दिलीप कुमार का कॉलम : संविधान के चार स्तंभों की चुप्पी-ब्राह्मण समाज पर हमला क्यों?
By: Dilip Kumar
7/20/2025 1:05:51 AM
भारत के लोकतंत्र की नींव चार मजबूत स्तंभों पर टिकी है—विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। इनका दायित्व केवल शासन को संतुलित रखना ही नहीं, बल्कि समाज के सम्मान और संविधान की मर्यादा की रक्षा करना भी है। लेकिन आज जब देश के गौरवशाली इतिहास, उसके महापुरुषों और एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ सुनियोजित ढंग से जहर उगला जा रहा है, तब इन चारों स्तंभों की चुप्पी सवालों के घेरे में है।
मंगल पाण्डेय: स्वतंत्रता की पहली चिंगारी पर कालिख
मंगल पाण्डेय, 1857 की क्रांति का वह सिपाही, जिनकी कुर्बानी ने गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की शुरुआत की। आज उन्हीं मंगल पाण्डेय के योगदान को कुछ तथाकथित इतिहासकार और राजनीतिक एजेंडा धारक संदेह के घेरे में ला रहे हैं। उनकी छवि को धूमिल करने के लिए तरह-तरह की अशोभनीय टिप्पणियां की जा रही हैं। यह न केवल इतिहास के साथ अन्याय है बल्कि आज की पीढ़ी के सामने गलत उदाहरण भी है।
ब्राह्मण समाज पर सुनियोजित प्रहार
ब्राह्मण समाज, जिसने भारतीय संस्कृति, शिक्षा और ज्ञान परंपरा को हजारों वर्षों तक संजोए रखा, आज कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। फिल्में, टीवी डिबेट और सोशल मीडिया पोस्ट में इस समाज के खिलाफ लगातार विष वमन किया जा रहा है। जातीय राजनीति के नाम पर यह प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है कि ब्राह्मण समाज सभी समस्याओं का कारण है। क्या यह वही समाज नहीं है जिसने देश को आर्यभट्ट, चाणक्य, रामानुजन और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे महान व्यक्तित्व दिए?
अटल बिहारी वाजपेयी: राष्ट्रपुरुष पर आक्षेप
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन एक आदर्श राजनेता का प्रतीक है। उनकी राजनीतिक शुचिता, काव्यात्मकता और सर्वसमावेशी दृष्टिकोण ने उन्हें सभी दलों में सम्मान दिलाया। लेकिन आज उनके ऊपर भी अमर्यादित टिप्पणियां की जा रही हैं। ऐसे राष्ट्रपुरुष को भी राजनीतिक लाभ के लिए निशाना बनाना लोकतंत्र के मूल्यों पर सीधा हमला है।
चारों स्तंभों की भूमिका और मौन
जब संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, तो साथ ही यह भी अपेक्षा करता है कि अभिव्यक्ति मर्यादा के दायरे में हो। न्यायपालिका को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए, मीडिया को निष्पक्षता दिखानी चाहिए, विधायिका को सर्वसमावेशी कानून बनाने चाहिए और कार्यपालिका को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। लेकिन आज इन चारों स्तंभों का मौन रहना यह बताता है कि समाज के एक वर्ग और उसके महापुरुषों के सम्मान की रक्षा करने का दायित्व आम जनता पर छोड़ दिया गया है।
आस्था और सम्मान की रक्षा करें
यह समय है कि लोकतंत्र के चारों स्तंभ अपनी जिम्मेदारी निभाएं और समाज में नफरत फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करें। मंगल पाण्डेय और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राष्ट्रपुरुषों का सम्मान केवल एक समाज का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र का सम्मान है। अगर इस तरह के हमलों पर लगाम नहीं लगी तो आने वाली पीढ़ियों के लिए भारत का गौरवशाली इतिहास केवल एक विवाद का विषय रह जाएगा।