लॉक़डाउनः आधी-अधूरी तैयारियों के साथ उठाया गया कदम
By: Dilip Kumar
3/25/2020 6:31:57 PM
मानव सभ्यता अभी घातक कोरोना वायरस के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ रही है। इस महामारी से निपटने के लिए हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में तीन सप्ताह के लिए लॉकडाउन की घोषणा कर दी है। देश की 132 करोड़ की आबादी अपने घरों में बंद है। 21 वीं शताब्दी की इस सबसे बड़ी महामारी को परास्त करने के लिए जरूरी कदम है। देशवासियों को इसकी गंभीरता को समझते हुए सरकार के निर्देशों का शत प्रतिशत पालन करना चाहिए। इस बीच देश के सबसे बड़े गैर राजनीतिक संगठन राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवकुमार कक्का जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भेजकर खेती-किसानी से जुड़े उन बिंदुओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया जिनपर ध्यान नहीं दिया गया और जो बेहद अहम हैं। महासंघ का राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी होने के नाते मैंने यानी देवेंद्र गौतम ने इस मुद्दे पर कक्काजी से विस्तृत बातचीत की। यह लेख उसी बातचीत पर आधारित है।
देवेंद्र गौतम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को रात 8 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए रात 12 बजे से तीन सप्ताह के लिए राष्ट्रव्यापी लॉकआउट की घोषणा कर दी। 22 मार्च के जनता कर्फ्यू के बाद देश के 30 राज्यों और केंद्रशासित राज्यों के 100 जिलों में पहले से लॉकआउट चल रहा था। चार राज्यों में कर्फ्यू की घोषणा हो चुकी थी। कोराना वायरस को परास्त करने के लिए यह जरूरी था, इसका शत-प्रतिशत पालन करना चाहिए और देर से उठाए गए इस कदम का हम पूर्ण तौर पर समर्थन करते हैं।
यह प्रधानमंत्री का देर से उठाया गया सही कदम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी सराहना की है। लेकिन नोटबंदी की घोषणा की तरह इसकी घोषणा भी बिना पर्याप्त तैयारी के की गई है। नोटबंदी के समय तो गोपनीयता बरतने की जरूरत थी लेकिन इसबार तो ऐसी कोई विवशता नहीं थी। तीन सप्ताह के लॉकडाउन के पहले जिन बिंदुओं पर ध्यान दिए जाने की जरूरत थी उसकी पूरी तरह अनदेखी की गई। प्रधानमंत्री ने अगर यह घोषणा दिन के समय की होती तो लोगों को दवा और राशन से लेकर आवश्यक चीजों की खरीदारी के लिए समय मिल जाता। जो लोग घरों के बाहर आसपास के शहरों में गए हुए थे उन्हें अपने घर वापस लौटने का समय मिल सकता था।
लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने से पहले जरूरी इंतजाम कर लेने चाहिए थे। नियमतः सरकार को आमलोगों तक कम से कम तीन सप्ताह का राशन, दवाएं और अन्य जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति पहले कर देनी चाहिए थी ताकि लोग तीन सप्ताह तक निश्चिंत होकर घरों में रह पाते। इसके बाद लॉकडाउन करना चाहिए था। विलंब तो पहले ही हो चुका था। चार महीने तक सरकार नींद में सोती रही। अभी बाजार में तमाम जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ा दी गई हैं। दवा व्यापारियों के बाद उपभोक्ता वस्तुओं के व्यापारियों को कालाबाजारी का एक अवसर मिल गया है। सरकार का इसपर कोई नियंत्रण नहीं है। पता नहीं मोदी जी हर घोषणा रात के 8 बजे ही क्यों करते हैं और उसे रात के 12 बजे से ही क्यों लागू करते हैं। वे लोगों को संभलने का मौका क्यों नहीं देते।
कोरोना का संक्रमण अचानक नहीं हुआ था। चीन में इसकी शुरुआत नवंबर 2019 में ही हो चुकी थी। अगर उसी समय अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें रोक दी जातीं तो भारत में कोरोना का प्रवेश ही नहीं हो पाता। चीन के करीब स्थित ताइवान, सिंगापुर, हांगकांग आदि ने उसी समय सतर्कता बरती और संक्रमण को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल रहे। भारत के वैज्ञानिकों ने सरकार को दिसंबर 2019 से ही इस खतरे के प्रति आगाह करना शुरू कर दिया था। राहुल गांधी ने 31 मार्च से 3 मार्च तक कम से कम 10 ट्वीट कर सरकार को इस खतरे के प्रति आगाह किया लेकिन सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। उनकी ट्रोल आर्मी ने उनकी बातों को गंभीरता से लेने की जगह उनका मजाक उड़ाना शुरू किया। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर विदेश से आने वाले यात्रियों की स्क्रिनिंग और आइसोलेशन में डालने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गई।
नतीजतन वे कोरोना वायरस से संक्रमित होकर देश में आते गए और वायरस का प्रसार करते गए। इस बीच सरकार नमस्ते ट्रंप के आयोजन, शाहीनबाग को धरना खत्म कराने और मध्य प्रदेश की सरकार गिराने में व्यस्त रही। मास्क, सेनेटाइजर जैसे कोरोना से बचाव के साधनों का निर्यात भी जारी रहा। देश के अंदर इनका अभाव या और दवा व्यापारियों को इनकी कालाबाजारी करने का मौका मिल गया। जब भारत में कोरोना का संक्रमण तीसरे चरण में पहुंचने लगा तो सरकार की निद्रा टूटी और जनता कर्फ्यू का आह्वान किया गया। अचानक प्रधानमंत्री के आह्वान का देशवासियों ने पूरा पालन किया। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की शाम को मोदी जी के निर्देश पर थाली, ताली पीटकर शंख बजाकर कोरोना के योद्धाओं के प्रति आभार व्यक्त किया गया। यह एक अनावश्यक सा आयोजन था।
इस दौरान सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि यह रबी फसल तैयार होने का मौसम है। नवंबर में जब चीन में कोरोना का प्रकोप शुरू हुआ तब रबी फसलों का बीजारोपण हुआ था और लॉकडाउन होने तक के चार महीनों में फसलें तैयार हो गईं। कुछ खेतों में फसल काटी जा चुकी है।
कुछ खेतों में अगले 15 दिनों में काटी जाएंगी। इसके लिए मजदूर कैसे आएंगे, इनका भंडारण कैसे होगा, इनकी बिक्री कैसे होगी सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है। अगर इसका प्रबंधन नहीं किया गया तो सारी फसल खेतों में पड़ी बर्बाद हो जाएगी। कोरोना को हराने के बाद लोगों को भूख मिटाने के लिए अनाज की जरूरत पड़ेगी तब अनाज होगा नहीं। राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ की ओर से प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है। प्रधानमंत्री जी को इस पर ध्यान देना चाहिए और तत्काल इसकी व्यवस्था करनी चाहिए अन्यथा देश को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ सकता है।