शिवमहापुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों को साक्षात भगवान शिव से उत्पन्न माना गया है। लेकिन इनमें से दो ज्योतिर्लिंगों की भौगोलिक स्थिति को लेकर अलग-अलग मत देखने को मिलते हैं। इनमें नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कुछ लोगों का मानना है कि यह गुजरात में द्वारका के समीप स्थित है तो कुछ का मानना है कि यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में स्थित औंधा (उल्टा) नागनाथ मंदिर है। आइए, आज जानते हैं महाराष्ट्र के औंधा में स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में :
नागनाथ मंदिर महाराष्ट्र राज्य के हिंगोली जिले में स्थित है। यह एक प्राचीन शिव मंदिर है। यह मंदिर केवल हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि सिख धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका उल्लेख श्री गुरु ग्रंथ साहिब में किया गया है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव ने अपने एक भक्त नामदेव के समर्पण और श्रद्धा को देखते हुए इस मंदिर का मुख घुमा दिया था।
एक बार नामदेव नाम के भक्त औंधा नागनाथ मंदिर में गए। उस मंदिर के पुजारी जाति व्यवस्था में विश्वास करते थे। मंदिर में पहुंचने के बाद, नामदेव बैठे और भगवान की पूजा करने लगे। लेकिन पुजारियों ने उनकी बांह पकड़ ली और उन्हें मंदिर से बाहर निकाल दिया। पुजारियों ने कहा कि आप इस मंदिर में पूजन और परिक्रमा नहीं कर सकते। पुजारियों द्वारा इस व्यवहार से नामदेव को गहरी चोट लगी और वह मंदिर से निकाले जाने के बाद मंदिर के पीछे गए और भगवान की पूजा करने बैठ गए। अपनी प्रार्थना में उन्होंने भगवान शिव से विनती की कि 'भगवान! मैं आपके मंदिर आया और पुजारियों ने मुझे आपका पूजन भी नहीं करने दिया। इसलिए मैं मंदिर के पीछे बैठकर आपका पूजन कर रहा हूं। भगवान आप मुझे कभी मत भूलना।
अगर आप मुझे भूल गए तो मुझे कौन पार उतारेगा। हे भगवान! मैं आपका भक्त हूं और आपको सच्चे हृदय से प्रेम करता हूं। प्रभु! मुझे निम्न कहनेवाले लोग केवल मेरा अपमान नहीं करते, वे आपके नियम का भी उपहास करते हैं। क्योंकि मुझे आपने ही इस जाति में जन्म दिया है। मेरे मरने के बाद आपने मुझे स्वर्ग दे दिया तो मुझे छोटी जाति और निम्न कहनेवाला कोई व्यक्ति इस बारे में नहीं जान पाएगा। आप सर्वशक्तिमान हैं मेरे प्रभु। कुछ ऐसा कीजिए कि आपकी शक्ति और मेरी भक्ति पर कोई प्रश्नचिह्न न रह जाए!
नामदेव भगवान शिव से रोते हुए यह सब प्रार्थना कर रहे थे। भगवान शिव ने अपने भक्त के भावों का मान रखते हुए शक्ति दिखाई और मंदिर का मुख अचानक पीछे की ओर घूम गया। मंदिर का द्वार उसी ओर हो गया, जिधर नामदेव बैठकर भगवान भोलेनाथ की पूजा कर रहे थे। तब से लेकर आज तक यह मंदिर वैसा ही है। यह मंदिर प्रतीक है सच्चे भक्त पर शिवजी की कृपा का। यह दुनिया का एक मात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसका द्वार पश्चिम की ओर खुलता है। अन्यथा सभी मंदिर और शिव मंदिरों का द्वार पूर्व या उत्तर की ओर रखा जाता है। क्योंकि इन दिशाओं को शुभ माना जाता है।
उल्टी दिशा में इस मंदिर का द्वार होने कारण ही इसका नाम औंधा नागनाथ मंदिर रखा गया। भक्त नामदेव की इस भक्ति और प्रभु भोलेनाथ के इस चमत्कार का वर्णन सिक्ख धर्म के पवित्र ग्रंथ 'गुरु ग्रंथ साहिब' में पृष्ठ संख्या 1292 पर मिलता है। इस कारण सिक्ख धर्म में भी यह तीर्थ बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक के बारे में कहा जाता है कि जब उन्होंने इस क्षेत्र की यात्रा की थी तब वह औंधा नागनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आए और इसके बाद भक्त नामदेव की जन्मस्थली नरसी बामणी भी गए थे। तभी से नामदेव को सिख धर्म में भगत नामदेव के रूप में भी माना जाता है।
मान्यता है कि अपने वनवास काल के दौरान पांडव यहां आए थे और इस स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे। उस समय उनकी गायें पानी पीने के लिए समीप ही नदी तट पर जाती थी। पानी पीने के बाद उन गायों का दूध अपने आप नदी में बह जाता था, मानों गाय नदी को दूध भेंट कर रही हों। एक दिन भीम ने इस चमत्कारी घटना को देखा। उसने तुरंत धर्मराज युधिष्ठिर इस घटना के विषय में बताया। तब धर्मराज ने कहा, 'निश्चित रूप से, कोई दिव्य शक्ति यहां स्थित है।' तब उन्होंने खोजा तो उन्हें नागनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन हुए। इसके बाद उन्होंने ही इस ज्योतिर्लिंग को यहां स्थापित किया।
मान्यता है कि एक समय यह मंदिर 7 मंजिला था और बहुत ही भव्य था। लेकिन हिंदू धार्मिक स्थलों का विनाश करनेवाले शासक औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को ध्वस्त कर दिया। तब केवल इसका निचला हिस्सा ही बचा था। इसके बाद इस ढांचे के ऊपर ही देवगिरि के यादवों ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। इसलिए मंदिर का निचला हिस्सा और ऊपर का हिस्सा अलग-अलग दिखता है।
मंदिर के पण्डे पुजारी
यहाँ के पण्डे पुजारी भी बड़े सहयोगी स्वभाव के हैं तथा भक्तों की हरसंभव मदद करते है। पूजा अभिषेक भी बड़े विस्तृत रूप से अच्छी तरह से करवाते है। बहुत ज्यादा दक्षिणा की भी मांग नहीं करते हैं, 151 से 251 रुपये के बीच पंचामृत सहित रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
ठहरने की व्यवस्था
औंढा, हिंगोली जिले में एक छोटा सा कस्बा है, जो कि हिंगोली शहर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पूरे गांव की अर्थव्यस्था तीर्थ यात्रियों पर ही निर्भर है। मंदिर की बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद भी यहां ठहरने के लिए सर्व सुविधायुक्त आवास की कमी है। खाने के लिए ठीक ठाक व्यवस्था है, लेकिन पीने के पानी का स्वाद थोड़ा सा अप्रिय है। अत: यहां मिनरल वाटर पीने की सलाह दी जाती है। छोटे-छोटे रेस्तरां हैं जो मराठी, पंजाबी तथा गुजराती भोजन उपलब्ध करते हैं।
कैसे पहुंचें
भारतीय हिन्दू तीर्थयात्रा की सही पहचान की तर्ज पर औंढा नागनाथ की यात्रा थोड़ी दुष्कर ही है। बड़े शहरों से यहां पहुंचने के लिए सीधी सुविधा नहीं है। अपनी यात्रा को कुछ भागों में बाँट कर ही यहां पहुंचा जा सकता है। हिंगोली तक पहुंचकर वहां से सीधे औंढा के लिए महाराष्ट्र राज्य परिवहन की बस के द्वारा पहुंचा जा सकता है, या फिर नांदेड पहुंच कर वहां से बस मथ और फिर बस बदल कर औंढा पहुंचा जा सकता है, या फिर हिंगोली या नांदेड से प्राइवेट जीप लेकर भी यहाँ पहुंचा जा सकता है।
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