अजित दोभाल ने जब सुरक्षा में इमरान ख़ान और जिनपिंग को मात दी!

By: Dilip Kumar
3/1/2021 6:57:09 PM
नई दिल्ली

चाहे वह पाकिस्तान हो या चीन हो, अजित डोभाल के नाम से ही दुश्मन दल में खलबली मच जाती है। आज विश्व सुरक्षा में अमेरिका, रूस, बर्तनिया चीन व फ़्रांस में सबसे अधिक विश्वसनीय और नंबर एक नाम है — अजित दोभाल, जोकि आजकल भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलहकार हैं। पाकिस्‍तान के लिए डोभाल कुछ ज्‍यादा ही विशेष हैं। इसकी कुछ खास वजहें हैं। डोभाल के सहारे भारत ने पाकिस्‍तान को पिछले तीन-चार दशक में अच्‍छी-खासी चोट पहुंचाई है, जिसमें डो सर्जिकल स्ट्राईक्स वर्णनीय हैं। देश के भीतर दुश्‍मनों से निपटने के साथ-साथ विदेश में, खासतौर पर पाकिस्‍तान में डोभाल ने अपने काम से अलग छाप छोड़ी है। जिस प्रकार से इस व्यक्ति ने कार्य किया है, उसे अंग्रेज़ी में “गो-गेटर”, अर्थात सिकंदर कहा जाता है।

भारत और पाकिस्‍तान, सीमा पर शांति बहाल करने के लिए 2003 में हुए संघर्ष विराम समझौते का पूरी तरह पालन करने पर राजी हुए हैं। इस हफ्ते दोनों देशों के डीoजीoएमoओo (डायरेक्‍टर जनरल्‍स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस) के बीच हॉटलाइन पर बातचीत हुई। दोनों देशों की तरफ से एक साझा बयान भी जारी किया गया। डीoजीoएमoओo स्‍तर की बातचीत के पीछे राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का अहम रोल रहा है। डोभाल ने न‍ सिर्फ पाकिस्‍तानी सेना, बल्कि वहां की सरकार से भी महीनों बैक चैनल बातचीत की। विभिन्‍न मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वो डोभाल ही थे जिनकी कोशिशों के चलते दोनों देशों के रिश्‍तों पर लंबे अरसे से जमी बर्फ पिघली और थोड़ी-बहुत बातचीत की शुरुआत हुई है। डोभाल का मानना है कि जवान चाहे किसी भी डीएसएच का हो, वक भी किसी का बेटा, भाई या सुहाग होता है। अतः हिन्द-पाक बार्डर पर फुजूल की गोला-बारी में अपनी जान क्यों गंवाए। अजित डोभाल की यह बात सोलह आने सच है।

डोभाल ने सुरक्षा मामलों में पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के विशेष सलाहकार मोईद खान यूसुफ से किसी तीसर देश में मुलाकात की थी। डोभाल का दिमाग ज़बरदस्त चलता है और उनहों ने ने पाकिस्‍तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से बातचीत के चैनल्‍स की खोले रखे, ठीक विख्यात शायर अहमद फ़राज की इन पंक्तियों के अनुसार: “तू हमेशा दशना (तलवार) ही लहराता रहा है/ क्या तू ने कभी अपने दुश्मन से लिपट कर देखा है!”। डोभाल ने इन दोनों को बातचीत में शामिल करना इसलिए जरूरी समझा क्‍योंकि यूसुफ इमरान के बेहद करीबी हैं और बाजवा की अहमियत वहां सेना प्रमुख होने नाते काफी ज्‍यादा है। केवल चुनिंदा लोगों को ही थी बातचीत की जानकारी थी जिनमें प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर शामिल थे।

मगर पाकिस्तान की तो आदत है अहमकाना हरकतें करने की और जब पिछले गुरुवार को जॉइंट स्‍टेटमेंट जारी हुआ और डोभाल-यूसुफ के बीच मुलाकात की रिपोर्ट्स आईं तो उन्‍होंने इससे इनकार किया। एक ट्वीट में मोइद यूसुफ ने कहा कि 'ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है' और ऐसे दावे 'आधारहीन' है। वैसे तंत्र के सूत्रों के आधार पर लिखा है कि पब्लिक ओपिनियन को देखते हुए भारत हो या पाकिस्‍तान, दोनों में कोई देश इस बारे में डीटेल्‍स सामने नहीं रखेगा।

ठीक इसी प्रकार से अजित डोभाल ने चीन के साथ सीमा पर जारी तनाव को कम करने में भी अहम भूमिका निभाई थी। पिछले साल गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद, डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ करीब दो घंटे तक वीडियो कॉल पर बात की थी। इसी बातचीत के बाद, दोनों देशों के बीच एलओ oएoसीo (लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल) पर टोटल डिसइंगेजमेंट अर्थात पूर्ण रूप से अपने-अपने स्तनों पर वापिस जाना, पर सहमति बनी। बक़ौल एनoएसoएo, डोभाल ने दोनों पड़ोसी देशों के साथ हाल के दिनों में बैक चैनल द्वारई भी बातचीत जारी रखी है। इमरान खान भले ही क्रिकेट के सम्राट रहे हों अपने युग में मगर विश्व में राष्ट्रीय सुरक्षा के किसी भी देश के सुरक्षा सलाहकार, चाहे वह अमेरिका के हों या चीन के, रूस के हों या फ़्रांस के, इस सबके दिमाग कार के रफ्तार से चलते हैं तो दोभाल का दिमाग हवाई जहाज़ की रफ्तार से उड़ता है, यह पड़ोसी देशों, पाकिस्तान और चीन के साथ दुनिया ने भी देखा है।

उधर जब गृहमंत्री अमित शाह ने 370 हटाने का संसद में एलान किया तो इस से पूर्व अजित दोभाल की टीम कश्मीर में न केवल इसको शांतिपूर्ण रूप से लागू करने का मोर्चा संभाल चुकी थी बल्कि पूर्ण रूप से कश्मीरी नागरिकों के साथ भी घुल-मिल गई थी किसके वीडियो में विश्व ने कश्मीरी बुज़ुर्गों और नौजवानों को उनके साथ शोपियान, बांदीपुरा आदि की सड़कों पर बिरयानी खाते हुए देखा था। यह सुरक्षा स्तर पर दोभाल द्वारा और सामाजिक स्तर पर राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ मुस्लिम नवाज़ नेता इंदरेश कुमार के अनथक कोशिशों के कारण हुआ था। जहां इंदरेशजी 12 वर्ष कश्मीरी मुस्लिमों का दिल जीतने में लग रहे, वहीं दोभाल ने सुरक्षा के चक्रव्यूह को पाकिस्तान में भेस बदल कर पूर्ण रूप से सुरक्षा की दृष्टि से कश्मीर में दो विधान और दो झंडों को एक भारतिए विधान व एक झंडे में तब्दील किया।

इनद्र्श्जि का कहना है जिस प्रकार से दोभाल ने भारत को आंतरिक और बाह्ये सुरक्षा प्रदान करने को वैज्ञानिक तकनीक से जोड़ा है ऐसा तो अमेरिका और चीन के सुरक्षा सलाहकार भी नहीं कर पाए। यह बिलकुल सच है क्योंकि अपनी दक्ष सुरक्षा व सैन्य वार्ताओं में डोभाल ने जिनपिंग को समझा दिया है कि जह्न भारत को 4-5 युद्धों का तजर्बा है वाहन चीन को इसकी समझ नहीं और यदि छें ने भारत पर आक्रमण किया या अपनी विसतारवादी टेढ़ी आकन्ह से डेका तो न केवल वह आँख निकाल डी जाएगी बल्कि चीन के लिए भारत भस्मासुर साबित होगा। हाँ यह भए चीन के कह दिया गया है कि युद्ध हुआ तो भारत को भी क्षति होगी मगर चीन को भारी क्षति का सामना करना पड़ेगा जैसा कि बेटी जून को हमारे 20 जवानों की शहादत के बदले 40 छेनी फ़ौजियों को मूत के घाट उतार दिया गया था।

जिंपिंग एंड कंपनी समझ चुके हैं कि भारत से सैन्य रूप में उलझने का नतीजा चीन के लिए केवल और केवल हार है। यह बात चीन का दुम हिलाता (चूंकि सभी व्यक्ति हूँ, “कुत्ता” तो नहीं कहूँगा!) मित्र, पाकिस्तान भी समझ चुका है। ईमानदारी की बात तो यह है कि इमरान जोकि वास्तव में एक सुलझे हुए व्यक्ति हैं, जैसा कि मेरे दो पूर्व साक्षात्कारों में मैं ने उन्हें समझा, उनकी राजनीतिक मजबूरी है कि वे सेना अर्थात आईoएसoआईo के कहने में चलें। पाकिस्तान में चुनाव से पूर्व वे भारत में एक क्रिकेट विश्व प्रतियोगिता में “आजतक” चैनल के बुलावे पर आए थे और भारतिए प्रधानमंत्री मोदीजी से भी मिले थे और मोदी ने उन्हें पाकिस्तान जैसे उलझे हुए देश में चुनाव जीतने का नुस्खा बताया था जिस पर वे कारगर रहे और जीते, मगर आईoएसoआईo के बहकावे में आकार मोदी और भारत को बुरा-भाला कहते रहते हैं। हो सकता है हॉटलाइन पर फोन कर मोदीजी से माफी मांग लेते हों कि दबाव के तहत ऐसा कर रहे हैं!

संघ के सरकार्यवह, डाo कृष्ण गोपाल का मानना है कि देश की सुरक्षा केवल बॉर्डर पर सैनिकों को तैनात करने से नहीं होती, बल्कि कुछ ऐसे समर्पित देशभक्तों की जरूरत होती है, जो देश के लिए गुमनामी जिंदगी बिताते हुए दुश्मन के बीच में रहकर सेना को जानकारियाँ मुहैया कराएं जिससे देश के दुश्मनों का जड़ से खात्मा हो सके। इन्हीं देशभक्तों में अजित डोभाल का बड़ा नाम है, जिन्होंने अपनी जिंदगी के 40 साल देश की रक्षा खातिर गुमनामी में बिताए और कई बार आतंकी अटैक से देश को बचाया। उनहोंने बताया कि आज देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर कार्य हुए पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सफल सर्जिकल स्ट्राइक कर दुश्मन देश की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा चुके हैं डोभाल।

अजित डोभाल का जन्म उत्तराखंड के पौरी गढ़वाल के गढ़वाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी रगों में एक फौजी का खून दौड़ रहा है क्योंकि उनके पिता एक आर्मीमेन थे, इसलिए उनकी प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर मिलिटरी स्कूल में हुई। इसके बाद वे आईपीएस की तैयारी में लग गए। 1967 में उन्होंने आगरा यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में पहली पोजीशन के साथ मास्टर की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे आईoपीoएसo की तैयारी में लग गए और 1968 में केरल केडर से कम्पीट किया और पुलिस अफसर बन गए। इसके चार साल बाद वे 1972 में इंटेलीजेंस ब्यूरो से जुड़ गए। यहीं से उनके जीवन का नया रूप जासूस के रूप में नया स्टार्ट हुआ, जिसे उन्होंने बखूवी निभाते हुए 1980 में मिजोरम में उग्रवाद फैलाने वाले मिज़ो नेशनल फ्रंट के 7 में से 6 कमांडर को अपनी चतुराई से अपनी ओर करने में कामयाब करे, जिससे मिज़ो नेशनल फ्रंट की कमर टूट गई। इसके बाद मिजोरम में शांति स्थापित हुई।

इसी तरह वे अपनी जासूसी दायित्व को निभाते हुए 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर हुए आतंकी हमले का बदला लेने के नियत से भारतीय सेना द्वारा चलाये जा रहे काउंटर ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत कार्य करते हुए एक रिक्शाचालक के वेश में मंदिर के अंदर गए और खलिस्तानियों की हर जानकारी आर्मी को दी। जिससे भारतीय आर्मी को खलिस्तानियों को मारने में कोई दिक्कत नहीं हुई और यह ऑपरेशन सफल रहा। 1999 में जब पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा भारतीय हवाई जहाज को कंधार में हाईजैक कर लिया गया था, तब अजित डोवाल को ही यह ज़िम्मेदारी दी गई कि वे उस जहाज में सवार सभी यात्रियों को सुरक्षित बचा लाये। जिसे वे अपने उत्क्रष्ट कौशल और वीरता से पूरा करने में सफल रहे और वे इसी तरह नौ बार प्लेन हाईजैक होने से बचाने में कामयाब रहे।

अजित डोभाल की काम की यह खासियत है कि वे दुश्मन के घर में घुसकर उन्हीं के साथ रहकर जानकारियाँ जुटाते है जिसका सबूत उनकी इस घटना से मिलता है जब उन्होंने एक मुस्लिम के भेष में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम करते हुए पाकिस्तान में 7 साल बिताए। इस दौरान उन्हें किसी ने शक तक नहीं किया। कभी वे आपस में फूट पड़वा कर लड़ा भी देते है। फिर भारतीय सेना उनकी जानकारियों पर आगे की कार्यवाही करती है। उन्होंने 2015 में अपनी एक्टिविटी दिखाते हुए म्यांमार में पल रहे उग्रवादियों को सीमा में घुस कर मारा, जिसका नेतृत्व वे खुद कर रहे थे और 29 सितंबर 2016 की रात को वे पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में सफल सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद के शोभायमान बने हुए है । और 29 सितंबर 2016 की रात को वे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सफल सर्जिकल स्ट्राइक ऑपेरेशन कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद के शोभायमान बने हुए है। यही वजह हैं कि उन्हें भारत या रियल लाइफ का जेम्स बॉन्ड कहा जाता है।

                                      मौलाना आजाद के पौत्र का अपमान क्यों ? - Why firoz bakht ahmed grandson of  Maulana Azad is humiliated in university                       - फिरोज बख़्त अहमद

    कुलाधिपति: मानू, हैदराबाद


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