल के साथ ही रसोई घर की बेकरी में बने कूकिज भी वितरित किए जाते हैं। यह बताता है कि सिर्फ भोजन ही नहींए अक्षय.पात्र का मूल सरोकार बचपन है। इसे ढालना हैए संवारना है और बेहतर भविष्य के नागरिक तैयार करना है।
यह बिल्कुल ऐसा है जैसा मीरा कहती है ष्आप मिलो किरपाकर स्वामीष् भक्त सिर्फ यही कहता है कि कृपा करो। ज्ञानी के पास दावे भी हैं और सवाल भी। उसे सवालों के उत्तर चाहिए। ज्ञानी कहता है कि इतना कुछ कियाए त्यागए तपए ध्यानए साधना इसका प्रत्युत्तर चाहिएए लेकिन भक्त का कोई दावा नहीं। ष्तुम मेरे ठाकुर मैं तेरी दासीष्। भक्त के पास आंसू हैंए पुकार हैए प्रार्थना हैए प्यास है। इसमें करुणा भर दो। ष्सा त्वस्मिन परमप्रेम रूपाष् भक्ति ईश्वर के प्रति परम प्रेमरूपा है।ष्अमृतस्वरूपा चष् अमृत स्वरूपा भी है। ष्यल्लब्धता पुमान सिद्धो भवतिए अमृतो भवतिए तृप्तो भवतिष् जिसको पाकर मनुष्य सिद्ध हो जाता हैए अमर और तृप्त हो जाता है;नारद सूक्तद्ध। देवर्षि नारद के अनुसारए समस्त कर्मों को भगवान को अर्पण करना और भगवान का थोड़ा सा भी विस्मरण होने से परम व्याकुल होना भक्ति है। ष्अव्यावृत भजनात्ष् अखंड भक्ति से भक्ति साधन संयम होता है। ष्अनिर्वचनीय प्रेम स्वरूपंष् प्रेम के स्वरूप का बखान नहीं किया जा सकता। ष्मुकास्वादनवत्ष् गूंगे के स्वाद की तरह है। ठीक इसी भावलोक में महाप्रभु चैतन्य की कृष्ण के प्रति उत्कट भक्ति ने चैतन्य भक्ति आंदोलन खड़ा कर दिया। चैतन्य का तो अर्थ ही है चेतनाए जागृतिए जीवनए ज्ञान। इसकी शुरूआत जरूर नवद्वीप ;बंगालद्ध से हुई लेकिन उत्तर भारत में भी भक्ति प्रसार में इसका कोई सानी नहीं। ढोलए झांझ और शरीर की लयबद्ध गति धार्मिक उत्साह का संचार करती रही। अभिप्राय यह है कि अक्षय.पात्र का यह सारा कार्य कृष्ण.भक्ति है। यह अखंड भक्ति है। अटूट संकीर्तन। एक आश्वस्त प्रार्थना है जो न केवल बच्चों को बल्कि इस सबसे जुड़े लोगों को भी तृप्ति देती है। हर बालक में कृष्ण छवि को निहारने का प्रयत्न और अपने हर प्रयास को समर्पित कर देने का भाव मामूली संस्था को शेष सभी से एकदम अलग खड़ा करता है।
इसलिए भी भक्त होना आसान लगता हैए है नहीं। जीवन में आप जागरुक हुए और भक्त हुए फिर आपको अपने किए पर घमंड नहीं होताए क्योंकि आप जानते हैं कि आपसे विशाल कोई अस्तित्व है और वह निरंतर कार्यरत है। आप उसके भाव या अंश हो सकते हैंए वह नहीं हैं। यह बुद्धिमता का सर्वोच्च विचार है। उसे ही आप भक्ति कह और समझ सकते हैं। कहते हैं.. ष्उनके कदमों में इस बार सर तो झुका उनकी चश्मे करम फिर मचल जाएगीष्
आप झुके और उसकी अनुकंपा ने बिखरना शुरू किया। बहुत छोटे से शुरू हुआ यह काम अक्षय.पात्र नाम से पूरी दुनिया में अपनी तरह का अकेला काम है। कृष्ण में लीन और वर्तमान में विलीन इसका प्रबंधन कृष्ण भक्ति की पंचारति है। कृष्ण तो सागर हैए उसके अनगिन घाट हैं। आप जहां चाहें डुबकी लगा लें। इसीलिए अक्षय.पात्र का आनुषांगिक संगठन है ष्हरे कृष्ण आंदोलनष्। आप तुलना करें कि ष्प्रीमिटिव कल्चरष् में टेलर ने लिखा ष्संसार के कार्य अन्य आभाओं के द्वारा संचालित होते प्रतीत होते हैंए ठीक उसी तरह जिस तरह कि मनुष्य शरीर के विषय में माना जाता है कि यह अपने अंदर स्थित मानवीय जीवात्मा के कारण जीवित रहता है और कर्म करता है।ष् ह्यूम ने ष्नेचरल हिस्ट्री आफ रिलिजंसष् में लिखा कि ष्मनुष्य में एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह सब प्राणियों की कल्पना अपने समान ही कर लेता है।ष् माधवाचार्य परब्रह्म और जीवात्माओं में परस्पर पारमार्थिक भेद को स्वीकार करते हैं। उनके मत में भी ईश्वर की भक्ति ही आनंद प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। भक्ति इसी तरह अनहद स्वर से उठती गूंज हैए बात सिर्फ इतनी है कि कितनी गूंज आप में समाहित हो गई और वे लोग ही कल्याणकारी या लोकोपयोगी कदम उठा पाते हैं जो भक्ति में निमग्न हो जाते हैं। अक्षय.पात्रए मधुपंडित दास की अगुआई में ऐसे ही समर्पित लोगों का समूह है जिन्हें मंजिल की चिंता नहीं हैए उन्हें यात्रा में भी आनंद है। यह यात्रा भी कृष्ण की दी हुई हैए फिर मंजिल का पता क्या पूछना। इसलिए पूरा संगठन अस्तित्व की सारी अनुकंपा से अनुगृहीत होकर बच्चों में रम गया है। आखिर कारण क्या है न केवल हमारे देश मेंए बल्कि पूरी दुनिया में समारोह कम हो गएए इसलिए कि रिलीजस फेस्टिव डायमेंशनए वह जो उत्सव का आयाम हैए क्षीण हो गया हैए लेकिन इस संस्था ने अपने हर कदम को उत्सव में बदलने की उत्कंठा दिखाईए बल्कि उसे उत्सव में बदल दिया। आप देखें कि विज्ञान ने एटम को तोड़ लियाए वह सेल को भी तोड़ लेगाए लेकिन जिस दिन ऐसा हो पाएगा आप पाएंगे कि हम जो सदा से कहते आए हैं कि छोटे से छोटे पिंड में ब्रह्मांण हैए वह सच हो जाएगा। वह संभवतया पहला दिन होगा जब अक्षय.पात्र के सरोकारों को ठीक.ठीक समझा जा सकेगा।
एक विश्वासी संकल्प की दुनिया है अक्षय.पात्र। कहते हैं ष्इस सदन में मैं अकेला ही दीया हूंए मत बुझाओए पांव देखकर दुनिया चलेगी।ष् जो नहीं समझ पा रहे उनकी कठिनाई समझी जा सकती है। उनकी कठिनाई भाषा की कठिनाई है और यह कठिनाई आज की नहीं हैए बरसों.बरस से है। क्योंकि संवाद दो तरह के लोगों में हो रहा है। चाहे कृष्ण.अर्जुन संवाद होए बुद्ध.आनंद संवाद हो या जीसस.ल्यूक का संवाद हो या अक्षय.पात्र व आलोचकों का संवाद हो। यह डायमेट्रिकली अपोजिट है। एकदम भिन्न। फिर भी संवाद जारी है और यकीन है जैसे ल्यूक राजी हो गयाए जैसे आनंद के प्रश्न गिर गए जैसे अर्जुन प्रकाशित हो गया वैसे ही अक्षय.पात्र और इसके समर्पित संन्यासियों से भी उनके आलोचकों को राजी होना होगा। इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते हैं। एक सेठ के पास एक संन्यासी गया। सेठ ने कहा नौकरी करोगे। सेठ चालाक था। तेज.तर्रार और प्रेक्टिकल। उसने सोचा अगर यह मान लेता है तो इसका संन्यास गयाए फिर भी यह ठहर गया तो उतनी बदमाशी तो नहीं करेगाए जितना कोई औसत आदमी करेगा। थोड़े ही समय में संन्यासीए सेठ की हर चालबाजी से वाकिफ हो गया। संन्यासी ने सेठ को तीर्थयात्रा की कहानी सुना.सुनाकर राजी कर लिया यात्रा के लिए। उसने कहा यात्रा की तैयारियां क्या करनी हैघ् संन्यासी ने कहा मैं बताता चलूंगा। जब भी सेठ किसी से गड़़बड़ करताए संन्यासी कह उठता तीर्थयात्रा पर चलना है। जैसे ही वह यह कहता सेठ बेईमानी नहीं कर पाता। धीरे.धीरे एक अंतराल हो गयाए सेठ पूरी तरह बदल गया। एक दिन संन्यासी ने वहां से कदम बढ़ाते हुए पूछा.सेठजी! तीर्थयात्रा पर चलना है। उसने कहा अब क्या करेंगे जाकर अब तो यहीं तीर्थ आ गए हैं। अक्षय.पात्र के संन्यासी इसी तरह लोगों को तैयार करते हैंए इसलिए यह पूरा आयोजन एक धार्मिक उत्सव में बदल गया है। जहां कदाचारए भ्रष्टाचार की आशंका भी नहीं जन्मती।
अमरीका में एक वैज्ञानिक ने प्रयोग किया। उसने एक गमले में वट.वृक्ष लगाया। उसने गमले की मिट्टी नापी। पानी भी डालता को उसका नाप रखता था। वृक्ष बड़ा हो गया तो उसने वृक्ष और गमले को नापा। वृक्ष को अलग से नापा तो हैरान रह गया। वृक्ष तो सैकड़ों पौंड का हो गया और गमले की मिट्टी डेढ़ पौंड कम हुई और वह भी वृक्ष में नहीं गई। यह वृक्ष कहां से आयाघ् इसमें थोड़ा दान मिट्टी काए आकाश काए हवा का और पानी का था। इस सबके बाद भी जिसका पता नहीं चला वह दान शायद कृष्ण का हैए ईश्वर का है। आकाशए पृथ्वीए मिट्टी और चेतना इस सबको ध्येय.निष्ठ विन्यास में व्यक्त करने वाली संस्था है अक्षय.पात्र। ये सिर्फ पदार्थ पर ही काम नहीं करतीए आस्था पर भी करती है।
आज का जो समय है उसे केयर्ड के शब्दों में कहें तो यह पदार्थ को ध्यान से देखने में अत्यंत व्यग्र समय है। ऐसे तीक्ष्ण समय में अक्षय.पात्रए आकाशगंगा हैए जिसमें कोई द्वीप नहीं हैए उदास और बेख्वाब आंखों के लिए जरूरी सपनों की आवश्यक उड़ान। गुवाहाटी ;असमद्ध में हरे कृष्ण आंदोलन विभिन्न क्षेत्रों में अनवरत काम कर रहा है। यह अक्षय.पात्र का ही आनुषांगिक संगठन है। यह भगवत् गीता और श्रीमद्भागवत के आधार पर कृष्ण चेतना को व्यक्त करता है। लोगों में नैतिकए सरल और उदात्त जीवन की प्रेरणा के लिए संलग्न यह संस्थान ष्सब चलें.साथ चलेंष् की भावना से काम कर रहा है। संस्था ने स्वामी प्रभुपाद के शुभेच्छित निर्देश का अनुगमन करते हुए एम्स के लिए ष्प्युअर फॉर क्युअरष् योजना से जुड़ते हुए सभी जरूरतमंदों के लिए ४ फरवरी २०२४ से सात्विक भोजन की शुरुआत की। उन्हें गर्म और पौष्टिक भोजन वितरित किया जाता है। संस्था अक्षय.पात्र के साथ अनेक गतिविधियां भी संचालित करती है। २०.२२ मई २०२४ को श्री श्री लक्ष्मीनरसिंहा प्राण.प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित किया गया। प्राण.प्रतिष्ठा दक्षिण भारत के सम्मानित पुजारी के हाथों संपन्न हुआ। कार्यक्रम के कीर्तन और प्रार्थना में हजारों लोगों ने नतभाल भाग लिया। इसी तरह ७ जुलाई २०२४ को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली गई। सुबह ४ण्३० बजे आरंभ हुई कपूर आरती में अनेक विशिष्ट जनों समेत हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लियाए उत्साहपूर्वक सड़कें साफ हुईं। फिर भव्य.दिव्य आरती जिसमें करीब ५ हजार लोगों ने हिस्सेदारी की। सभी ने रात्रि भोज प्रसादम में भी शिकरत की। इसी तरह हर वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी संस्था के सभी केंद्रों पर सोल्लाह मनाई जाती है। मैं स्वयं गुवाहाटी के ष्पूर्वांचल प्रहरीष् दैनिक समाचार पत्र का संपादक रहा हूं। उस अखबार ने कृष्ण जन्माष्टमी का विवरण देते हुए लिखा कि मंदिरों को भव्य और दिव्य रूप में सजाया गया। नगर के मंदिर ठाकुरवाड़ीए गीता मंदिरए राम मंदिरए श्याम मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। इस पावन अवसर पर महानगर हरे राम.हरे रामए राम.राम हरे हरेए हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण.कृष्ण हरे रहे से गुंजायमान रहा। इस्कान मंदिर गुवाहाटी के अध्यक्ष श्री जीवादास ने पूर्वांचल प्रहरी को बताया कि महोत्सव की शुरुआत प्रातः बेला में मंगल आरती से हुईए इसके बाद दर्शन आरतीए अखंड हरिनाम कीर्तनए भगवान श्रीकृष्ण के संस्कारए संध्या आरतीए पुजारियों और भक्तों द्वारा महाभिषेक किया गया। सच ही तो है कृष्ण कहते हैं मूढ़ मुझे नहीं भजते। फिर कौन भजता है। जिज्ञासुए मुमुक्षुए सात्विक और सदाचरण वाले बुद्धिमान। वे ही समझते हैं कृष्ण की शब्दावली। कर्मए अकर्म और विकर्म। जिसमें कर्ता मौजूद कर्मए जिसमें कर्ता नहीं अकर्मए कर्म और अकर्म के बीच विकर्म यानी ष्विशेष कर्मष्। जैसे आप सांस ले रहेए यह न कर्म है और न अकर्म यह विशेष कर्म है। इसलिए समझने का विषय यह है कि कैसे एक संगठन या संस्था अकर्म तक पहुंचती है। एक.दो नहीं अनेक और वे अपने ध्येय में लगे रहते हैं।
२९ अक्टूबर २०२४ को नीपको ने इस संस्था के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत कैंसर रोगियों को सात्विक भोजन दिया जाना था। इसका उद्देश्य था कि वीए बरूआ कैंसर इंस्टिट्यूटए जो नीपको की सीएसआर स्कीम के तहत थाए वहां जरूरतमंद रोगियों को मदद दी जाए। महज साल भर में ३७ए५०० भोजन वितरित करना था। इसी तरह असम में मानवीय आधार पर क्षयरोग;टीएबीएद्ध से ग्रसित रोगियों में पौष्टिकता की दृष्टि से प्रदेश के पांच जिलों में ५४९१ पौष्टिक किट वितरित किए गए। इसमें विटामिनए मिनरल और अन्य पौष्टिक तत्वों की बहुतायत थी। इन्हें कामरूपए जोरहटए माजुलीए गोलाघाट और नलवारी में वितरित किया गया ताकि उनकीअण् प्रतिरक्षा प्रणाली बढ़ायी जा सके।बण् स्वास्थ्य को बेहतर किया जा सके।सण् क्षय रोग से उबरने में उनकी मदद की जा सके।समय के बीच अनागत के भय से दुबले हुए जा रहे लोगों के लिए यह और इस जैसे संस्थान आशा का सेतु हैं। आप देखें कि....
।२०००।
...............................................................यह यात्रा कर्नाटक के बेंगलुरु के पांच स्कूलों के १५०० बच्चों को भोजन कराने से शुरू हुई
...............................................................।२००१।
...............................................................भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मिड.डे मील;एमडीएमद्ध भोजन योजना ;अब पीएम पोषण योजनाद्ध को लागू करने का आदेश दियाए जिससे अक्षय.पात्र के स्कूल भोजन कार्यक्रम को प्रोत्साहन मिला।
...............................................................।२००२।
...............................................................अक्षय.पात्र की रोटी बनाने वाली मशीनें एमडीएम क्षेत्र में तकनीकी नवाचार की दिशा में पहला कदम है।
...............................................................।२००३।
...............................................................बच्चों के लिए एमडीएम कार्यक्रम अक्षरा दासोहा के लिए कर्नाटक सरकार के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गएए जिससे अक्षय.पात्र एमडीएम क्षेत्र में सार्वजिनक.निजी भागीदारी शुरू करने वाला पहला गैर सरकारी संगठन बन गया।
...............................................................।२००४।
...............................................................इंफोसिस के सहयोग से हुबली में सबसे बड़ा अत्याधुनिक मेगा किचन स्थापित किया गया।
...............................................................।२००५।
...............................................................राजस्थान के बारां के सुदूर इलाके में स्थापित पहले विकेंद्रीकृत रसोई मॉडल के साथ पहुंच संबंधी बाधाओं को दूर किया गया।
...............................................................
।२००६।
...............................................................एसी नील्सन ने अक्षय.पात्र के स्कूल लंच कार्यक्रम पर एक अध्ययन कियाए जिसमें पाया गया कि पहल की शुरुआत के बाद से उपस्थिति और नामांकन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
...............................................................।२००७।
...............................................................हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने अक्षय.पात्र पर एक केस स्टडी प्रकाशित की।
...............................................................।२००८।
...............................................................अंतर.राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानकों ;आइएफआरएसद्ध का अनुपालन करने वाला पहला एनजीओ बन गया।
.भारतीय चार्टर्ड अकाउंटेंटस संस्थान ;आइसीएआइद्ध से एनजीओ क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ वित्तीय रिपोर्टिंग के लिए गोल्ड शील्ड पुरस्कार
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।२००९।
...............................................................कुल मिलाकर ५०० मिलियन भोजन परोसने का पहला महत्पूर्ण मील का पत्थर हासिल किया।
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।२०१०।
...............................................................विश्व बैंकए स्वीड़िशए अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी;एसआइडीएद्ध और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा शहरी गरीबों के लिए सेवाओं में नवाचार पुरस्कार प्राप्त किया।
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।२०११।
...............................................................लिम्का बुक ऑफ रिकार्डस में विश्व के सबसे बड़़े स्कूल भोजन कार्यक्रम के रूप में मान्यता प्राप्त।
.तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से प्रशस्ति.पत्र प्राप्त
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।२०१२।
.................................................................एक अरबवां संचयी भोजन परोसा गया साथ ही एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया गया
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।२०१३।
...............................................................लगातार पांच वर्षों तक गोल्ड शील्ड पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आइसीएआइ हॉल ऑफ फेम में शामिल होने वाला पहला एनजीओ बना ष्अक्षय.पात्रष्।
पीएम पोषण योजना के लिए राष्ट्रीय संचालन.सह.निगरानी समिति के सदस्य रुप में नामित
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।२०१४।
................................................................खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता प्रणाली ;एफएसक्यूएसद्ध के कुशल प्रबंधन के लिए खाद्य सुरक्षा के लिए सीआइआइ राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया।.अक्षय.पात्र को सीआइआइ;भारतीय उद्योग परिसंघद्ध द्वारा एशियाई मेक ;सर्वाधिक प्रशंसित ज्ञान उद्यमद्ध पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
...............................................................।२०१६।
...............................................................तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की उपस्थिति में आयोजित एक कार्यक्रम में २ बिलियन संचयी भोजन परोसा गया।
...............................................................।२०१७।
...............................................................रियांग समुदाय के बच्चों को समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए काशिरामपाराए त्रिपुरा में ग्रेट इंडियन टेलेंट स्कूल का उद्घाटना।
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।२०१८।
...............................................................देश के तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीराम नाथ कोविंद से बाल कल्याण के लिए प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया।
.केरल में बाढ़ के दौरान मानवीय खाद्य राहत सहायता प्रदान की गई।
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।२०१९।
...............................................................प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में ३ बिलियन संचयी भोजन की उपलब्धि का स्मरण किया गया।
.नाश्ते की पहलए कलईउनावुथीत्तम के लिए ग्रेटर चेन्नई कारपोरेशन के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर।.तत्कालीन राष्ट्रपति श्री कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से गांधी शांति पुरस्कार २०१६ प्राप्त किया।
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।२०२०।
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कोविड १९ महामारी से प्रभावित लोगों को पका हुआ भोजन और राहत किट के रूप में खाद्य राहत सामग्री निरंतर वितरित की गई। ३१ दिसंबर २०२० तक ११ करोड़ से अधिक भोजन परोसा गया।
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।२०२१।
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कोविड.१९ खाद्य प्रयासों के तहत २० करोड़ संचयी भोजन परोसने की उपलब्धि हासिल की।
.भारतीय विज्ञान संस्थान ;आइआइएससीद्ध के साथ साझेदारी कर अक्षय.पात्र रिसर्च लैब का गठन किया गया
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।२०२२।
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अक्षय.पात्र को न्याय संगतए समतामूलक और टिकाऊ भविष्य की ओर अग्रसर करने के लिए सामाजिक भलाई और प्रभाव के लिए महात्मा गांधी पुरस्कार मिला।
.प्रत्येक स्कूल दिवस में २ मिलियन बच्चों को सेवा प्रदान करने की उपलब्धि हासिल की।
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।२०२३।
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बाजरा मंत्रः भारत की जी.२० अध्यक्षता का पाक.कला का मुख्य बिंदु में विशेष रूप से प्रदर्शित.सीएसआर जर्नल द्वारा भारत के शीर्ष १० एनजीओ में शामिल
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।२०२४।
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अक्षय.पात्र के ४ बिलियन;अरबद्ध भोजन वितरण की उपलब्धि का न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्मरण किया गया।................................................................
यह अनवरत चलने वाली प्रक्रिया हैए एक तरह का तप । यही कारण है देश के सुदूर अंचलों तक जहां अमूमन संस्थाएं जाने का साहस नहीं करती थींए अक्षय.पात्र और उसके साथी संगठन वहां भी पहुंचे हैं। मैं स्वयं उत्तरी त्रिपुरा के काशिरामपारा गया हूं। अगरतला से १९० किमीण् दूर घने जंगलों से घिरे परिवेश में बसा है। यहां की रियांग समुदाय के बच्चों में शिक्षा का उद्देश्य भरने का संकल्प ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल के जरिए संस्था कर रही है। यह सूचना घटना की नहीं शिक्षा क्रांति की है। रियांग वस्तुतः मिजोरम से विस्थापित समुदाय है। ये मुख्यतः कोकबोरब और ष्रू भाषा बोलते हैं। तीस हजार से ज्यादा लोग इस समुदाय के आज भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। काशिरामपारा में ही ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल है। यह स्कूल रियांग समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा और बेहतर जीवन जीने के अवसर प्रदान करता है। इसे आप जाकर देख सकते हैं कि घाटियों और पहाड़ियों को पारकर स्कूल पहुंचने वाले बच्चों में अध्ययन की ललक जगाने का काम इस स्वाभाविक अंदाज में हुआ कि आज तकरीबन ७०० बच्चे प्रतिदिन पहुंचते हैं। इन्हें अंग्रेजी माध्यम में मुफ्त शिक्षा के अलावाए मुफ्त पाठ्य पुस्तकेंए स्टेशनरीए गणवेश और जूते भी मुफ्त में दिए जाते हैं। स्पष्ट है कि संस्था हर बच्चे के भोजन के अधिकार और शिक्षा के अधिकार को कायम रखते हुए सतत विकास लक्ष्यों;एसडीजीद्ध की प्राप्ति में योगदान देना चाहती है। जैसे पौष्टिक भोजन के वादे के माध्यम से भुखमरी को समाप्त करना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना। इसके अलावा यह प्रयास अप्रत्यक्ष रूप से अन्य सतत विकास लक्ष्यों में योगदान देता हैए जिनमें लोगों के लिए अच्छा स्वास्थ्यए कल्याण के साथ ही असमानताओं को कम करना है। निसंदेह यह स्कूल एक दिन शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से व्यापक ग्रामीण विकास की विशेषताओं वाला विशाल शिक्षण समुदाय होगा। संस्था हरेकृष्ण मंदिर और अक्षय.पात्र के सहयोग से इस सबके साथ बच्चों में वैदिक संस्कार दे रही है। अक्षय.पात्र फाउंडेशन और हरे कृष्ण आंदोलन असम के अध्यक्ष जनार्दनदास मूलतः इसके आर्किटेक्ट हैं।
जहां वातायन की हवा गीत नहीं गाती थीए जहां मुर्झाये हुए चेहरेए हहराते पेड़ों को देखकर खुश नहीं हो पाते थेए वहां के बच्चों में उनके चेहरे पर सुर्ख गुलाब की आभा का पूरा श्रेय स्वामी जनार्दन दास को जाता है। आपके ही मार्गदर्शन में परियोजना के मुख्य प्रशासक शुभांशु देव ;सेवानिवृत्ता आइआरएसद्ध समूचे कार्यक्रम को विचार.आचार को पूर्ण समपर्ण से क्रियान्वित करने में लगे हैं। शुभांशु देव से त्रिपुरा प्रवास के समय भेंट हुई। उन्होंने बारीकी से रियांग समुदायए उनके लोकस्वरए लोकगीतए नृत्य और भाषा.शैली के अलावा क्षेत्र में अन्य विकास कार्यों की जानकारी भी दी और अवलोकन भी कराया। चिलचिलाती धूप थी उस दिन। घने पेड़ों से छनकर आती धूप भी बहुत तीखी थीए लेकिन स्कूल में बच्चों की उपस्थिति शत.प्रतिशत थी। उन्होंने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किए। भजन गाएए नृत्य किए। ये बच्चे समूची वर्णमाला की तरह थे। इंसानी मुहब्बत की अबोली लेकिन आंशिक घोषणाएं। यह सब देखकर बड़ा सुकून मिला कि ढ़िढोरची विज्ञापनों के दौर में भी उम्मीदें जिंदा रखने की कवायदें जारी हैं। निःशुल्क शिक्षाए भोजनए कपड़ेए किताबेंए वाहन सुविधा सभी बच्चों को उपलब्ध कराई जा रही है। निश्चित ही ऐसी पहलें भरोसे की पहाड़ पर लालटेन का काम करती हैं। यदि सरकार और समाज ऐसे कार्यों को प्रोत्साहित करते रहें तो किसी भी बच्चे का क्षितिज न दूर होगा न धूमिल।
काशिरामपारा के इस स्कूल की खासियत यह है कि यहां न केवल अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दी जाती हैए बल्कि संस्कृत आधारित वैदिक मूल्य शिक्षा भी दी जाती है। इसमें भगवतगीता पाठ और तुलसी पूजा शामिल है। अर्थात् आधुनिक शिक्षा के साथ.साथ सनातन संस्कृतिए नैतिक शिक्षा और भारतीय मूल्यों की गहराई से शिक्षा दी जा रही है। अक्षय.पात्र फाउंडेशनए देश भर में करो़ड़ों बच्चों को पौष्टिक भोजन देने में अग्रणी हैं यहा भी दोपहर का भोजन निःशुल्क उपलब्ध करा रहा है। हरेकृष्ण मंदिर के संत और शिक्षक बच्चों को आध्यात्मिक और चारित्रिक उन्नति के लिए विशेष प्रशिक्षण दे रहे हैं। इसलिए माना जाना चाहिए कि यह स्कूल केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहींए बल्कि सामाजिक आंदोलन बन चुका है। ग्रामीण समुदाय के अनेक अभिभावकों ने इस यात्रा में बताया कि उनके बच्चों को जो जीवन यहां मिला हैए वह कभी सपने में भी संभव नहीं लगता था।
जैसे ओल्डनबर्ग ने कहा. प्रतीक्षा करने वालों के लिए रात लंबी होती है और क्लांत पथिक के लिए मार्ग लंबा होता है। यह और ऐसा न हो यानि पथिक क्लांत न हो और उसे मंजिल मिल जाएए यह सारा कार्यए इसी ध्येय का पाथेय है। स्थानीयता को वरीयता देते हुए स्थानीय पुरुषों और महिलाओं को शिक्षक और रसोई मददगार के रुप में रोजगार दिया जा रहा है। आप देखेंगे कि दस शिक्षकों में से पांच रेयांग आदिवासी समुदाय से आते हैं। इन्हीं के जरिए बच्चे प्रभावी संवादए समस्या निवारक कौशलए भावनात्मक बुद्धिमता सीखते हैं ताकि जीवन में गुणात्मक विकास हो सके। फिर भीए यहां बच्चों के लिए और अधिक कक्षाओं की अनिवार्यता है। संभवतया यहां पर्याप्त शिक्षित और प्रशिक्षित शिक्षकों के चयन में भी कठिनाई आती हो। बावजूद इसके गांव और परिसर विकास में संस्था का यह प्रयास सराहनीय है।
संस्था की भविष्य की योजनाएं भी एक चमकते हुए विकसित परिसर की तस्वीर पेश करती है। संस्था ने तय किया है कि वह पांच से बारह वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त आवासीय विद्यालय प्रदान करेगा। कक्षा दस के बाद विद्यार्थियों को मुफ्त आवासीय पोलिटेक्निक इंस्टीट्यूट से शिक्षित किया जाएगा। इतना ही नहींए कलाए विज्ञानए वाणिज्य और कम्यूटर की शिक्षा के लिए भी मुफ्त आवासीय महाविद्यालय बनाए जाएंगे। इसके साथ हीए संगीतए नृत्यए रंगमंच की भी शिक्षा दिए जाने की योजना है। समुदाय को वित्तीय मदद दिए जाने के उद्देश्य से बांस के उत्पादों की मार्केटिंग भी की जाएगी।
इसे समझना होगा कि नारद जिसे अपने सूत्रों में मानवीय प्रेम की उपमा देते हैंए क्या इस तरह के कार्य उसे ही इंगित नहीं करते। भक्ति का विषय सर्वोच्च सत्ता हैए जिसे पुरुषोत्तम कहते हैं। वह आत्माओं को प्रकाशित करता है और जगत को जीवनदान देता है। जैसे गंगा अपने स्वाद को भाषा में व्यक्त नहीं कर सकतीए ठीक वैसा और उतना ही कठिन है संपूर्ण समर्पण से मनुष्य के लिए किए गए कार्य को परिभाषित करना। श्रद्धाए विश्वास सच्ची भक्ति के लिए बुनियादी जरूरत हैं। उच्चतम सत्ता के लिए पहले तो धारणा बनानी पड़ती हैए यही आरंभिक भक्ति में दिखाई भी देती है। अक्षय.पात्र की इस धारणा को समझ लिया जाए तो फिर आसानी से इनके हर क्रिया.कलाप को स्फटिक की तरह देखा जा सकता है। फिर मुश्किल नहीं होगी यह मानने में कि संपूर्ण अक्षय.पात्र एक संकल्पनात्मक अनुभूति का प्रस्फुटन है। इसीलिए आप देख पाते हैं कि अ.विकसित या अदृश्य प्रकाश के अणुओं का संधान करनाए उन्हें दृश्यमान करना प्रज्ञात्मक चैतन्य कर्म भी है। मोटे तौर पर यह आपकी दुविधा से दूसरों की सुविधा की यात्रा है। आप दूसरों को यथाहाल नहीं देख सकतेए यह आपकी दुविधा हैए लेकिन आप उन्हें उस हाल से सुविधा के मार्ग तक ले आते हैं। यह कर्म चैतन्य.कर्म है।
ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल के प्रबंधन को देख रहे सेवानिवृत्त आइआरएस शुभ्रांशु देव ने बताया कि मिजोरम से विस्थापित हुए परिवारों को त्रिपुरा में शरण मिलीए लेकिन उनके बच्चों की शिक्षा का कोई ठोस बंदोवस्त नहीं था। राज्य सरकारें भी हिचक रही थी। ऐसे में इस स्कूल की शुरूआत हुई। एक प्रयास है यह स्कूल कि कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि बच्चे ज्ञान के साथ संस्कृति और मूल्यों को भी आत्मसात करें। हर दिन की शुरूआत तुलसी पूजा और आरती से होती है। फिर प्रसादम् वितरित होता है। इससे उनमें आत्मबल और अनुशासन की वृद्धि होती है। श्री देव ने बताया कि आरंभ में अनेक चुनौतियांए बाधाएं आईं। सबसे बड़ी चुनौती थी संसाधनों की कमीए परिवहन की कमी। बच्चों को स्कूल लाने के लिए निजी वाहन की व्यवस्था करनी पड़ी। मगरए आज जब बच्चे कहते हैं ष्सर रविवार को भी स्कूल चलाइएष् तब लगता है हमारा प्रयास सफल हुआ। उनका विश्वास है कि ग्रेट इंडिया टेलेंट स्कूल महज शिक्षा संस्थान नहींए एक दीपक है जो अंधियारे में उजाला फैलाने की कोशिश कर रहा है। यदि समाज उठ खड़े हों और सरकार का भी यथोचित सहयोग मिले तो दुर्गम से दुर्गम स्थान पर भी सर्वसुलभ मार्ग बनाया जा सकता है।
बिल्कुल इसी विश्वास से भरे मिले छत्तीसगढ़ अक्षय.पात्र के प्रभारी स्वामी व्योमपाद दास। आप वृंदावन का कार्य शुरू करने वालों में से हैं। यह उस दौर की बात है जब वहां सुनसान था। जहां सिर्फ स्वराघात और निराघात ;।बबमदज ंदक छवद ंबबमदजद्ध के प्रवाह से उत्पन्न ध्वनि थीए लेकिन उसमें एक लय थी। उसी लय ने अनवरत काम करने को प्रेरित किया। उन्होंने बताया वे २००३ में वृंदावन आए थे। यहां करीबन ८.१० एकड़ जमीन अक्षय.पात्र के संस्थापक मधुपंडित दास ने ली थी। लेकिन विकसित करने की व्यवस्था नहीं थी। इसी बीच वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बेंगलुरु प्रवास पर पहुंचे। उस समय मैं ही अक्षय.पात्र बेंगलुरु का प्रभारी था। उन्होंने अवलोकन किया और बहुत प्रभावित हुए। वीण् स्वरूप उनका नाम था। उन्होंने कहा कि इस योजना को उत्तर भारत में भी शुरू कीजिए। हमने समस्या रखी कि बिना किसी बड़े दाता के संभव नहीं। उन्होंने कहा दिल्ली आकर मिलिए। संभावनाएं तलाशते हैं। मैं निदेशित हुआ कि वृंदावन पहुंचू। वहामं बोरवेल टंकी का शेड बना था। पास ही एक सरकारी स्कूल था। वहां जाकर दोपहर भोजन की बात की कि हम लोग बच्चों को निःशुल्क भोजन देना चाहते हैं। खाना बनाने का प्रयास किया। कुछ ही दिनों में तय हुआ कि दिल्ली में प्रयास किए जाएं। मैं और मधुपंडित दासए वित्त मंत्रालय गए। वहीं स्वरूप जी का दफ्तर था। उस समय अटलजी की सरकार थी और जयवंत सिंह वित्त मंत्री थे। स्वरूप जी के पास पहुंचे तो उन्होंने किसी को फोन लगाकर पूछा कि आनंद कैसे होघ् बहुत समझना चाहा मगर समझ नहीं पाए कि आनंद कौनघ् उन्होंने कहा ष्एक अच्छी संस्था है। वह बच्चों के लिए उनके मध्याह्न भोजन के लिए काम कर रही है। मैं स्वयं बेंगलुरु गया थाए उनका काम देखाए मैं बेहद प्रभावित हूं और चाहता हूं कि तुम इसमें मदद करो।ष् वे आनंद महेंद्र थे। उन्होंने कहाए मैंने हाल ही में एक काम हाथ में ले लिया है। स्वरूपजी ने बात को विराम देते हुए सुनील को फोन लगाया। हम तब भी समझ नहीं पाए कि सुनील कौनघ् उनकी आरंभिक बातचीत के बाद तय हुआ कि दूसरे दिन सुनील भारती मित्तल;एअरटेल के मालिकद्ध ६.७ बजे आएंगे। हम लोग वहीं थे। छोटा.सा प्रेजेंटेशन अक्षय.पात्र का दिखाया। उस दरमियां उनकी भाव.भंगिमा बहुत सकारात्मक थी। वे अपने को रोक नहीं पाए और बोले ष्बहुत अच्छा हैष्। आप लोगों को इसे आगे बढ़ाने में कितनी मदद की जरूरत है। शायद तब हमने ३.४ करोड़ कहा। उन्होंने तपाक से कहा कि इसके लिए मेरे बोर्ड की सहमति जरूरी है। वैसे मैं जब भी कोई प्रस्ताव रखता हूंए उसे उन लोगों ने कभी निरस्त नहीं किया। मैं चेरिटी नहीं देखताए मेरे बड़़े भाई राकेश मित्तल देखते हैं।
इस तरह हमें वृंदावन का पहला डोनर;दाताद्ध मिला। बाद मेंए इंफोसिस की सुधा मूर्ति ने भी भरपूर योगदान दिया। फिर भीए इसे बनने में करीब दो साल लगे।
व्योमपाद दास अपने उस समय के बीच खड़े होकर प्रामाणिक अनुभूतियों को आत्मानुभूत शब्दों में व्यक्त करते हैं। उनकी भाषा में आदमीयत की खोज है। उन्होंने बताया कि यह सब बिना संघर्ष के नहीं हुआ। बात २००३ की है। गर्मी के दिन थे। इंफोसिस के सीएफओ वृंदावन आकर गए ही थे। कुछ लोग छत पर सो रहे थे। एक गनमैन था। वह भी सो रहा था। रात डकैत आ गए। डकैतों ने सिक्युरिटी वाले को इतना मारा कि उसे कई टांके लगे। एक अलमारी अंदर रखी थी। उन्हें लगा होगा कि बड़ी.बड़ी गाड़ियां आई थीं तो अकूल पैसा भी आया होगा। उन्होंने अलमारी तोड़ी। उसमें पैसा तो था नहींए पुराने अखबार और कुछ कागज थे। यह पहला हमला था। हम लोग पुलिस में गएए लेकिन कुछ नहीं हुआ। सिवा सांत्वनाओं के कि जल्दी कुछ होगा। प्रतीक्षा में ही छह माह बीत गए। एक बार फिर हमला हुआ। एक बूढ़े आदमी को इतना पीटा कि वह कई दिनों तक अस्पताल में रहा। मथुरा में हम लोगों का बहुत लोगों से परिचय नहीं था। नए थे तो प्रभाव क्षेत्र भी विस्तृत नहीं था।
इन घटनाओं से सभी चिंतित हो गए। अक्षय.पात्र के संस्थापक मधुपंडित दास सबसे ज्यादा व्यग्र और व्यथित थे कि कैसे आगे काम किया जाएगाए जहां सुरक्षा की भी गारंटी नहीं है। इसी बीच हमारी मुलाकात कनाई चित्रकार से हुए। उसका नाम गोविंद कनाई था। मथुरा में उनका खासा प्रभाव था। वह हमें एसपी के पास ले गया। मगर एसपी का ढांढस खोखला लगा। ठीक हैए देखेंगेए जरूर देख लेंगे। इससे में भी निराश हो गया। इस दरमियां हमने कामकाज को बढ़ाया ही सिक्युरिटी भी बढ़ा ली। २०.२५ लोग हो गए हमारे पास। यह बात २००५ की है। दो गनमैन थे हमारे पास। इस समय तीसरा हमला हुआ। २०.२५ लोग हमारे परिसर में घुस आए। उन्हें देखकर हमारे लोग चिल्लाए ष्चोर.चोरष्। इस शोर पर उन लोगों ने गोलियां चला दीं। इधर से भी गोलियां चलीं। करीब १५.२० राउंड फायर हुए। बाद मेंए पुलिस अधीक्षक तक गएए जांच भी हुईए मगर नतीजा संतुष्टिकारक नहीं रहा।
२००५ में उप्रण् की सरकार में सरकारी स्तर पर बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन की व्यवस्था नहीं थी। महीने में उनको तीन किलो चावल या गेहूं का आटा दिया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि बच्चों को मध्यान्ह भोजन अनिवार्य रूप से दिया जाए। एक लाख स्कूल और १२ करोड़ बच्चे। इन सबको एक साथ भोजन देना आसान काम नहीं था। इस फैसले से पहले मैं और लोग भी शिक्षा.विभाग गए थे कि हमें अवसर दीजिएए लेकिन हमें कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। लेकिन अदालत के फैसले के बाद वे लोग संपर्क करने लगे। कलेक्टर के फोन आने लगे। आपको क्या चाहिए जैसी बातें हुईं। हमने बताया हम पर हमले हुएए कहीं से कोई अनुक्रिया नहीं हो रही। फिर वे आए और उनके साथ पुलिस। पुलिस की आवाजाही बढ़ गई। सरकारी समर्थन बढ़ गया। फिर तो हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
चुनौतियां तो और भी रहीं। १००.२०० बच्चों से शुरू किया भोजन ४०० बच्चों तक छोटे किचन से ही जारी रहा। उस समय रसोई में काम करने वाले भी कम ही थे। वृंदावन के साइकिल रिक्शा चलाने वाले हमारे साथ काम करते थे। सुबह पांच से नौ बजे तक। इन्हीं में से कोई मेरी पत्नी को लेकर आताए फिर वे भी सब्जी कटवानेए धुलवाने और बनवाने में मदद करतीं।
रसोई के लिए शुरूआत में काम करने वाले ढूंढना भी एक मुश्किल काम थाए फिर भी इनकी टीम बनाना उतना ही दुरूह था। इस सारे काम को करते हुए मेरी पत्नी ने एक प्रणाली विकसित करवा दी। २००५ तक सब कुछ व्यवस्थित हो गया। मंदिर और अक्षय.पात्र के लिए निर्माण कार्य चल रहा था। हमारे वाइस चैयरमेन चंचलापति प्रभुजी से मैंने आग्रह किया कि मैं काम का एक्सपर्ट नहींए इसलिए किसी सहयोगी को और जुड़वा दीजिए। फिर सुयत्ता प्रभुजी जुड़े। वे इस तरह के काम को देखते रहे हैं और उन्होंने अपनी निष्णात योग्यता से काम को सिरे चढ़ाया। प्रभु व्योमपाद दास ने बताया कि शुरू में चंचलापति प्रभु भी इससे जुड़े नहीं थे। वे बेंगलुरु में व्यस्त थे। उन्हें जमीनी काम का जबरदस्त अनुभव भी था। फिर रोजमर्रा के काम के लिए मधुपंडित दास से संवाद करने में कठिनाई भी आ रही थी। मैंने चेयरमैन मधुपंडित दास से आग्रह किया कि चंचलापति प्रभु को वृंदावन भिजवा दें। पहले तो वे नाराज हुए कि तुम क्यों नहीं कर पा रहेघ् वे बेंगलुरु में किसी और काम में व्यस्त हैंए लेकिन बाद में राजी हो गए। २००६ तक रसोई और मंदिर क्रियाशील हो गए। इससे पहले तक हम हर सामान के लिए दिल्ली पर निर्भर थे। यूपी तक सामान लाने के लिए हमें विक्रयकर का फार्म ३२ भरना पड़ता। वे लोग पर्याप्त भ्रष्ट थे। एक बार अंडरग्राउंड केबल मंगवानी थी। मैं चिंता में था कि विक्रयकर कार्यालय फिर कई चक्कर लगवाएगा। तभी जिससे सामान लाना थाए उसने कहा इसमें चिंता की कोई बात नहीं। किसी ट्रक में रखवा देंगे। आप किसी को भिजवा दीजिए। भरोसे पर मैंने एक ड्राइवर भिजवा दिया। रात डेढ़ बजे के अनकरीब उसका फोन आयाए पकड़ा गया। फरीदाबाद से चला सामान कोसी के पास लगी बार्डर पर पकड़ा गया। दिसंबर.जनवरी की हाड़ कंपाती सर्दी थी और ड्राइवर कह रहा था आप आ जाइए। मेरे पास उस समय बाइक थी। साधन वही थाए उसी से गया। वहां सौदेबाजी होने लगी। पहले तीस हजार से बात शुरू हुई बाद में १८ हजार में मामला निपटा। इस दरमियां ट्रक वाले ने कहा यह तुम्हारी समस्या हैए तुम निपटोए मेरे पास समय नहीं है। उसने इतना कहा और केबल पटककर चला गया। फिर हम लोग बाइक पर उसे लेकर चलेए कोई और विकल्प था नहीं। बाइक डावांडोल होतीए जैसे.तैसे ठिकाने तक पहुंची।
ऐसी ही एक और घटना का जिक्र करते हुए प्रभु व्योमपाद ने बताया कि एक बार सर्दियों के समय में ही हमें यानी चित्रांग चैतन्य प्रभु और मुझे दिल्ली के लिए निकलना था। प्रभु चंचलापति दिल्ली पहुंचने वाले थे। हमारे पास तब तक सेकंड हैंड सेंट्रो कार आ गई थी। कोहरा थाए जबरदस्त। प्रतीक्षा करते हुए कि कोहरा छंट जाए नौ बज गएए फिर हिम्मत कर निकल गए। आगे चल रही गाड़ियों का पीछा करते हुए कि अचानक आगे वाली गाड़ी रुक गई और हमारी कार भी भिड़ गई। बोनट टूट गया। उसे ठीक करने के लिए आगरा के शोरूम में दिया। वहां एक दक्षिण भारतीय शख्स मिले। मैं भी दक्षिण भारतीय हूंए इसलिए सहज रूप में बात.बात में विश्वास हो गया। १५.२० हजार रुपये उसने मांगे। हमने कहा भाईए मामला संस्था का है। इसलिए रसीद देनी पड़ेगी। बमुश्किल वह अंदर गया। लेटरपेड पर उसने लिखकर दिया। कहा कि १५.२० दिन में गाड़ी ठीक हो जाएगी। गाड़ी ठीक हो गई तो उसने कहा आप मत आइए मैं खुद एक.दो दिन में ले आऊंगा। उसके न आने पर मैं शोरूम गया। गाड़ी का बिल २५ हजार रुपये बना। मैंने कहाए हम पहले ही आधे से ज्यादा पैसे दे चुके हैं। मेरे पास रसीद है। शोरूम मालिक बोलाए हमें एक भी पैसा नहीं मिलाए वह आदमी भाग गया है। हमें पूरे पैसे चाहिए। फिर हमने हारकर वृंदावन के एक सलाहकार को बोला तो उसने कहा कि मैं आपको जिला जज के पास ले चलता हूं।
इस बीच हम एसएचओ से भी मिलेए वह पूरे फिल्मी अंदाज में वहां गया भीए लेकिन शोरूम के मालिक का एसपी से अपनापा थाए इसलिए कुछ हुआ नहीं। अंततः केस हुआ और फिर वह माना। ऐसी अनेक दिक्कतें आईं तब कहीं आज का स्वरूप दिखाई दे रहा है।
भोजन तो शुरू कर दिया। ज्यादातर खिचड़ी बनती थी। बच्चे पसंद नहीं करते थे। वे रोटी की मांग कर रहे थे। रोटी बनाना बड़ी तादाद में आसान बात नहीं थी। हमें पता चला कि अमृतसर में रोटी बनाने की मशीन मिल सकती है। हम वहां गए। वहां पिज्जा.ब्रेड की मशीन को संशोधित कर सरदारों ने रोटी बनाने की मशीन बना ली थी। मूल मशीन लेबनान की थी। फिर किसी ने बताया कि इस मशीन की बजाए चंड़ीगढ़ जाएंए वहां रोटी बनाने की मशीन है। हम वहां गए। चित्रांगद प्रभु और चंचलापति प्रभु साथ थे। चंड़ीगढ़ से ५० किमीण् दूर राजपुरा में बिस्किट बनाने का केंद्र था। उस प्लांट को उन लोगों ने रोटी बनाने की मशीन में बदल दिया। इस मशीन का सौदा हुआए करीब १४ लाख मेंए फिर करीब छह महीने में मशीन वृंदावन आई और पहली बार वृंदावन में दस हजार रोटी एक साथ बना पाने की हैसियत भी आई। अब तो इसके कई नए स्वरूप भी बाजार में आ गए हैं।
व्योमपाद प्रभु नागपुर और भिलाई के भी प्रभारी हैं। उनसे पूछा गया कि प्रभुपाद के अनुसार उनके मंदिर के आसपास के दस किमीण् के क्षेत्र में कोई भी भूखा न रहेए इसमें बच्चों और स्कूल की ही बात नहीं है। छत्तीसगढ़ सुदूर इलाकों जैसे सुकमाए नारायणपुरए दंतेवाड़ाए बस्तरए अबूझमाड़ में भीषण गरीबी है। इसके लिए क्या कोई योजना है। इस पर प्रभु ने कहाए जरूर। हम पहले से भी कुछ करना चाह रहे थेए लेकिन नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र होने से कर नहीं पाए। मान भी लें कि वे अक्षय.पात्र पर हमला् नहीं भी करतेए मगर भोजन तो मांग ही सकते थे। यदि हम उन्हें भोजन दे देते तो पुलिस की आंख की किरकिरी बन जाते। मैं दुर्ग जिले की जेल में नक्सल कमांडर से मिलने भी गया था। मैंने पूछा कि आपके लोग हमारी गाड़ी भी रोकेंगे क्याघ् उसने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। अब कुछ हालात सुधरे हैं। पिछले दिनों ही संघ के पदाधिकारियों से संवाद हुआ था। उन्होंने चाहा कि अक्षय.पात्र का प्रसार सुदूर छत्तीसगढ़ में भी किया जाए। मैं पिछले पंद्रह सालों से यहां काम कर रहा हूं और भलीभांति जानता हूं कि अंचल में भीषण गरीबी है। गरीबी का पारावार नहीं है। हम जल्दी ही इस बारे में ठोस कदम उठाएंगे। यही नहींए मैं नागपुर का भी प्रभारी हूं। वहां से भी मांग आ रही है कि गढ़चिरौली के लिए भी कुछ किया जाए। जानते ही होंगे कि गढ़चिरौलीए महाराष्ट्र का नक्सल प्रभावित इलाका है।
उन्होंने कहा कि इस बार जरूर कुछ ठोस और सार्थक पहल करेंगेए ताकि स्वामी प्रभुपाद के अभीप्सित संकल्प को पूरा किया जा सके। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में स्थितियां बदली हैं और मुझे विश्वास है कि अक्षय.पात्र भविष्य की योजनाओं के सहारे नई सुबह लाने में कामयाब होगा।
अक्षय.पात्र गुजरात के प्रभारी प्रभु जगमोहन दास ने गुजरात में अक्षय.पात्र की यात्रा के बारे में बताया कि २००६ में प्रदेश के मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी। उन्होंने हमे बुलाकर अक्षय.पात्र के राज्य में आरंभ करने की इच्छा जाहिर की। गांधीनगर के इंडस्ट्रियल एरिया में २००७ में रसोई शुरू हुई। यह सेन्ट्रलाइज;केंद्रीकृतद्ध रसोई थी। गांधीनगर भी चंडीगढ़ की तरह सेक्टर में बंटा हुआ है। अप्रैल.मई २००७ में पहले दिन से पांच हजार बच्चों के लिए रसोई शुरू की गई। नरेन्द्र मोदी स्केल और स्पीड के लिए जाने जाते हैं। इससे हमारी गति भी बढ़ गई। हालांकिए अक्षय.पात्र तब सात बरस का शिशु ही था। हमारे पास संसाधन भी नहीं थे। जयपुर और अन्य नगरों से संसाधन जुटाए गए। यह सब भी निरापद नहीं रहा। ८० के दशक में मध्याह्न भोजन की अवधारणा नहीं थीए फिर भी आंध्रए तमिलनाडू और गुजरात में अपर्याप्त तरीके से थोड़ा बहुत कुछ होता था। उसे जो लोग गुजरात में चलाते थे उन्हें संचालक कहते थे। अक्षय.पात्र की मुहिम से सबसे ज्यादा पीड़ा उन्हें हुई।
मोदीजी ने हमे जमीन आवंटित की। स्वाभाविक रूप से हम उनसे मिलने गए और आग्रह किया कि जमीन की दर में कंसेशन किया जाए। उन्होंने दो टूक कहा कि यह कतई संभव नहीं है। आपको सरकारी दर से भुगतान करना पड़ेगा। यद्यपि मोदी जीए राजस्थान में अक्षय.पात्र के काम को देखकर आए थेए उससे प्रभावित भी थे। फिर भीए उन्होंने यह चाहने के बावजूद कि अक्षय.पात्र जल्दी से जल्दी अपना कार्य गुजरात में आरंभ करेए कोई कंसेशन नहीं दिया। करीब १६ करोड़ रूपये जमीन के एवज में जमा करवाए। इससे पहले तक इंडस्ट्रियल एरिया से काम चल रहा था। हम लोगों के पास जनरेटर भी नहीं थाए फिर भी रसोई में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आयी। रसोई शुरू होने पर संचालक किस्म के लोगों ने विरोध किया। काली पट्टी बांधकर प्रदर्शन किया लेकिन मोदी जी ने इस सबकी कोई परवाह नहीं की और न ही अपने लिए फैसले में कोई रद्दोबदल किया। संचालक समूह और उनके हितैषियों ने अक्षय.पात्र के भोजन से छिपकली निकलने जैसे झूठे प्रचार भी किएए लेकिन न गुजरात में और न मुख्यमंत्री में कोई फर्क पड़ा। अब तो अहमदाबाद के पास से अक्षय.पात्र संचालित हो रहा है और सिल्वासाए दमन.दीव तक भी अपनी सेवाएं दे रहा है। जब चंचलापति प्रभु ने मुझे वृंदावन से अहमदाबाद भेजा तब एक सपना था अक्षय.पात्र को लेकर। आज भुजए भावनगरए जामनगर समेत राज्य की नौ रसोई से पांच लाख बच्चों को प्रतिदिन गर्म और पौष्टिक भोजन दिया जा रहा है।
प्रभु जगमोहन दास का कहना था कि आरंभ में सभी बच्चे भोजन नहीं लेते थे। माना जाता था कि यह सब गरीब बच्चों के लिए है। अनेक बच्चे अपने घरों से भोजन लेकर आते थेए लेकिन निरंतर संपर्क और संप्रेषण से आज ९० फीसदी बच्चे अक्षय.पात्र का भाव.भरा भोजन साथ बैठकर खाते हैं। इससे बच्चों में सामूहिक विकास की भावना विकसित होती है। आपस में भाईचारा और एकता बढ़ती है। साथ रहकर सबके सहयोग से काम करने की भावना बिना भेदभाव के एक दूसरे को जोड़ती है। यही सामुदायिक विकास की भावना नरेन्द्र मोदी में भी हैए उनका मूलमंत्र है।
देश के अनेक स्थानों पर इसके साथ.साथ हरे कृष्ण आंदोलन अपने जीवंत नगर संकीर्तन से आध्यात्मिक आनंद को प्रसारित करता रहता है। इससे प्रेमए शांति और अध्यात्म का संदेश घर.घर पहुंचता है। आप देखें कि धर्म का विचार पूरी दुनिया में किसी सुखवादी भावना में नहीं रहा। सुखों का संग्रह हमें यथार्थ आनंद प्राप्त नहीं करा सकता। सुख की अभिलाषाए सुखों के उपयोग से शांत नहीं हो सकती। जैसे.कहा गया है ष्न जातु कामः कामनामुपभोगेन शाम्यतिष्। इसी तरह भगवान कृष्ण का गीता का संदेश सार्वभौम हैए इसका रचयिता सर्वग्राही है। इसलिए कृष्ण प्रत्येक स्वभाव की सिद्धि हैं। जब वे कहते हैं मैं हाथियों में ऐरावत हूं या ऋतुओं में वसंत तो इसका अर्थ यही है कि हाथियों में जो ऐरावत नहीं हो पाए वे थोड़ा चूक गए हैं। ऐसे ही हर ऋतु वसंत होने को पैदा हुई है मगर नहीं हो पाई तो चूक गई। ऐसे ही हर बच्चे में सफलता कीए अपनी गूंज को दुनिया में फैलाने की पूर्ण संभावना है। अक्षय.पात्र एक बच्चे की पोटेंशियलिटी कोए बीज रूप संभावना को आकाश देने की संकल्पना का नाम है। इसलिए किसी भी वजह से कोई बच्चा कहीं रूक न जाएए उसके भीतर की क्षमता यहां.वहां बिखर न जाए। इसके लिए जरूरी है शिक्षा और भोजन। परिवेश के लिए अनिवार्य है संकीर्तन। तभी एक ऐसा समाज बन पाएगाए जिसमें लोग वैयक्तिक विकास की हाहाकारी कंधाछीलू प्रतिस्पर्धा से दूर होंगे और एक.दूसरे की मदद कर सकेंगे। एक साथ बैठकर भोजन करने की अक्षय.पात्र की योजना और क्रियान्वयन का प्रभाव आज भी दिखाई दे रहा है और आने वाले वर्षों में तो यह और भी ज्यादा दिखाई देगा। इसलिए भी कि यह आत्म और वस्तुनिष्ठ चिंतन में ऐसा आयाम जोड़ता है जो प्रायः प्रकट नहीं होता और समाज बंटता हुआ दिखाई देता है। जैसे तुलसीदास में निराला कहते हैं.
हो रहे आज जो खिन्न.खिन्न
छुटकर दल से भिन्न.भिन्न
यह अकाल कलाए गह सकल छिन्न
जोड़ेगी रविकर ज्यों बिंदु.बिंदु
जीवन संचित कर करता है वर्षण
लहरा भव.पादपए मर्षण मन मोड़ेगी।
सच्ची जीवनानुभूति के संकट को दूर करने का एक मात्र तरीका साथ.साथ होना है। उठना.बैठनाए पढ़ना और साथ.साथ भोजन करना है। एक जैसी अनुभूतियां अलग.अलग धरातल का निर्माण नहीं कर पाती तो आपस के गैप कभी बड़े और विकराल नहीं होंगे। सब पढ़े.सब गढ़े के आधार पर ही एक समान रचना की उम्मीद की जा सकती हैए जिसके लिए अक्षय.पात्र अनथक लगा हुआ है। किसी ने कहा है.
सिर्फ आंखों से ही दुनिया नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई;दृष्टिद्ध बनाकर देखो।
ष्द हार्ट ऑफ हिंदुइज्मष् लेख में हिवर्ट जर्नल में कहा गया कि भारत में धर्म को रूढ़ि अथवा हठधर्मिता का स्वरूप प्राप्त नहीं हैए वरन् यह मानवीय व्यवहार की ऐसी क्रियात्मक परिकल्पना है जो आध्यात्मिक विकास की विभिन्न स्थितियों मेंए जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में अपने आपको अनुकूल बना लेती है। इसकी चेतना मूल रूप से आध्यात्मिक है। यहां की प्रगाढ़ आध्यात्मिकता ने ही काल के विध्वंसकारी प्रभावों और इतिहास की दुर्घटनाओं को सहने करने की सामर्थ्य प्रदान की है। जैसे पूर्व में भी भारतीय दर्शन की रूचि किसी काल्पनिक एकांत में नहीं मानव समुदाय में रही है। इसी के लिए प्रार्थना है। प्रार्थना औषधि है। वह कहती है कि आप अकेले नहीं हो। अक्षय.पात्र संस्था इसी भाव के साथ भक्ति भाव के साथ कर्मरत है। यही कारण है कि कृष्णावतार चैतन्य और स्वामी प्रभुपाद संस्था के ध्येय हैं। हरे कृष्ण मंत्र का जाप जो दिव्य प्रेम की अनुभूति का सरल और गहन सूत्र हैए यह श्रील प्रभुपाद से होकर आज मधुपंडित दासए चंचलापतिए भरत प्रभु से होता हुआ करोड़ों कंठों की ध्वनि है। ष्हरे कृष्ण.हरे कृष्णए कृष्ण.कृष्ण हरे.हरेए हरे रामए हरे राम राम.राम हरे.हरेष् यह स्वरित हुआ और आप में पुष्पित होने की संभावना बनी। भीतर का दीया जले आप रोशन हो जाते हो। यह निष्पति हैए कथन नहीं। संस्कृत में दुःख और ज्ञान के लिए एक ही शब्द है ष्वेदनाष्। वेद का अर्थ है ज्ञान और विद का अन्तर वासना। धर्म की यात्रा का प्रारंभ प्रार्थना से होता हैए इसका अर्थ है आस्थाए आशा और सारे जगत से जुड़ने का भाव। इसी भाव को लेकर इस यात्रा का आरंभ हुआए जिसे आज आप विकसित रूप में अक्षय.पात्र के रूप में देख रहे हैं। इसीलिए यह महज एक एनजीओ नहीं है। विश्व के प्रख्यात चिंतक बट्रेड रसेल ने लिखा कि एक बार वे कहीं गए हुए थे। उन्होंने देखा कि उन्मत भाव से आदिवासी झूम रहे थेए नृत्य कर रहे थे। उन्होंने लिखा कि मैंने सोचा कि काशए मैं भी यह नृत्य कर सकूं तो मैं अपनी सारी बुद्धि को दांव पर लगा सकता हूं। बुद्धि के तनाव को छोड़कर भाव और हृदय की तरफ उतरना सरल लगता हैए होता नहीं। इसलिए आप देखें कि प्रभुपाद का पहला कदम प्रार्थना के उपवन में उत्सव बन जाता है और पूरी दुनिया नाच उठती है। इस्कान के इन्हीं संतों ने ही अक्षय.पात्र को आकार दिया और साथी कार्यकर्ताओं को भी समझाया कि यह सब भी उसी भाव और भक्ति का प्रस्फुटन हैए जिसे अलग से आप करते हैं।
अक्षय.पात्र के संस्थापक मधुपंडित दास ने बताया कि संकीर्तन के भाव में रहकर किसी भी कार्य को करने से संगति कृष्ण से बैठ जाती है। जैसे रूस के वैज्ञानिक पुश्किन ने घोषणा की है कि पौधे भी आपकी खुशी से प्रभावित होते हैं। आप दुःखी होते हैं तो वे भी दुःखी होते हैं। पुश्किन ने पौधों को सम्मोहित करने का प्रयोग किया। एक आदमी को बेहोश कर दिया और पास में गुलाब का पौधा रख दिया। व्यक्ति से कहा कि तुम आनंद से भर गए होए तुममें आनंद की लहरें उठ रही हैंए भीतर उजेरा फैल गया है। वह व्यक्ति आनंद में डोलने लगा। उसके मष्तिस्क पर लगाए गए इलेक्ट्राड्स उसके दिमाग की तरंगों को संग्रहित कर रहे थे। गुलाब के पौधे पर भी इलेक्ट्राड लगाए गए। आप अचरज करेंगे कि जिस तरह का ग्राफ उस व्यक्ति के इलेक्ट्राड में आयाए वैसा ही गुलाब का भी बना। यही वजह है कि मधुपंडित दास प्रार्थना के बाद संकीर्तन के बाद अपने कार्यालय में काम करने के लिए कहते हैं और बेंगलुरु से अन्यान्य जगहों पर इसे निभाया भी जाता है और इसी का परिणाम है कि अक्षय.पात्र ने अपने प्रतिस्पर्धियों को मीलों पीछे छोड़ दिया है।
इस प्रयत्न कोए परिश्रमए पसीने और साहस को एक और तरीके से समझें। एक साध्वी थी। मंदिरों में यहां.वहां रहती थी। पुराना समय था। उसके पास दो पैसे थे। कभी.कभार लोग उससे चुहल कर लेते कि इन दो पैसों का क्या करोगीघ् खर्च करती नहींए ये हैं कि बढ़ते नहीं। करोगी क्याघ् एक दिन उसने कह दिया कि ठाकुर का मंदिर बनवाऊंगी। कृष्ण मंदिर। किसी ने तंज कसाए मंदिर बनाएगा कौनघ् एक तुम हो और दूसरे तुम्हारे दो पैसे। उसने कहा जो हमसे बड़ा हैए यहीं हैंए उसे तुम कैसे भूल गए। वह कृष्ण है। हम सभी से मिलकर कम नहींए ज्यादा है। यही बात को कृष्ण ने कहीए ष्मैं उसको जो सगुण रूप सेए साकार कोए परमात्मा की धारणा कोए उसके चरणों में अपने को अर्पित करता हैए अनन्य भाव से निरंतरए सतत उसका स्मरण करता हैए वही उसकी धुनए वही उसका स्वरए हर सांस में समा जाता हैण्ण्ण्ण्ण्मैं उसका उद्धार कर देता हूं।ष् बिल्कुल इसी भाव भूमि पर बिना आर्थिक सहयोजन केए सिर्फ संकल्प के आधार पर बेंगलुरु इस्कान और अक्षय.पात्र का निर्माण हुआ।
ष्अब नहीं है कदमए तो मैं गरीब कीमंजिल को कह दोएदौड़ के ले मुझको राह मेंष्
औरण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्
ष्सुबह फूटी तो आसमान में तेरेरंगे.रुखसार की फुहार गिरीष्
इसलिए जरूरी है समझना कि परम प्रेम की साधना भक्ति है। जैसे नारदजी भक्ति के प्रचारक और दिव्य.प्रेम के प्रतीक हैं। उन्होंने नारद सूत्र में कहा. ष्सा तू प्रेम स्वरूपाष् ;यह प्रेम का सर्वोच्च रूप हैद्ध फिर कहा ष्हरिनाम संकीर्तनष्ए फिर कहा ष्भक्तिदेव गौरीसीष् ;भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ हैद्ध उन्होंने भक्ति की परिभाषा नहीं दीएक्योंकि इसकी परिभाषा हो ही नहीं सकती। इसकी सिर्फ व्यवस्था हो सकती है। इसलिए नारदजी ने भक्ति को अतुलनीय प्रेम से उत्तम बताया था। कहा. ष्स निरतिशय प्रेमात्मकःष् क्यों नहीं हो रही दूसरी पहल अक्षय.पात्र जैसी। वह तभी होगी जब कार्यारंभ भक्ति भाव से होगा। नारद जी ने जिस तरह की व्याख्या कीए उसका मूर्तिमान स्वरूप महाप्रभु चैतन्य हैं और अचिंत्य स्वरूप स्वामी प्रभुपाद। कहते हैं.
ष्कहीं और नहींअपने में कोई गहरी तलहटीकहीं विश्राम मिलाकोई छाया का आरक्षित क्षेत्रवहां धूप न थीवहां गहरी शांति थीकोई तरंगे भी वहां न बोलींसपनों के जाल भी नहीं।ष्
इसी समर्पण और भक्ति.भावी सेवा का परिणाम है कि जो बच्चे एक बार भी अक्षय.पात्र के वलय में आ गए वे इसे सहज विस्मृत नहीं कर पाते। लंदन स्टॉक एक्सचेंज में काम कर रहीं प्रेमा पहले शासकीय उच्चतर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ती थी और उसने एमएलए अकादेमी से बीण्बीण्ए किया। अपने बचपन में प्रेमा लबालब उत्साह से भरी लड़की थी और हमेशा किसी से भी संवाद करने को आतुर रहती थी। उसके उत्साह और संवाद.शैली ने उसे स्कूल का संयुक्त सचिव बना दिया। उसे कक्षा तीन से १० तक अपने साथियों के साथ अक्षय.पात्र का भोजन मिलता रहा। आज भी वह उस स्वाद और अपनेपन को याद कर बताती है कि हम सभी अक्षय.पात्र के दोपहर के भोजन की प्रतीक्षा बड़े कौतुहल से करते थे। याद करते रहते थे कि आज भोजन में क्या.क्या मिलने वाला है। इसलिए कि प्रतिदिन भोजन अलग.अलग रहता था। चावलए सांभरए दही लगभग सभी को प्रिय था। प्रेमा ने बताया हमेशा भोजन बेहद उम्दा गुणवत्ता का होता था और सब्जियां पौष्टकिता से भरपूर। उदाहरण के लिए परोसा जाने वाले सांभर में कई सब्जियां होती थीं। इससे एक तो एक से भोजन से होने वाली नीरसता नहीं होती थी और दूसरा दैनंदिनी का पौष्टिकता का डोज भी पूरा हो जाता।
शनिवार को वितरित किए जाने वाले पोंगल और बिसीबेले भात को वह बेहद चहककर याद करती है। बिसीबेले भातए कर्नाटक में बनाया जाता है। कहते हैं इसे सबसे पहले मैसूर राज्य में बनाया गया। इसे कर्नाटक के बच्चे बहुत पसंद करते हैं। उसे आज भी याद है कि साथी बच्चों के घरों में भी दो जून रोटी का संघर्ष था। अनेक बच्चे तो बचा हुआ भोजन समेटकर घर ले जाते थे। उसके पालक ६००.८०० रुपये रोज कमा पाते थे। सरकारी मुक्त शिक्षा के तहत बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए पसंदीदा महाविद्यालय में प्रवेश लेने में दिक्कत होती थी। प्रेमा ने अक्षय.पात्र में स्कालरशिप के लिए आवेदन कियाए उसका भाई पहले ही से अच्छा विद्यार्थी था। दोनों को अक्षय.पात्र स्कालरशिप मिली।
प्रेमा की आंखें आज गर्व से दीप्त हैं। आज दोनों भाई.बहन परिवार को आर्थिक रुप से संभालने में जुटे हैं। अब वे अपने पुराने घर में नहीं रहते। वे लोग अब एक बड़े घर में चले गए हैं। परिवार में बेहतर जिंदगी की खुशियां आ गई हैंए वह इस सबके मूल में अक्षय.पात्र को खड़ा पाती है। कहती भी है कि अक्षय.पात्र न होता तो मेरे परिवार के दुर्दिन न बदलतेए मेरा भविष्य शायद ही संवर पाता।
धारवाडए कर्नाटक की रेशमा भी अक्षय.पात्र की सेवाओं को किसी आत्मीयजन द्वारा की गई सेवाओं की तरह देखती हैं। वह कहती है जैसे कोई मां अपने बच्चे के लिए निश्चित समय पर निर्धारित स्थान परए गर्म पौष्टिकए सुरुचिपूर्ण और भरपेट भोजन जुटाती है और उन्हें खिलाकर संतुष्ट होती हैए वैसे ही अक्षय.पात्र भी बच्चों के लिए नियमित पौष्टिक और भरपेट भोजन के लिए हर बच्चे के मन में आजीवन रहेगा। हमे अपने हाईस्कूल के दिनों में मध्याह्न भोजन मिलता थाए वह अक्षय.पात्र से आता था। इसमें चावलए सब्जी मिश्रित सांभरए बिसीबेले भातए खारा पोंगल और चटनी हुआ करती। सब्जियों से लवरेज सांभर बहुत स्वादिष्ट होता। साथ हीए हमें दही भी परोसा जाता।
इस भोजन ने हमें कक्षा नौवीं और १०वीं में पर्याप्त मदद की। हम ब.मुश्किल सुबह जल्दी.जल्दी नाश्ता करके स्कूल के लिए निकल जाते। १ण्३० बजे तक कसकर भूख लग आतीए फिर जैसे ही इच्छित भोजन मिलता वैसे ही आंखों की रोशनी बढ़ जातीए लगता कि शरीर में ऊर्जा बढ़ गई है। भूखे होते तो हममें से कोई अध्ययन पर एकाग्र नहीं हो पाताए लेकिन भोजन मिलते ही सारी कोशिकाएं पूरी ताकत से काम करने लगती। हम सभी का ध्यान भोजनावकाश पर रहता।
मेरे पिता दस्तकार हैं और परिवार में मैं अकेली हूं जो पढ़ी.लिखी हूं और आगे चार्टर्ड एकाउंटेंट बनना चाहती हूं। हमारे घर से स्कूल पांच किमीण् दूर था। मैं रोज पैदल ही स्कूल आती.जाती। पढ़ती ठीक थीए इसलिए शिक्षकों की चहेती थी। उन लोगों ने मेरे पढ़ने के जज्बे को देखा और कालेज तक मेरी फीस भी अदा की।
मैं सोचती हूं एक विद्यार्थी के लिए अच्छी तरह से पढ़ाई करने के लिए जरूरी है कि उसका पेट भरा रहे। जो कुछ भी कक्षा में पढ़ाया जाता हैए वह शायद दिमाग तभी रजिस्टर करता है जब पेट खाली न हो। अन्यथा आप कुछ भी याद नहीं रख पाते और याद नहीं रख पाते तो पूछने पर बता भी नहीं पाते। भोजन से ही हमारी शारीरिक और मानसिक क्षमता का विकास होता है। मानसिक क्षमता के बढ़ने से ही आज आप अपने अध्ययन पर फोकस कर पाते हैं। खेलए खेल पाते हैं। इतना ही नहींए अपने सपनों को पूरा कर पाते हैं। हमें जितनी भी सब्जियां दी जाती हैंए उन सभी को हमें खाना चाहिएए क्योंघ् क्योंकिए उनमें सर्वाधिक पौष्टिक तत्व होते हैं। इतना ही नहींए जितना चाहिए उतना ही भोजन लेना चाहिएए ताकि भोजन का नुकसान न हो। मैं और मेरे साथी समय पर भोजन मिलने को लेकर अक्षय.पात्र का सदैव ऋणी रहेंगे।
ऐसी अनेकानेक कहानियां हैंए जिससे आप अक्षय.पात्र की लगनए तपस्याएसमर्पण के तापमान को समझ सकते हैं। अमूमन होता जीवन में कुछ ऐसा है जो बीत जाता हैए उसकी बात भी खो जाती है। लेकिन यदि फिर भी कुछ स्मृति में रह जाता है तो उसका अर्थ है उसनेए उस क्षण ने अपनी उपस्थिति से आप पर हस्ताक्षर कर दिए। राजस्थानए जयपुर के एलडीसी स्कूल की कृष्णा चौधरी उन दिनों और अहसासों में भींगकर उतर जाती हैए जब वह छठवीं और सातवीं में पढ़ती थीं। वह उसके स्वादए समय और निरंतरता को डूबकर याद करती हैं। घर जैसा स्वाद जैसे मां ने बनाया होए ठीक समय पर भोजन जैसे कर रही हो मां चिंता और लगातार भोजन का आग्रहए यह सब अक्षय.पात्र में मैंने कहूं या हमने समझ नहीं आ रहाए लेकिन ऐसा होता रहा। नवमीं में आए तो मध्याह्न भोजन बंद हो गया। हम देखते थे कि छोटे बच्चों को गर्मा.गर्म भोजन परोसा जा रहा है। मन करता था हमें भी दिया जाए। अक्षय.पात्र का भोजन साफ.स्वच्छ और स्वादिष्ट होता। यह आर्थिक स्थिति से पिछड़े हर बच्चों की कुछ इस तरह इमदाद करता है कि वे मानसिक और शारीरिक रूप से समर्थ हो जाते। इतना ही नहींए उनकी अध्ययन में अभिरूचि भी बढ़ जाती। अभिनेताए लेखक और निदेशक विनायक एमण्एनए राव का मानना है कि यदि आप भूखे हैं तो आप जीवन में कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। रचनात्मक क्षेत्र में मेरी रुचि स्कूल के दिनों से थी। मैं वहां इतना सहज महसूस करता था कि लोगों के सामने पूरे आत्मविश्वास से अपनी कला का प्रदर्शन कर लेता था। फिर वह कविता पढ़ने की बात होए कुछ बोलना होए या कुछ और। हमें मध्याह्न भोजन कक्षा पांच से मिलना शुरू हुआ। उसके पहले के चार बरस संघर्ष में ही कटेए लेकिन पांचवीं में हम अपने को बड़ा समझने लगे। शायद इसलिए कि हम भोजन के लिए उन पर निर्भर नहीं रह गए थे। मुझे लगता है कि शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों का ज्ञानए उनकी प्रतिबद्धता और समर्पण असीमित होते हैं। शायद इसलिए कि वे अत्यंत असहज स्थितियों में होते हैं। लेकिन उन्हें जब भी सही अवसर मिलता हैए वे प्रमाणित कर देते हैं।
मैं निश्चित ही अक्षय.पात्र के मध्याह्न भोजन का चिर ऋणी हूं। मुझ जैसे सैकड़ों बच्चे आज भी उस भोजन की ताजगी और गुणवत्ता के लिएए उस अपनेपन से परोसे जाने के लिए अक्षय.पात्र को याद करते रहते हैं। आज मैं उभरते हुए अभिनेताओं को प्रशिक्षित करता हूं। मैंने भारतीय फिल्म निर्माता योगराजभट्ट के साथ भी काम किया है।
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अंतिम
कृष्णा की रसोई
अक्षय-पात्र.
अक्षय-पात्र और उसके संतों ने उद्देश्य के लिए, लक्ष्य के लिए, सामाजिक सरोकार के लिए खुद को समर्पित कर दिया। कोई आत्मवान ही समर्पित हो सकता है, जैसे अर्जुन हुआ। इसके बिना समर्पण की कोई गुंजाइश नहीं । धर्म की प्रबल गहराइयों में उतरे और भीगे लोग ही समर्पण कर सकते हैं। फिर कृष्ण के प्रति समर्पण तो और भी अनूठा होगा। कृष्ण स्वयमेव अंतहीन गीत है, एक असमाप्त कविता चिरंतन नृत्य। इसलिए कृष्णार्पित लोग हॅंसते हुए, नाचते हुए सकीर्तन में लीन दिखाई देते हैं। चंचलापति जैसे शख्स अपनी सोच में मौलिक व्याख्याएं रखते हैं। वे अपनी अवधारणा में अनुभव की प्रामाणिकता रखते हैं। उन्हें सुनना भी एक अनुभव है। वृंदावन चंद्रोदय मंदिर में एक बार उन्होंने बताया कि हम इस दुनिया में आए हैं, यह एक अस्थायी स्थिति हैं। अस्थायी इसलिए है कि यहाँ सब प्रतिपल बदल रहा है, आपकी आयु, देह, और अन्यान्य ! इसे ऐसे समझे जैसे आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं, 24 घंटे की यात्रा है, मगर आप उसकी खिड़की से, सीट से, पड़ोसी से जुड़ते नहीं है। जुड़ते नहीं है का मतलब लगाव नहीं लगा पाते। भले आप कहें कि यह मेरी ट्रेन है, बर्थ है या सीट है, आपका लगाव व्यक्ति या रिश्ते की तरह नहीं होता। हमारी सोच बदल जाती है, हमें लगने लगता है कि इस सबका उपयोग कैसे और कितना कर सकता हूँ । इसीलिए गीता में कहा गया कि हमें भावातीत चीजों के प्रति मुड़ना चाहिए। उन्होंने पुर्नजन्म न मानने वालों से कहा कि आप शरीर के बारे में भी गलत तरीके से सोचते हैं। यदि आपसे पूछा जाए कि मैं आपके घर आता हूँ । तो मुझे उस बच्चे से मिलवाइए जो स्कूल जाता था। अब यह असंभव है। क्योंकि वह बच्चा तो बड़ा हो गया। उसे कहाँ से लाओगे ? आदमी वहीं है, मगर बचपन बदल गया। शरीर निरंतर बदलता रहता है। हम कौन है ? शरीर से इतर एक अनंत आत्मा । प्राकृत देहा। उससे जुड़ना होगा। निरर्थक लगावों से मुक्ति पानी पड़ेगी। सभी चीजें जो भी देखी जा सकती हैं, कृष्ण की रचना है। कृष्ण का ही सब कुछ है। उनका आशय यह था -
यथाक्षीरे च धावाल्यं यथा वह्नौ च दाहिका।
भुविगंधाँ जले षैत्यं तथा कृष्णे स्तिथस्तव।।
जिस प्रकार दूध में धवलता, अग्नि में दाहकता, पृथ्वी में गंध, जल में शीतलता होती है उसी प्रकार कृष्ण में तुम्हारी स्थिति हैं।
इसी तरह चैतन्य महाप्रभु को उल्लखित करते हुए रुप गोस्वामी ने लिखा-
एकत्वं च पृथक्त्वं च तशीरात्व मुंताशिता।
तस्मिनेकत्र नायुक्त अंचित्यानंद शक्तितः (लघुभावनामृत)।।
अर्थात् भगवान् श्रीकृष्ण में उनके स्वरूप आदि शक्तियों से अभिन्न रुप से चिंतन करना अशक्य होने से भिन्न प्रतीत होता है और भिन्न रुप से चिंतन करना अशक्य होने से वह अभिन्न प्रतीत होता है।
चैतन्य मत के अनुसार,
आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद्धाम वृन्दावनं।
रम्या काचिदपुसना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता।
श्रीमद्भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान्।
श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतमिदं तत्रादरो नः परः ।।
वृज स्वामी श्रीकृष्ण ही आराधनीय भगवान है। श्रीमद् भागवत निर्मल प्रमाणशास्त्र है। प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है।
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कार्य-कारण संबंधों पर पूछे गए एक सवाल पर चंचलापति पति प्रभु कहते हैं वैदिक साहित्य में किसी भी कार्य का एक कारण नहीं पाँच कारण होते हैं। पहला अधिष्ठान, दूसरा कर्ता, तीसरा कर्णा, चौथा चेष्टा और पांचवा देव। अधिष्ठान का अर्थ है नींव, कर्ता यानी करनेवाला, वह व्यक्ति भी हो सकता है और समूह भी, कर्णा अर्थात् क्रिया संवाहक, चेष्टा यानी विशेष प्रयासित विचार और क्रिया, देव का अभिप्राय है दिव्य अभिस्वीकृति। इस सबसे सारे कार्य होते हैं, लेकिन अंतिम कारण का कारण नहीं होता। सर्वकारण कारणम्।
इसी तरह ये चचंलापति प्रभु कर्म, अ-कर्म और विकर्म को समझाते हुए कहते हैं कि कर्म वे कार्य है, जिन्हें हम अपनी इच्छा से करते हैं। उनकी प्रतिक्रिया भी होती है। जैसे विज्ञान कहता है प्रत्येक क्रिया की उसके बराबर किंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। अकर्म का अभिप्राय यह है कि जिसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। लेकिन विकर्म की विपरित प्रतिक्रिया होती है। उन्होंने अपनी प्रस्थापना के पक्ष में एक कथा सुनाई। एक गांव था, वहां एक मंदिर था। उसमें एक व्यक्ति गया, वह किसान था। उसने प्रभु से प्रार्थना की कि इस बार जोरदार बारिश हो तो फसलें लहलहा उठेंगी। गांव संपन्न हो जाएगा, हर घर चूल्हे जलेंगे, कोई भूखा नहीं रहेगा। थोड़ी देर में एक और व्यक्ति मंदिर पहुंचा। वह कुम्हार था, मिट्टी के बर्तन बनाता था। उसने प्रभु से प्रार्थना की कि प्रभु मेरे ग्यारह बच्चे हैं। बड़ी मेहनत से इस बार तरह-तरह के पात्र बनाएं हैं। कृपा करना कि इस बार बारिश न हो। ईश्वर ने विचार किया कि दोनों मेरे बच्चे है, लेकिन इनकी इच्छाएं विरोधभाषी है। इस पर कृष्ण ने पिछले कर्मो के आधार पर फैसला लेने का विचार किया। पिछले जन्मों के कर्मो के आधार पर ही फल प्राप्त होता है। बीज से ही फल प्राप्त होता है, जैसा बोएंगे, वैसा ही काटेंगे। यह बात युवाओं को समझाने की है।
इसी तरह चंचलापति प्रभु ने बड़ी बेबाकी से कहा कि सन्यास गणवेश में नहीं, घर में नहीं, जंगल में नहीं होता। यह ह्दय में होता है। जो अपने कर्म को कर्तव्य मानकर करता है,वह संन्यासी है।
यह ठीक वैसा ही भाव है कि संत स्थिति नहीं स्वभाव का नाम है।
गीता में कहा गया है,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
और
अक्षराणाम् अक्रोऽस्मि द्वन्द्वः सामसिकस्य च |
अहं एवक्षय: कालो धातहं विश्वोमुख: ||
अर्थात् एक श्लोक में है कि धर्म की प्रतिष्ठा के लिए मैं आता हूँ और दूसरे में है कि मैं अक्षरों में अक्षर और समासों में द्वंद समास हूं। यानि मैं सदैव हूँ। अगर है तो आते कहाँ से हैं, आते हैं तो जाते भी होंगे। इस प्रश्न पर चंचलापति ने श्रील प्रभुपाद का उल्लेख करते हुए बताया था कि जैसे सूर्य होता है, लेकिन रात को दिखाई नहीं देता। वह कहीं जाता नहीं। इसी तरह कृष्ण है लेकिन धर्म की ग्लानि पर परिलक्षित होते हैं। इसमें कहीं कोई विरोधाभास नहीं है।
अक्षय-पात्र से जुड़े सभी संत कृष्ण भक्ति में निमग्न हैं। इनमें एक है मैसूर के स्तोका कृष्ण स्वामी। वे मानते हैं कि कृष्ण भक्ति केवल आध्यात्मिक साधना नहीं जीवन को संपूर्णता देने वाला विज्ञान है। इस्कान ने श्रील प्रभुपाद द्वारा स्थापित शाश्वत भक्ति योग को देश और दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाया है। इस वैश्विक आंदोलन में अनेक महान आचार्य जुड़े हुए हैं, स्तोका कृष्ण स्वामी उन्हीं में से एक है। आप मैसूर अक्षय-पात्र और इस्कान के अध्यक्ष है। आपने अपना पूरा जीवन कृष्ण भक्ति में समर्पित कर दिया। मैसूर में इस्कान सन् 1999 में स्थापित हुआ। अब वहाँ विशाल अनंत पद्मनाथ मंदिर और उनके पीछे राधाकृष्ण मंदिर बन रहा है।
अर्थात
उनका कहना था कि श्रील प्रभुपाद ने धर्म को अभ्यासजनित धर्म में बदल दिया।
कृते यद्ध्यायतो विष्णुं त्रेतायां यजतो मखै:।
द्वापरे परिचर्यायां कलौ तद्धरिकीर्तनात् ||
आरंभ में धर्म में त्याग था। ऐसा सतयुग में होता था। फिर द्वापर आया तो उसमें मूर्ति प्रतिस्थापन के साथ पूजा-भाव आया। कलियुग है तो इसमें हरिकीर्तन ! हरिकीर्तन कितना आसान है। जीभ से उच्चारण कीजिए, कान से सुनिए, बस जीवन सार्थक हो जाएगा।
स्तोका कृष्ण स्वामी ने बताया कि यह यात्रा, मैसूर की यात्रा 2002 में आरंभ हुई। योजना बन गई, डिजाइन बन गया, फिर भी 2017 तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। जो 9 एकड़ जमीन आवंटित की गई, वहाँ कभी झील हुआ करती थी, आज तो पूरी तरह से सूख गई है। फिर भी निचला इलाका होने से उसमें पानी भर जाता था। अब ऐसा नहीं है। शहरी विकास प्राधिकरण ने कोशिश की, लेकिन बाद में छोड़ दिया। यह बात झील विकास प्राधिकरण के बीच में आने से पहले की है। राजस्व की जमीन है। कुल जमीन 45 एकड़ है, शेष जमीन पर वन विकसित कर लिया। यहाँ अनेक पक्षी, इनके अलावा मोर भी हैं।
स्तोका कृष्ण स्वामी ने बताया कि वे सन् 1985 से संपर्क में आए। इससे पहले वे चिन्मय मिशन, रामकृष्ण मिशन, और भी जगह रहे। सन् 1983 में मैं इन्फोसिस में था। उस समय इन्फोसिस में कुल 16 लोग थे और बंगलूर के जयनगर में छोटा सा किराये का मकान था। प्रोजेक्ट था अमेरिका में । हमको 1984 में अमेरिका भेज दिया गया। वहीं इस्कान से संपर्क हुआ। बोस्टन में रहना था। श्रील प्रभुपाद सबसे पहले बोस्टन ही गए थे। वहां अनेक अमेरिकन मिले, कीर्तन करते हुए, भारतीय नहीं मिले। हमने पूछा कैसे जुड़े तो उन्होंने श्रील प्रभुपाद की यात्रा सुना दी कि कैसे पूरी दुनिया में 108 सेंटर खुले । सनातन धर्म का प्रचार कि हरे कृष्ण मंत्र का जाप करेंगे तो हृदय शुद्ध हो जाएगा। कृष्ण भक्ति सुप्त है तो जागृत हो जाएगी व वहाँ से भारत आया इंफोसिस की तरफ से। उस समय बंगलूर मंदिर सदाशिव नगर में एक किराए के घर में था। वहां जुड़ने की प्रेरणा मधु पंडित दास और चंचलापति प्रभु से मिली। वर्ष बंगलूर रहा और 1997 में वहाँ बड़ा मंदिर बन गया।
उन्होंने कहा मद, मात्सर्य, लोभ, मोह, ईर्ष्या ये सब मल हैं। इन्हें धो देना है। जैसे एक सूर्य हैं, वैसे एक भगवान है।
वैसे कृष्ण भक्ति, राधा भक्ति का विवरण अत्यंत प्राचीन है।
राधे! विशाखे! सहवानु राधा!
(अर्थव 19/7/3)
इंद्रंवयंनुराधं हवामहे ! (अर्थव 19/5/2)
हे राधे, विषाखे! श्री राधजी हमारे लिए सुखदायिनी हो ।
स्तोत्रं राधानां पते गिर्वाहो वीर तस्य ते विभूतिरस्तु सूनृता।
यह मंत्र ऋग्वेद (1/30/5) में सामवेद और अथर्व तीनों वेदों में समान रुप से मिलता है। इसी तरह शिव पुराण में कलावती सुधा, राधा साक्षात गो लोकवासिनी और ब्रहम वैवर्त पुराण में, इसके 27 वें अध्याय में राधा-कृष्ण के वार्तालाप का प्रसंग है, जिसे पार्वती ने अभिव्यक्ति दी। स्कंद पुराण में व्याप्ति भी कहते हैं कि राधा भगवान कृष्ण की आत्मा है। पूरा भक्तिकाल कृष्ण भक्ति से आंदोलित है। 17वीं शताब्दी के धनानंद ने राधा-कृष्ण विहार का चित्रण बृज में किया लेकिन कृष्ण भावी इस्कान ने महा प्रभु चैतन्य की तरह कृष्ण नामस्मरण को भाव से,शब्द से, नृत्य से जोड़कर सरलतम और श्रेष्ठतम भक्ति प्रदान की है।
ऐसी ही मान्यता के एक और संत पुरी (उड़ीसा) में रहते हैं। अक्षय-पात्र और हरे कृष्ण मंदिर दोनों के आप अध्यक्ष है। अहर्निश कृष्ण-भाव के रहते स्वामी को लोग अच्युत कृष्णदास के नाम से पुकारते हैं। उड़ीसा यात्रा के समय उनसे भेंट हुई। उन्होंने बताया कि आरंभ में अनेक बाधाएं आयीं लेकिन शनैः शनैः सब अनुकूल होता गया। हमें जो जगह मिली वह कभी संस्कृत पाठशाला थी, पुराने स्कूल की बिल्डिंग थी। वहाँ से खाना ले जाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। स्कूल बिल्डिंग में कोई के कंपाउण्ड भी नहीं है। पुरी में जगह मिलना बहुत कठिन है। हमने सोचा टीक है, आरंभ करते हैं। पास ही मौसी माँ का मंदिर है अर्थात् भगवान जगन्नाथ की माँसी । रथ यात्रा के समय भी मौसी माँ का भोग होता है। हमारे चेयरमैन मधुपंडित दास ने कह दिया था कि भोग लगाया जाना चाहिए और इसी प्रेरणा से हमने भी कह दिया उस समय कोई आर्थिक मदद नहीं थी। आज तो अनेक दानदाता है। दो साल पहले उड़ीसा का दालमा, चावल और अन्य मिलाकर अन्नदान किया। 50 लाख का
कहाँ से आया, पता नहीं, लेकिन प्रभु कृपा से निरंतरता बनी हुई है।
अन्न क्षेत्र में अनेक लोग आते हैं। वहाँ पहुंचते ही स्वयंमेव भूख जागृत हो जाती है। कहते हैं भगवान जगन्नाथ वहाँ से किसी को बिना प्रसादी आने नहीं देते। यहाँ मंदिर में शांति नहीं मिलती। उसकी कोई ट्रेनिंग यहाँ नहीं होती। उसे जो पुकारता है प्यार से वह यहाँ का सदस्य हो जाता है। ज्ञान और जिज्ञासा के लिए जगन्नाथ देता है। उन्होंने बताया कि भगवान गणेश का एक भक्त आया, किसी ने कहा होगा कि यहाँ दर्शन करोगे तो मोक्ष मिल जाएगा। वह गणेश का भाव लेकर गया और जगन्नाथ जी ने उसे गणेशजी के रुप में दर्शन दिए। साथ एक बार आज भी गजवेश का रुप होता है।
उन्होंने बताया हमारे भक्त गुजरात, असम, कोयम्बटूर सभी जगहों से आते हैं और सभी को अपनी-अपनी रुचि के अनुसार भोजन मिलता है। अब भुवनेश्वर में जमीन मिली है, अगले बरस आप तो आएंगे ही, जन्माष्टमी साथ मनाते हैं। आपने बताया कि इस समय अक्षय पात्र 45 हजार बच्चों को भोजन वितरित करता है। 2006 जनवरी से शुरू हुआ और क्रम बढ़ भी रहा है। इसके अलावा अस्पतालों के अटैन्डर्स को भी खाना जा रहा है। जनता के लिए सबसिडी भोजन चल रहा है । 25 और स्थानों पर जिसमें अनाथालय भी शामिल हैं अक्षय पात्र का भोजन जा रहा है।
इसी तरह हरे कृष्ण आंदोलन और इस्कॉन बेंगलोर टिकाऊ कृषि और आध्यात्मिक जीवन की ओर कदम बढ़ा रहा है। श्रील प्रभुपाद ने जब 1965 में पश्चिमी देशों में हरे कृष्ण आंदोलन की नींव रखी, तभी सभी के लिए भोजन, पर्यावरण, शिक्षा और संस्कृति - को कृष्ण चेतना से जोड़कर एक संतुलित और सार्थक जीवन जीने का मार्ग सुझाया। प्रभुपाद का स्पष्ट संदेश था कि ‘‘सादा जीवन, उच्च विचार ” ही मानवता की सच्ची प्रगति है।
इसी दृष्टि से प्रेरित होकर इस्कॉन बेंगलोर ने दक्षिण भारत में एक विशेष पहल शुरू की- जैविक खेती, गोसंरक्षण और ग्रामीण विकास पर आधारित यह पहल आज टिकाऊ कृषि, आत्मनिर्भरता और आध्यात्मिकता का आदर्श बन चुकी है। 1996 में कावेरी नदी के किनारे लगभग 160 एकड़ भूमि का अधिगृहीत की गई थी। यह जमीन पूरी तरह सूखी और अनुपजाऊ थी। अधिकांश लोग इसे बेकार मानते थे। लेकिन इस्कॉन बेंगलोर ने इसे वर्णाश्रम आधारित ग्राम विकास के मॉडल के रूप में बदलने का संकल्प लिया।
प्रारंभिक वर्षों में कई चुनौतियाँ सामने आईं - कीटों का प्रकोप, फसलों का नष्ट होना और खेती का अनुभव न होना । लेकिन भक्तों ने हार नहीं मानी। उन्होंने स्थानीय किसानों से पारंपरिक ज्ञान सीखा, गोमूत्र और जड़ी-बूटियों से बने प्राकृतिक कीटनाशकों का उपयोग किया और धीरे-धीरे खेती फलने लगी ।
आज, इस भूमि का 90 प्रतिशत हिस्सा प्रमाणित जैविक खेती के लिए समर्पित है। यहाँ केले, नारियल, चावल, गन्ना, वेनिला, काली मिर्च, चंदन, सागौन, आम, काजू, एवोकाडो, लौंग और दालचीनी जैसी सैकड़ों फसलें उगाई जाती हैं।
केवल अन्न ही नहीं, बल्कि 25 किस्मों का चावल बैंक और पारंपरिक मसाले भी संरक्षित किए जा रहे हैं। यह विविधता न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाती है बल्कि किसानों को स्थायी आय भी देती है ।
गौशाला इस परियोजना का मुख्य केंद्र है। यहाँ पचास से अधिक गायें और बैल हैं, जिनके गोबर और गोमूत्र से खाद और जैविक कीटनाशक बनाए जाते हैं। खेती में रुडोल्फ स्टीनर की बायोडायनामिक विधि और वैदिक ज्योतिषीय पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
हरे कृष्ण आंदोलन का मूल दर्शन है कि भोजन केवल शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा और भक्ति के लिए भी है। इस्कोन बेंगलोर का मानना है कि मंदिरों को अपनी जमीन पर शुद्ध अन्न उगाना चाहिए ताकि भगवान को शुद्ध भोग अर्पित हो और भक्तों का पालन सात्त्विक भोजन से हो ।
श्रील प्रभुपाद हमेशा कहते थे- “हर मंदिर को अपनी जमीन पर खेती करनी चाहिए और अपनी गायों की रक्षा करनी चाहिए। इस्कॉन बेंगलोर ने इस दृष्टि को मूर्त रूप दिया है।
मधु पंडित दास (प्रेसिडेंट, इस्कॉन बेंगलोर) और चंचलापति दास ( वाइस प्रेसिडेंट) के नेतृत्व में यह पहल केवल खेती नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक पुनर्जागरण बन गया है।
यह परियोजना सिद्ध करती है कि कृष्ण भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं है। यह जीवन जीने की एक संपूर्ण पद्धति है, जिसमें भोजन, पर्यावरण, समाज और आत्मा सभी का संतुलन है।
कृष्ण के प्रति प्रेम निश्चित ही वैदिक काल में भी रहा होगा। ऋग्वेद में बृजपति और चरन्तम शब्द का उल्लेख है, जिसे बाद के साहित्य में कृष्ण निरूपित किया गया। छांदोग्य उपनिषद में घोर अंगीरस के शिष्य देवकी पुत्र कृष्ण का उल्लेख है। जैन परंपरा में कृष्ण नवम् वासुदेव के रुप में उल्लखित किए जाते हैं। जैनागम ग्रंथ समवायोग में भगवान कृष्ण को ओजस्वी, यशस्वी, कांतिमय, कामवान, प्रियदर्शी, सुशील, बलवान, अपराजेय, दयालु, शरणागत वत्सल, धर्नुधारी, धैर्यवान कहकर अभिहित किया गया है।
इतना ही नहीं कृष्ण से बौद्ध धर्म भी अछूता नहीं रहा। बौद्ध वांगमय में कृष्ण को बोधिसत्व का भाई बताया गया। बौद्धों के पाली निद्देस ग्रंथों महानिद्देस और चुल निद्देस में वासुदेव की भक्ति का स्पष्ट संकेत है। डॉ. विद्यानिवास मिश्र कहते हैं कि श्रीकृष्ण को पूजने की इच्छा होती है। कृष्ण को प्यार करने की इच्छा हो न हो बरबस हो जाता है। शायद इस लिय कि कृष्ण को प्यार किए बिना काम चलता नहीं है। अर्थात् कृष्ण, चरित्र रुप में ऐसे हैं, जिनमें सौंदर्य, ऐश्वर्य और अकिंचनता इन तीनों का अपूर्व संगम है। कहना चाहिए समन्वय है।
आप देखें कि कालिदास शैव थे फिर भी वे कृष्ण वलय से मुक्त नहीं है। ‘गोपवेषस्य विष्णो’ इतना ही नहीं वे लिखते हैं ‘वृंदावने चेत्र वनादनूने, अर्थात् वृंदावन चैत्रवन से कम नहीं है। गौड़ीय समप्रदाय के रघुनाथ दास, भक्ति हृदयवन महाराज, मान्यो सिद्धांत सरस्वती और श्रील प्रभुपाद के कृष्ण-प्रेम की अनुगूंज में ही आज इस्कान बेंगलोर कार्यरत है और उसकी गीतिका ही अक्षय-पात्र।
पुस्तक समाप्त
भूमिका
आमुख
लम्बा अंतराल तो नहीं हुआ, लेकिन दो-तीन बरस पहले बंगळूर जाना हुआ था, वहीं इस्कान और अक्षय-पात्र के चेयरमैन मधु पंडित दास से भेंट हुई। दैनिक भास्कर के लिए उनका साक्षात्कार भी लिया और अक्षय-पात्र को करीब से देखा। लोगों की लगन, परिश्रम और पारदर्शिता ने बताया कि यह सब दिखती किरणों के पत्तों पर ज्योति के संदेशे हैं। एक नए अरुणोदय का आरम्भ। क्षीरोज्ज्वल मन का मंथन हो गया कि अक्षय-पात्र की विद्यालयों में भोजन पहुंचाने, समय पर पहुंचाने, गर्म और पौस्टिक भोजन पहुंचाने का संकल्प और सिद्धि हर उस अभ्यंतर को स्पर्श कर रही है, जहाँ यह पहुंच रहा है। मैंने स्वयं इस पुस्तक को लिखते समय अनेक राज्यों के अक्षय-पात्र केन्द्रों की यात्रा की। इस बीच मैं न केवल उन संतों से मिला या जो अलग-अलग स्थानों पर इसका प्रभार देख रहे हैं, बल्कि उन विद्यार्थियों से भी मिला जिन्हें प्रतिदिन अक्षय- पात्र का भोजन मिल रहा है और उनसे भी जो अक्षय पात्र के कभी लाभार्थी रहे हैं और आज भी उन्हें अक्षय पात्र भोजन की ऊष्णता और स्वाद की स्मृति है। सुधियों के सुख हैं। मैंने पाया कि विपन्नता के बीच पड़ते समस्याओं के झुरमुट के बावजूद इन सबके जीवन की नदी एक नई सुबह और उजेरे की तरफ बढ़ रही है। शालेय भूख को संबोधित अक्षय-पात्र की पहल आज बच्चों की कठिनाइयों की धूप की धारा को मोड़ने में समर्थ है।
मनुष्य जाति का इतिहास चेतना के विकास का इतिहास है, लेकिन इसके बिम्बों और पद्धति में अंतर आता रहा है, ठीक इसी तरह अक्षय-पात्र में भी आरंभ से ही परिश्रम से यत्नपूर्वक बनता भोजन अब बदली पद्धति से मशीनों से बनता है, बावजूद इसके कृष्ण की रसोई के इन परिश्रमियों को हटाया नहीं गया, वहीं खपाया गया। ऐसे भी अनेक लोगों ने मिलकर बताया कि उनके मटमैले दिन तो उसी दिन बदल गए जब वे संस्थान से जुड़े थे। अक्षयपात्र प्रबंधन ने अपने कार्य विस्तार में सदैव इस बात का ध्यान रखा कि अधिकतम जरुरतमंद इस से लाभान्वित हो। यही कारण है कि राजस्थान के बारां जिले में खोले गए विकेन्द्रीकृत केन्द्र में सहरिया जनजाति को जोड़ा गया। यह सिर्फ सूचना नहीं सहरियाओं को मुख्य धारा में लाने का संकल्पित प्रयास था, वह निरंतर जारी है। त्रिपुरा के काशीरामपारा तक जाने का अवसर मिला, वहाँ बच्चों को शिक्षित ही नहीं किया जा रहा, सुसंस्कृत भी बनाया जा रहा है। पुस्तक से गणवेश तक सबकुछ संस्था बच्चों को मुहैया करवाती है। उन नन्हीं बेटियों में प्रार्थना, हिन्दी परंपरा, लोकगीत और हिन्दी से उत्पन्न बौद्धिक स्वतंत्रता से उपजती निडरता और अन्वेषी मन की संभावना दिखाई देती है। मेरी उपस्थिति में उन्होंने नृत्य, गायन और प्रतिबद्ध प्रार्थनाएं की। मैं अभिभूत हूँ, इसलिए उल्लेख कर रहा हूँ।
ये प्रार्थनाएं इस्कान बंगलूर और असम के साधुओं की प्रतिबद्धता का परिणाम है और सबसे बढ़कर सजग, सरोकारी, भाव-विहल मधुपंडित दास की अभिप्रेरणा का प्रतिफलन है। जो कृष्ण को भाव, गीत, छंद, नृत्य और परम चेतना मानते हैं, इसलिए यह भी मानते हैं कि कृष्ण सदा उपस्थित हैं, यहीं- अभी और कभी। इसी बात को वृंदावन चंद्रोदय मंदिर के अध्यक्ष चंचलापति अपनी आंग्ल - दार्शनिक व्याख्या में श्रील प्रभुपाद के शब्दों में कहते हैं कि सूर्य सांझ के बाद दिखाई नहीं देता, मगर होता है, इसी तरह श्रीकृष्ण सदैव होते हैं। भाव जब कृष्ण को कहा जाता है तो उसका अभिप्राय यह है कि रस रूप में विवर्तित होने की क्षमता सिर्फ उसमें हैं। भारत का एक भाव है कि अपनी विशिष्टता छोड़कर साधारणता का वरण करो। इसलिए कथाओं में उल्लेख है कि युधिष्ठिर के राजसूय में अग्र पुरुष के रुप में पूजित होने वाला पैर धोने और झूठी पत्तल उठाने का काम करता है। महाभारत का सूत्रधार घोड़ों की सफाई और हांकने का काम करता है। इसी से अनुप्राणित हैं मधुपंडित दास से लेकर इस्कान के संन्यासी। साधारण वेशभूषा और सदैव विनम्र ! ज्यादातर आइआइटियन है, लेकिन अध्ययन का गर्व नहीं। सहज है, संभवतया इसीलिए ज्यादा संप्रेषित कर पाते हैं। मुझे लगता है इसीलिए थे सभी लोग साथ चलने वाले साथियों, बच्चों सहकर्मियों में आशा से चलने का बल पैदा कर पाते हैं। एक और बात का उल्लेख अनिवार्य है कि बंगलूर के प्रबंध कार्यालय में प्रतिदिन कुछ देर प्रार्थना होती ही है, सभी स्वानुगत रुप में इसमे हिस्सेदारी करते है। संस्था के सीईओ श्रीधर वेंकट और सीओओ व एचआर मुकेश तिवारी प्रतिदिन इस्कॉन मंदिर के प्रणाम और प्रार्थना से दिन आरंभ करते हैं। शायद इसलिए भी कि औरों के मन में प्रार्थना का दिया जल सके। ऐसा लगता है यह सब भटके चरणों की अनाहट प्रतिक्षा है।
इस पुस्तक के लेखन में घानत्विक मुनि भरत और सहज स्नेही, सरल और निरंतर अध्ययनशील गोविंद दत्ता दास के सहयोग की चर्चा अनिवार्य है और इनका सादर उल्लेख भी। उनका आभार। इसके अलावा उन तमाम मनिषियों, विचारकों, दार्शनिकों को प्रणाम जिनके विचारों से मैं अपनी कथनी और निष्कर्षों को प्रमाणिक बना पाया।
मुझे लगता है कि अक्षय पात्र का यह प्रयास जीवन के निद्रालस को हटाता संकल्प यज्ञ है, यद्यपि इसमें सरकारें हैं, अन्यान्य सहयोगी है लेकिन ज्योतिपुंज संस्था का है, अक्षय पात्र का है। मुझे यह भी विश्वास है कि श्रील प्रभुपाद के विचार जिसके तहत मंदिर की दस किलोमिटर की परिधि में कोई भूखा नहीं रहेगा। यह भावी स्वप्न भी घटने वाला है।
प्रदीप पंडित