व्यंग्य - कमाल पश्चिमी बयार का

By: Dilip Kumar
3/28/2020 11:34:02 PM
नई दिल्ली

आज प्रात: समाचार पत्र के मुख पृष्ठ पर छपा समाचार पढ़ा। आज 'हार्ट डे'
है। इसे मनाने हेतु वृद्धों ने तीव्रगति से सैर की। कुछ बुजुर्गों ने
चिकित्सक से जांच कराई तथा युवाओं एवं बच्चों ने दौड़ लगाई। तले हुए
खाद्य पदार्थों का त्याग किया। बड़ी अच्छी बात है जनाब! नित्य प्रति ऐसा
करना तो नितांत समय की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। वैसे हम भारतीय
महा आलसी होते हैं, जो कभी सैर को जाते नहीं। व्यायाम में समय नष्ट करते
नहीं, चिकित्सक से कभी जांचम् कराते नहीं तथा सदा उल्टा-सीधा व अनाप-शनाप
खाते ही रहते हैं। यह तो हुई हार्ट की बात। अब जरा शरीर के अन्य भागों पर
बात करते हैं। याद रहे शरीर का कोई भी भाग वंचित न रहे। आंख, नाक, कान,
सिर, सिर के बाल, होंठ, जीभ, दांत, गाल एवं गला। संक्षेप में कहा जाए तो
सिर के बालों से लेकर पांव के अंगूठे तक जितने भी शरीर के भाग होते हैं,
सभी का दिवस मनाना होगा। जैसे 'केश दिवस' पर सिर के बालों के लिए कौन-सा
शैंपू, साबुन, तेल व क्रीम सर्वोत्तम है? उसे जांच-परखकर उपयोग करना
होगा। किसी विशेष ब्यूटी पार्लर पर जाकर हेड मसाज व सैट (किसी विशेष
मनभावन आकृति में) भी कराए जाने चाहिए। नेत्र दिवस पर नेत्र विशेषज्ञ पर
जाना कदापि न भूलें। यह तो एक बानगी मात्र है कि आप शरीर के सभी अंगों का
उसके दिवस पर ही किस प्रकार उसकी विशेष देखभाल करें, पर उसके विशेषज्ञ के
परामर्श के अनुसार ही करें।

हमारे शरीर के विभिन्न अंगों की भिन्न-भिन्न व्याधियां भी होती हैं तथा
शरीर के अंगों में होने वाली व्याधियों की भी एक बृहद सूची बनानी होगी।
उनकी सूची किन्हीं बहुत अच्छे डॉक्टर, वैद्य तथा हकीम से बनवानी होगी।
उचित होगा कि ओझाओं से भी परामर्श ले लिया जाए, परंतु ध्यान रहे कि यदि
एक भी व्याधि आपकी सूची से रह गई, उसी से आपकी ऐसी शत्रुता होगी कि वही
आपकी जान लेकर रहेगी।

चलो! अब आगे चलते हैं तथा रिश्तों की बात करते हैं। इन रिश्तों की भी एक
लंबी सूची बनने वाली है। उदाहरणार्थ माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची,
ताऊ-ताई, मामा-मामी, बुआ-फूफा, साला-सलहज, साली-साढ़ू, बहन-बहनोई,
अध्यापक-अध्यापिका इत्यादि। इसमें भी आप किसी अनुभवी बुजुर्ग का
मार्गदर्शन अवश्य लें, क्योंकि उसे ही भली-भांति सब रिश्तों का ज्ञान
होगा, पर मैं भी महामूर्ख हूं कि इतना भी नहीं जानता कि पश्चिमी समाज में
तो अंकल व आंटी में ही परिवार के सारे रिश्ते समा जाते हैं। न जाने क्यों
'मदर डे' व 'फादर डे' को अलग-अलग रख दिया, अन्यथा इन्हें भी अंकल में ही
डुबो देते। अब इतिहास पर दृष्टि डालें तो कर्ण महा मूर्ख ही था, जिसने
अपने मित्र दुर्योधन पर प्राण न्यौछावर कर दिए। बड़ी साधारण-सी बात थी कि
'मित्र दिवस' पर एक भारी-भरकम राजोचित्त उपहार दुर्योधन को भेंट कर ही
काम चला लेता। एकलव्य को तो बात करनी ही व्यर्थ है, जिस मूर्ख को गुरु
द्रोण ने विद्या सिखाने से तो मना कर दिया, फिर भी उसने द्रोण को गुरु
माना। द्रोण के गुरुदक्षिणा मांगने पर गुरुदक्षिणा में अपने दाएं हाथ का
अंगूठा ही काटकर दे डाला। उसके लिए भी उचित यही था कि 'शिक्षक दिवस' पर
द्रोण के चरण स्पर्श कर, उनके व्यक्तित्व के अनुरूप कुछ भी भेंट कर पीछा
छुड़ा लेता। अंगूठा देना मूर्खता की पराकाष्ठा ही तो है।

दिवसों की सूची में किसको रखें व किसे छोड़ें, इसका निर्णय भला कैसे हो?
सम्मिलित सबको करना ही हमारी विवशता है। हाय री पश्चिमी सभ्यता व
रीति-रिवाज। तो चलिए करते हैं प्रयास। फलों की सूची न जाने कितनी लंबी
हो। अनाज, दलहन, वनस्पति इत्यादि की फेहरिस्त कितनी लंबी होगी, भगवान ही
जाने, पर ध्यान रहे जो भी वनस्पति छूट गई है वह इस भूमंडल से सदा के लिए
लोप हो जाएगी क्योंकि वह अपना अपमान न सहकर आत्महत्या कर लेगी। इन लंबी
सूचियों की सोच मात्र से ही अपने राम की तो आत्मा ही कांप जाती है। बाजार
में बिकने वाले तैयार खाद्य पदार्थों की भी अनदेखी नहीं करनी है। चॉकलेट,
अंकल चिप्स, कुरकुरे, टॉफियां और न जाने क्या-क्या, सबके दिवस मनाना
हमारी विवशता है। जिसका भी दिवस हो, वही वस्तु बच्चों को लाकर देनी ही
होगी। चाहे वह उसके लिए कितनी भी हानिप्रद क्यों न हो। न दिलवाने पर आजकल
की इकलौती संतान का रूठना, कैसे सहन कर पाएं। उनके तनिक रूठने पर उनकी
मम्मी के तो प्राण ही हलक में अटक जाते हैं। आखिर मां तो मां ही होती है
न। वैसे तो हम भारतवासी दिवस की केवल शुभकामना देकर ही काम चला लेते हैं।
यहां एक प्रसंग देना सार्थक रहेगा। मैंने गत वर्ष अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर
अपनी कुछ योग मुद्राएं फेसबुक पर डाली थीं। उद्देश्य तो यही था कि मैं
अपनी 83 वर्ष की वय में यह सब कर सकता हूं। तो मेरे फेसबुक साथी, चाहे वे
जिस भी वय के हों, वो भी इसे करें। एक सज्जन का शुभकामना संदेश प्राप्त
होने पर मैंने पूछा, ''शुभकामनाओं से काम चला लेते हो, या कुछ करते भी
हो?" उत्तर मिला ''हां कुछ करेंगे भी"। शुक्र है भगवान का, कुछ करने की
सोच तो उपजी, अन्यथा हमारे पास डॉक्टर के पास जाकर पैसे लुटाने का समय तो
है, परंतु स्वास्थ्य पर ध्यान देने का समय है ही कहां। फिर शरीर को कष्ट
देना कौन-सी बुद्धिमता है। पैसे वाला तो सब कुछ खरीद सकता है तो सेहत भी
खरीद लेंगे। बात चल रही थी सूचियां तैयार करने की। पता नहीं किसी ने
संसार के सभी प्राणियों, रिश्तों, वनस्पतियों, व्याधियों, उत्सवों आदि व
अन्य विशेष दिवसों की कोई लिस्ट बनाई भी है कि नहीं। बहुत सोच-समझकर उचित
स्त्रोत खोजकर सूचियां तैयार कर दिवस मनाने ही होंगे अन्यथा हम महामूर्ख,
पिछड़े व असभ्य कहलाएंगे। इसमें हम गूगल की सहायता भी ले सकते हैं, परंतु
गूगल पर जितने दिवस दर्शाए गए हैं, उनसे कहीं अधिक तो हम मना ही रहे हैं,
तो गूगल का आभार भी क्यों व्यर्थ में लें। एक दिन मेरे एक मित्र ने दिवस
मनाने की बात मुझे बताने का सुख प्राप्त किया। कहने लगे, ''यार अजीब
समस्या है, दिवस मनाने की भी।" 'हग डे' पर मैंने अपनी चचेरी बहन से कहा,
''आओ हग डे मनाएं।" वह बेचारी पढ़ी-लिखी तो नहीं है, ''बोली क्या पेट
साफ करने को जुलाब ले रखा है। हगना है तो पखाने में जाकर हग, जल्दी जा,
क्या यहीं हगेगा।" मैं अपना सिर पीटकर रह गया। तो अब सही मुद्दे पर
लौटते हैं। सभी सूचियों का योग करने बैठेंगे तो यह अनुमान से भी अधिक
लाखों में क्या करोड़ों में पहुंचेगा। चौरासी लाख योनियां तो हमारे
शास्त्रों में ही बताई गई हैं। वर्ष में दिन तो गिनती के कुल ही 365 होते
हैं तथा बढ़ाए भी तो नहीं जा सकते। एक दिन में कितने दिवस मनाने
पड़ेंगे?, यह तो सोचकर ही अपने राम की तो आत्मा ही कांप जाती है। ये तो
जब है कि हम भारतीय केवल औपचारिकता निभाने मात्र को ही दिवस मनाते हैं।
नेताओं को देखिए 'हिंदी दिवस' पर कितने प्रभावी भाषण झाड़ेंगे। मानो तो
इनसे अधिक तो कोई हिंदी प्रेमी अलादीन का चिराए लेकर ढूंढऩे पर भी नहीं
मिलेगा, परंतु यथार्थ के धरातल पर टांय-टांय फिस्स। स्वतंत्रता दिवस पर
जो लच्छेदार भाषण परोसेंगे। मानो इनसे बड़ा देशभक्त तो देश पर प्राणों को
न्यौछावर करने वाले हमारे शहीद भी नहीं होंगे। वे तो इनके आगे पानी भरते
नजर आएंगे।

गरीबी, निरक्षरता, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, कश्मीर समस्या, आतंकवाद,
पाकिस्तान और चीन जैसी समस्याएं भी इस एक समस्या के समक्ष बौनी प्रतीत
होती हैं कि एक दिन में हम कितने दिवस मनाएं? तो यह है पश्चिमी बयार का
वह तेज झोंका, जिससे हम निरीह, हताश व कितने विवश जान पड़ते हैं।
अंग्रेजों ने हमें 'इंडियन' कहा, जिसका अर्थ ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में लिखा
है- 'ओल्ड फैशंड, ऑफेंसिव', जिसका अर्थ है पुराने रीति-रिवाज के तथा
आपराधिक प्रवृत्ति के। हम अपने को 'भारतवासी' कहने से लज्जा से सिकुड़
जाते हैं, वहीं 'इंडियन' कहने में हमारा सीना गर्व से फूल जाता है। हां,
यही तो हमारी महानता है।


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