वृंदावन में हर गली, हर घाट, हर मंदिर राधा-कृष्ण के नाम से गूंजता है। भजन-कीर्तन की धुनें वातावरण को सुगंधित करती हैं और यमुना के तट पर श्रद्धा की लहरें निरंतर बहती हैं। क्या उस पवित्र भूमि पर शराब जैसी अपवित्र चीज़ की कोई जगह हो सकती है? यह नगर केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों के लिए आस्था, प्रेम और मोक्ष का जीवंत केंद्र है। यहाँ का जीवन मंदिरों की घंटियों, तुलसी की महक और रास-लीला की कथाओं से बुना गया है। ऐसे दिव्य वातावरण में शराब का प्रवेश न केवल परंपराओं के विरुद्ध है, बल्कि इस भूमि की आत्मा को चोट पहुँचाने जैसा है। वृंदावन में शराब का होना उतना ही असंगत है, जितना किसी मंदिर के गर्भगृह में अपवित्र वस्तु का रखा जाना। यह केवल एक सामाजिक प्रश्न नहीं, बल्कि सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और नैतिक उत्तरदायित्व का विषय है। इसका उत्तर सदैव और स्पष्ट है: नहीं, बिल्कुल नहीं।
वृंदावन की आध्यात्मिक पहचान
वृंदावन कोई साधारण नगर नहीं। यह वह भूमि है जहाँ श्रीकृष्ण ने अपने बाल्यकाल और युवावस्था की दिव्य लीलाएँ कीं। यहाँ की मिट्टी, यहाँ की हवाएँ, यहाँ का हर कोना भक्ति और प्रेम की सुगंध से भरा है। तीर्थयात्रा के लिए आने वाले लोग यहाँ आत्मिक उन्नति, मन की शांति और धर्म का अनुभव करने आते हैं। शराब जैसी नकारात्मक और विनाशकारी वस्तु का इस वातावरण में होना स्वयं में एक विरोधाभास है। यह केवल धार्मिक भावना का अपमान नहीं, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा के उद्देश्य के विपरीत है।
शराब का सामाजिक और सांस्कृतिक दुष्प्रभाव
शराब को अक्सर "व्यक्तिगत पसंद" कहकर सही ठहराने की कोशिश की जाती है, लेकिन वास्तविकता यह है कि इसका असर केवल पीने वाले तक सीमित नहीं रहता। यह हिंसा, दुर्घटनाओं और अपराध की संभावना को कई गुना बढ़ा देती है। परिवारों को तोड़ती है, रिश्तों में दरार डालती है। युवाओं को गलत दिशा में ले जाती है। तीर्थस्थलों की गरिमा और सुरक्षा को खतरे में डाल देती है। पिछले कुछ वर्षों में पूरे देश से ऐसे उदाहरण मिलते रहे हैं, जहाँ शराब ने धार्मिक आयोजनों और तीर्थस्थलों पर हिंसा, उत्पात और अपमानजनक स्थितियाँ पैदा की हैं। वृंदावन जैसी आध्यात्मिक नगरी इन जोखिमों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती।
धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी की परंपरा
भारत में कई पवित्र स्थलों पर वर्षों से शराब पर पूर्ण प्रतिबंध है। वाराणसी के कुछ हिस्सों में, हरिद्वार, मथुरा के कुछ क्षेत्रों में, पुष्कर (राजस्थान) जैसे तीर्थों में शराब और मांस दोनों प्रतिबंधित हैं। यह न केवल धार्मिक मर्यादा बनाए रखने के लिए है, बल्कि तीर्थ का वातावरण निर्मल और सुरक्षित रखने के लिए भी है। वृंदावन का महत्व तो इन सब में अद्वितीय है। यह श्रीधाम है। वैष्णव संस्कृति का हृदय स्थल है। यहाँ तो शराबबंदी और भी अधिक आवश्यक है।
सरकार और समाज की साझी जिम्मेदारी
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने अतीत में कई धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों पर सुधार और संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाए हैं। वृंदावन में शराबबंदी लागू करना इसी दिशा में एक और ऐतिहासिक कदम होगा। परंतु यह केवल सरकार का कार्य नहीं है। यह प्रत्येक वृंदावनवासी, हर दुकानदार, हर संगठन और हर श्रद्धालु का कर्तव्य है कि वे इस मुहिम में सहयोग करें और नशामुक्त वातावरण बनाए रखने के लिए संकल्प लें।
अब कार्यवाही का समय है
हाल ही में घटी दुखद घटना ने हमें जगा दिया है। लेकिन हमें केवल शोक तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसका ठोस समाधान निकालना चाहिए। वृंदावन में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध न केवल अपराध और दुर्घटनाओं को रोकने का उपाय है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, आस्था और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य उपहार भी होगा। आइए, हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि इस पावन धाम की पहचान केवल प्रेम, सेवा और शांति से ही हो और कभी भी शराब जैसी विनाशकारी चीज़ से नहीं।
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