चीन ने कहा - डोकलाम से भारत हटाये अपनी सेना, भारत की खरी-खरी - हम वहां डटे रहेंगे
By: Dilip Kumar
8/3/2017 12:57:04 AM
डोकलाम पठार को लेकर जारी गतिरोध के बीच भारत ने आज इस बात को खारिज कर दिया कि वह वहां अपने सैनिकों की उपस्थिति में कोई कटौती करने जा रहा है. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा है कि भारत की ऐसी कोई योजना नहीं है कि वह हम अपने सैनिक वहां से कम करें या हटायें. डोकलाम पठार में सड़क बनाने की चाह रखने वाला चीन लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह वहां से अपने सैनिकों को हटा ले, लेकिन भूटान के साथ मैत्री संधि के कारण मजबूत कूटनीतिक व सामारिक आधार होने के कारण भारतीय सैनिक वहां डंटे हुए हैं. भूटान चीन के प्रयासों का विरोधी है.
मालूम हो कि चीन ने आज ही कहा है कि उसने भारत को अपने इस दृढ़ रुख की सूचना दे दी है कि मौजूदा गतिरोध खत्म करने के लिए उसे ' 'बिना किसी शर्त के ' ' सिक्किम क्षेत्र के डोकलाम से अपनी सेना तत्काल हटा कर ' 'ठोस कार्रवाई' ' करनी चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के स्टेट काउंसिलर यांग जेइची के बीच 28 जुलाई को हुई मुलाकात का पहली बार ब्योरा देते हुए बताया कि दोनों अधिकारियों ने ब्रिक्स सहयोग, द्विपक्षीय रिश्तों और प्रासंगिक प्रमुख समस्याओं पर चर्चा की थी. ध्यान रहे कि समय-समय पर अलग-अलग बयान देने वाला चीन अब सिक्किम पर दावा जताने लगा है और डोकलाम को इसका हिस्सा बताना शुरू कर दिया है.
चीन लगातार भारत पर यह दबाव बनाता रहा है कि भारत वहां से सैनिकों को हटा ले, लेकिन वह खुद ऐसा नहीं कर रहा है. चीन इसे अपनी सार्वभौमिकता से जुड़ा मुद्दा बताता रहा है. अब वह सैनिकों की संख्या में कमी लाने की बात कह रहा है. बीजिंग भारत पर यह आरोप लगाता रहा है कि उसके सैनिक चीन की भूमि पर हैं, जबकि हकीकत यह है कि वह भूटान की जमीन है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी चीन को पेशकश कर चुकी हैं कि दोनों पक्ष वहां से अपनी सेनाएं कम करं, लेकिन चीन इस प्रस्ताव को ठुकरा चुका है. ऐसे में भारत अपने सामरिक हितों के मद्देनजर इस इलाके सेपीछे नहीं हटने जा रहा है.
चीन ने बुधवार (3 अगस्त) को कहा कि उसने भारत को अपने इस दृढ़ रुख की सूचना दे दी है कि मौजूदा गतिरोध खत्म करने के लिए उसे ‘बिना किसी शर्त के’ सिक्किम क्षेत्र के डोकलाम से अपनी सेना तत्काल हटा कर ‘ठोस कार्रवाई’ करनी चाहिए. चीनी विदेश मंत्रालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और चीन के स्टेट काउंसिलर यांग जेइची के बीच 28 जुलाई को हुई मुलाकात का पहली बार ब्योरा देते हुए बताया कि दोनों अधिकारियों ने ब्रिक्स सहयोग, द्विपक्षीय रिश्तों और प्रासंगिक प्रमुख समस्याओं पर चर्चा की थी. डोभाल ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साझे मंच ब्रिक्स में हिस्सा लेने के लिए पिछले माह बीजिंग में थे. डोभाल और यांग दोनों भारत और चीन के बीच सीमा वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि भी हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय ने डोकलाम से संबंधित गतिरोध पर दोनों देशों के बीच चर्चा के बारे में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि यांग ने डोभाल से ‘उनके आग्रह पर और तौर-तरीके के अनुरूप’ द्विपक्षीय मुलाकात की. डोकलाम पर गतिरोध तब शुरू हुआ जब चीन ने उस इलाके में सड़क बनाना शुरू किया. चीनी विदेश मंत्रालय ने इंगित किया कि डोभाल और यांग के बीच वार्ता के दौरान कोई प्रमुख प्रगति नहीं हुई. मंत्रालय ने कहा, ‘यांग चेइची ने चीन-भारत सीमा के सिक्किम खंड पर चीन की सरजमीन में भारतीय सीमा बल के अतिक्रमण पर चीन के कठोर रुख और सुस्पष्ट अनिवार्यता जताई.’
चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से दिए गए फैक्ट शीट में कहा गया है कि 18 जून को तकरीबन 270 भारतीय सैनिक ‘चीनी सरजमीन पर सड़क निर्माण बाधित करने के लिए’ चीनी इलाके में 100 मीटर से ज्यादा प्रवेश कर गए जिससे ‘क्षेत्र में तनाव व्याप्त है.’ इसमें कहा गया है, ‘एक समय 400 से ज्यादा लोगों ने तीन खेमे लगा दिए और चीनी सरजमीन में 180 मीटर से ज्यादा आगे चले आए.’ चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से दिए गए फैक्ट शीट में कहा गया है, ‘जुलाई के अंत में, अब भी वहां भारतीय सीमा बल के 40 से ज्यादा सैनिक और एक बुलडोजर अवैध रूप से चीनी सरजमीन पर टिके हैं.’
भारत ने सड़क निर्माण पर चिंता व्यक्त की थी और अंदेशा जताया था कि इससे चीनी सेना को पूर्वात्तर राज्यों तक भारत की पहुंच काटने का मौका मिल सकता है. इस क्षेत्र को भारत डोका ला बताता है. भूटान इसे डोकालाम के नाम से मान्यता देता है जबकि चीन का दावा है कि यह उसके दोंगलांग क्षेत्र का एक हिस्सा है. जम्मू-कश्मीर से ले कर अरुणाचल प्रदेश तक भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है. उसमें से 220 किलोमीटर का खंड सिक्किम में पड़ता है.
फैक्ट शीट में कहा गया है कि गतिरोध उस इलाके में हुआ है जहां स्पष्ट और सीमांकित सीमा है. इसमें कहा गया है, ‘यह असीमांकित सीमा वाले क्षेत्रों में दोनों पक्षों के सीमा बलों के बीच अतीत के विवादों से बुनियादी रूप से अलग करता है. भारतीय सीमा बल का पहले से ही सीमांकित सीमा पार करना एक बहुत ही गंभीर मामला है क्योंकि यह चीन की संप्रभूता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है.’
फैक्ट शीट में कहा गया है कि कोई संप्रभू देश इस तरह की कोशिश बरदाश्त नहीं कर सकता है. इसमें कहा गया है, ‘वास्तविकता यह है कि यह भारत है जिसने बार बार चीन-भारत सीमा के सिक्किम सेक्टर में यथास्थिति बदलने का प्रयास किया है जो चीन के लिए गंभीर सुरक्षा खतरा पेश करता है.’ फैक्ट शीट में कहा गया है, ‘चीन-भूटान सीमा मुद्दा चीन और भूटान के बीच है. इसका भारत से कोई लेना-देना नहीं है. भूटान की तरफ से क्षेत्रीय दावा करना तो दूर, एक तीसरे पक्ष के रूप में भारत के पास चीन और भूटान के बीच सीमा वार्ता में दखल देना या उसे बाधित करने का कोई अधिकार नहीं है.’
चीनी विदेश मंत्रालय के फैक्ट शीट में आगाह किया गया, ‘किसी देश को चीन की क्षेत्रीय संप्रभूता की रक्षा करने की चीन सरकार और चीनी अवाम के संकल्प को कम कर के नहीं आंकना चाहिए. चीन अपने वैध और कानूनी तौर पर उचित अधिकारों एवं हितों की रक्षा के लिए हर आवश्यक उपाय करेगा.’ इसमें कहा गया है, ‘यह मामला सीमांकित सीमा में चीनी तरफ हुआ है. भारत को तत्काल और बिनाशर्त अपने अतिक्रमणकारी सीमा बलों को सीमा के भारतीय तरफ हटा लेना चाहिए. यह घटना के समाधान के लिए पूर्व शर्त और आधार है.’ चीनी विदेश मंत्रालय के फैक्ट शीट में कहा गया है कि चीन भारत के साथ अच्छे पड़ोसी और दोस्ताना रिश्तों के विकास का कद्र करता है और दोनों देशों के बीच सीमा क्षेत्र में अमन और शांति कायम करने के प्रति वचनबद्ध है.
सीमा विवाद पर पहली बार तिब्बत की निर्वासित सरकार के नेता ने चुप्पी तोड़ी
भारत और चीन के बीच डोकलाम में चल रहे सीमा विवाद पर पहली बार तिब्बत की निर्वासित सरकार के नेता लोबसांग सांगे ने चुप्पी तोड़ी है। उनका कहना है कि वर्तमान सीमा संकट चीन की विस्तारवादी विदेश नीति का प्रतीक है।
लोबसांग सांगे ने पिछले हफ्ते दिल्ली के हंसराज कॉलेज के छात्रों को संबोधित करते हुए डोकलाम में चल रही घुसपैठ को चीन की विस्तारवादी विदेश नीति का प्रतिबिंब बताया और मौजूदा गतिरोध में पूरी तरह से भारत सरकार की स्थिति का समर्थन किया। लोबसांग सांगे हंसराज कॉलेज के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने दावा किया कि चीन, भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, जैसा कि पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस और मुलायम सिंह यादव ने कहा था।
डोकलाम विवाद पर लोबसांग सांगे का ये बयान बीजिंग को परेशान कर सकता है। हाल ही में चीनी मीडिया ने पश्चिमी मीडिया पर डोकलाम विवाद पर भारत का पक्ष लेने का आरोप लगाया था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी संसद भवन में कह चुकी हैं कि डोकलाम मुद्दे पर विश्व के ज्यादातर देश उसके समर्थन में खड़े हैं। ऐसे में लोबसांग सांगे का बयान, चीनी सरकार को परेशान करने के लिए काफी है।
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच डोकलाम सीमा विवाद काफी लंबा खिंच गया है। डोकलाम में 16 जून से भारत और चीन की सेनाओं की टुकड़ी नॉन कॉम्बैटिव मोड में आमने-सामने खड़ी हैं। भारत और चीन दोनों अपनी-अपनी बात अड़े हैं और पीछे हटने को तैयार नहीं। दोनों देश अपने-अपने रणनीतिक हितों की बात कर रहे हैं। भारत-चीन के बीच हुए 1962 युद्ध के बाद से यह पहला मौका जब इतने लंबे समय तक दोनों देश की सेनाएं एक-दूसरे के सामने डटी हुई हैं।