मिलनाडु के नमक्कल जिले में पहाड़ियों के बीच मौजूद आंजनेयार मंदिर दुनिया के सबसे प्राचीन हनुमान मंदिरों में से एक है। करीब 5 शताब्दी के दौरान बनाए गए इस मंदिर में भगवान हनुमान की 18 फीट ऊंची प्रतिमा हाथ जोड़े खड़ी है। इतिहास कारों के मुताबिक ये दुनिया की प्राचीनतम मूर्तियों में से एक है। काले ग्रेनाइट की एक चट्टान को काटकर एक ही पत्थर पर उस प्रतिमा को उकेरा गया था। खास बात ये है कि इस मंदिर में भगवान हनुमान श्रीराम नहीं बल्कि विष्णु के ही अवतार भगवान नृसिंह की सेवा में खड़े हैं।
इस मंदिर को लेकर कई सारी कथाएं हैं। इसे भगवान विष्णु, लक्ष्मी और हनुमान से जोड़ा जाता है। मंदिर के सामने एक पहाड़ी है, इसे नृसिंह हिल कहा जाता है। मान्यता है कि इस पहाड़ी में देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में दर्शन दिए थे। इसके लिए हनुमान जी ने भगवान विष्णु को प्रसन्न किया था। उनकी ही सेवा में यहां आंजनेयार (अंजनी पुत्र) के रूप में खड़े हैं।
मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। खासतौर पर शनि पीड़ा से परेशान लोग यहां कई तरह की उपासना और जाप करते हैं। भगवान हनुमान की आराधना के लिए यहां दिन भर में चार बार विशेष पूजाएं होती हैं। सुबह 6.30 बजे से रात 9 बजे के बीच 4 बार विशेष पूजाएं होती हैं। इनमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। हनुमान प्रतिमा के ठीक सामने करीब 450 फीट की दूरी पर नृसिंह हिल है, जहां भगवान नृसिंह का निवास माना जाता है।
मंदिर पूरी तरह द्रविड़ वास्तु कला के आधार पर बनाया गया है। जिसमें हनुमान मंदिर का गर्भगृह है, यहां 18 फीट की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के पीठ दो बड़े खंभों के जरिए एक मचान सी बनाई गई है, जिस पर चढ़कर भगवान हनुमान का अभिषेक और श्रंगार किया जाता है।
मंदिर से जुड़ी कथा
भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए जब भगवान विष्णु ने नृसिंह रूम में हिरण्यकशिपु का वध किया था। उसके बाद वे लंबे समय इसी जगह रहे। दंडकारण्य के जंगलों में वे अपने गुस्से को शांत करने के लिए रहे। इसी बीच एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान हनुमान से प्रार्थना की कि वे भगवान विष्णु को नृसिंह रूप में दर्शन देने की प्रार्थना करें। भगवान हनुमान ने सालिग्राम रूपी भगवान की प्रतिमा को लक्ष्मीजी के हाथों में देकर कहा कि आप इसे संभालिए, मैं कुछ ही देर में लौटता हूं।
लक्ष्मीजी ने उस सालिग्राम प्रतिमा को उस जगह रख दिया जहां आज नृंसिह पर्वत है। सालिग्राम का आकार बढ़ने लगा और उसने एक पर्वत का आकार ले लिया। जब तक हनुमान लौटे तब तक सालिग्राम स्वयं ही पर्वत बन चुका था। इसी में भगवान नृसिंह ने देवी लक्ष्मी और हनुमान को दर्शन दिए। तभी से भगवान हनुमान इस पर्वत की सुरक्षा और सेवा के लिए यहां निवास करने लगे।
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