कटासराज मंदिर: कहते हैं 'शिव नेत्र'

By: Dilip Kumar
7/13/2019 9:54:45 PM
नई दिल्ली

कटासराज, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है और यह भगवान शिव का प्रचीन मंदिर है। यहां पर गिरे थे शिव के आंसू कटासराज मंदिर पंजाब प्रांत के उत्‍तर में स्थित नमककोह की पहाड़‍ियों में स्थित है और हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर के अलावा कुछ और भी मंदिर हैं। इस मंदिर का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है। इस मंदिर को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र करार दिया जाता है। कहते हैं कि ये सभी मंदिर 10वीं सदी के हैं। इतिहासकारों एवं पुरात्तव विभाग के अनुसार, इस जगह को शिव नेत्र माना जाता है। जब मता पार्वती सती हुई तो भगवान शिव की आंखों से दो आंसू टपके थे। मान्‍यताओं के मुताबिक एक आंसू कटास पर टपका जहां अमृत बन गया। यह आज भी महान सरोवर अमृत कुंड तीर्थ स्थान कटासराज के रूप में है। बताया जाता है कि दूसरा आंसू राजस्थान के अजमेर में और पुष्‍कर में टपका था।

महाभारत में पांडव वनवास के दिनों में इन्ही पहाड़ियों में अज्ञातवास में रहे थे। जब पांडव अज्ञातवास के रास्‍ते पर थे तो उन्‍हें प्यास लगी और वे पानी की खोज में यहां तक पहुंचे थे। इस कुण्ड पर यक्ष का अधिकार था। सबसे पहले नकुल पानी लेने गए और जब वह पानी पीने लगे तो यक्ष ने आवाज दी की। युधिष्ठिर ने यहीं पर दिए यक्ष को सही जवाब ठीक इसी तरह से सहदेव, अर्जुन और भीम एक-एक करके पानी लेने गये। कोई भी यक्ष के सवालों का जवाब नहीं दे सका और गलत जवाब के बाद भी उन्‍होंने पानी लेने की कोशिशें की।

कटासराज मंदिर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला चकवाल में स्थित है. यह लाहौर और इस्लामाबाद मोटरवे के ठीक बगल में साल्ट रेंज की मशहूर पहाड़ियों के पास है. कटासराज में एक मशहूर सरोवर है और मंदिरों की एक श्रृंखला है जिसका इतिहास काफी पुराना है. यहां के सतघरा मंदिरों के समूह में सिर्फ चार मंदिरों के अवशेष बचे हैं जिसमें भगवान शिव, राम और हनुमान के मंदिर हैं. साथ ही यहां पर बौद्ध स्तूप, जैन मंदिरों के अवशेष और सिख धर्म से जुड़े स्थल भी हैं. कहते हैं कि यहां पर सिखों के गुरु नानकदेव और नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक गोरखनाथ भी आए थे.

महाभारत में इसे द्वैतवन कहा गया है जो सरस्वती नदी के तट पर स्थित था. उस हिसाब से सरस्वती नदी पर शोध करनेवालों के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण जगह है. कटासराज मंदिर संगीत, कला और विद्या का भी बड़ा केंद्र था. अपने उत्कर्ष काल में इस मंदिर से लगभग 10,000 विद्वान और कलाकार संबद्ध थे. लेकिन 11वीं सदी में महमूद गजनवी के आक्रमण के बाद मंदिर का वैभव नष्ट हो गया.

प्राण और आजीविका बचाने के लिए कलाकारों का पलायन हुआ और बहुतों को गुलाम बनाकर अरब में बेच दिया गया जहां से ये यूरोप पहुंचे. कई शोध बताते हैं कि यूरोप की जिप्सी या रोमां जाति के लोग उन्हीं कलाकारों के वंशज हैं जिनके संगीत को रोमां संगीत कहा जाता है.

 


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