सावन का महीना आते ही उत्तर भारत की सड़कों पर भगवा रंग का एक सैलाब उमड़ पड़ता है। ये कोई राजनीतिक रैली नहीं, बल्कि करोड़ों शिवभक्तों की आस्था का उत्सव है—कांवड़ यात्रा। हर वर्ष यह यात्रा न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी एक अद्भुत आयोजन बन चुकी है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस महापर्व को कुछ लोग—चाहे वह विपक्ष के राजनेता हों या टीआरपी के भूखे कुछ मीडिया चैनल—सिस्टम और समाज के खिलाफ ‘अराजकता’ के प्रतीक के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
आस्था पर एजेंडा हावी?
पिछले दिनों एबीपी न्यूज के एक चर्चित एंकर और विपक्षी नेताओं की टिप्पणियों ने जिस तरह कांवड़ यात्रा को ‘कानून-व्यवस्था की समस्या’ और ‘सामाजिक तनाव’ के रूप में प्रस्तुत किया, वह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है। संदीप चौधरी जैसे एंकर अपने डिबेट शो में कांवड़ियों को “हुलड़बाज” और “सड़कों पर आतंक फैलाने वाले” कहकर जिस तरह की भाषा का उपयोग कर रहे हैं, वह न केवल असंवेदनशील है, बल्कि करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं पर चोट है।
वास्तविकता क्या है?
सच्चाई यह है कि सरकार और प्रशासन ने हर साल कांवड़ यात्रा को सुचारू और सुरक्षित बनाने के लिए विशेष इंतजाम किए हैं। जगह-जगह शिविर, स्वास्थ्य सेवाएं, ट्रैफिक प्लानिंग और कड़ी सुरक्षा व्यवस्था यह दिखाती है कि यह यात्रा केवल आस्था का ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक समन्वय का भी उदाहरण है। यह सही है कि इतनी बड़ी भीड़ में कुछ छिटपुट घटनाएं हो सकती हैं। लेकिन क्या इन गिने-चुने मामलों के आधार पर पूरे कांवड़ समाज को अपराधी करार देना उचित है? क्या यह वही मीडिया नहीं है जो कुछ और समुदायों के लिए एक भी आलोचना को ‘सांप्रदायिक’ करार देता है?
विपक्ष की भूमिका
विपक्ष के कुछ नेता इस यात्रा को ‘ध्रुवीकरण’ का हथियार बता रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वे लोगों की आस्था को राजनीतिक चश्मे से देखने की गलती नहीं कर रहे? भारत की सभ्यता में कांवड़ यात्रा जैसी परंपराएं हजारों वर्षों से हैं। इन्हें किसी सरकार ने शुरू नहीं किया, इन्हें तो करोड़ों लोगों के दिलों ने जिया है।
आस्था पर प्रहार बंद करें
मीडिया और विपक्ष को समझना होगा कि करोड़ों शिवभक्तों की भावनाओं से खेलने का नतीजा वही होगा जो हमेशा हुआ है—जनता का आक्रोश। उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि कांवड़ यात्रा भारत की सांस्कृतिक विरासत है, न कि कोई ‘लॉ एंड ऑर्डर’ समस्या। सवाल यह नहीं कि कांवड़ यात्रा क्यों हो रही है, सवाल यह है कि कुछ एजेंडा चलाने वाले क्यों बार-बार आस्था को निशाना बना रहे हैं।
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