सत्य प्रकाश का कॉलम : शिक्षा क्षेत्र की व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता 

By: Dilip Kumar
8/4/2025 3:29:17 PM

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। शिक्षा मानव को मानवता व इन्सानियत के मार्ग पर ले जाने का सशक्त माध्यम है । साक्षरता और शिक्षा व्यवस्था किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होती है। देश में प्राथमिक शिक्षा के भविष्य के लिए गंभीर संकेत मिलते रहे हैं। समग्र साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए समग्र और प्रभावी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था निर्माण पर सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए । प्राथमिक शिक्षा भविष्य की शिक्षा की नींव रखने के सबसे आधारभूत चरणों में से एक है जो व्यक्ति को दैनिक जीवन में आगे बढ़ाने में सहायक होती है। शिक्षा का ही दूसरा नाम अध्ययन या ज्ञान है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण प्राप्त करता है जिससे मानवता, इन्सानियत और संवैधानिक मूल्यों का विकास संभव होता है ।

भारत की पहली टीचर सावित्रीबाई फुले जबकि विश्व में आधुनिक शिक्षा का जनक 'जान एमोस कोमेनियस' और भारत में आधुनिक शिक्षा के जनक 'लॉर्ड मैकाले' को माना जाता है । शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है जो मानव समाज के विकास के साथ विकसित हुई। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है जिसमें माता-पिता अपने बच्चों को चलना ,बोलना अन्य बुनियादी चीज सिखाकर इंसान बनाती हैं। भारत में व्याप्त असमानता, भ्रष्टाचार और अव्यावहारिकता को दूर करने में प्राथमिक शिक्षा महत्वपूर्ण है । इसलिए प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में पर्याप्त सुधार हेतु वर्ष 2009में शिक्षा को मौलिक अधिकारों में शामिल किया गया। किन्तु सरकार संविधान के अनुरूप कार्य न कर सकी इसलिए यकी आवश्यकता है। कुछ खास क्षेत्र यह क्षेत्र पिछड़ गया।

उत्तर प्रदेश सरकार स्कूल मर्ज करने के नाम पर अभी 27000 प्राथमिक विद्यालय बंद कर रही है। जबकि सरकार बुनियादी काम करके प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार कर सकती है। जैसे -

* प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं और आवश्यकताओं तथा बुनियादी ढांचे में अभूतपूर्व सुधार करे।
* अवसरों की समानता और सामाजिक न्याय प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में भी लागू करके संवैधानिक मूल्यों या मान्यताएं स्थापित करे ‌।
* सरकार प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र के स्कूल प्रशासन , शिक्षक तथा अन्य अभिभावकों के मध्य विश्वास उत्पन्न करे।
* सरकार प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त शिक्षकों की कमी को दूर करे योग्य और प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति यथाशीघ्र करे।
* प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में नवीन प्रशिक्षित ,नवीन शिक्षण पद्धतियों को लागू करे।
* प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में मर्जर व्यवस्था को अभिलंब समाप्त करके समाज को प्राथमिक शिक्षा के प्रति जागरूक करें।

प्राथमिक शिक्षा सबसे बड़ा सम्मान दिलाने वाला कारक है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 जिसने शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया और 6 से 14 वर्षायु के बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य स्कूल शिक्षा सुनिश्चित की किंतु आज तक अधिनियम को लागू हुए 16 वर्ष बीत गए किंतु अभी तक प्राथमिक शिक्षा समान रूप से समाज के कोने-कोने तक नहीं पहुंच पाई है । आखिर क्यों नहीं पहुंच पाई ? प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को देखकर ऐसा लगता है कि प्राथमिक शिक्षा समाज में एक दूर का सपना बना हुआ है। क्योंकि प्राथमिक शिक्षा के प्रति केंद्र और राज्य सरकार की अस्पष्ट स्थिति, कार्यशैली, नीतियों और जन असहयोग भाव प्रमुख कारण हैं।

न्यायोचित सरकारी हस्तक्षेप और उचित नीतियों तथा नागरिक समाज के सहयोग से हम भारत में प्राथमिक शिक्षा की संरचना को सभी पृष्ठभूमि के बच्चों के बीच प्राथमिक शिक्षा को पहुंचाकर इसमें सार्वभौमिक भागीदारी के साथ पुनर्परिभाषित कर सकते हैं। भारत एक विविधता पूर्ण राष्ट्र में किसी भी विकासात्मक प्रयास को शुरू करने से पूर्व विशेष रूप से शिक्षा के तेजी से विकसित होते पर दृश्य के बीच साक्षरता की एक ठोस प्रभावी नीति स्थापित करनी अत्यंत आवश्यक है । शिक्षा के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा प्राप्त हो सके। वे समाज और राष्ट्र के अच्छे नागरिक बन सकें। आत्मनिर्भर बन सकें।

मूल रूप से उत्तर प्रदेश सरकार की वर्तमान में मर्जर शिक्षा नीति ने समाज को हिला कर रख दिया है। मर्जर शिक्षा नीति ना तो व्यावहारिक है ना तर्कसंगत है बल्कि यह तो सरकार की प्राथमिक शिक्षा के प्रति उदासीनता को ही प्रदर्शित करने वाली नीति सिद्ध हुई है। सरकार की हताशा,निराशा या प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों व उनके पाल्यों के प्रति नकारात्मक रूख के कारण 27000/- स्कूल बंद या मर्ज करने की योजना है जिसके तहत अब तक हजारों स्कूलों को मर्ज भी किया जा चुका है । यदि 27000स्कूल बंद हो गये तो 135000 अध्यापकों के पद समाप्त हो जायेंगे। काफी विरोध के बाद भी सरकार मर्ज कर रही है। सरकार का यह शिक्षा, समाज, संविधान और बेरोजगारों के विरुद्ध कदम है।क्योंकि प्राथमिक शिक्षा में शिक्षकों की कमी सरकार पूरा नहीं कर पा रही है। दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या क्यों घट रही है ? इस पर विचार करना अति आवश्यक है।

अध्ययन करने से ज्ञात हुआ है कि प्राथमिक शिक्षा में बच्चों की संख्या निरंतर घटने का मूल कारण है - सरकार की प्राथमिक शिक्षा के प्रति ढुलमुल नीति , शिक्षकों की कमी को पूरा न करना, शिक्षक ,छात्र और अभिभावक की जवाब दे ही सुनिश्चित न कर पाना भी एक मूल कारण है । प्राथमिक शिक्षा में शिक्षकों की कमी या शिक्षकों का बच्चों को न पढाना और सरकार की प्राथमिक शिक्षा के प्रति उदासीन या निम्नस्तरीय कार्यशैली का होना भी प्राथमिक शिक्षा के प्रति बेरुखी का एक कारण है। उत्तर प्रदेश सरकार की मर्जर शिक्षा नीति बेरोजगारों के लिए भी हितकर नहीं है। सरकार को प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है न कि प्राथमिक शिक्षण संस्थानों को मर्ज करने की और कुछ मूलभूत उपाय करके प्राथमिक शिक्षा को जन-जन तक पहुंच कर संवैधानिक उद्देश्य की पूर्ति कर सकती है जैसे-

* पर्याप्त अत्याधुनिक संसाधनों और प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को दूर कर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था बच्चों का स्कूल छोड़ने की दर को कम कर सकते हैं।शिक्षक, छात्र में विश्वास उत्पन्न करना तथा शिक्षक छात्र एवं अभिभावकों की जवाबदेही भी होनी चाहिए। सरकार सरकारी तंत्र की भी जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए।

निःसंदेह प्राथमिक शिक्षा में सुधार करके प्राथमिक शिक्षा को जवाब दे ही बनाया जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा के मूल उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय संविधान की मूल अवधारणा और मौलिक अधिकार के रूप में की गई व्यवस्था को प्राप्त किया जा सकता है । प्राथमिक शिक्षा में सुधार कर शिक्षक ,छात्र व अभिभावकों में विश्वास उत्पन्न करके प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को प्रभावशाली और सुस्पष्ट बनाया जा सकता है। फिर सरकार को प्राथमिक शिक्षण संस्थानों को मर्ज करने की आवश्यकता नहीं होगी। बेरोजगारों को रोजगार के दरवाजे भी प्राथमिक शिक्षा क्षेत्र में उपलब्ध होंगे। मर्जर शिक्षा नीति स्वत समाप्त हो जाएगी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सरकार की मर्जर शिक्षा नीति न तो छात्रों के पसंद है ना अध्यापकों को और न ही समाज को इसलिए उत्तर प्रदेश सरकार को इसे वापस लेकर शिक्षा व्यवस्था में मूलभूत संविधान के अनुरूप, समाज की मूल भावना के अनुसार सुधार किया जा सकता है। यही प्राथमिक शिक्षण संस्थानों, अध्यापकों, छात्रों और समाज के हित में होगा। संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप होगा।

( लेखक डॉ. बी आर अंबेडकर जन्म शताब्दी महाविद्यालय धनसारी अलीगढ़ में प्राचार्य हैं)


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