"कौन चला गया ?"

By: Imran Choudhray
6/27/2024 11:32:55 AM

हम क्यों मौन हैं, पूछते क्यों नहीं कि हम कौन हैं

मैंने कहा ओ! मेरे भाई
AI ,
बताओ तो सही - हू एम आई ?

AI ने खट से अपने विचार परोसे
अब आप बताओ AI के रहें भरोसे
या गीता ज्ञान के भरोसे
चलिए गीता से बात करते हैं
गीता से ज्ञात करते हैं
वो बचपन की काया, ये पचपन की काया बिल्कुल भिन्न है
एक चीज जो बदली नहीं
वही तो हमारा पहचान चिह्न है

और गीता में लिखा है

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारों यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति।।

एक देही है, एक देह है
इस देह के अंदर जो देही है - आत्मा है
और जो देह है यह बदल रही है
पहले हम बालक हैं
फिर किशोर हैं, फिर युवा ~हैं~ ,फिर वृद्ध ~हैं~, फिर हम शरीर छोड़ देते हैं
और जो धीर पुरुष होता है, इस परिवर्तन से विचलित नहीं होता है

और यही तो बता रहें है बड़े-बड़े महात्मा
कि हम ये शरीर नहीं, हम हैं आत्मा

एक इंसान जब मर जाता है उसका मारा हुआ शरीर पड़ा हुआ है
रोने वालों का सैलाब खड़ा हुआ है
रोते हैं, चिल्लाते हैं चले गये, चले गये, चले गये
पूछो उनसे कौन चला गया ?

मरने से पहले जैसा शरीर दिखता है
मरने के बाद भी वैसा ही दिखता है
जो चला गया वो आत्मा है
और यही तो शास्त्र लिखता है
बात नहीं है कठिन, नहीं है समझने में कोई लफड़ा
जैसे हम बदलते हैं कपड़ा, वैसे आत्मा बदलती है शरीरों का कपड़ा
और मेडिकल साइंस ने भी माना है
ये शरीर पूरा बदल जाता है 7 से 10 साल में
आत्मा जो बदलती नहीं रहती है उसी हाल में

और ये शरीर होता यदि केमिकल का थैला
तो कैसे स्वभाव दिखा पाते कभी प्यार का, कभी गुस्से का तो कभी झगड़ैला

ये समझ बहुत अनमोल है
हमारी असली पहचान आत्मा है सोल है


लेखक : कृष्ण पाद दास


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